(न्यूयॉर्क) – ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज अपनी वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 में कहा कि भारत सरकार ने कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार या उसकी नीतियों की आलोचना करने वाले अन्य लोगों का अधिकाधिक लगातार उत्पीड़न किया, उन्हें हिरासत में लिया और उन पर मुकदमें चलाए.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नेतृत्ववाली सरकार ने मानवाधिकार रक्षकों, छात्र कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, विपक्ष के नेताओं और अन्य आलोचकों के खिलाफ व्यापक राजद्रोह और आतंकवाद-निरोधी कानून समेत राजनीतिक रूप से प्रेरित मामले दर्ज किए. सरकार ने इन्हें फरवरी में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा और साथ ही जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हुई जातीय हिंसा के लिए दोषी ठहराया. दोनों मामलों में, हिंसा में संलिप्त भाजपा समर्थकों पर मुकदमा नहीं चलाया गया. इन मामलों में पुलिस जांच पक्षपातपूर्ण थी और इसका उद्देश्य असहमति को दबाना और भविष्य के विरोध प्रदर्शनों को डराकर रोकना था. सरकार ने मुखर अधिकार समूहों को उनके मानवाधिकार कार्यों के लिए निशाना बनाने के वास्ते विदेशी सहायता कानून का भी इस्तेमाल किया.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि भारत सरकार ने असहमति जताने वालों में खौफ़ पैदा करने वाले व्यापक सन्देश भेजने के लिए शांतिपूर्ण आलोचना को दंडित करने का इरादा कर लिया है. मुसलमानों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर बढ़ते हमलों को रोकने के बजाय, भारत सरकार ने साल 2020 में आलोचना की आवाज को दबाने के लिए अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी.”
ह्यूमन राइट्स वॉच ने 761 पन्नों की विश्व रिपोर्ट 2021, जो कि इसका 31वां संस्करण है, में लगभग 100 से अधिक देशों में मानवाधिकारों की स्थिति समीक्षा की है. अपने परिचयात्मक आलेख में, कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ ने कहा कि नए अमेरिकी प्रशासन को अपनी घरेलू और विदेश नीति में मानवाधिकारों के लिए सम्मान को इस तरह से अन्तःस्थापित करना चाहिए जिससे कि यह सम्मान भविष्य में अमेरिकी प्रशासन में बाकायदा कायम रहे, जो कि मानवाधिकारों के लिए कम प्रतिबद्ध हो सकते हैं. रोथ ने जोर दिया कि ट्रम्प प्रशासन ने जहां मानवाधिकारों के संरक्षण से ज्यादातर किनारा कर लिया, वहीं अन्य सरकारों ने अधिकारों की हिमायत के लिए कदम बढाए. बायडन प्रशासन को चाहिए कि इस नए सामूहिक प्रयास को बेदखल करने के बजाय इसमें शामिल हो.
फरवरी माह में, दिल्ली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कम-से-कम 53 लोग मारे गए. हिंदू भीड़ के इस सुनियोजित हमलों में दो सौ से अधिक लोग घायल हुए, संपत्तियों को नष्ट किया गया और जन समुदाय विस्थापित हुए. हालांकि एक पुलिसकर्मी और कुछ हिंदू भी मारे गए, मगर पीड़ितों में अधिकांश मुस्लिम थे. ये हमले भारत सरकार की भेदभावपूर्ण नागरिकता नीतियों के खिलाफ कई हफ़्तों से चले आ रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बाद हुए.
भाजपा नेताओं द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा की खुलेआम वकालत करने के बाद हिंसा भड़की. गवाहों के विवरणों और वीडियो सबूतों से हिंसा में पुलिस की मिलीभगत सामने आई. दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली हिंसा “सुनियोजित और लक्षित” थी. आयोग ने यह भी पाया कि पुलिस ने हिंसा के लिए मुस्लिम पीड़ितों के खिलाफ मामले दर्ज किए, लेकिन इसे भड़काने वाले भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की.
अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर राज्य की संवैधानिक स्थिति रद्द करने और इसे दो केन्द्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद सरकार ने जम्मू और कश्मीर के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों पर कठोर और भेदभावपूर्ण प्रतिबंध लगाना जारी रखा. दर्जनों लोगों को बगैर किसी आरोप के क्रूर जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में रखा गया, जो बिना सुनवाई दो साल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है. सरकार ने आलोचकों और पत्रकारों पर भी दमनात्मक कार्रवाई की.
कोविड-19 महामारी ने इंटरनेट तक पहुंच को महत्वपूर्ण बना दिया है. हालांकि, इंटरनेट तक पहुंच को मौलिक अधिकार बताने वाले सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनवरी में दिए गए आदेश के बाद भी सरकार ने केवल धीमी गति वाली 2G मोबाइल इंटरनेट सेवाओं की अनुमति दी. ऐसे में डॉक्टरों ने शिकायत की कि यह स्थिति कोविड-19 के इलाज़ में बाधा पहुंचा रही है.
दलितों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई, यह कुछ हद तक प्रभुत्वशाली जातियों का प्रतिघात है जाति पदानुक्रम के लिए चुनौती के खिलाफ़. महिलाओं के खिलाफ भी अपराधों में वृद्धि हुई. सितंबर में, उत्तर प्रदेश के एक गांव में प्रभुत्वशाली जाति के चार पुरुषों द्वारा कथित सामूहिक बलात्कार और यातना के बाद 19 वर्षीय दलित महिला की मौत हो गई. सरकार की प्रतिक्रिया ने यह उजागर किया कि कैसे हाशिए के समुदायों की महिलाएं और अधिक संस्थागत बाधाओं का सामना करती हैं.
भारत में बढ़ते दमन की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भी जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन, कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और नागरिक समाज पर प्रतिबंधों पर चिंता व्यक्त की.