भारत 2030 में गुजरात के अहमदाबाद में सौवें कॉमनवेल्थ गेम्स की मेज़बानी करेगा. अहमदाबाद में ही भारत ने 2036 के ओलंपिक और पैरालंपिक गेम्स के आयोजन के लिए भी बोली लगाई है.
भारत ने पिछली बार 2010 में नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी की थी. इस आयोजन पर भ्रष्टाचार, ज़बरन बेदखली, मज़दूरों के अधिकारों के उल्लंघन और महिलाओं एवं लड़कियों की तस्करी के आरोप लगे थे. चूंकि भारत का सरकारी तंत्र खेल के बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं संबंधी नए निर्माण कर रहा है, उसे चाहिए कि मज़दूरों के अधिकारों सहित मानवाधिकारों को केंद्र में रखे.
भारत ने क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों में भी निवेश बढ़ाया है और युवा एवं ज़मीनी स्तर के कार्यक्रमों के लिए कुछ कदम उठाए हैं. जुलाई में, सरकार ने राष्ट्रीय खेल नीति 2025 की घोषणा की. इस घोषणा में खिलाड़ियों के लिए कल्याण कार्यक्रम, खेल प्रशासन के लिए कानूनी ढांचे और महिलाओं, विकलांगों एवं आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए के समुदायों के लोगों को शामिल करने संबंधी वादे किए गए हैं. यह एक ज़रूरी कदम है, चूंकि भारतीय खेलों में खराब प्रशासन और उत्पीड़न की जड़ें गहरी हैं, लिहाजा इस घोषणा को जमीन पर लागू करना सबसे महत्वपूर्ण है.
2024 में, स्पोर्ट एंड राइट्स एलायंस, एक गैर-सरकारी संगठन ने भारतीय महिला कुश्ती में संस्थाबद्ध दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न का दस्तावेजीकरण किया. इसमें पाया कि भारतीय खेल निकाय और न्याय प्रणाली महिला एथलीटों को उत्पीड़न से सुरक्षा या प्रभावी उपाय प्रदान करने में विफल रही है. 2023 में जारी यूएन वीमेन और यूनेस्को की रिपोर्ट में पाया गया कि “भारत में लगभग एक तिहाई महिला एथलीटों का पुरुष कोच ने यौन उत्पीड़न किया, उन्हें हैरान-परेशान किया या उनके साथ अनुचित व्यवहार किया.”
कॉमनवेल्थ स्पोर्ट, जिसे पहले कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के रूप में जाना जाता था, ने भारत द्वारा खेलों की मेजबानी के बाद, मानवाधिकार सुनिश्चित करने के लिए खुद से पहलकदमी की है. ये पहलकदमियां संयुक्त राष्ट्र के व्यवसाय और मानवाधिकारों संबंधी मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुरूप हैं. इसने एथलीटों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करने की प्रतिबद्धता जताई है और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक नीति तैयार की है. इन दोनों पहलुओं को खेलों के दौरान एथलीटों के लिए अमल में लाया जाता है.
2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी करते हुए भारत सरकार को चाहिए कि एथलीटों, महिलाओं और लड़कियों, श्रमिकों और दूसरे सभी प्रभावित समुदायों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मज़बूत कदम उठाए. इस प्रक्रिया में, कॉमनवेल्थ गेम्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारतीय सरकारी तंत्र धार्मिक और नृजातीय अल्पसंख्यकों, दलितों और अन्य हाशिए के समुदायों सहित विविध हितधारकों के साथ सार्थक जुड़ाव स्थापित करे.
भारत के पास कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए मानवाधिकारों की सुरक्षा करने वाला एक नया मानक स्थापित करने का बेहतर मौका है और ऐसा करके वह ओलंपिक मेजबानी की अपनी दावेदारी को मज़बूत कर सकता है.