राजस्थान के रामगढ़ की सड़कों पर गश्त करते और व्यापारियों द्वारा ले जाए जा रहे मवेशियों को जब्त करते गौरक्षक समूह के सदस्य, नवंबर 2015.

भारत में हिंसात्मक गौ संरक्षण

गौरक्षकों के निशाने पर अल्पसंख्यक

राजस्थान के रामगढ़ की सड़कों पर गश्त करते और व्यापारियों द्वारा ले जाए जा रहे मवेशियों को जब्त करते गौरक्षक समूह के सदस्य, नवंबर 2015. © 2015 एलीसन जॉइस/गेटी इमेजेज़

सारांश

18 मार्च, 2016, को लोगों के एक समूह ने दो मुस्लिम चरवाहों की हत्या कर दी. ये चरवाहे  भारत के झारखण्ड राज्य के एक पशु मेले में अपने बैलों को बेचने के लिए जा रहे थे. सभी हमलावर स्थानीय “गौरक्षा” समूह से जुड़े हुए थे. उन्होंने 35 साल के मोहम्मद मजलूम अंसारी और 12-वर्षीय इम्तेयाज़ खान पर मवेशियों को कसाईखाना भेजने का आरोप लगाया, फिर उन्हें पीट-पीटकर मार डाला और उनके शवों को एक पेड़ से लटका दिया. इम्तेयाज़ के पिता आज़ाद खान असहाय होकर यह हमला देखते रहे. उन्होंने बताया, “उन्हें इम्तेयाज़ और मजलूम की पिटाई करते देख मैं झाड़ियों में छिप गया. अगर मैं बाहर निकलता, तो मुझे भी मार डालते. मेरा बेटा मदद के लिए चिल्ला रहा था, लेकिन मैं बहुत डर गया था.”

मई 2014 में, केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के सत्तारूढ़ होने के बाद इसके सदस्य लगातार सांप्रदायिक और उग्र बयानबाज़ी करते रहे हैं. इसके कारण, गोमांस का उपभोग करने और इससे जुड़े समझे जाने वाले लोगों के खिलाफ गौरक्षकों का हिंसक अभियान शुरू हुआ. मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच, भारत के 12 राज्यों में कम-से-कम 44 लोग मारे गए जिनमें 36 मुस्लिम थे. इसी अवधि में, 20 राज्यों में 100 से अधिक अलग-अलग घटनाओं में करीब 280 लोग घायल हुए.

इन हमलों का नेतृत्व तथाकथित गौरक्षक समूहों द्वारा किया गया. इनमें से कई समूह अक्सर भाजपा से सम्बद्ध उग्र हिंदू संगठनों से जुड़े होने का दावा करते हैं. अनेक हिंदू गायों को पवित्र मानते हैं और ऐसे समूह पूरे देश में पनप गए हैं. उनके हमलों के शिकार ज्यादातर मुस्लिम या दलित और आदिवासी समुदाय हैं.

इस रिपोर्ट में 11 गौरक्षक हमलों, जिनमें 14 लोगों की मौत हुई, और सरकार की कार्रवाई का विवरण दर्ज है. यह गौरक्षा और हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक आंदोलन के बीच की कड़ियों और असुरक्षित अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को लागू करने में स्थानीय सरकारों की विफलता की पड़ताल करती है. यहां वर्णित ज्यादातर मामलों में, पीड़ितों के परिवार, वकीलों और कार्यकर्ताओं की मदद से इंसाफ़ पाने की राह में कुछ कदम आगे बढ़ा पाए हैं, लेकिन कई परिवार बदले की कार्रवाई से डरते हैं और अपनी शिकायतों को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं कर पाते हैं. रिपोर्ट में इन हमलों के असर और सरकार द्वारा उन लोगों के लिए किए गए उपायों की भी पड़ताल की गई है जिनकी जीविका पशुधन से जुड़ी हुई है, इनमें किसान, चरवाहे, पशु ट्रांसपोर्टर, मांस व्यापारी और चर्म उद्योग श्रमिक शामिल हैं.

लगभग सभी मामलों में, शुरू में पुलिस ने जांच रोक दी, प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया और यहां तक कि हत्याओं तथा अपराधों पर लीपापोती करने में उनकी मिलीभगत रही. पुलिस ने तुरंत जांच और संदिग्धों को गिरफ्तार करने के बजाय, गौहत्या निषेध कानूनों के तहत पीड़ितों, उनके परिवारों और गवाहों के खिलाफ शिकायतें दर्ज की. कई मामलों में, हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के राजनीतिक नेताओं और भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने इन हमलों का बचाव किया. दिसंबर 2018 में उत्तर प्रदेश में भीड़ की हिंसा में एक पुलिस अधिकारी सहित दो लोगों के मारे जाने पर मुख्यमंत्री ने घोर राजनीतिक अवसरवाद का परिचय देते हुए इन हत्याओं को एक “दुर्घटना” बताया और फिर चेतावनी जारी की: “पूरे राज्य में न सिर्फ गोहत्या बल्कि गैरकानूनी पशुबध प्रतिबंधित है.”

जुलाई 2018 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने “लिंचिंग”- भारत में भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या के लिए प्रयुक्त शब्द – को रोकने के उपायों के बतौर कई “निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक” निर्देश जारी किए. हालांकि गौरक्षा अनेक हिंदुओं के लिए भावनात्मक मुद्दा है, सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित गौरक्षकों के हिंसक हमलों की निंदा करते हुए कहा: “उन्हें याद रखना चाहिए कि वे कानून के अधीन हैं और वे धारणाओं या भावनाओं या विचारों या इस विषय में आस्था से निर्देशित नहीं हो सकते हैं.”

ह्यूमन राइट्स वॉच केंद्र और राज्य सरकारों से मांग करता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करें; राजनीतिक संपर्कों की परवाह किए बिना अपराधियों की पहचान और उन पर मुकदमा चलाने के लिए उचित जांच सुनिश्चित करें; मुसलमानों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक हमलों को रोकने के लिए एक अभियान शुरू करें; पशुधन से जुड़ी जीविका, विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में इससे जुडी जीविका को प्रभावित कर रहीं नीतियों को वापस लें; और जाति या धार्मिक पूर्वाग्रहों के कारण अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहने वाले पुलिसकर्मियों और अन्य संस्थाओं की जिम्मेदारी तय करें.

गौरक्षा की राजनीति

हिंदू-बहुल भारत के अधिकांश हिस्सों में गौहत्या प्रतिबंधित है. हालांकि, पिछले कुछ दशकों में, एक राजनीतिक अभियान के तहत हिंदू राष्ट्रवादियों की शिकायत रही है कि सरकारें प्रतिबंध लागू करने और पशु तस्करी रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाती हैं. चूंकि गोमांस का उपभोग मुख्य रूप से धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक करते हैं, भाजपा नेताओं ने हिंदू मतदाताओं को लुभाने के लिए गौरक्षा संबंधी भड़काऊ बयान दिए. निस्संदेह, यह सांप्रदायिक हिंसा की बड़ी वजह रहा है और कुछ मौकों पर तो इससे सांप्रदायिक हिंसा भड़की भी है. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते और 2014 के आम चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने गायों की सुरक्षा का मुद्दा बार-बार उठाया था. “गुलाबी क्रांति” के खतरे को सामने रखते हुए उन्होंने दावा किया था कि गायों और अन्य मवेशियों को मांस निर्यात के लिए खतरे में डाल दिया गया है. प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद, नरेन्द्र मोदी ने गौरक्षक समूहों के हमलों की सख्त निंदा नहीं की. आखिरकार अगस्त 2018 में उन्होंने कहा, “मैं यह साफ़ करना चाहता हूं कि मॉब लिंचिंग अपराध है, चाहे इसके पीछे कोई भी उद्देश्य हो.” जनवरी 2019 में उन्होंने कहा कि ये हमले “सभ्य समाज की निशानी नहीं हैं,” हालांकि, उन्होंने मुस्लिम समाज के बीच बढ़ती असुरक्षा के दावों को खारिज करते हुए इसे राजनीति प्रेरित बताया.

न्यू देल्ही टेलीविजन के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि पहले के पांच साल के मुकाबले 2014 से 2018 के बीच भाजपा के सत्ता में रहने से चुने हुए नेताओं के भाषणों में सांप्रदायिक भाषा के उपयोग में लगभग 500 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है और ऐसा करने वाले 90 प्रतिशत नेता भाजपा के हैं. गौरक्षा ऐसे कई भाषणों का मुख्य विषय बनी रही.

उत्तर प्रदेश के बरसाना में एक गौशाला से गौरक्षकों द्वारा जब्त गाएं, जून 2017.  © 2017 कैथल मक्नॉटन/ राय्टर्स

पशु व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों की पिटाई करने, जिसमें उन्हें गंभीर चोटें आईं और यहां तक कि उनकी मौत हुई, के अलावा गौरक्षकों ने मध्य प्रदेश में ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं के साथ कथित तौर पर मारपीट की, गुजरात में दलितों को नंगा कर पीटा, हरियाणा में दो पुरुषों को जबरन गोबर खिलाया और गौमूत्र पिलाया, जयपुर में एक मुस्लिम होटल पर हमला किया और घर में कथित रूप से गोमांस खाने के लिए हरियाणा में दो महिलाओं का बलात्कार किया और दो पुरुषों की हत्या कर दी.

सितंबर 2015 में, भीड़ ने उत्तर प्रदेश में 50-वर्षीय मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दी और उनके 22-वर्षीय बेटे को गंभीर रूप से घायल कर दिया. आरोप यह था कि उनके परिवार ने गोमांस के लिए एक बछड़ा मारा है. सार्वजनिक आक्रोश के बाद और चूंकि तब इस राज्य में  भाजपा विरोधी दल की सरकार थी, पुलिस ने एक स्थानीय भाजपा नेता के बेटे और उनके रिश्तेदारों सहित कुछ लोगों को गिरफ्तार किया. इसके जवाब में, संदिग्धों के हिंदू समर्थकों ने पुलिस वैन और अन्य वाहनों को नुकसान पहुंचाया. कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने संदिग्धों की कथित कार्रवाई का समर्थन किया. परिणामस्वरूप, अख़लाक़ के परिवार को डर के मारे गांव छोड़ना पड़ा. तीन साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी, मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं हुई है. सभी अभियुक्त जमानत पर जेल से बाहर हैं. जाहिर है, इससे पीड़ित परिवारों के बीच खौफ़ पैदा हो गया है.

भारतीय संगठन फैक्ट चेकर के सहयोगी डेटाबेस हेट क्राइम वॉच ने जनवरी 2009 और अक्टूबर 2018 के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों की 254 घटनाओं, जिनमें कम-से-कम 91 लोग मारे गए और 579 घायल हुए थे, की रिपोर्ट तैयार की है. इनमें से लगभग 90 प्रतिशत हमले मई, 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद हुए और ऐसी 66 प्रतिशत घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में सामने आईं. ऐसे 62 प्रतिशत मामलों में मुसलमान और 14 प्रतिशत में ईसाई निशाने पर रहे. इनमें सांप्रदायिक झड़पें, अंतर-धार्मिक जोड़ों पर हमले और गौरक्षा और धर्मांतरण से संबंधित हिंसा शामिल हैं. नागरिक समाज संगठन कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के वरिष्ठ सलाहकार माजा दारूवाला कहते हैं, “यह साफ़ है कि इन अपराधों केलिए मिला अभयदान और कुछ नेताओं द्वारा बेहद शर्मनाक तरीके से इन्हें उचित ठहराया जाना ऐसी घटनाओं के जारी रहने का एक बड़ा कारण है.”

गौरक्षा पर नेताओं के वक्तव्य के नमूने

“हमें कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए. लेकिन हमें उसकी [पहलू खान] मौत पर कोई पछतावा नहीं. जो गौ-तस्कर हैं वहीं गौ-हत्यारे हैं; उनके जैसे पापियों का पहले भी यही अंज़ाम हुआ है और आगे भी ऐसा ही होगा.”
        – ज्ञान देव आहूजा, भाजपा विधायक, राजस्थान, अप्रैल 2017[1]
 “भारतीय संस्कृति की रक्षा करने का केवल एक ही तरीका है: गौ, गंगा और (देवी) गायत्री की रक्षा करना...इस धरोहर की रक्षा करने वाला समुदाय ही बचेगा. नहीं तो पहचान का बहुत बड़ा संकट सामने होगा और पहचान का यह संकट हमारे अस्तित्व को खतरे में डाल देगा.”
       – आदित्यनाथ, भाजपा, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, नवंबर 2017[2]
“जब तक गाय को ‘राष्ट्र माता’ का दर्जा नहीं दिया जाता, मुझे लगता है कि गौरक्षा के लिए युद्ध नहीं रुकेगा, भले ही गौरक्षकों को जेलों में डाल दिया जाए या उन पर गोलियां चलाई जाएं.”
  – टी राजा सिंह लोध, भाजपा विधायक, तेलंगाना, जुलाई 2018[3]

 

 “जो लोग गोमांस खाए बिना मरे जा रहे हैं, वे पाकिस्तान या अरब देश या दुनिया के किसी अन्य हिस्से में जा सकते हैं जहां यह उपलब्ध है.”
       – मुख्तार अब्बास नकवी, भाजपा नेता और संसदीय मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री, मई 2015[4]
“अगर कोई हमारी मां को मारने की कोशिश करता है तो हम चुप नहीं रहेंगे. हम मारने और मरने के लिए तैयार हैं.”
       – मोहम्मद अखलाक की हत्या पर भाजपा सांसद साक्षी महाराज, अक्टूबर 2015[5]
“मुसलमान इस देश में रह सकते हैं, लेकिन उन्हें गोमांस खाना छोड़ना होगा. गाय हमारी आस्था से जुडी है.”
  – मनोहर लाल खट्टर, भाजपा मुख्यमंत्री, हरियाणा, अक्टूबर 2015[6]
 “हम गौहत्या करने वालों को फांसी देंगे.”
        – रमन सिंह, भाजपा मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़, अप्रैल 2017[7]
 “मैंने वादा किया था कि मैं उन लोगों के हाथ-पैर तोड़ दूंगा जो गायों को अपनी मां नहीं मानते और उनकी हत्या करते हैं.”
  – विक्रम सैनी, भाजपा विधायक, उत्तर प्रदेश, मार्च 2017[8]
 

जवाबदेही से इनकार

2014 के बाद, कई भाजपा शासित राज्यों ने गौहत्या पर रोक के लिए कड़े कानून पारित किए हैं और ऐसी गौरक्षा नीतियां अपनायी हैं जो आलोचकों के मुताबिक हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लोकलुभावन तरीके हैं. नए कानूनी प्रावधानों में से कई गौहत्या को संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध बनाते हैं, सबूत का बोझ आरोपित पर डाल देते हैं. यह सब किसी को निर्दोष माने जाने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. दिल्ली स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर कान्स्टिटूशनल लॉ, पॉलिसी एंड गवर्नेंस के कार्यकारी निदेशक मृणाल सतीश बताते हैं:

इन कानूनों में से कुछ में जहां जिम्मेदारी का स्थानांतरण होता है और फलस्वरूप अपराध का अनुमान लगाया जाता है, इसका बहुत कम उपयोग किया जाना चाहिए क्योंकि यह मौलिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाता है. इसका प्रभाव यह हो सकता है कि वे ट्रांसपोर्टर, कसाई, चर्म उद्योग श्रमिक जैसे कुछ पेशों को आपराधिक प्रक्रिया के लिए अतिसंवेदनशील घोषित कर

सकते हैं और खुद यह प्रक्रिया ज्यादातर मामलों में सजा का कारण बन जा सकती है.

कुछ राज्यों के कानूनों में गौहत्या के लिए आजीवन कारावास समेत कठोर दंड का प्रावधान है. गुजरात में 2017 में गौ संरक्षण कानूनों में संशोधन किया गया ताकि सजा बढ़ सके. तब राज्य के गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा था, “हमने इंसान की हत्या और गाय या गौवंश की हत्या को एक जैसा अपराध बना दिया है.”

भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा गौरक्षा के लिए निर्मित कई नीतियों से गौरक्षक समूहों को बढ़ावा मिला है. गौरक्षा समितियों के सदस्य, कभी-कभी पुलिस के साथ, रात में गलियों और राजमार्गों पर गश्ती करते हैं, वाहनों को रोकते हैं, उनमें मवेशियों की मौज़ूदगी की जांच करते हैं, ड्राइवरों को धमकी देते हैं और वाहन में गाय पाए जाने पर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं. भारत में घृणा अपराधों पर काम करने वाले समूह सिटिजन्स अगेंस्ट हेट के संयोजक सज्जाद हसन कहते हैं, “पुलिस ने इन गौरक्षा कानूनों के कथित उल्लंघनकर्ताओं की पहचान और धर-पकड़ का जिम्मा ठेके पर दे दिया है.”

2016 में, हरियाणा सरकार ने गौहत्या और तस्करी के बारे में आम नागरिकों द्वारा सूचना देने के लिए 24-घंटे काम करने वाली एक हेल्पलाइन स्थापित की और शिकायतों पर कार्रवाई के लिए पुलिस कार्य बलों को नियुक्त किया.

मार्च 2017 में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंदू धार्मिक नेता आदित्यनाथ ने कई कसाईखानों और मांस की दुकानों को बंद करने का आदेश दिया. उल्लेखनीय है कि ये ज्यादातर मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे थे.

राजस्थान में, पिछली भाजपा राज्य सरकार ने गौ तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए छह गौरक्षा पुलिस चौकियां खोलीं. ये चौकियां गौरक्षा समूहों का अड्डा बन गईं, जहां पर उन्होंने, दूध उत्पादक किसानों, चरवाहों और हरियाणा के मुस्लिम मवेशी व्यापारियों को निशाना बनाया, अगर इन व्यापारियों के पास मवेशी खरीद की अधिकारिक रसीदें हों तब भी. अप्रैल 2017 में, राजस्थान में एक भीड़ ने 55-वर्षीय दूध उत्पादक किसान पेहलू खान और चार अन्य पर लाठी, डंडों और बेल्ट से हमला किया और कथित तौर पर उनकी खरीद-रसीदें फाड़ दीं. हमले में लगी चोट के कारण दो दिन बाद पेहलू खान की मौत हो गई. राजस्थान के गृह मंत्री ने पीड़ितों को दोषी ठहराते हुए गौरक्षकों का बचाव करने की कोशिश की: “लोग जानते हैं कि गौ तस्करी अवैध है, लेकिन वे ऐसा करते हैं. गौभक्त उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन कानून अपने हाथ में लेना अपराध है.”

खुद पुलिस इन राजनीतिक संरक्षण प्राप्त समूहों से खतरा महसूस कर सकती है. राजस्थान के पूर्व अपर पुलिस अधीक्षक रीछपाल सिंह कहते हैं कि गौरक्षकों के हमलों में वृद्धि का कारण राजनीतिक है: “पुलिस को गौरक्षकों के प्रति सहानुभूति रखने, कमजोर जांच करने और उन्हें खुली छूट देने के लिए राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है. इन गौरक्षकों को राजनीतिक आश्रय और मदद मिलती है.”

जांच और कानूनी कार्रवाई करने में पुलिस की विफलता

गौरक्षा हमलों की मुस्तैदी से जांच करने और अपराधियों पर मुकदमा चलाने की बजाय पुलिस ने ऐसे कम-से-कम एक तिहाई मामलों में पीड़ित परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के खिलाफ ही गौहत्या पर रोक लगाने वाले कानूनों के तहत मामले दर्ज किए हैं. गवाहों और परिवार के सदस्यों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई अक्सर उन्हें न्याय पाने की कोशिश करने से डराती है. कुछ मामलों में, अधिकारियों और अभियुक्तों की धमकी के कारण गवाह अपने बयान से पलट गए.

इस रिपोर्ट में वर्णित आठ मामलों में पुलिस ने अनुचित तरीके से काम किया: दो मामलों में, उन्होंने अपराध की जांच शुरू करने के लिए जरूरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने में देरी की; दो अन्य मामलों में, उन्होंने प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया, यहां तक कि उनमें से एक में कथित रूप से गलत विवरण दर्ज किए; और अन्य चार मामलों में पीड़ित की मौत में पुलिस की कथित रूप से मिलीभगत थी और उन्होंने अपराध छिपाने की कोशिश की. मीडिया की आलोचना, व्यापक विरोध या मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों द्वारा अदालतों के माध्यम से किए गए हस्तक्षेप के बाद पुलिस कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई.

झारखंड में इम्तेयाज़ खान और मजलूम अंसारी की हत्या मामले में पुलिस ने आठ लोगों को गिरफ्तार किया. इन सभी ने हत्या करने की बात कबूल की और बताया कि वे एक ऐसे गौरक्षक समूह के सदस्य हैं जिसने पहले मुस्लिम पशु व्यापारियों को धमकी दी थी. पुलिस ने मई 2016 में सभी आठ अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया लेकिन स्थानीय गौरक्षक समूह के एक प्रमुख सदस्य को इसमें शामिल नहीं किया. यह एकमात्र ऐसा अभियुक्त था जिसे मामले के एक गवाह द्वारा दायर की गई प्राथमिकी में नामजद किया गया था. प्रक्रिया में बरती गई एक बड़ी विफलता देखिए, किसी भी आरोपी के बयानों को मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज नहीं किया गया, जबकि एक पुलिस अधिकारी के समक्ष इकबाले जुर्म भारतीय कानून के तहत सबूत के रूप में मंजूर नहीं है. पीड़ित परिवारों ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि जून 2016 में आठ आरोपियों के जमानत पर रिहा होने के बाद वे अपनी सुरक्षा को लेकर डर गए. दिसंबर 2018 में, झारखंड की एक अदालत ने सभी आठ अभियुक्तों को दोषी करार दिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

कुछ मामलों में, कथित अपराधियों को खुला राजनीतिक संरक्षण मिला. उदाहरण के लिए, भाजपा मंत्री जयंत सिन्हा ने जून 2017 में झारखंड में हुए अलीमुद्दीन अंसारी हत्याकांड के सजायफ्ता लोगों की जमानत पर रिहाई का स्वागत किया. यह फैसला उनके द्वारा अपनी सज़ा के खिलाफ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर के बाद आया था. रिहा किए गए लोग जब जयंत सिन्हा को उनकी कानूनी सहायता के लिए धन्यवाद देने गए तब उन्होंने दोषियों को माला पहनायी और साथ में तस्वीरें खिंचवाईं. एक्टिविस्ट हर्ष मंदर लिखते हैं: “यही वह नैतिक समर्थन है जो युवाओं और यहां तक कि बच्चों के मन में क्रूरता व घृणा भरकर देश के हर कोने में हत्यारी भीड़ को पीड़ितों के प्रति उकसाता है.”

दिसंबर 2018 में, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में गुस्साई भीड़ ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और कई वाहनों को जला दिया. यह हिंसा ग्रामीणों को कुछ जानवरों के कंकाल, जिन्हें मारे गए गायों का बताया गया, मिलने के बाद भड़की. इस घटना में पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह सहित दो लोग मारे गए. सरकार ने तीन पुलिस अधिकारियों का तबादला कर दिया और 30 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया. हालांकि, चौतरफा आलोचना से घिरने के बाद अधिकारियों ने दो मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार किया. इनमें एक वैचारिक रूप से भाजपा से जुड़े कट्टरपंथी युवा संगठन बजरंग दल का स्थानीय नेता है और दूसरा भाजपा के युवा संगठन का नेता है. दूसरी ओर, पुलिस ने तुरंत गौहत्या के आरोप में छह लोगों को गिरफ्तार किया और उनमें से तीन के खिलाफ दमनकारी कानून राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत भी मामला दर्ज किया, जिसमें बिना किसी आरोप के एक साल तक हिरासत में रखने का प्रावधान है. हिंसा और हत्याओं के तुरंत बाद, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि जांचकर्ता गायों की हत्या करने वालों पर मुकदमा चलाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं. “गौ-हत्यारों को सजा दिलाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है. हत्या और मारपीट का मामला फिलहाल प्राथमिकता में नहीं है.”

जुलाई 2018 में राजस्थान के अलवर जिला में मारे गए अकबर खान के मामले में, स्थानीय भाजपा विधायक ज्ञान देव आहूजा ने आरोपियों की रिहाई और खान के सहयोगी की गिरफ्तारी की मांग की. यह सहयोगी भीड़ से बचकर भागने में कामयाब रहा था और इस मामले के गवाह था. इस बीच, मीडिया की आलोचना के बाद हुई जांच के आधार पर एक पुलिस अधिकारी को निलंबित कर दिया गया और चार अन्य को स्थानांतरित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने गंभीर रूप से घायल अकबर खान को अस्पताल ले जाने में कथित तौर पर जानबूझ कर देरी की थी. अस्पताल पहुंचने में उन्हें तीन घंटे लगे, जो केवल 20 मिनट की दूरी पर था. सच यह है कि वे कथित तौर पर चाय पीने, खान की गायों के लिए परिवहन की व्यवस्था करने लग गए थे. जब पुलिस ने खान को बचाया तब वह जिंदा थे मगर अस्पताल पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में समयदीन और मोहम्मद कासिम पर जून 2018 में हुए भीड़ के हमले के मामले में पुलिस कार्रवाई में अपराधों पर लीपापोती करने में मिलीभगत उजागर हुई है. इस हमले में कासिम की मौत हो गई और समयदीन गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. हालांकि, पुलिस ने मौत के लिए मोटरसाइकिल दुर्घटना को जिम्मेदार बताते हुए कथित तौर पर झूठी रिपोर्ट दर्ज की. समयदीन के भाई यासीन ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि उसने पुलिस की धमकियों के कारण मोटरसाइकिल दुर्घटना के झूठे दावे के बावजूद एफआईआर पर हस्ताक्षर किया था:

पुलिस ने हमें उस अस्पताल के बारे में नहीं बताया जहां वे कासिम और समयदीन को लेकर गए थे. इसके बाद पुलिस ने हमें धमकी दी: “जब तक तुम इस एफआईआर पर हस्ताक्षर नहीं करते, हम तुम्हें नहीं बताएंगे कि समयदीन कहां है.” उन्होंने हमें मवेशी संरक्षण कानूनों के तहत गिरफ्तारी की धमकी दी कि तुम्हारे पूरे परिवार को जेल में डाल देंगे. पुलिस ने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि यह किसकी सरकार है? क्या हो सकता है? तुम सब के लिए बेहतर यही है कि कुछ मत बोलो.”

मार्च 2016 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में मारे गए मस्तान अब्बास के मामले में, उसके पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस ने गौरक्षकों को “आतंक पैदा करने” की खुली छूट दे रखी है. एक माह बाद, पुलिस ने आखिरकार चार लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया, तो अदालत ने अपने अंतिम आदेश में फिर पाया कि स्थानीय प्रशासन गौरक्षक समूहों की मदद करता हुआ दिखाई दे रहा है और “यह बहुत मुमकिन है कि स्थानीय पुलिस अपने अधिकारियों को बचाने और राजनीतिक कारणों से इस क्रूर घटना की समग्रता से जांच न करे.” अदालत ने मामले की सीबीआई से जांच कराने का आदेश दिया. सीबीआई ने मई 2016 में एक नई प्राथमिकी दर्ज की. हालांकि, ढाई साल से अधिक समय बीतने के बाद भी यह रिपोर्ट लिखे जाने तक जांच लंबित है और आरोपपत्र दायर नहीं किए गए हैं.

गौरक्षा अभियान और आजीविका

गौरक्षक समूहों के हमलों और गौहत्या और मवेशियों के परिवहन पर सख्त कानूनों ने भारत के पशु व्यापार और ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है. साथ ही, खेती और डेयरी क्षेत्र से जुड़े चर्म और मांस निर्यात उद्योग पर भी इसका असर पड़ा है.

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ़ निर्यातक है, यह प्रति वर्ष लगभग 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य का भैंस मांस निर्यात करता है. हालांकि, 2014 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद निर्यात में तेजी से गिरावट आई है. चर्म उद्योग भी प्रभावित हुआ है, जैसा कि एक सरकारी आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है, “पशुओं की बड़ी आबादी होने के बावजूद, मवेशियों के चमड़े के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी कम है और पशुवध की सीमित उपलब्धता के कारण यह लगातार घट रही है.”

सरकार के पास मवेशियों की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने वाले कानूनों और नीतियों को लागू करने का अधिकार है, लेकिन ऐसा करते हुए उसे अल्पसंख्यक समुदायों को होने वाले असंगत नुकसान से बचाना होगा. साथ ही सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे तमाम कानून या नीतियां सभी भारतीयों की आजीविका के अधिकार के अनुरूप हों.

पशुओं से संबंधित उद्योगों को नुकसान पहुंचाने वाले कानूनों, नीतियों और गैरकानूनी हमलों से मुसलमान और दलित काफी प्रभावित हुए हैं. कसाईखाने और मांस की दुकानें ज्यादातर मुसलमान चलाते हैं. दलित परंपरागत रूप से मवेशियों के शवों का निपटारा करने और चमड़े और चमड़े के सामान जैसे व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उनकी खाल उतारने का काम करते हैं. लिहाजा, ये नीतियां सभी समुदायों, विशेषकर किसानों और मजदूरों को नुकसान पहुंचा रही हैं.

लेखक, पत्रकार और भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ पी. साईनाथ बताते हैं कि “यह सिर्फ मुसलमानों से जुड़ा मामला नहीं है.” पहले, अनेक हिंदुओं सहित दूसरे पशुपालक, जो अनुत्पादक पशुधन रखने के आर्थिक बोझ से निपटने में असमर्थ थे, मवेशियों को कसाईखानों को बेच देते थे. वह आगे कहते हैं अब उन्हें ऐसे पशुओं की देखभाल जारी रखने के लिए मजबूर कर दिया गया है, कई लोगों ने तो जानवरों को आवारा छोड़ दिया है. आवारा पशुओं द्वारा फसल नष्ट करने से किसानों के लिए नई समस्या खड़ी हो गई है.

लेखक और कृषि विशेषज्ञ एम.एल.परिहार ने बताया: “गायों से जुड़े इस जुनून को बढ़ावा दे रहे हिंदुत्ववादी नेताओं को यह एहसास नहीं कि वे अपने ही हिंदू समुदाय और देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं.”

गौरक्षकों की हिंसा से निपटने के उपाय

जुलाई 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने तहसीन एस. पूनावाला और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक रूप से बयान देने और यह संदेश फैलाने के लिए निर्देश दिया कि “लिंचिंग और किसी भी तरह की भीड़-हिंसा के लिए कानून के तहत गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.” जवाब में, गृह मंत्री ने संसद को बताया कि सरकार ने देश में भीड़-हिंसा रोकने के उपाय सुझाने हेतु एक पैनल का गठन किया है. उन्होंने कहा, “यदि आवश्यक हुआ तो हम एक कानून भी लाएंगे.”

अदालत ने सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया कि भीड़-हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए हर जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नियुक्त किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि पुलिस अपराधियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करे और पीड़ितों और गवाहों को सुरक्षा प्रदान करे. इसने पीड़ित मुआवजा योजना की सिफारिश की और कहा कि ऐसे सभी मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक अदालतों में की जाए, पीड़ितों या परिवार के सदस्यों को आरोपी व्यक्तियों द्वारा जमानत, दोष मुक्ति, रिहाई या पैरोल के लिए दायर आवेदन समेत सभी अदालती कार्यवाही की समय पर सूचना दी जाए. अंत में, अदालत ने कहा कि इन निर्देशों का पालन करने में विफल रहने वाले पुलिस या सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए.

अब तक, कई राज्यों ने अधिकारियों को नामित कर दिया है और भीड़-हिंसा रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों को सर्कुलर जारी किए हैं. हालांकि, अदालत के अधिकांश निर्देशों का अभी तक अनुपालन नहीं किया गया है. अधिकांश राज्यों ने अनुपालन रिपोर्ट नहीं भेजी है और जिन राज्यों ने यह रिपोर्ट भेजी भी है उन्होंने विवरण मुहैया नहीं कराए हैं. जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लॉ के कार्यकारी निदेशक मोहसिन आलम भट ने कहा, “ज़्यादा से ज़्यादा, ये रिपोर्ट अदालत के दिशानिर्देशों के औपचारिक कार्यान्वयन का संकेत भर देती हैं.”

गौरक्षकों के सांप्रदायिक हमलों से अल्पसंख्यक समुदायों को बचाने या इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त कदम उठाने में भारत की केंद्र और राज्य सरकारों की विफलता जीवन के अधिकार, समानता, कानून के समान संरक्षण और आजीविका के अधिकार का उल्लंघन करती है. सरकार को अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देने के लिए धार्मिक विश्वास के इस्तेमाल का समर्थन नहीं करना चाहिए या इसमें भागीदार नहीं बनना चाहिए.

मुख्य अनुशंसाएं

  • सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करें और यह सुनिश्चित करें कि भीड़ के हमलों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराया जाए.
  • सांप्रदायिक हमलों के दोषियों और इसे भड़काने वालों के खिलाफ़ त्वरित और निष्पक्ष जांच और अभियोजन सुनिश्चित करें और गौरक्षकों की हिंसा रोकने में कथित पुलिस निष्क्रियता की जांच करें.
  •  राज्य के वरिष्ठ अफसरों और उच्च पुलिस अधिकारियों के सार्वजनिक बयानों और उनके प्रयासों से यह साफ़-साफ़ जाहिर करना चाहिए कि भीड़-हिंसा के मामलों में दोषियों और उनमें   राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़े लोगों पर भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
 

पद्धति

यह रिपोर्ट जून 2018 से जनवरी 2019 के बीच ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा भारत में किए गए फील्ड रिसर्च और साक्षात्कारों पर आधारित है. इसमें “गौरक्षा” के नाम पर हुए हमलों के मामले में सरकार की कार्रवाई की पड़ताल की गई है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने 35 से अधिक गवाहों और तथाकथित गौरक्षक अभियान में मारे गए पीड़ितों के परिवार के सदस्यों का साक्षात्कार लिया. इसके अलावा, हमने पीड़ितों के परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो दर्जन से अधिक वकीलों और नागरिक समाज कार्यकर्ताओं और इन अपराधों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों से बातचीत की. हमने दस सेवारत और सेवानिवृत्त सरकारी अफसरों और पुलिस अधिकारियों का भी साक्षात्कार किया.

साक्षात्कार भारत के झारखंड, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों और नई दिल्ली शहर में लिए गए.

रिपोर्ट में अन्य अधिकार समूहों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों द्वारा किए गए शोध-अध्ययनों की भी मदद ली गई है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पीड़ित परिवारों या उनके वकीलों की सहमति से पुलिस रिपोर्ट, मेडिकल रिकॉर्ड और अन्य संबंधित दस्तावेजों की प्रतियां प्राप्त की हैं और ये प्रतियां उसके पास मौज़ूद हैं.

भारत सरकार गौरक्षा से संबंधित भीड़ के हमलों और हत्याओं के आंकड़े एकत्र नहीं करती है.[9] कुछ मीडिया और नागरिक समाज समूहों द्वारा इस तरह के आंकड़े जुटाने के स्वतंत्र प्रयास किए गए हैं.[10] हालांकि, ये आंकड़े मुख्यतः अंग्रेजी मीडिया से लिए गए हैं, तो भी सरकारी आंकड़ों की अनुपस्थिति में ये उपयोगी संदर्भ प्रदान करते हैं. हालांकि, इस रिपोर्ट में इन समूहों द्वारा एकत्र आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन यह मुख्यतः 11 मामलों में हमारी गहन जांच और साथ ही इन घटनाओं पर पुलिस और अन्य अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई पर आधारित है.

सभी साक्षात्कार या तो हिंदी या फिर अंग्रेजी में लिए गए. ह्यूमन राइट्स वॉच ने साक्षात्कार दाताओं को कोई पारिश्रमिक या अन्य तरह का भुगतान नहीं किया है. कुछ मामलों में, ह्यूमन राइट्स वॉच ने गवाहों को साक्षात्कार के लिए आने-जाने के दौरान भोजन और यात्रा मद में हुए खर्च का भुगतान किया.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और झारखंड की राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों और पुलिस प्रमुखों को अपने निष्कर्षों का सार पत्र के रूप में भेजा. हालांकि, इस रिपोर्ट को जारी करने तक हमें उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

 

I.  भारत में गौरक्षा की राजनीति

बहुतेरे हिंदू गाय को पवित्र मानते हैं.[11] गौरक्षा और गोमांस के उपभोग के खिलाफ आंदोलन सदियों पुराना है.[12]

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े समूहों के नेतृत्व में गौरक्षा हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन के एक अंग के रूप में राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बन गई है.[13] 2014 के राष्ट्रीय चुनाव अभियान के दौरान, भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने बार-बार गौरक्षा का आह्वान किया, पिछली सरकार की “गुलाबी क्रांति” की काली छाया का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने दावा किया कि मांस निर्यात के लिए गायों और अन्य मवेशियों को संकटग्रस्त कर दिया गया.[14]

2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद गोमांस और संबंधित उत्पादों के उपभोग और निर्यात सहित धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ बयानबाजी बढ़ी है. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2018 के बीच भाजपा के सत्ता में आने के पहले के पांच साल की तुलना में चुनकर आए नेताओं के भाषणों में सांप्रदायिक भाषा के उपयोग में लगभग 500 प्रतिशत वृद्धि हुई है और ऐसे 90 प्रतिशत नेता भाजपा के हैं.[15]

मई 2015 से दिसंबर 2018 तक गाय के नाम पर हुई हिंसा में कम-से-कम 44 लोग मारे गए, जिनमें से 36 मुस्लिम थे. आंकड़ों पर आधारित पत्रकारिता करने वाली वेबसाइट इंडिया स्पेंड के अनुसार, 2014 के बाद से ऐसी हिंसा की 100 से अधिक घटनाएं हुईं हैं. इन घटनाओं में पचास प्रतिशत पीड़ित मुस्लिम थे, जबकि 10 प्रतिशत दलित, 9 प्रतिशत हिंदू और 3 प्रतिशत आदिवासी समूहों के सदस्य थे.[16]

गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून

2014 के बाद, कई भाजपा शासित राज्यों ने नए कानूनी प्रावधानों के जरिए गौहत्या पर रोक के लिए अपनी शक्ति का विस्तार किया है और गौ कल्याण हेतु नई नीतियां बनाई हैं. गुजरात ने गाय, सांड या बैल की हत्या के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान करने और जुर्माना बढ़ाने के लिए अपने कानून में संशोधन किया. इसके बाद, वहां के गृह मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने घोषणा की: “हमने एक इंसान की हत्या और गाय या गौवंश की हत्या को एक जैसा अपराध बना दिया है.”[17]

वर्तमान में भारत के 29 में से 23 राज्यों, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और भारत के 6 केंद्र शासित प्रदेशों में से 5 में गौहत्या पर रोक है. सज़ा की अवधि और जुर्माने के प्रावधान अलग-अलग हैं.[18] कुछ राज्यों में, न केवल गायों, बल्कि बैल की हत्या और उनका मांस रखने पर भी रोक है.[19] कुछ राज्यों में भैंस मारने या उसके मांस के उपभोग की अनुमति है.[20]

मई 2017 में, भाजपा सरकार ने पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण (पशुधन बाजार विनियमन) नियम लागू कर पशु बाजार में वध के लिए मवेशियों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया.[21] विशेष रूप से गैर-भाजपा शासित राज्यों - केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने इसका विरोध किया. अगस्त 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगा दी.[22] मार्च 2018 में, सरकार ने पशु बाज़ार में पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण नियम, 2018 का संशोधित मसौदा पेश किया. इसमें युवा मवेशियों (छह महीने से कम उम्र के), विकसित गर्भावस्था वाले पशु, कमजोर, रोगग्रस्त, बीमार, घायल या थका-मांदा पशुओं की बिक्री पर रोक के प्रावधान हैं.[23] रिपोर्ट लिखे जाने के समय तक नियम पारित नहीं हुए थे.

गौरक्षा पर अधिकांश राज्यों के कानून राष्ट्रीय कानून - पशु के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की तर्ज पर बनाए गए हैं. यह पुलिस और राज्य के अन्य एजेंट को परिसर में प्रवेश करने, रोकने और खोज करने के साथ-साथ पशुओं को जब्त करने का अधिकार देता है जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जानवरों के साथ क्रूर व्यवहार नहीं हो रहा है.[24] ऐसे अधिकांश कानूनों के तहत, गौहत्या संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध है और सबूतों का पूरा बोझ ख़ुद अभियुक्त पर होता है.[25]

अधिकार समूहों के अनुसार गौहत्या पर रोक लगाने वाले कानूनों से हिंदू चरमपंथी समूहों को नया मौका मिला है. ये समूह ज्यादातर मुसलमानों और दलितों को निशाना बनाते हैं. पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ने हरियाणा के 2015 के गौरक्षा कानून के प्रभावों पर 2017 में एक तथ्य-खोजी रिपोर्ट में बताया है कि “गौरक्षकों की संख्या में वृद्धि हुई है, ये प्रशासन की ‘आंख और कान’ के रूप में कार्य करते हैं और कानून लागू करने और ‘भीड़ का न्याय’ सुनिश्चित करने में भी अपनी भूमिका अदा करते हैं.[26]

2016 में, सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में हिंसा करने वाले गौरक्षा समूहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई. याचिका में अदालत से गुजरात पशु निवारण अधिनियम,1954 की धारा 12, महाराष्ट्र पशु निवारण अधिनियम,1976 की धारा 13 और कर्नाटक गौहत्या निवारण और मवेशी संरक्षण अधिनियम,1964 की धारा 15 को असंवैधानिक करार देने का अनुरोध किया गया. ये धाराएं “नेक नीयत” से काम करने वाले सरकारी अधिकारियों और “किसी भी व्यक्ति” को सुरक्षा प्रदान करती हैं.[27] याचिका में कहा गया: “ये कानून और इनसे मिल रहा संरक्षण गौरक्षक समूहों को हिंसा के लिए उकसाते हैं.”[28] राज्यों ने तर्क दिया कि सम्बंधित प्रावधान गौरक्षा समूहों या गौरक्षकों का बचाव नहीं करते हैं.[29]

भारत में घृणा अपराधों का दस्तावेजीकरण और ऐसे अपराध पीड़ितों को कानूनी सहायता करने वाले समूहों और व्यक्तियों का संगठन - सिटिजन्स अगेंस्ट हेट के संयोजक सज्जाद हसन ने कहा कि इन कानूनों ने गौरक्षा के नाम पर हिंसक कार्रवाई को ताकत दी है:

पुलिस ने इन गौरक्षा कानूनों को कथित रूप से तोड़ने वालों के बारे में खुफिया जानकारी, पहचान और आशंका के मामले को एक तरह से गौरक्षक दलों के हाथों सौंप दिया है. आम तौर पर बड़ी राजनीतिक हस्तियों के संरक्षण में काम करने वाले ये गौरक्षक समूह बार-बार दावा करते हैं कि वे स्थानीय पुलिस से ताल-मेल बिठाकर “मवेशी तस्करों” को पकड़ने के लिए स्वयंसेवकों का नेटवर्क चलाते हैं और मुख्य मार्गों की नाकेबंदी करते हैं. ये कानून अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले इन हिंदू अतिवादी समूहों के लिए ढाल का काम करते हैं.[30]

भारतीय संविधान

1940 के दशक के उत्तरार्ध में भारतीय संविधान के निर्माण के दौरान गौहत्या पर तीखी बहस हुई थी.[31] संविधान सभा के कुछ सदस्य गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध चाहते थे और उन्होंने गौरक्षा को मौलिक अधिकार बनाने की मांग की थी.[32] आखिरकार, गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने पर एक समझौता किया गया, जिसके तहत इसे मौलिक अधिकार नहीं बनाया गया, लेकिन इसे नीति निर्धारण में केंद्रीय और राज्य सरकारों का मार्गदर्शन करने वाले “राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत” के रूप में शामिल कर लिया गया.[33] जैसा कि वकील गौतम भाटिया ने लिखा है, संविधान ने “धार्मिक भावनाओं के सवाल को सावधानीपूर्वक बाहर रखा. न ही इसने राज्य द्वारा गौहत्या पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की जरुरत महसूस की.”[34] इसी कारण इस मुद्दे पर राजनीतिक और न्यायिक लड़ाई जारी है.

अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों में वृद्धि

2014 के बाद, भारत में हिंदू राष्ट्रवाद के उभार से मुसलमान, दलित और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ घृणा और भेदभाव का माहौल पैदा हुआ है. इससे गौरक्षा के नाम पर होने वाले हमलों समेत देश के कई हिस्सों में उनके खिलाफ हिंसक हमलों में वृद्धि हुई है.[35]

हिंदू राष्ट्रवादी समूह बहुसंख्यक हिंदू आबादी को पीड़ित बताते हैं और दावा करते हैं कि अल्पसंख्यक समूहों को सुविधाओं पर अनुचित तरीके से विशेषाधिकार प्राप्त हैं. वे चर्च पर अपने सामाजिक कार्य के जरिए हिंदुओं के धर्मांतरण का आरोप लगाते हैं. वे मुसलमानों पर न केवल हिंसक हमलों का आरोप लगाते हैं, बल्कि यह इल्ज़ाम भी लगाते हैं कि वे भारत को मुस्लिम-बहुल देश बनाने की साजिश के तहत हिंदू महिलाओं का अपहरण करते हैं, उनसे बलात्कार करते हैं या उन्हें झांसे में लेते हैं.[36] राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में 2016 में दलितों के खिलाफ अपराध में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई.[37]

फैक्ट चेकर[38] के सहयोगी डेटाबेस हेट क्राइम वॉच ने जनवरी 2009 और अक्टूबर 2018 के बीच धार्मिक पहचान के आधार पर हुई 254 आपराधिक घटनाओं की रिपोर्ट तैयार की है, जिनमें कम-से-कम 91 लोग मारे गए और 579 घायल हुए. इनमें से लगभग 90 प्रतिशत (229) हमले मई 2014 में केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने के बाद हुए.[39] इनमें सांप्रदायिक झड़पें, अंतर-धार्मिक जोड़ों पर हमले और गौरक्षा और धर्मांतरण से संबंधित हिंसा शामिल हैं.[40]

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में, गौ रक्षकों और भीड़ के बढ़ते हमलों पर फैसला सुनाते हुए कहा, “नफरत के नाम पर होने वाले अपराध असहिष्णुता, वैचारिक प्रभुत्व और पूर्वाग्रह की उपज हैं जिन्हें बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए; ऐसा न हो कि आतंक राज कायम हो जाए. गैर न्यायिक और गैर राजकीय तत्वों को कानून या कानून लागू करने वाली एजेंसी की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.”[41]

अल्पसंख्यकों के खिलाफ असहिष्णुता के माहौल और बढ़ते हमलों के बावजूद, सरकार अभी भी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप घृणा अपराधों पर विश्वसनीय आंकड़ें एकत्र नहीं कर रही है. दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए पी शाह ने कहा, “अगर हमें अपने समाज में घृणा अपराध को समाप्त करना है, तो एक आवश्यक शर्त है देश भर में घृणा अपराधों के फैलाव और प्रकृति के बारे में विश्वसनीय, साक्ष्य-आधारित और निष्पक्ष आंकड़ा एकत्र करना.”[42] नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोफोबिया (विदेशियों के प्रति घृणा) और संबंधित असहिष्णुता के खिलाफ विश्व सम्मेलन की कार्य योजना 2002 में भी राज्यों से विश्वसनीय सांख्यिकीय आंकड़े एकत्र करने और उनके संकलन, विश्लेषण, प्रसार और प्रकाशन का आग्रह किया गया था जिससे कि तथ्यों व सूचना पर आधारित नीतियों का निर्माण किया जा सके.[43]

सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ़ राज्य की कार्रवाई

भारत में सांप्रदायिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है, सामूहिक हत्या की घटनाओं में सरकार की संलिप्तता रही है. एक-के-बाद-एक आने वाली केंद्र और राज्य सरकारें सबसे जिम्मेदार लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने में विफल रही हैं. इन बहुचर्चित मामलों में 1984 में दिल्ली की सिख-विरोधी हिंसा[44] और मुंबई में 1992-93, गुजरात[45] में 2002 और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर[46] में 2013 में हुई मुस्लिम-विरोधी हिंसा जैसे बहुचर्चित मामलों में संलिप्त पाए जाने वाले या ड्यूटी में कोताही बरतने वाले सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई. इसके अलावा, जाति के आधार पर अक्सर झड़पें होती हैं. जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाया गया जिसके कारण वहां 1990 से बड़े पैमाने पर विस्थापन जारी है.[47]

नागरिक समाज और अधिकार समूहों ने बार-बार भारत सरकार से सांप्रदायिक हिंसा से निपटने के लिए कानून बनाने की मांग की है. साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय तथा क्षतिपूर्ति तक पहुंच) विधेयक, 2013 को उस समय विपक्ष में मौजूद भाजपा और अन्य राजनीतिक समूहों के विरोध के बाद वापस ले लिया गया.[48]

भारतीय दंड संहिता में ऐसे प्रावधान हैं जिनका सांप्रदायिक घृणा फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.[49] हालांकि, जैसा कि ह्यूमन राइट्स वॉच के दस्तावेजीकरण में सामने आया है, इन कानूनों का उद्देश्य अल्पसंख्यक और कमज़ोर लोगों की रक्षा करना है, लेकिन व्यवहार में इनका उपयोग अक्सर खुद को अपमानित बताने वाले शक्तिशाली व्यक्तियों या समूहों के इशारे पर अभिव्यक्ति को दबाने के लिए किया जाता है. सरकारी अधिकारी भी अक्सर ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई करते हैं जिससे अल्पसंख्यक समूहों, लेखक, कलाकार और विद्वानों को हिंसा और कानूनी कार्रवाई के खतरों का सामना करना पड़ता है.[50]

भीड़-हिंसा से निपटने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश

जुलाई 2018 में, सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भीड़-हिंसा और हत्याओं को रोकने के लिए कई “निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक” निर्देश जारी किए. न्यायालय ने यह भी सिफारिश की कि संसद लिंचिंग को एक पृथक अपराध घोषित करे और इसके लिए पर्याप्त सजा का प्रावधान करे.[51]

अदालत ने सभी राज्य सरकारों को भीड़-हिंसा की घटनाएं रोकने और अपराधियों के खिलाफ त्वरित पुलिस कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जो कम-से-कम पुलिस अधीक्षक के ओहदे का हो, को हर जिले में नोडल अधिकारी के रूप में नामित करने के लिए कहा है.[52] अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक रूप से बयान देने और संदेश फैलाने का निर्देश दिया कि “लिंचिंग और किसी भी तरह की भीड़-हिंसा के लिए कानून के तहत गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.” इसने पीड़ितों के लिए मुआवजे का भी प्रावधान किया और उनके संरक्षण का आदेश दिया है.[53] अंत में, अदालत ने कहा है कि ऐसे पुलिस या सरकारी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो इन निर्देशों का पालन करने में विफल रहते हों.

कई राज्यों ने नोडल अधिकारियों को नामित किया है और पुलिस अधिकारियों को भीड़-हिंसा से निपटने संबंधी सर्कुलर जारी किए हैं. हालांकि, सभी राज्यों ने अनुपालन रिपोर्ट नहीं भेजी है और कुछ राज्यों ने रिपोर्ट भेजी भी है तो महज सामान्य जानकारियां मुहैया करायी हैं जो अदालती निर्देशों के अनुपालन के बारे में बहुत कम जानकारी मुहैया करती हैं.[54]

इस मामले की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश भर में हो रही भीड़-हिंसा के लिए केंद्र सरकार की जिम्मेदारी को सामने रखा है. “केंद्र अब यह नहीं कह सकता है कि यह कानून और व्यवस्था की समस्या है, इसीलिए इससे निपटने की जिम्मेदारी राज्यों की है.”[55] जयसिंह ने कहा कि बेहतर तरीके से जिम्मेदारी सुनिश्चित करने वाला एक नया भेदभाव-विरोधी कानून बनाया जाना चाहिए. “किसी भी सरकार के लिए मौके पर तैनात ऐसे कांस्टेबल पर कार्रवाई करना आसान है, जो एक आदमी की लिंचिंग होता देखता रह गया हो. लेकिन उस पुलिस आयुक्त का क्या जो अपनी नाक के नीचे हुई इस घटना को रोकने में विफल रहा? क्या उसे समान रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए?”[56]

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत भारत के दायित्व

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत भारत की केंद्र और राज्य सरकारें धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यक आबादी की रक्षा और उनके खिलाफ भेदभाव और हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर पूरी तरह और निष्पक्षता से कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य हैं. संवैधानिक प्रावधान और घरेलू कानून के तहत भारत सरकार पर अल्पसंख्यक आबादी के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करने, सांप्रदायिक हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने और ऐसे सह-अपराधी अधिकारियों को दंडित करने की जिम्मेदारी है जिन्होंने हिंसा रोकने की शक्ति और जवाबदेही के बावज़ूद हस्तक्षेप नहीं किया. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान व्यवहार और समान कानूनी संरक्षण के अधिकार की गारंटी करते हैं. अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की गारंटी देता है.[57] अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, दलित और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करता है और उनके खिलाफ अपराधों केलिए कानूनी कार्रवाई और पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास की व्यवस्था करता है.[58]

संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को कोई भी वैध पेशा, व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार में आजीविका का अधिकार शामिल है.[59]

भारत महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों पर हुई संधियों का हिस्सा है. नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता (आईसीसीपीआर) और नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीईआरडी) नस्ल या नृ-जातीयता पर आधारित भेदभाव पर रोक लगते हैं, और इनके तहत सरकारों की जिम्मेवारी है कि अपने-अपने निवासियों को समान कानूनी सुरक्षा प्रदान करें.[60]

आईसीईआरडी सरकारों को नस्लीय, जातीय या राष्ट्रीय मूल से प्रेरित सभी तरह की हिंसा के लिए कानून द्वारा दंडित करने के लिए बाध्य करता है.[61] विशेष रूप से, आईसीईआरडी के अनुच्छेद 4 के मुताबिक सरकारों के लिए जरूरी है कि “किसी नस्ल या अन्य रंग या जातीय मूल के व्यक्तियों के समूह के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा या ऐसी किसी भी कार्रवाई के लिए उकसावा” को कानूनन दंडनीय अपराध घोषित करे.[62]

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार और धर्म के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंधों को धर्म या आस्था के आधार पर की जाने वाली सभी तरह की असहिष्णुता और भेदभाव के उन्मूलन की घोषणा में  विस्तार से बताया गया है.[63] हालांकि यह कोई समझौता नहीं है, फिर भी 1981 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की यह घोषणा धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव खत्म करने के तरीकों पर संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को अधिकारपूर्ण दिशा-निर्देश देती है.

आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों (आईसीईएससीआर) पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते का अनुच्छेद 6 काम के अधिकार को मान्यता देता है. “इसके अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह जीविका के लिए स्वतंत्र रूप से कामों का चयन करे या उन्हें स्वीकार करे” और सरकारें इस अधिकार की सुरक्षा के लिए कदम उठाने के लिए बाध्य हैं.[64] आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति, काम के अधिकार पर अपनी सामान्य टिप्पणी संख्या 18 में कहती है कि सरकारों का “मुख्य दायित्व” बिना किसी भेदभाव के रोजगार के लिए समान सुरक्षा सुनिश्चित करना है. चूंकि रोजगार में भेदभाव व्यक्तियों और समूहों के काम की स्थिति पर काफी प्रभाव डाल सकते हैं, इसलिए सरकारों को “ऐसी किसी भी कार्यवाही से बचना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप वंचित और हाशिये के व्यक्तियों और समूहों के साथ निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में भेदभाव और असमान व्यवहार हो या जिससे ऐसे व्यक्तियों और समूहों की सुरक्षा का तंत्र कमजोर होता हो.”[65]

 

गाय से जुड़ी हिंसा पर पुलिस कार्रवाई में पूर्वाग्रह

ह्यूमन राइट्स वॉच ने गाय से जुड़ी हिंसा के जिन मामलों की जांच की, उनमें ज्यादातर में पुलिस ने जांच शुरू करने की दिशा का पहला कदम- प्रथम सूचना रिपोर्ट, दर्ज करने में देरी की या अन्य प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रही.

2015 से गौरक्षकों के हाथों हुईं लगभग एक तिहाई हत्याओं में पुलिस ने पीड़ितों या गवाहों के खिलाफ ही मामले दर्ज कर दिए हैं.[66] कुछ मामलों में, पुलिस या अभियुक्त और उनके समर्थकों से मिली धमकी के कारण गवाह पलट गए. कुछ मामलों में, पीड़ित की मौत में पुलिस का भी हाथ रहा और उसने अपराध पर लीपापोती करने का प्रयास किया.

महाराष्ट्र में पुणे के पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरन बोरवंकर ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस का गैर-पेशेवर रवैया उनकी व्यक्तिगत आस्था और पूर्वाग्रह का नतीज़ा हो सकता है, साथ, यह भी कि वे राजनीतिक नेतृत्व के संदेश को किस रूप में लेते हैं:

देश में आम तौर पर ऐसा माहौल बना हुआ है कि गौरक्षा हमारा पवित्र कर्तव्य है. कुछ पुलिस अधिकारी, अपने पूर्वाग्रह के साथ, इन गौरक्षकों की भावनाओं से हमदर्दी रखते हैं और उन्हें अदालत की सज़ा से बचाने के तरीके खोज सकते हैं. हमारे पास केवल हत्याओं की खबर पहुंच रही है. लेकिन हो सकता है कि पुलिस और गौरक्षक दोनों, गाय के नाम पर बड़े पैमाने पर जबरन वसूली, गुंडागर्दी और भ्रष्टाचार कर रहे हों.[67]

एफआईआर दर्ज करने में देरी, पीड़ितों के खिलाफ मुकदमें

ह्यूमन राइट्स वॉच ने जिन चार मामलों का दस्तावेजीकरण किया है, उनमें पुलिस ने या तो देर से एफआईआर दाखिल की या पब्लिक विरोध के बाद ही अभियुक्तों पर संबंधित अभियोग लगाए और उन्हें गिरफ्तार किया.

पेहलू खान, राजस्थान

1 अप्रैल, 2017 को राजस्थान के अलवर जिले में भीड़ ने दुग्ध उत्पादक किसान 55-वर्षीय पेहलू खान पर गौ-तस्करी का आरोप लगाकर बुरी तरह से मारपीट की. वह हरियाणा के नूंह जिले के पशु मेले से गायों और बछड़ों की खरीददारी कर अपने बेटों - इरशाद और आरिफ के साथ गांव लौट रहे थे. उनके साथी ग्रामीणों - अज़मत और रफीक की भी पिटाई की गई. दो दिन बाद एक निजी अस्पताल में, जहां पुलिस ने उन्हें भर्ती कराया था, पेहलू खान की मौत हो गई. मौत से पहले दिए बयान में उन्होंने छह हमलावरों का नाम लिया.[68]

हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज करने के बजाय, पुलिस ने पहले गौ-तस्करी के आरोप में पेहलू खान और उनके बेटों सहित सभी पांचों पीड़ितों के खिलाफ राजस्थान गोवंशीय पशु (वध निषेध और अस्थायी प्रवसन या निर्यात विनिमयन) अधिनियम, 1995 के तहत एफआईआर दर्ज की.[69] पुलिस ने आरोप लगाया कि खान और उनके सहयोगियों के पास राज्य सीमा में जानवरों को लाने-ले जाने की अनुमति देने वाले दस्तावेज नहीं थे.[70] पुलिस जांच में इस बात को नज़रंदाज़ कर दिया गया कि भीड़ ने जयपुर नगर निगम द्वारा जारी खरीद रसीदों को फाड़ दिया था. हालांकि, पुलिस ने शाम 7:40 बजे पेहलू खान को अस्पताल में भर्ती करा दिया, लेकिन आठ घंटे बाद 2 अप्रैल को सुबह 3:54 बजे तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई.[71]

सितंबर में, राजस्थान पुलिस की अपराध जांच शाखा ने जांच रिपोर्ट दायर की जिसमें पेहलू खान के मृत्यु पूर्व बयान को खारिज करते हुए सभी छह अभियुक्तों को दोषमुक्त करार दिया गया. मालूम हो कि इनमें तीन कथित रूप से हिंदू कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े हुए थे. पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हमले के समय अभियुक्तों के वहां मौजूद होने का कोई सबूत नहीं है. मोबाइल फोन रिकार्ड्स के साथ-साथ एक गौशाला कर्मचारी के बयान के आधार पर मामले से उनके नाम हटाने की सिफारिश की गई. हालांकि, गौशाला को एक अभियुक्त का कथित तौर पर संरक्षण था.[72] जांच के दौरान दो नाबालिगों समेत नौ अन्य अभियुक्तों के नाम दर्ज किए गए.

जांच में तीन सरकारी डॉक्टरों द्वारा तैयार पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी कमज़ोर करने का प्रयास किया गया, जिसके मुताबिक छाती और पेट में लगी चोट के कारण मौत हुई.[73] इसके बजाय, पुलिस ने निजी अस्पताल के डॉक्टरों की गवाही दर्ज की, जहां पुलिस ने पेहलू खान को भर्ती कराया था. वहां के डॉक्टर ने बयान दिया कि पेहलू खान की मौत चोटों की वजह से नहीं, दिल का दौरा पड़ने से हुई.[74] जिस निजी अस्पताल में पेहलू खान, उनके बेटों और सहयोगियों को भर्ती कराया गया, उसकी स्थापना केंद्रीय मंत्रिमंडल में संस्कृति राज्य मंत्री महेश शर्मा द्वारा की गई थी.[75]

अपने पिता पेहलू खान की तस्वीर के साथ इरशाद खान. 2017 में राजस्थान से हरियाणा मवेशी लेकर जा रहे इरशाद, उसके भाई, पिता और दो अन्य लोगों पर गौरक्षा समूह के सदस्यों ने हमला किया. हमले में पेहलू खान की मौत हो गई थी. © 2017 कैथल मक्नॉटन/ राय्टर्स

एक स्वतंत्र तथ्य-खोजी रिपोर्ट, जिसकी तसदीक कई अधिकार समूहों ने की है, का निष्कर्ष है कि, “मौजूद अभिलेख स्थापित करते हैं कि पुलिस और अभियोजन ने अपनी कारगुजारियां दिखाते हुए हमले के दिन से ही अपराध की भयावहता को कम करने का काम किया और इस तरह अभियुक्तों के खिलाफ मामले को कमजोर बनाया.”[76] इसलिए, खान के बेटे इरशाद ने उच्चतम न्यायालय की निगरानी में इस घटना की जांच की मांग की.[77]

जनवरी 2018 में, पुलिस ने कथित रूप से गौ-तस्करी के लिए अज़मत और रफीक के खिलाफ  आरोपपत्र दायर किया. उन्होंने निशाना बनाए गए वाहनों के एक चालक और उसके पिता, जिनके नाम पर ट्रक पंजीकृत था, के खिलाफ भी आरोपपत्र दायर किया.[78]

अनस, आरिफ और नाज़िम, उत्तर प्रदेश

2 अगस्त, 2015 को दादरी शहर के कैमराला गांव में अनस कुरैशी, 17 साल, आरिफ कुरैशी, 26 साल और नाजिम,15 साल की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. उनके ट्रक में दो भैंसे मिलने के बाद हमलावरों ने उसमें आग लगा दी. उस दिन घटना से कुछ समय पहले पशु व्यापारी आरिफ अपने चचेरे भाई अनस के साथ भैंस खरीदने कैमरला गांव गया था. उसने नाज़िम से भैंस ले जाने के लिए विक्रेता के घर पर ट्रक लेकर आने को कहा था.

पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने के बजाय, पीड़ितों को दोष देने के प्रयास में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ जबरन घुसने, चोरी और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया.[79] कथित तौर पर रिश्वत लेने के छह दिन बाद पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें तीन लोगों पर दंगा करने, गैरकानूनी ढंग से इकट्ठा होने और गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया.[80] पुलिस ने हत्या का आरोप शामिल नहीं किया और प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का कारण नहीं बताया.[81] परिवार के सदस्यों ने उत्तर प्रदेश और दिल्ली के वरिष्ठ पुलिस और सरकारी अधिकारियों को मामले की उचित जांच और पीड़ित परिवारों को सुरक्षा देने का अनुरोध करते हुए कई पत्र लिखे.[82] जब हमने उनसे बात की, उन्हें इन पत्रों का कोई उत्तर नहीं मिला था. उन्होंने बताया कि जांच की स्थिति के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं.[83]

उमर खान, राजस्थान

गौरक्षकों ने 10 नवंबर, 2017 को अलवर जिले में 35-वर्षीय किसान उमर खान को कथित तौर पर गोली मार दी. एक दिन बाद उसका शव रेलवे ट्रैक पर मिला. उसके परिवार ने आरोप लगाया कि सबूत मिटाने और मौत को दुर्घटना करार देने के लिए वहां शव रख दिया गया.[84]

उसके चाचा द्वारा दायर एफआईआर के अनुसार, मौत के समय उमर खान अपने साथी ग्रामीणों ताहिर और जावेद के साथ मवेशियों को भरतपुर जिले में अपने घर ले जा रहा था. ख़ुद को गौरक्षा समूहों का सदस्य बताने वाले कुछ लोगों ने उन लोगों पर हमला किया. ताहिर को भी गोली लगी और अस्पताल में भर्ती कराया गया, जबकि जावेद भागने में सफल रहा.[85]

अपराधियों पर तुरंत कार्रवाई करने के बजाए, पुलिस ने आरोप लगाया कि तीनों “गौ-तस्कर” थे और उनके खिलाफ राजस्थान गोवंशीय पशु (वध निषेध और अस्थायी प्रवसन या निर्यात विनिमयन) अधिनियम, 1995 के तहत मामला दर्ज किया गया. मामला दर्ज करने के एक सप्ताह बाद पुलिस ने ताहिर और जावेद को गिरफ्तार कर लिया.[86]

अधिकार समूहों ने उनकी गिरफ्तारी की व्यापक निंदा की. पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज़ की कविता श्रीवास्तव ने कहा, “अलवर पुलिस को हत्यारों को गिरफ्तार करना चाहिए था. पुलिस सौदेबाज़ी करने, डराने और मामले को कमजोर करने के लिए इन दोनों पर दबाव बनाना चाहती है. इससे पता चलता है कि राज्य सरकार ने हत्यारों को पूरी तरह अभयदान दे रखा है.”[87]

विरोध को देखते हुए, जनवरी 2018 तक पुलिस ने उमर खान की हत्या के आरोप में आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि अभियुक्त “साधारण लोग, ग्रामीण, असामाजिक तत्व” थे जिन्होंने उमर खान और उसके साथियों के साथ लूटपाट की, खान की हत्या कर दी और उसके शव को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया.[88]

नोमान, हिमाचल प्रदेश

उत्तर प्रदेश निवासी 20-वर्षीय नोमान को 14 अक्टूबर, 2015 को हिमाचल प्रदेश के सराहन में गौ-तस्करी के शक में पीट-पीटकर मार डाला गया. शव जांच में 40 से अधिक चोटें मिलीं और यह बात सामने आई कि भारी चोट से आघात, फेफड़े और मस्तिष्क में अतिरिक्त स्राव के कारण सूजन से नोमान की मौत हो गई.[89]

हमलावरों ने मवेशी ढुलाई के लिए इस्तेमाल किए जा रहे ट्रक पर सवार चार अन्य लोगों की भी पिटाई की. पुलिस ने बाद में उन सभी चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया और उन पर गोहत्या निषेध और पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण कानूनों के तहत मामला दर्ज किया.

व्यापक विरोध को देखते हुए, घटना के दो माह बाद पुलिस ने दिसंबर 2015 में हत्या का मामला दर्ज किया और चार्जशीट दायर की. बारह लोगों की गिरफ्तारी हुई और सभी को जमानत पर रिहा कर दिया गया, जिससे नोमान के साथियों की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई. बताया जाता है कि अपने खिलाफ गौ-तस्करी का मामला दर्ज किए जाने से वे डर गए और हमलावरों के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार नहीं हैं.[90]

प्रक्रियाओं का पालन में पुलिस की विफलता, अपराधियों की हिफाज़त

यहां तक कि जिन मामलों में पुलिस ने मामले दर्ज किए, उनमें भी उसने कई मौकों पर अभियुक्तों का बचाव किया.

मजलूम अंसारी और मोहम्मद इम्तेयाज़ खान, झारखंड

मुस्लिम पशु व्यापारी, 35-वर्षीय मोहम्मद मजलूम अंसारी और 12-वर्षीय मोहम्मद इम्तेयाज़ खान को उस समय मार डाला गया जब वे पशु मेले में मवेशियों को बेचने जा रहे थे. उनके शव 18 मार्च, 2016 को झारखंड के लातेहार जिले में एक पेड़ से लटके पाए गए. उनके हाथ पीठ के पीछे बंधे थे, आंखें कपड़े से ढंकी थीं और शरीर पर चोट के कई निशान थे.[91] पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, चोट किसी “कठोर भोथरे छड़ जैसी” वस्तु से लगी थी.[92]

दिसंबर 2018 में, झारखंड की एक अदालत ने इन हत्याओं के लिए आठ लोगों को दोषी ठहराया और उम्र कैद के साथ-साथ प्रत्येक पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया.[93] हालांकि, परिजनों, जिले के लोगों और मामले के जानकार वकीलों का कहना है कि पुलिस ने शुरु में ठीक से जांच नहीं की.

अंसारी के परिवार के अनुसार पूर्व में उन्हें अभियुक्तों समेत स्थानीय गौरक्षा समूह के सदस्यों ने धमकी दी थी. उनकी पत्नी सायरा बीबी ने, 2017 में अदालत को बताया कि उनके पति की हत्या के 45 दिन पहले, अभियुक्तों ने उन्हें मवेशी व्यापार करने के खिलाफ चेतावनी दी थी. सायरा बीबी ने बताया कि अंसारी ने बालूमाथ पुलिस थाना में घटना की शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस ने कार्रवाई नहीं की.[94]

हत्या के दिन, इम्तेयाज़ खान के पिता आज़ाद खान मोटरसाइकिल से अपने बेटे के पीछे-पीछे चल रहे थे. उन्होंने बताया, “जब मैंने उन्हें इम्तेयाज़ और मजलूम की पिटाई करते देखा तो झाड़ियों में छिप गया. अगर मैं बाहर निकलता, तो मुझे भी मार डालते. मेरा बेटा मदद के लिए चिल्ला रहा था, लेकिन मैं इतना डरा हुआ था कि छिप गया.”[95]

पुलिस ने आखिरकार हत्या के आरोप में आठ लोगों को गिरफ्तार किया. अभियुक्तों ने बताया कि वे एक स्थानीय गौरक्षा समूह के सदस्य हैं और पहले भी मुसलमानों का पीछा किया था, उनके मवेशी चुराए थे और इनमें कुछ को बेच कर बाकी को जंगल में छोड़ दिया था. चार अभियुक्तों ने बताया कि कैसे पहले अंसारी और खान की पिटाई की, फिर गला घोंटकर मार डाला और पेड़ से लटका दिया.[96] मई 2016 में, पुलिस ने हत्या और सबूत गायब करने का मामला दर्ज किया.[97] हालांकि, पुलिस ने स्थानीय गौरक्षक समूह के नेता विनोद प्रजापति, जिसकी गवाहों ने अपराधी के रूप में पहचान की थी, के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया[98] और न ही आपराधिक साजिश का आरोप लगाया.[99]

पुलिस मजिस्ट्रेट के सामने आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत इकबालिया बयान दर्ज कराने में भी नाकाम रही, जिससे ये सबूत के रूप में अमान्य हो गए.[100] पुलिस द्वारा आरोप दायर करने के एक हफ़्ता बाद, 9 जून, 2016 को सभी आठ अभियुक्तों को जमानत पर रिहा कर दिया गया.[101]

वहां के मुस्लिम निवासियों का मानना है कि वास्तव में पुलिस कभी भी जरुरी कार्रवाई करने का इरादा नहीं रखती थी. पहले भी, उन्होंने मई 2016 में फैक्ट-फाइंडिंग दौरे पर आए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को सूचित किया था कि हाल के वर्षों में गौरक्षा समूहों द्वारा पशु व्यापारियों के खिलाफ धमकी, उत्पीड़न और शारीरिक हमलों के बारे में बार-बार शिकायतों पर अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की है.[102]

आयोग दोनों मामलों, हत्याओं और त्वरित पुलिस कार्रवाई की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर दमन की जांच कर रहा था. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चलाई, हवाई फायरिंग की और 110 मुस्लिम युवकों के खिलाफ हिंसा का मामला दर्ज किया था.[103] पुलिस का कहना था प्रदर्शनकारियों द्वारा पथराव करने और स्थिति नियंत्रण से बाहर होने पर उसने बल प्रयोग किया. वहीं ग्रामीणों ने बताया कि मौके पर मौजूद पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने कई प्रदर्शनकारियों को पीटा और “मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ, अपमानजनक और सांप्रदायिक भाषा” का इस्तेमाल किया. उन्होंने आरोप लगाया कि मुसलमानों के खिलाफ उसका पूर्वाग्रह जगजाहिर है और उसकी कार्रवाई से ही हालात बिगड़ी.[104]

आयोग ने पुलिस सब-इंस्पेक्टर के खिलाफ जांच की सिफारिश की, अधिकारियों से विरोध प्रदर्शन के दिन घटनाक्रम की जांच करने और निर्दोष लोगों के खिलाफ आरोपों को वापस लेने के लिए कहा.[105]

 

मोहम्मद कासिम, उत्तर प्रदेश

18 जून, 2018 को हापुड़ जिले के पिलखुवा गांव के पास भीड़ ने गौहत्या की कोशिश करने के आरोप में 45-वर्षीय मोहम्मद कासिम को पीट-पीटकर मार डाला. कासिम मवेशी व्यापारी था जिसमें ज्यादातर बैल और बकरियों की खरीद-बिक्री हुआ करती थी. पास में एक खेत में अपने दोस्त के साथ बैठे 64-वर्षीय समयदीन ने हस्तक्षेप किया तो उन्हें भी बेरहमी से पीटा गया.

समयदीन और कासिम के परिजनों का आरोप है कि दो वीडियो में यह दिखाई देने पर भी कि  गौहत्या के शक में दोनों पर हमला किया गया, पुलिस ने शुरुआत में एफआईआर में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और विरोध न करने के लिए उन्हें धमकाया.[106] पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर के अनुसार, मोटरसाइकिल दुर्घटना और भीड़ द्वारा पिटाई के बाद उन लोगों को उठाकर वह अस्पताल लेकर आई और चोटों के कारण कासिम की मौत हो गई.

समयदीन ने स्थानीय पुलिस महानिरीक्षक को लिखे पत्र में बताया कि लगभग 25 लोगों की भीड़ ने उस पर और कासिम पर गौहत्या का आरोप लगाया और फिर उनकी पिटाई की.[107] समयदीन ने शिकायत की कि घटना के लगभग एक माह बाद भी पुलिस ने बयान दर्ज नहीं किया, जबकि वह घटना का गवाह है और कई अपराधियों की पहचान कर सकता है.[108] उसने यह भी लिखा कि हालांकि वह पूरी तरह से होश में नहीं था, पुलिस ने कई दस्तावेजों पर उसके अंगूठे का निशान ले लिया.[109]

समयदीन के भाई यासीन ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि पुलिस की धमकी के कारण उसने मोटरसाइकिल दुर्घटना के झूठे विवरण वाली एफआईआर पर हस्ताक्षर किया:

पुलिस ने हमें उस अस्पताल के बारे में नहीं बताया जहां वे कासिम और समयदीन को लेकर गए थे. पांच घंटे तक वे हमें इधर-उधर दौड़ाते रहे. हम पहले से ही दो अलग-अलग अस्पतालों के चक्कर काट चुके थे. इसके बाद पुलिस ने हमें धमकी दी: “जब तक तुम इस एफआईआर पर हस्ताक्षर नहीं करते, हम नहीं बताएंगे कि समयदीन कहां है.” उन्होंने हमें मवेशी संरक्षण कानूनों के तहत गिरफ्तारी की धमकी भी दी और कहा कि हमारे पूरे परिवार को जेल में डाल देंगे. पुलिस ने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि यह किसकी सरकार है? क्या हो सकता है? तुम सब के लिए बेहतर यही है कि कुछ मत बोलो.[110]

यासीन ने कहा कि दिल्ली आने के बाद ही उसका परिवार एफआईआर के सच को बता पाया. सोशल मीडिया पर एक तस्वीर साझा किए जाने के बाद राज्य पुलिस की भी व्यापक आलोचना की गई. इस तस्वीर में कुछ ग्रामीण घायल कासिम को तीन पुलिसकर्मियों की मौज़ूदगी में घसीटते हुए दिख रहे थे. हालांकि हापुड़ के पुलिस अधीक्षक ने इस आरोप का खंडन किया, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर इस घटना के लिए माफी मंगाते हुए कहा कि पुलिसकर्मियों का तबादला कर दिया गया है और घटना की जांच का आदेश दे दिया गया है. आगे कहा गया कि “पुलिसकर्मियों को अपने आचरण में और ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए.”[111]

कासिम के भाई मोहम्मद सलीम ने ह्यूमन राइट्स वॉच को यह भी बताया कि पुलिस ने उसे घटना के बारे में गलत बयान देने के लिए धमकाया. उसने कहा, “भीड़ ने उन्हें गाय के नाम पर मार डाला. अब पुलिस अपराधियों को बचाने के लिए झूठ बोल रही है.”[112]

व्यापक विरोध के बाद, पुलिस ने अंत में हत्या, हत्या के प्रयास और दंगे के आरोप में नौ लोगों को गिरफ्तार किया. चार लोगों को जमानत दे दी गई.

अगस्त में, समयदीन ने धमकियों के डर से उत्तर प्रदेश के बाहर मुकदमा चलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और मांग की कि अदालत द्वारा राज्य के बाहर के अधिकारियों को लेकर गठित विशेष जांच दल के जरिए जांच की जाए. हालांकि, अदालत ने मेरठ मंडल के पुलिस महानिरीक्षक की सीधी निगरानी में जांच का निर्देश दिया.[113]

इस बीच, समाचार चैनल एनडीटीवी की जांच में एक अभियुक्त को कैमरे पर हमले के बारे में बात करते हुए दिखाया गया. उसने कहा, जमानत पर रिहा होने के बाद, उसके गांव में उसका हीरो जैसा स्वागत किया गया और उसे कोई डर नहीं क्योंकि उसे पुलिस का समर्थन प्राप्त है. “लोग मेरे नाम के नारे लगा रहे थे. मेरा स्वागत किया लोगो ने बाहे फैला के, मुझे बड़ा गर्व हुआ. मेरी फ़ौज तैयार है. अगर कोई गाय को मारता है, तो हम उसे मार डालेंगे. हज़ार बार जेल जाना पड़े, जाएँगे...पुलिस पक्ष मे है और ये सब रहा सरकार का दम.”[114]

पुलिस की मिलीभगत और पर्दा डालने की कोशिशें

कुछ मामलों में, पुलिस की लापरवाही या मिलीभगत से पीड़ितों की मौत हुई और फिर पुलिस ने अपराधियों को बचाने के लिए अपराधों पर पर्दा डालने की कोशिश की.

कर्नाटक के उडीपी जिले में 62-वर्षीय मुस्लिम पशु व्यापारी हुसैनब्बा की मौत के सिलसिले में पुलिस जांच में पाया गया कि तीन पुलिस अधिकारियों ने बजरंग दल के कार्यकर्ताओं से सांठ-गांठ कर एक घातक भीड़ के हमले पर पर्दा डाला और रिपोर्ट दी कि पीड़ित की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई.[115] 30 मई, 2018 को, पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर मूकदर्शक बने रहे, जब बजरंग दल के सात कार्यकर्ताओं ने हुसैनब्बा पर अवैध रूप से मवेशी ले जाने के संदेह में हमला किया, उसके वाहन को क्षतिग्रस्त कर दिया और फिर उसे पुलिस को सौंप दिया. जून में तीनों पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर गिरफ्तार कर लिया गया.[116]

एक समाचार वेबसाइट की जांच में दावा किया गया कि पुलिस ने 2013 से 2018 के बीच मेवात क्षेत्र में गौ-तस्करी के संदेह में कथित तौर पर 16 लोगों की हत्या कर दी. इन हत्याओं में से 13 हत्याएं 2014 के बाद हुईं.[117] अधिकांश पीड़ित कुरैशी और मेओ जैसी निम्न सामाजिक-आर्थिक जातियों के मुस्लिम युवक थे जो ट्रक ड्राइवरों के रूप में काम करते थे और अपनी आजीविका के लिए खेती, पशुपालन और दूध एवं मांस आपूर्ति पर निर्भर थे. इन मामलों में, पुलिस का दावा है कि जब उसने मवेशी ले जा रहे वाहन रोकने का प्रयास किया, तो संदिग्ध गौ-तस्करों ने भागने की कोशिश की और उन पर गोली चलाई. आत्मरक्षा में पुलिस की गोलीबारी में संदिग्ध मारे गए. इसके बाद पुलिस ने पीड़ितों या “अज्ञात व्यक्तियों” के खिलाफ मामले दर्ज किए.[118]

अकबर खान, राजस्थान

21 जुलाई, 2018 को अलवर जिले में भीड़ ने 28-वर्षीय अकबर खान की हत्या कर दी. पुलिस रिकॉर्ड और गवाहों के विवरणों के बीच विसंगतियों से संकेत मिलते हैं कि पुलिस ने झूठी एफआईआर दर्ज की और उसकी मौत में पुलिस की मिलीभगत हो सकती है. साथ ही, अकबर खान के परिवार और अधिकार समूहों का आरोप है कि स्थानीय राजनीतिक नेता और हिंदू राष्ट्रवादी समूह मौत के लिए पूरी तरह पुलिस को दोषी ठहरा रहे हैं, हालांकि सबूत दिखाते हैं कि गौरक्षकों ने उसकी पिटाई की थी.[119]

हरियाणा के नूहं जिले के निवासी अकबर खान और उसके सहयोगी असलम खान पर उस समय  हमला हुआ जब वे दो गाएं खरीदकर राजस्थान की सीमा से लौट रहे थे. असलम भागने में सफल रहा, लेकिन उसने लोगों को अकबर खान को बेरहमी से पीटते हुए देखा. पुलिस में दर्ज एफआईआर के अनुसार, विश्व हिंदू परिषद के नेता नवल किशोर शर्मा ने पुलिस को बुलाया, अकबर खान की बरामदगी वाली जगह पर ले गए और उनके साथ अस्पताल गए. प्राथमिकी के मुताबिक अकबर खान को अस्पताल पहुंचने पर मृत घोषित कर दिया गया.[120]

हालांकि, बाद में यह बात सामने आई कि गंभीर रूप से घायल मगर तब तक जीवित अकबर खान को केवल बीस मिनट की दूरी पर स्थित अस्पताल ले जाने में पुलिस को तीन घंटे लग गए.[121] पुलिस के साथ गए शर्मा ने सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा कीं और कहा कि पुलिस ने अकबर खान को अस्पताल ले जाने से पहले रुककर चाय पी. शर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस पीड़ित को पहले थाने ले गई और उनकी उपस्थिति में पिटाई की.[122]

पुलिस के रवैये की व्यापक आलोचना के बाद, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “मामले में फैसले लेने में चूक हुई.”[123] उन्होंने स्वीकार किया कि प्रारंभिक जांच में खान को अस्पताल ले जाने में पुलिस द्वारा देरी किए जाने की पुष्टि हुई है और बताया कि एक पुलिस अधिकारी को निलंबित और चार अन्य का तबादला कर दिया गया है.[124] पुलिस ने देरी की जांच के लिए एक कमिटी बनाई है और इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपेंगी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में “भोथरे हथियार या वस्तु” से लगी दर्जन से अधिक चोटों का जिक्र है और मेडिकल बोर्ड के मुताबिक “मरने से पहले शरीर पर लगी चोटों के आघात” से मौत हुई.[125] अकबर खान के बड़े भाई मोहम्मद अकबर ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया, “जब मैंने अपने भाई की लाश देखी तो यह कितना भयावह थी, आपको नहीं बता सकता. उसकी गर्दन, जांघें, हाथ टूटे हुए थे. मैं चाहता हूं कि अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिले.”[126]

पुलिस ने हत्या के आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन स्थानीय भाजपा विधायक ज्ञान देव आहूजा ने यह कहते हुए उनकी रिहाई की मांग की कि पीड़ित की मौत पुलिस लापरवाही से हुई है. इसके बजाय, उन्होंने पुलिस से, भीड़ से बच कर भागने में कामयाब अकबर खान के सहयोगी असलम को गिरफ्तार करने की मांग की. आहूजा ने कहा, “अकबर और असलम गायों की तस्करी कर रहे थे. असलम को भी गौ-तस्करी के लिए गिरफ्तार किया जाना चाहिए.”[127] पुलिस ने बताया कि इस बात की भी जांच की जा रही है कि खान और असलम जिन गायों को ले जा रहे थे, उन्हें कानूनी रूप से खरीदा गया था या नहीं.[128]

असलम ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि भीड़ के हमला से बचकर भागने के दौरान उसने अकबर खान की चीखें सुनी थी. “मैं सांस लेने से भी घबरा रहा था.” पुलिस को दी गई लिखित शिकायत में असलम ने कहा कि उसने हमलावरों को कहते हुए सुना कि उन्हें आहूजा का समर्थन प्राप्त है. हालांकि, आहूजा ने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि पुलिस उन्हें झूठे आरोपों में फंसा रही है.[129]

मिन्हाज अंसारी, झारखंड

3 अक्टूबर, 2016 को जामताड़ा जिले के नारायणपुर में पुलिस ने 22-वर्षीय मिन्हाज अंसारी को एक व्हाट्सएप ग्रुप में गोमांस की “घिनौनी” तस्वीर अपलोड करने और उस समूह के कई हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया. छह दिन बाद, पुलिस हिरासत में कथित रूप से यातना के कारण अंसारी की मौत हो गई.

गिरफ्तारी के एक दिन बाद 4 अक्टूबर को, नारायणपुर पुलिस थाना में अंसारी के खिलाफ सदभावना बिगाड़ने, धार्मिक भावनाएं अपमानित करने के मकसद से “जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण” भाषा के लिए भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत इलेक्ट्रॉनिक स्वरुप में घिनौनी सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने का मामला दर्ज किया गया.[130]

6 अक्टूबर को अंसारी की मां अजोला बीबी ने हत्या और अन्य अपराधों के लिए पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी.[131] उसने कहा कि 3 अक्टूबर को सब-इंस्पेक्टर हरीश पाठक उनके घर से उसके बेटे को उठाकर पुलिस थाना ले गया. वह उस के पीछे-पीछे थाना गई और देखा कि पाठक और पाबिया गांव का एक व्यक्ति उसके बेटे की लात-घूंसों और डंडे से पिटाई कर रहे हैं. जब उसने उन्हें रुकने के लिए कहा, तो उस पर भी हमला किया गया. उसने कहा, बाहर खड़े होकर मैंने देखा कि बेहोश होने तक मेरे बेटे को पीटा जाता रहा. पुलिस उसे अस्पताल ले गई और छह दिन बाद 9 अक्टूबर को उसकी मौत हो गई.[132]

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसे किसी कठोर और भोथरी वस्तु से कई बाहरी चोटें लगी थीं. मौत का कारण रक्तस्राव और सदमा बताया गया.[133] रिपोर्ट में पुलिस द्वारा गढ़ी कहानी का भी खंडन किया गया कि अंसारी की मौत इंसेफेलाइटिस से हुई. पुलिस ने पाठक के बयान के आधार पर अंसारी के रिश्तेदारों और कई अन्य लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया. उसका आरोप था कि इन लोगों ने उस पर अस्पताल में हमला किया जहां अंसारी भर्ती था.[134]

जिस अज्ञात व्यक्ति ने अंसारी को कथित रूप से पीटा और इस मामले में पुलिस का मुखबिर था, मीडिया में उसकी पहचान विश्व हिंदू परिषद के सदस्य के रूप में की गई.[135]

पूरे मामले की जांच राज्य पुलिस की आपराधिक जांच शाखा (सीआईडी) को सौंप दी गई है. पाठक को निलंबित कर दिया गया और परिवार को दो लाख रुपये मुआवजा मिला. दिसंबर 2018 में, झारखंड के उच्च न्यायालय ने पाठक को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि अंसारी की मौत “पुलिस हिरासत में हिंसा का मामला” है.[136]

मुस्तैन अब्बास, हरियाणा

मार्च 2016 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में मारे गए उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के 27 साल के मुस्तैन अब्बास के मामले में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि हरियाणा पुलिस ने राज्य में गौरक्षकों को बेख़ौफ़ होकर अपनी गतिविधियां संचालित करने और “आतंक बरपा करने” की छूट दे रखी है. इस मामले में पुलिस का रवैया भी कानून पालन करने में उसकी असफलता को दर्शाता है और इसके बजाय वह अब्बास की हत्या पर पर्दा डालने की कोशिश करते हुए दिखाई देती है.

5 मार्च 2016 को, अब्बास अपने गांव के पांच अन्य लोगों के साथ भैंस खरीदने के लिए हरियाणा गया. वापस लौटते समय, गौरक्षकों और कुरुक्षेत्र जिला पुलिस ने उनका पीछा किया. अब्बास के सहयोगी भागने में कामयाब रहे और उसके बिना ही घर पहुंचने पर अब्बास के पिता ताहिर हसन ने 9 मार्च को पुलिस में शिकायत दर्ज की. फिर उन्हें अपने बेटे के एक सहयोगी से जानकारी मिली कि गौरक्षा समिति के तीन सदस्यों ने अब्बास को पकड़ लिया और उसे कुरुक्षेत्र जिले के शाहबाद में पुलिस को सौंप दिया.

जब हसन 12 मार्च को बेटे की रिहाई के लिए शाहबाद पुलिस थाना गए, तो हरियाणा पुलिस ने कथित रूप से उनके साथ दुर्व्यवहार किया और धमकी दी. हसन ने उसी दिन पुलिस अधीक्षक से शिकायत की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अंत में, उन्होंने 16 मार्च को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की.[137] पुलिस ने अदालत को बताया कि पुलिस और स्थानीय गौरक्षा समिति के सदस्यों पर मवेशी ले जा रहे एक वाहन से अज्ञात व्यक्तियों ने गोली चलाई और पीछा करने पर वे वाहन छोड़ कर भाग गए. पुलिस ने कहा कि भागने वाले व्यक्तियों में अब्बास हो सकता है. 6 मार्च को पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ गौ-तस्करी और शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया.

18 मार्च को, एक अंतरिम आदेश में, उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस और जिला प्रशासन अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए नहीं दिख रहा है और महज जानवरों की ढुलाई कर रहे लोगों के खिलाफ पशु क्रूरता संबंधी उनकी पूर्वधारणा वैध व्यवसाय करने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करती है. आदेश में कहा गया:

पुलिस सहित राज्य को नियंत्रित करने वाले राजनीतिक आकाओं और वरिष्ठ अधिकारियों की सरपरस्ती में गौरक्षा दल के नाम और अंदाज़ में बने कथित निगरानी समूह ने कानून को हाथ में लेने का प्रयास किया है. स्थानीय प्रशासन, चाहे पुलिस हो या और कोई, की मौन सहमति तथा मिलीभगत से पशु व्यापर करने वालों पर कहर बरपा जा रहा है.[138]

अदालत के आदेश के बाद, 2 अप्रैल को पुलिस ने परिवार से अब्बास के शव की पहचान करने को कहा और आख़िरकार चार लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया.

9 मई को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस बात को रेखांकित किया कि अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही पुलिस ने मौत के बारे में परिवार को सूचित किया और हत्या का मामला दर्ज किया. अदालत ने अपने अंतिम आदेश में कहा कि स्थानीय प्रशासन गौरक्षक समूहों का समर्थन करता हुआ दिखाई दे रहा है और “यह बहुत मुमकिन है कि स्थानीय पुलिस अपने अधिकारियों को बचाने के लिए और राजनीतिक कारणों से इस जघन्य घटना की समग्रता से जांच न करे.” इसलिए अदालत ने आदेश दिया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो इस मामले की जांच करे और सरकार कुरुक्षेत्र के पुलिस अधीक्षक, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस उपाधीक्षक और शाहबाद पुलिस थाना, जहां मामला दर्ज किया गया था, के थानाध्यक्ष का तुरंत तबादला करे जिससे कि वे गवाहों को डराने या जांच को प्रभावित करने में सफल न हों.[139]

26 जुलाई को इस घटना के चश्मदीद और अब्बास के सहयोगी असलम ने लिखित बयान में बताया कि गौरक्षा समिति के सदस्यों ने पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में उस पर गोली चलाई और हालांकि वह हमलावरों से बचने में कामयाब रहा, उसने पुलिसवालों के सामने उन्हें अब्बास की “बेरहमी से पिटाई करते” देखा.[140]

हरियाणा सरकार ने 13 मई को सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि उच्च न्यायालय के निर्देश “दुर्भाग्यपूर्ण, अनुचित और अनावश्यक” हैं और ये पूरे कुरुक्षेत्र जिला प्रशासन पर गंभीर लांछन लगाते हैं और इसे रद्द किया जाना चाहिए.[141] मगर यह याचिका ख़ारिज कर दी गई और 23 मई, 2016 को सीबीआई ने एक नई प्राथमिकी दर्ज की. हालांकि, ढाई साल से अधिक समय बाद भी जांच लंबित है और आरोपपत्र दायर नहीं किया गया है.

हिंसा और अभयदान को बढ़ावा देता राजनीतिक संरक्षण

ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा डॉक्यूमेंट किए गए गाय संबंधी ज्यादातर हिंसक हमलों में, कथित हमलावर स्थानीय मवेशी संरक्षण समितियों के सदस्य थे और ये समितियां प्रायः सत्तारूढ़ दल से जुड़े हिंदू कट्टरपंथी समूहों से संबद्ध थीं. भाजपा नेताओं ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों की आमतौर पर निंदा नही की है और इसके बजाय उन्होंने गौरक्षा की जरूरतों पर भड़काऊ बयान जारी किए हैं. ऐसा लगता है कि उनकी नीतियों और बयानों ने गौरक्षा समूहों की हिंसा को बढ़ावा दिया है. इन समूहों को विश्वास है कि राजनीतिक संरक्षण के कारण उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता.

2016 में, हरियाणा सरकार ने कहा कि वह कथित पशु तस्करी पर अंकुश लगाने में पुलिस की मदद के लिए गौरक्षा समूहों को आधिकारिक अनुमति देगी. हालांकि इस प्रक्रिया में देरी हुई है,[142] फिर भी तथाकथित गौरक्षक रात में गलियों और विशेषकर राजमार्गों पर गश्ती करते हैं, वाहनों को रोकते हैं, उनमें मवेशियों की जांच करते हैं, ड्राइवरों को धमकी देते हैं और वाहन में गाय पाए जाने पर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं.[143] इन गौरक्षकों ने वैध पशु ट्रांसपोर्टरों पर हमले भी किए हैं. 2016 में, हरियाणा सरकार ने आम नागरिकों द्वारा गौहत्या और तस्करी की सूचना देने के लिए 24 घंटे काम करने वाली एक हेल्पलाइन शुरू की है और शिकायतों पर कार्रवाई के लिए पुलिस कार्य बल नियुक्त किया है.[144]

योगेंद्र आर्या द्वारा संचलित हरियाणा की सबसे बड़ी गौरक्षा वाहिनी में करीब पांच हजार युवा शामिल हैं. वाहिनी का अपना समूहगान, संविधान और लोगो है. लोगो में गाय का झुका हुआ धड़ है जिसके दोनों ओर तलवारों और असॉल्ट राइफलों की जोड़ी है.[145] आर्या ने कहा, “रात में घूमते वक़्त हम हथियार रखते हैं. हमने कुछ तस्करों की गोली मार कर हत्या की है और तस्करों ने भी हम पर गोली चलाई है.”[146]

मार्च 2017 में, भाजपा ने हिंदू धर्मगुरु आदित्यनाथ को भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त किया. पदभार संभालते ही उन्होंने ज्यादातर मुसलमानों के कई कसाईखानों और मांस दुकानों के खिलाफ कार्रवाई की. उन्होंने दावा किया कि वह अवैध प्रतिष्ठानों को बंद कर रहे हैं, लेकिन व्यवसायियों का कहना है कि उन्हें बिना किसी नोटिस या तय प्रक्रिया के कारोबार बंद करना पड़ा.[147] गौरक्षकों और 2002 में आदित्यनाथ द्वारा स्थापित कट्टरपंथी हिंदू समूह हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों ने ऐसे कुछ अभियानों में पुलिस की मदद की.[148] खबरों के अनुसार, समूह ने मांस कारोबार बंद कराने के लिए हिंसा और धमकियों का सहारा लिया.[149] मवेशी ट्रांसपोर्टरों के लिए उत्तर प्रदेश के अंदर सफ़र करना खौफनाक और खर्चीला हो गया है. साथ ही, उन गौरक्षकों के हमलों का खतरा भी रहता है, जिन्हें कथित तौर पर पुलिस की सहायता प्राप्त है और जो ट्रांसपोर्टरों से वसूली भी करते हैं.[150]

राजस्थान के अलवर जिले में एक गौरक्षा पुलिस चौकी. राज्य सरकार ने हरियाणा से लगी सीमा पर अलवर में पशु तस्करी रोकने के लिए ऐसी छह चौकियां खोली हैं. © 2018 ह्यूमन राइट्स वॉच

राजस्थान में, राज्य सरकार ने मवेशी तस्करी रोकने के लिए अलवर जिले में हरियाणा से लगी सीमा पर छह गौरक्षा पुलिस चौकियां खोली हैं. गौरक्षा समूह अक्सर पुलिस के साथ इन चौकियों पर कब्जा जमाए रहते हैं. अलवर में हाईवे पर एक ऐसी ही पुलिस चौकी के प्रभारी हेड कांस्टेबल ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि उन पर “गौरक्षकों का बहुत दबाव रहता है कि हम किसी भी गौ-तस्कर को बच कर जाने नहीं दें. कभी-कभी, हम कई दिनों तक घर नहीं जा पाते हैं.”[151] प्रत्येक चेक पोस्ट पर छह पुलिस कांस्टेबल तैनात रहते हैं और इलाके के लोगों का आरोप है कि ये जबरन वसूली के अड्डे बन गए हैं, जहां ट्रांसपोर्टर्स को रिश्वत देने के लिए मजबूर किया जाता है.[152]

कथित गौ-तस्करों के हमलों में शरीक लोग अक्सर दावा करते हैं कि उन्हें न केवल राजनीतिक संरक्षण, बल्कि जनता का भी समर्थन प्राप्त है. उनमें कुछ ने स्थानीय या राष्ट्रीय चुनाव में उम्मीदवारी की इच्छा भी जताई है. मोहम्मद अख़लाक पर हमले का एक आरोपी, नीचे जिसकी चर्चा की गई है, को हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक पार्टी उत्तर प्रदेश नवनिर्माण सेना का समर्थन प्राप्त है.[153] इसी समूह ने एक मुस्लिम की हत्या में मुकदमे का सामना कर रहे शंभू लाल रेगर को भी अपना उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव दिया.[154] रेगर ने दिसंबर 2017 में राजस्थान के राजसमंद जिले में एक मुस्लिम प्रवासी मजदूर के टुकड़े-टुकड़े कर “लव जिहाद” के खिलाफ नारा लगाते हुए अपने अपराध की एक फोन वीडियो रिकॉर्डिंग को अपलोड किया था.[155] हिंदू समूहों के अनुसार तथाकथित लव जिहाद मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू महिलाओं से शादी कर उन्हें मुसलमान बनाने की साजिश है. जेल के अंदर बनाए गए एक वीडियो में रेगर ने कहा कि उसे अपने अपराध का कोई पछतावा नहीं है. मगर सबूतों और इस वीडियो के सामने आने के बाद भी उसे कुछ अतिवादी हिंदू समूहों का समर्थन मिला जिन्होंने उसके समर्थन में विरोध प्रदर्शन किए.[156]

हिंसक हमलों में शामिल लोगों को अक्सर राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है. ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा जांच किए गए दो मामलों में, जिनका विवरण नीचे दिया गया है, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने हमलावरों का खुला समर्थन किया और उन्हें कानूनी सहायता की पेशकश की.[157]

अन्य मामलों में, पुलिस ने राजनीतिक दबाव के कारण अपने कर्तव्य से समझौता कर लिया. राजस्थान के पूर्व अपर पुलिस अधीक्षक रीछपाल सिंह ने कहा:

पुलिस पर गौरक्षकों के प्रति सहानुभूति रखने, जांच को कमजोर करने और उन्हें आजाद करने के लिए राजनीतिक दबाव रहता है. ऐसा उन सभी जगहों पर हो रहा है जहां भाजपा की सरकार है. इन गौरक्षकों को राजनीतिक सरपरस्ती और मदद मिलती है. अभी का सन्देश है, “आप संरक्षित हैं. आप बेख़ौफ़ ऐसा कर सकते हैं.” इससे पहले, वे कानून हाथ में लेने से डरते थे क्योंकि उन्हें गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई होने का डर रहता था. लेकिन अब उन्हें मालूम है कि पुलिस उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं करेगी. इन समूहों का गौरक्षा या जन कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है. यह केवल जबरन वसूली है. पुलिस भी जबरन वसूली में शामिल है. वैध ट्रांसपोर्टरों को भी रोका जाता है और उनसे वसूली की जाती है.[158]

अलीमुद्दीन अंसारी, झारखंड

29 जून, 2017 को झारखंड में अलीमुद्दीन अंसारी के गांव मनुआ से लगभग 16 किलोमीटर दूर रामगढ़ शहर में भीड़ ने उनपर हमला किया और उनकी कार में आग लगा दी. हमलावरों को संदेह था कि 45-वर्षीय मुस्लिम ने अपनी कार में गोमांस रखा हुआ है. हालांकि पुलिस पहुंची, लेकिन अस्पताल ले जाते वक्त पुलिस वैन में ही अंसारी की मौत हो गई. फोन से हमले की तस्वीरें ली गईं और वीडियो बनाए गए और ये व्यापक रूप से साझा किए गए जिसके कारण गिरफ्तारियां हुईं.

21 मार्च, 2018 को रामगढ़ जिले की एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने 11 संदिग्धों को दोषी ठहराया और उम्र कैद की सजा सुनाई. बारहवें आरोपी की उम्र 18 वर्ष से कम होने के कारण उसका मामला अभी भी किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित है. सजा पाने वालों में एक स्थानीय भाजपा नेता भी शामिल है.[159] अन्य लोगों में स्थानीय गौरक्षा समूह और वैचारिक रूप से भाजपा से जुड़े कट्टरपंथी युवा संगठन बजरंग दल के सदस्य हैं.[160] अदालत ने कहा कि “राज्य अपने संवैधानिक और वैधानिक दायित्वों का निर्वाह करने में पूरी तरह से विफल रहा.”[161]

अपनी सजा के खिलाफ अपील में जाने पर, जुलाई 2018 में दस मुलजिमों को जमानत पर रिहा कर दिया गया.[162] इनमें से आठ भाजपा मंत्री जयंत सिन्हा के घर गए, जिन्होंने माला पहनाकर उनका स्वागत किया. सिन्हा ने मीडिया को बताया कि वे लोग उनसे मिलने आए थे क्योंकि उन्होंने “उनकी कानूनी सहायता की थी और उन्हें इससे बहुत राहत मिली कि नए सिरे से सुनवाई होगी.”[163] विपक्षी नेताओं, एक्टिविस्ट्स और टिप्पणीकारों ने सिन्हा की आलोचना की कि यह इस बात का संकेत है कैसे सत्तारूढ़ दल ने ऐसी हिंसा का समर्थन किया और इसे मजबूत किया.[164] सिन्हा ने बाद में कहा कि उन्हें माला पहनाने का पछतावा है, हालांकि उन्होंने हिंसा की अनदेखी नहीं की और वे केवल उचित प्रक्रिया का सम्मान कर रहे थे.[165]

अंसारी पर हमले ने बड़े पैमाने पर सबका ध्यान खींचा. इसकी एक वजह यह रही कि उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार गौरक्षा समूहों की भीड़-हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़ी थी.[166]  सरकारी वकील सुशील कुमार शुक्ला ने कहा, “उसी दिन मोदी जी द्वारा इस तरह की हिंसा की निंदा करने के बाद से प्रशासन पर कार्रवाई का भारी दबाव था. सरकार बदनामी से डर गई थी.”[167]

अंसारी का मामला दिखाता है कि जब पुलिस इच्छाशक्ति दिखाते हुए राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना जांच करती है, तो सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में न्याय संभव है.[168] अंसारी के परिवार और वकील ने कहा कि पुलिस ने निष्पक्ष और समय पर जांच की. अंसारी की पत्नी मरियम खातून ने कहा, “पुलिस और सरकार ने वास्तव में हमारी मदद की.”[169] सरकार ने मुआवजा भी दिया और उसके बेटे को नौकरी का वादा किया.[170]

हालांकि, कानूनी कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति होने पर भी, सुनवाई के दौरान और बाद के घटनाक्रम, ऐसे मामलों में मौजूद चुनौतियों को प्रकट करते हैं. 12 अक्टूबर, 2017 को एक महत्वपूर्ण गवाह की पत्नी की रामगढ़ अदालत के ठीक बगल में एक कथित दुर्घटना में मौत हो गई.[171] हादसे के इर्द-गिर्द के हालात चिंता पैदा करने वाले थे. दो अन्य गवाहों को आरोपियों की धमकी और दबावों का सामना करना पड़ा और अदालत में गवाही देने जाने के लिए उन्हें पुलिस सुरक्षा की जरुरत पड़ी. अंसारी के परिवार ने भी कहा कि अदालत में माहौल अक्सर तनावपूर्ण रहता था. खातून ने कहा, “हर सुनवाई के दौरान बजरंग दल के दर्जनों कार्यकर्ता अदालत में मौजूद रहते थे और यह डराने वाला था.”[172]

मोहम्मद अख़लाक़, उत्तर प्रदेश

28 सितंबर, 2015 को दादरी शहर के बिसहारा गांव में भीड़ ने 50-वर्षीय मोहम्मद अखलाक की हत्या कर दी. उस पर ईंट, लात-घूंसों और चाकू से हमला किया गया. हमले में उसके 22-वर्षीय बेटे दानिश को भी गंभीर रूप से घायल कर दिया गया. यह हमला पास के एक हिंदू मंदिर में हुई इस घोषणा के बाद हुआ कि अख़लाक़ ने एक बछड़े की हत्या की है. हत्या के बाद, पुलिस ने अखलाक के घर से मांस जब्त किया और फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा कि यह गोमांस है या नहीं.

उस समय, उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की सरकार थी. उसने अख़लाक़ के परिवार को दस लाख रुपये मुआवजा की घोषणा की, और मुख्यमंत्री ने जिला अधिकारियों और पुलिस को उसके परिवार को पूरी सुरक्षा देने का आदेश दिया.

अखलाक और दानिश पर हमले में एक स्थानीय भाजपा नेता के रिश्तेदारों का हाथ पाया गया. अन्य लोगों ने हमलावरों का बचाव किया. केंद्र सरकार में एक वरिष्ठ भाजपा नेता और मंत्री ने अख़लाक़ की हत्या को “दुर्घटना” बताया.[173] राज्य के एक अन्य भाजपा विधायक संगीत सोम, जो पहले से ही सांप्रदायिक दंगे उकसाने के आरोपों का सामना कर रहे हैं, अखलाक की हत्या के बाद अभियुक्तों, जिनमें से एक स्थानीय भाजपा नेता का बेटा भी शामिल है, के साथ एकजुटता दिखाने के लिए दादरी का दौरा किया. पड़ोसी राज्य हरियाणा के भाजपा मुख्यमंत्री ने अखलाक की हत्या को “साधारण गलतफहमी” बताया.[174] गांव के हिंदुओं ने एक पुलिस वैन सहित वाहनों को नुकसान पहुंचा कर और एक मोटरसाइकिल को आग लगा कर गिरफ्तारियों का विरोध किया.[175]

दिसंबर 2015 में, पुलिस ने तीन नाबालिगों सहित 18 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की.[176] अक्टूबर 2016 में, 22 साल के एक अभियुक्त रवि सिसोदिया की न्यायिक हिरासत में किडनी और फेफड़ों सहित कई अंगों के काम करना बंद कर देने के कारण मौत हो गई. ग्रामीणों ने मुआवजे और कथित गौहत्या के लिए अखलाक के भाई की गिरफ्तारी की मांग करते हुए उसका दाह संस्कार करने से इनकार कर दिया[177] और उसे शहीद का दर्जा देते हुए शव को तिरंगे में लपेट दिया.[178]

जुलाई 2017 में, बिसहारा निवासियों की शिकायत पर, सूरजपुर अदालत ने पुलिस को मृतक अखलाक, उसकी पत्नी, बेटे दानिश, बेटी, मां और भाई के खिलाफ गौहत्या का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया. एक महीने बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मामले की जांच पूरी होने तक उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.[179] एक साल बाद भी जांच लंबित है.

अख़लाक़ हत्या मामले की सुनवाई फास्ट-ट्रैक अदालत द्वारा की जा रही है. हालांकि, नवंबर 2018 तक, सुनवाई शुरू नहीं हुई थी.[180] इस बीच, सभी अभियुक्तों को जमानत दे दी गई.

 

II. गवाहों की सुरक्षा में विफलता

भारत में राष्ट्रीय गवाह और पीड़ित संरक्षण कानून नहीं है. आपराधिक मामलों में, खासकर जब अपराधी ताकतवर होते हैं या उनके प्रभावशाली संबंध होते हैं, गवाहों और पीड़ित के परिवारों को अभियुक्त के साथ-साथ पुलिस की धमकियों का भी खतरा रहता है.

झारखंड में, मार डाले गए मजलूम अंसारी के भाई और उनकी हत्या का गवाह मनुवर ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि खासकर अभियुक्तों की जमानत पर रिहाई के बाद, अब उसकी जान पर खतरा मंडरा रहा है:

मैं वास्तव में डर गया हूं कि वे मुझे भी मार सकते हैं. पुलिस उनकी तरफ है. मैंने अदालत को बताया और पुलिस को भी आवेदन दिया है कि अदालत जाते वक्त मुझे सुरक्षा चाहिए. लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ. हम उनके गांव के बगल के रास्ते से होकर अदालत जाते हैं. हमारे गांव में मुस्लिमों के केवल पांच घर हैं, जबकि लगभग सौ घर हिंदुओं के हैं. कभी-कभी, जब आरोपी गांव में आते हैं, तो मुझे बहुत डर लगता है.[181]

आजाद खान, जिनके 12-वर्षीय बेटे इम्तेयाज को लातेहार में अंसारी के साथ मार डाला गया, ने भी ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि वह अपने और परिवार की सुरक्षा को लेकर डरे हुए हैं. “हमने अदालत जाने के दौरान पुलिस सुरक्षा की मांग की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.”[182]

उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या के बाद, उनके परिवार को सुरक्षा सम्बन्धी चिंताओं के कारण दिल्ली जाकर रहने को मजबूर होना पड़ा. अखलाक के भाई जान मोहम्मद अभी भी दादरी में रहते हैं और ग्रामीणों द्वारा दायर जवाबी मुकदमे में गोहत्या के आरोपी हैं. उन्होंने कहा कि मई 2018 में दो आरोपियों ने घर आकर उन पर समझौता का दबाव बनाया.

मोहम्मद ने कहा, “उन्होंने मुझे मामला वापस लेने को कहा. उन्होंने कहा कि बदले में हमारे खिलाफ गोहत्या का मामला वापस ले लेंगे. मैंने बात नहीं मानी क्योंकि हमने कोई अपराध नहीं किया है.”[183]

हापुड़ में कासिम की हत्या के मामले में, गवाह समयदीन ने मुकदमे को उत्तर प्रदेश से स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. समयदीन, उनके परिवार और कासिम के परिवार का कहना है कि उन्हें जान का खतरा है क्योंकि पुलिस अपराधियों से मिली हुई है.[184]

राजस्थान के अलवर में उमर खान की हत्या के बाद उनका 18-वर्षीय बेटा मकसूद अब घर का एकमात्र कमाने वाला सदस्य है जिस पर अपनी मां और सात भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी है. मक़सूद ने बताया कि परिवार पर समझौता करने का दबाव है. उसने कहा, “गाय खरीदने से अब सभी ग्रामीण काफी डरते हैं.”[185]

 

III. कृषि, व्यापार और आजीविका पर प्रभाव

गौरक्षा आंदोलन किसानों और चरवाहों को नुकसान पहुंचा रहा है और उनकी आजीविका के अधिकार को प्रभावित कर रहा है. राजस्थान स्थित लेखक और पशुपालन विशेषज्ञ एम.एल. परिहार ने कहा कि इस आंदोलन से देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा है: “गायों से जुड़े इस जुनून को बढ़ावा दे रहे हिंदुत्ववादी नेताओं को यह एहसास नहीं कि वे अपने ही हिंदू समुदाय और देश को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं.”[186]

भारत की लगभग 55 प्रतिशत आबादी कृषि और सम्बद्ध गतिविधियों से जुड़ी हुई है. यह क्षेत्र देश के सकल मूल्य वर्धन में 17 प्रतिशत का योगदान करता है.[187] किसान अक्सर पशुपालन और पशु व्यापार तथा डेयरी उत्पादों की बिक्री करके पूरक आय जुटा पाते हैं और खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. भारत में लगभग 19 करोड़ मवेशी और 10.8 करोड़ भैंसें हैं.[188] भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक भी है.[189]

हालांकि, कृषि के बढ़ते यंत्रीकरण के साथ, सांड और बैल जैसे नर मवेशियों की मांग में गिरावट आई है. नर बछड़ों को अक्सर बेच दिया जाता है. किसान अनुत्पादक और बूढ़े मवेशियों को भी बेचते हैं. लेखक हरीश दामोदरन बताते हैं कि किसान के लिए, अनुत्पादक जानवरों को खिलाना महंगाई का सौदा है, गौरतलब है कि अतीत में ‘हिंदू’ किसान का कभी भी ‘मुस्लिम’ कसाई के साथ कोई विवाद नहीं था.”[190]

गौहत्या, मवेशियों के परिवहन पर सख्त कानून और गौरक्षा समूहों के हमलों ने न केवल मवेशी व्यापार और ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था को बाधित किया है, बल्कि खेती और डेयरी क्षेत्रों से जुड़े चर्म और मांस निर्यात उद्योग पर भी इसका असर पड़ा है. ट्रांसपोर्टर्स भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. झारखंड स्थित अर्थशास्त्री और सामाजिक विज्ञान शोधकर्ता हरिश्वर दयाल ने कहा, “गायों का परिवहन बहुत मुश्किल हो गया है, क्योंकि ज्यादातर मुसलमान ही इस धंधे में शामिल थे.”[191]

राजस्थान में अलवर जिले में एक परिवहन कंपनी के मालिक शहाबुद्दीन ने अपने व्यवसाय पर पड़े असर का बयान किया. उन्होंने बताया कि पेहलू खान हत्या के समय अपने मवेशियों के लिए जिस वाहन का इस्तेमाल कर रहा था, पुलिस ने उसके चालक और मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. शहाबुद्दीन ने कहा कि खान के पास खरीदे गए मवेशियों की रसीद होने के बावजूद ऐसा किया गया जिससे यह साफ़ हो जाता है कि अब मवेशियों की ढुलाई सुरक्षित नहीं रह गई है:

मेरे अधिकांश चालक मुस्लिम हैं, अब वे गाय की ढुलाई से बिल्कुल इनकार कर देते हैं. और सिर्फ गाय ही नहीं, भैंस होने पर भी ऐसा ही करते हैं. यह बहुत बड़ा जोखिम है. गौरक्षक समूह गाड़ियों को नुकसान पहुंचाते हैं, उनमें आग लगाते हैं, ड्राइवरों को पीटते हैं और उनकी हत्या तक कर देते हैं. कोई भी ड्राइवर अब यह काम नहीं करना चाहता.[192]

समुदायों पर प्रभाव

गौरक्षा के नाम पर हुए हमलों से मुसलमान और दलित बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं. ज्यादातर कसाईखाने और मांस की दुकानें मुसलमानों की होती हैं. दलित परंपरागत रूप से मवेशियों के शवों का निपटारा करते हैं और चमड़े और चमड़े के सामान जैसे व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उनकी खाल उतारने का काम करते हैं. हालांकि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अस्तव्यस्त होने से सभी समुदाय प्रभावित हुए हैं, चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, दलित, आदिवासी हों या खानाबदोश. लेखक, पत्रकार और भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ पी. साईनाथ ने कहा, “यह सिर्फ मुसलमानों से जुड़ा नहीं है.” हिंदू, यहां तक कि ऊंची जाति के माने जाने वाले हिंदू भी प्रभावित हुए हैं.[193] उदाहरण के लिए, कई पशुपालक अपने मवेशी नहीं बेच सकते क्योंकि मवेशियों की कीमतें कम हैं या फिर उन पर हमला किया जाता है. लिहाजा, वे अपने मवेशियों को मरते हुए देखते हैं या उन्हें आवारा छोड़ देते हैं. और सिर्फ किसान और चरवाहे ही नहीं है, बल्कि व्यापारी और मवेशियों से जुड़े अन्य पेशेवर भी प्रभावित हुए हैं. साईनाथ ने आगे कहा, “पशु बाजारों में, बिचौलिए अक्सर अन्य जातियों के होते हैं. कई लोग मवेशियों या चमड़े से जुड़ी घंटियां, जूते, गहने जैसे सामान बनाने में भी लगे हुए हैं, वे सभी तबाह हो गए हैं.”[194]

आम किसानों सहित हिन्दू किसान भी पहले अपने अनुत्पादक मवेशियों को बेच देते थे, लेकिन अब उन्हें उनकी देखभाल के लिए मजबूर किया जाता है, जबकि वे उन्हें खिलाने का खर्च नहीं उठा सकते. अब ज्यादातर किसान उन्हें छोड़ देते हैं, इससे आवारा पशुओं द्वारा फसलों के नुकसान के कारण किसानों के लिए एक और समस्या खड़ी हो गई है. परिहार ने कहा:

हिंदू किसानों ने भी कभी पशुओं को कसाईखाना भेजने का विरोध नहीं किया क्योंकि वे जानते थे कि अगर पशु गांव में रहेंगे, तो फसलों को नुकसान पहुंचाएंगे. यह अर्थव्यवस्था का हिस्सा था. किसान को पशु से भावनात्मक लगाव हो सकता है, लेकिन फिर भी वह इसे बेचता था, जानते हुए कि यह कसाईखाने जा रहा है. किसान जानता था कि वह इसे खिलाने और रखने का खर्च नहीं उठा सकता.[195]

इन हमलों ने खानाबदोश चरवाहों की रोजी-रोटी को करीब-करीब बर्बाद कर दिया है.[196] अप्रैल 2017 में, जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में भीड़ ने एक मुस्लिम खानाबदोश चरवाहा परिवार के 9-वर्षीया बच्ची समेत पांच सदस्यों पर क्रूरतापूर्वक हमला कर दिया. भीड़ को शक था कि वे अपनी गायों को कसाईखाना ले जा रहे हैं.[197]

राजस्थान में बंजारा खानाबदोश समुदाय पर कई हमले हुए हैं.[198] बंजारा समुदाय के नेताओं का कहना है कि सरकार द्वारा संचालित बाजारों में भी मवेशियों का व्यापार करने पर उन्हें लगातार हमलों का सामना करना पड़ रहा है. “गौरक्षक समूह बार-बार हैरान-परेशान, मारपीट और वसूली करते हैं.”[199]

इस हिंसा के कारण सरकार द्वारा आयोजित पशु मेलों में पशुओं की खरीद-बिक्री में उल्लेखनीय कमी देखी जा सकती है.[200] राजस्थान सरकार प्रतिवर्ष 10 पशु मेलों का आयोजन करती है. 2010-11 में, इन मेलों में 56 हजार से अधिक गाय और बैल आए और उनमें से 31 हजार की बिक्री हुई. 2016-17 में, उनकी संख्या 11 हजार से भी कम रह गई, जिनमें 3 हजार से भी कम की खरीद-बिक्री हुई.[201]

आजाद खान, जिनके 12-वर्षीय लड़के को झारखंड में एक मवेशी बाजार जाने के रास्ते में मार कर पेड़ से लटका दिया गया, ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि उन्होंने अपने बेटे की हत्या के बाद मवेशियों का व्यापार करना छोड़ दिया. उन्होंने कहा, “मैं अब इस तरह का काम करने से बहुत डरता हूं. अभी मैं दूसरे के खेतों में काम करता हूं.”[202]

गैरकानूनी पशु व्यापार

गौरक्षक अक्सर अपने कार्यों को सही ठहराने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा पर अवैध मवेशी व्यापार और फलते-फूलते मवेशी-तस्करी का उदहारण देते हैं.[203] 2014 में, भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बांग्लादेश की सीमा पर भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से “किसी भी कीमत पर गायों की तस्करी रोकने” को कहा.[204] उन्होंने दावा किया कि 2016 में, सीमा पर गौ-तस्करी में 80 प्रतिशत गिरावट आई है, और लगातार सतर्कता बरतने का आह्वान किया.[205]

 

मांस उद्योग में अनिश्चितता

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ़ निर्यातक है, जो प्रति वर्ष लगभग 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का भैंस मांस निर्यात करता है. हालांकि, 2014 में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद निर्यात में तेज गिरावट आई है और देश के शीर्ष मांस उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार की कार्रवाई से इस व्यापार का भविष्य अनिश्चित हो गया है.

वर्ष

भैंस मांस का निर्यात

(बिलियन अमेरिकी डॉलर में)

प्रतिशत वृद्धि (%)

2010-11

1.88

--

2011-12

2.86

52.12

2012-13

3.20

11.88

2013-14

4.35

35.93

2014-15

4.78

9.88

2015-16

4.07

-0.01

2016-17

3.91

-3.93

2017-18

4.03

3.06

    स्रोत: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार

मार्च 2017 में, भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त होते ही आदित्यनाथ ने तुरंत   ज्यादातर मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे कई कसाईखानों और मांस की दुकानों पर कार्रवाई की. उन्होंने दावा किया कि वह अवैध प्रतिष्ठानों को बंद कर रहे हैं, लेकिन व्यवसायियों ने बताया उन्हें बिना किसी नोटिस या तय प्रक्रिया के बंद करने के लिए मजबूर किया गया.[206]

चमड़ा निर्यात में गिरावट

भारत दुनिया के चमड़े का लगभग 13 प्रतिशत उत्पादन करता है और चमड़ा उद्योग विदेशी मुद्रा आय का एक प्रमुख स्रोत है. इससे 1200 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का वार्षिक राजस्व प्राप्त होता है (निर्यात 570 करोड़ अमेरिकी डॉलर और घरेलू बाजार 630 करोड़ अमेरिकी डॉलर

का है) और यह लगभग 30 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जिनमें से 30 प्रतिशत महिलाएं हैं.[207] 2017 में, सरकार ने चमड़ा उद्योग को रोजगार पैदा करने और विकास के लिए महत्वपूर्ण उद्योग के रूप में चिन्हित किया.[208] उसी समय, एक सरकारी सर्वेक्षण में स्वीकार किया गया कि “बड़ी पशु आबादी होने के बावजूद, मवेशियों के चमड़े के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी कम है और पशुवध की सीमित उपलब्धता के कारण घट रही है.”[209]

चमड़ा उत्पादकों और निर्यातकों का कहना है कि गौरक्षकों के डर और सैकड़ों कसाईखानों को बंद करने से चमड़े की उपलब्धता घटी है.[210] जहां चमड़ा और चमड़ा उत्पादों का निर्यात 2013-14 में  18 प्रतिशत से अधिक और 2014-15 में 9 प्रतिशत बढ़ा, वहीं 2015-16 में इनमें लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई. 2017-18 में, इनमें 1.4 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर्ज की गई.

वर्ष

चमड़ा और चमड़ा उत्पादों का निर्यात

(बिलियन अमेरिकी डॉलर में)

प्रतिशत वृद्धि

(%)

2011-12

4.87

--

2012-13

5.01

2.87

2013-14

5.93

18.36

2014-15

6.49

9.44

2015-16

5.85

-9.86

2016-17

5.66

-3.25

2017-18

5.74

1.41

स्रोत: वार्षिक रिपोर्ट 2017-18, वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार

http://commerce.gov.in/writereaddata/uploadedfile/MOC_636626711232248483_Annual%20Report%20%202017-18%20English.pdf; “Growth of Leather Industry,” Press Information Bureau, Ministry of Commerce and Industry, Government of India, December 27, 2018, http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=186811

गौ संरक्षण की बढ़ती लागत

अधिक-से-अधिक किसानों को अपने मवेशियों को आवारा छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है जिसके कारण आवारा पशुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इससे उन किसानों में गुस्सा है जिनकी फसलों को इन मवेशियों से खतरा है.[211] कई राज्यों की भाजपा सरकारों ने गौशालाओं का आवंटन बढ़ाया है, यहां तक कि नए कर लगाए हैं. इसके आलावा, इन राज्यों की जेलों में गौशाला खोलकर कैदियों के स्वास्थ्य के साथ समझौता किया जा रहा है.[212]

उत्तर प्रदेश में, नाराज ग्रामीणों ने दिसंबर 2018 में सरकारी स्कूलों और कार्यालयों में आवारा पशुओं को बंद करना शुरू कर दिया, जिसके दवाब में मुख्यमंत्री ने जिला अधिकारियों को एक सप्ताह के अन्दर सभी आवारा गायों और सांडों को आश्रय देने को कहा.[213] लेकिन अधिकांश मौजूदा गौशालाओं, यहां तक कि अस्थायी आश्रयों में भी पहले से ही बहुत ज्यादा भीड़ है.[214] इससे पहले, सरकार ने 12 जेलों में गाय आश्रय स्थापित करने के लिए 2 करोड़ रुपये और पूरे राज्य में गौशाला खोलने के लिए 81.6 करोड़ रुपये आवंटित किए.[215]

2016 में, हरियाणा सरकार ने गायों के संरक्षण और कल्याण हेतु गौसेवा आयोग के लिए 20 करोड़ रुपये आवंटित किए. 2018 में, यह बजट बढ़कर 30 करोड़ रुपये हो गया.[216] 513 गौशालाओं में अभी 3.8 लाख गाय, सांड और बैल रखे गए हैं, जिनमें से अधिकांश अनुत्पादक हैं. राज्य में अभी भी लगभग 1.5 लाख आवारा पशु हैं और यह संख्या आगे और बढ़ सकती है.[217] इसे देखते हुए सरकार ने जेलों में गौशालाएं स्थापित करने का फैसला किया, इस कदम की टिप्पणीकारों ने आलोचना की है. उनका कहना है कि भीड़भाड़ और उचित स्वच्छता की कमी के कारण पहले से ही कैदियों के बीच स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बनी हुई है, गौशालाएं शुरू करने से यह स्थिति और बदतर हो सकती है.[218]

मुंबई की एक गौशाला में बछड़ा, मार्च 2015.  © 2015 धीरज सिंह/ब्लूमबर्ग वाया गेटी इमेज

राजस्थान में एक अलग गौ मंत्रालय है. 2016 में, सरकार द्वारा वित्त पोषित गौशालाओं में 5.5 लाख गाय और बैल थे. 2018 तक, यह संख्या बढ़कर 9 लाख हो गई. इस विशिष्ट मंत्रालय का सरकारी बजट 2015-16 के 13 करोड़ रुपये के मुकाबले तेजी से बढ़कर 2017-18 में 256 करोड़ रुपये हो गया.[219] अनुत्पादक गायों और सांडों की देखभाल हेतु पैसे जुटाने के लिए, सरकार ने संपत्ति खरीद-बिक्री पर लगने वाले स्टाम्प शुल्क पर 10 प्रतिशत और शराब की बिक्री पर 20 प्रतिशत अधिभार लगाया है.[220]

मध्य प्रदेश ने सितंबर 2017 में 32 करोड़ रुपये की लागत से अपना पहला गौ अभयारण्य शुरू किया. हालांकि, उद्घाटन के दिन ही इसमें जबरदस्त रूचि दिखाते हुए आसपास के गांवों के किसान दो हजार गायों के साथ पहुंच गए.[221] पांच माह बाद, कर्मचारी और पैसों की कमी के कारण अभयारण्य ने नई गायों को अपने यहां रखना बंद कर दिया.[222]

झारखंड ने 2016 में गौशालाओं के लिए आर्थिक सहायता को बढ़ाकर दोगुना 10 करोड़ रुपये कर दिया.[223] 2017 में, महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि वह गौशालाएं बनाने के लिए 34 करोड़ खर्च करेगी.[224] पंजाब में, जब सरकारी बिजली कंपनी ने मई, 2017 में गौशालाओं को मुफ्त बिजली आपूर्ति बंद कर दी, तो इससे भाजपा नेताओं का गुस्सा भड़क गया और राज्य के गौसेवा आयोग प्रमुख ने इस फैसले पर सवाल उठाया.[225]

 

V. अनुशंसाएं

भारतीय संसद के लिए

  • जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने समुचित कार्यान्वयन के लिए सुस्पष्ट मार्गनिर्देशों के साथ अनुशंसा की है, संसद धार्मिक या नृजातीय (एथनिक) भेदभाव या हिंसा रोकने के लिए कानून बनाए.
  • सांप्रदायिक हिंसा के विरुद्ध लंबित कानून को पारित करे, सुनिश्चित करे कि यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप हो जिससे कि राज्य अधिकारियों को उनकी उच्च जिम्मेवारियों के तौर पर, सांप्रदायिक हिंसा रोकने में विफल होने पर उत्तरदायी बनाया जा सके.
  • पीड़ितों और गवाहों को डराने-धमकाने तथा हैरान-परेशान करने से रोकने के लिए गवाह सुरक्षा कानून बनाये. कानून में गवाह सुरक्षा कार्यक्रम हेतु धन मुहैया करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को निर्देश होना चाहिए.
  • सुनिश्चित करे कि पशु व्यापार को सीमित करने वाला कोई भी मौजूदा या नया कानून आजीविका के अधिकार के साथ संगतिपूर्ण हो.
  • पशु व्यापार और पशु संरक्षण संबंधी मौजूदा कानून व नीतियों की समीक्षा तथा अनुशंसा करने के लिए कृषि विशेषज्ञ, नागरिक समाज समूह और किसानों को लेकर एक विशेषज्ञ समिति बनाए.
  • गौरक्षा समूहों द्वारा प्रकट तौर कानून लागू करने और कानून कार्यान्वयन में निजी पक्षों तथा गैर राजकीय किरदारों के दखल के खिलाफ सुरक्षा कवच तैयार करे.

केन्द्रीय गृह मंत्रालय, केंद्र शासित प्रदेश पुलिस, राज्य गृह मंत्रालय और राज्य पुलिस के लिए  

भीड़-हिंसा के मामलों में त्वरित, निष्पक्ष जांच और कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करें

  • जुलाई 2018 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा तहसीन एस. पूनावाला और अन्य बनाम भारतीय संघ एवं अन्य में, भीड़-हिंसा के सभी मामलों में इसे रोकने तथा उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने संबंधी निर्देशों को लागू करें.
    • रक्षक समूहों द्वारा हिंसा और हत्याओं के जिम्मेवार लोगों के खिलाफ त्वरित व निष्पक्ष जांच तथा कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करें. रक्षक समूहों द्वारा हिंसा से निपटने में पुलिस की कथित निष्क्रियता की जांच करें.
    • वरिष्ठ राज्य अधिकारी और उच्च पुलिस अधिकारी सार्वजानिक बयानों एवं कदमों के जरिए साफ व स्पष्ट तौर पर संकेत दें कि भीड़-हिंसा के दोषियों और इनमें राजनीतिक संपर्क वाले व्यक्तियों के खिलाफ भी पूरी कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
    • पीड़ित और उनके परवारों के लिए उनकी चोटों, चिकित्सा व कानूनी जरूरतों तथा रोजगार के नुकसान के मद्देनजर मुआवजा, राहत और पुनर्वास स्कीम बनाएं. घटना के 30 दिनों के भीतर अंतरिम राहत सुनिश्चित करें.
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि पुलिस मानवाधिकार मानकों के अनुरूप और बगैर राजनीतिक हस्तक्षेप के काम करे, लम्बे अरसे से प्रस्तावित पुलिस सुधारों को तुरंत लागू करें. इन सुधारों में सामुदायिक संबंध, बिना पूर्वाग्रह काम करने और हिंसक तरीकों में कमी जैसे मुद्दों पर प्रशिक्षण शामिल होना चाहिए.
  • पुलिस को प्रभावित समुदाय और पीड़ित सहायता समूहों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहिए. पूर्वाग्रह ग्रस्त हिंसा से निपटने के प्रयासों को समन्वित करने के लिए समुदयिक नेताओं और राष्ट्रीय व स्थानीय प्रवर्तन अधिकारियों का कार्यकारी समूह स्थापित करना चाहिए.
  • यह सुनिश्चित करें कि आपराधिक मामलों में फंसे पुलिस अधिकारियों, चाहे जिस स्तर के हों, को अनुशासित किया जाए या उन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाए.
  • यह सुनिश्चित करें कि पीड़ित और उनके परिवारों को पर्याप्त व उचित कानूनी सहायता तक पहुंच हो.
  • पीड़ित और उनके परिवारों को हुए शारीरिक और मानसिक नुकसान के लिए स्वास्थ्य सेवा सहायता मुहैया करें.
  • पीड़ित और उनके परिवारों के खिलाफ झूठे मामलों के रेकॉर्ड हटा दें.
  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप, पीड़ितो, अपराधकर्ताओं, अपराध के प्रकार और अभियोजन दर समेत सांप्रदायिक अपराधों से सम्बंधित सुव्यवस्थित आंकड़ा एकत्र करें.
  • पुलिस के दुर्व्यवहार हेतु उत्तरदायित्व सुनिश्चित करें
  • यह सुनिश्चित करें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार पुलिस शिकायत प्राधिकार (पीसीए) का गठन हो और राज्य तथा जिला दोनों स्तरों पर क्रियाशील हों. पीसीए में नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहिए और उन्हें अपने मामलों का कारगर तरीके से प्रबंधन करने की आवश्यक क्षमता होनी चाहिए. अगर पीसीए किसी अधिकारी के विरुद्ध शिकायत बरकरार रखता है और वह अधिकारी आन्तरिक तौर पर अनुशासित नहीं है, तो पुलिस को सार्वजनिक रूप से विस्तृत औचित्य प्रस्तुत करना चाहिए. पीसीए द्वारा ली गई तमाम शिकायतों को समीक्षा के लिए स्वतः स्थानीय अभियोजक के पास अग्रसारित करना चाहिए.
  • शिकायतकर्ता को स्पष्ट निर्देश के साथ सरल प्रपत्र और जांच की स्थिति की जानकारी के लिए टेलीफोन संपर्क मुहैया करें. पुलिस दुर्व्यवहार की सूचना देने के लिए पुलिस व्हीसलब्लोअर समेत पीड़ितों और गवाहों के लिए एक गुमनाम शिकायत लाइन पर विचार करें.

 

बाह्य उत्तरदायित्व तंत्र को सुदृढ़ करें

  • यह सुनिश्चित करें कि राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा पुलिस को भेजे गए जांच संबंधी आदेश को उस थाना की पुलिस को किसी भी परिस्थिति में रेफर नहीं किया जाए जिससे शिकायत जुडी हो.
  • दुर्व्यवहार के आरोपी पुलिस कर्मियों के स्थानान्तरण की परिपाटी को खत्म करें, यह अन्य निवासियों को खतरे में डालता है. यह स्थापित करें कि आपराधिक कृत्य के लिए प्रथम सूचना रिपोर्ट में पुलिस अधिकारियों के नाम आने के बाद उन्हें तब तक निलंबित रखा जाए जब तक कि घटना की जांच पूरी नहीं हो जाती और इसे हल नहीं कर लिया जाता.
  • पर्यवेक्षक पुलिस अधिकारियों की जिम्मेवारी तय करें
  • पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करें कि अपने पर्यवेक्षण के अधीन अधिकारियों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के लिए पहचान करना, रोकना और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेवारी है.
  • उन वरीय अधिकारियों को यथोचित रूप से अनुशासित करें या उन पर कानूनी कार्रवाई करें जिन्हें हत्याओं सहित गैरकानूनी कृत्यों के बारे में मालूम है या मालूम होना चाहिए और जो इन्हें रोकने या उन पर कार्रवाई करने में विफल हुए.
  • हिंसा पीड़ितों के परिवारों को सुरक्षा प्रदान करें
  • सरकार को किसी भी प्रकार के डर, दबाव, प्रलोभन, धमकी या हिंसा से पीड़ित के परिवारों तथा गवाहों की सुरक्षा का बदोबस्त करना चाहिए.
  • जांच अधिकारी और प्रत्येक थाना प्रभारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे पीड़ित या उनके परिवार तथा गवाहों द्वारा की गई किसी भी किस्म के कथित डर, दबाव, प्रलोभन, धमकी या हिंसा संबंधी शिकायतों को दर्ज करें, चाहे ये मौखिक या फिर लिखित रूप में की गई हो. शिकायतकर्ता को तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट की फोटोकॉपी मुफ्त में देनी चाहिए.

विदेशी सरकारों और दानकर्ताओं के लिए

  • भारत सरकार पर धार्मिक एवं अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने तथा सांप्रदायिक हिंसा के सभी मामलों में फौरन जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए दबाव डालें.
  • भारत सरकार पर जोर डालें कि वह सभी तरह की सांप्रदायिक हिंसा की भर्त्सना करते हुए कड़ा सार्वजनिक बयान जारी करे और हिन्दू कट्टरपंथी समूहों को यह सन्देश दे कि किसी भी अपराध के लिए उन पर कार्रवाई होगी और उन्हें उत्तरदायी ठहराया जाएगा.
  • सरकार तथा नागरिक समाज की पहलों को अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप सांप्रदायिक अपराध संबंधी सुव्यवस्थित आंकड़े एकत्र करने में मदद करें.
  • मौजूदा आतंकनिरोधी प्रशिक्षण व सहायता कार्यक्रम के साथ-साथ मानवाधिकार पर विशेषकृत पुलिस प्रशिक्षण हेतु मदद करें.
  • प्रभावी मानवाधिकार अनुश्रवण और सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों को सीधी सहायता प्रदान करने में संलग्न भारतीय नागरिक समाज संगठनों को और भी बढ़कर मदद करें.
 

आभार

इस रिपोर्ट का सम्पादन दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने किया. जेम्स रोस, कानून एवं नीति निदेशक; और जोसफ सौन्ड़र्स, उप कार्यक्रम निदेशक ने कानून और कार्यक्रम सम्बन्धी समीक्षा मुहैया कराई. इसके निर्माण में सहयोगी रहे हैं राखैल लेगरवुड, एशिया डिवीजन एसोसिएट; ओलिविया हंटर, डिजिटल ऑफीसर; और फित्जरॉय हेप्किंस, एडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजर.

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली की छात्रा तेजस्विता खलेर और वर्षा शर्मा ने गौसुरक्षा कानूनों पर परिशिष्ट के संकलन में मदद की.

ह्यूमन राइट्स वॉच बहुमूल्य सहायता के लिए अनेक भारतीय अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों का आभार व्यक्त करता है. इनमें प्रमुख हैं: सज्जाद हसन, खतीजा खदर, सलीम अंसारी, नासिर अली और सिटिज़न्स अगेंस्ट हेट की टीम; रांची के ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के वकील शादाब अंसारी; डोटो डेटाबेस के फ़राज़ अख्तर और टीम; और जयपुर में एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स के पैकर फारूक और मुज़म्मिल इस्लाम रिज़वी.

रिपोर्ट पर मूल्यवान सुझाव और प्रतिक्रिया उपलब्ध कराने के लिए हम विशेष रूप से बाह्य समीक्षकों सिटिजन्स अगेंस्ट हेट के संयोजक सज्जाद हसन और दिल्ली स्थित जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लॉ के कार्यकारी निदेशक मोहसिन आलम भट के कृतज्ञ हैं.

सर्वोपरि, हम उन सभी पीड़ितों के परिवारों और दोस्तों का शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने हमारे साथ अपनी कहानियां साझा कीं.

 

[1]माहिम प्रताप सिंह, “नो रिग्रेट ऑवर पह्लूज डेथ: अलवर बीजेपी एमएलए,” इंडियन एक्सप्रेस, 25 अप्रैल, 2017 https://indianexpress.com/article/india/cow-vigilantes-no-regret-over-pehlu-khan-dairy-farmer-death-alwar-bjp-mla-gyandev-ahuja-4627024/ (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[2]स्निग्धा पूनम, “टू प्रोटेक्ट इंडियन कल्चर, प्रोटेक्ट गौ: आदित्यनाथ एट मीटिंग ऑफ़ काऊ विजलैन्टीज,” हिंदुस्तान टाइम्स, 5 नवंबर, 2017, https://www.hindustantimes.com/india-news/to-protect-indian-culture-protect-gau-adityanath-at-meeting-of-cow-vigilantes/story-GsKPbePGqZb7NnBCi7PTYM.html (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[3]“स्टॉप ईटिंग बीफ़, गिव काऊ स्टेटस ऑफ़ ‘राष्ट्र माता;’, से सम आरएसएस एंड बीजेपी लीडर्स टू एंड मॉब लिंचिंग,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, 24, जुलाई, 2018, https://timesofindia.indiatimes.com/india/stop-eating-beef-give-cow-status-of-rashtra-mata-say-some-rss-and-bjp-leaders-to-end-mob-lynching/articleshow/65123330.cms (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[4]“दोज हू कांट लिव विथाउट बीफ़ शुड गो टू पाकिस्तान: नकवी एट आज तक मंथन,” indiatoday.in, 21 मई, 2015, https://www.indiatoday.in/india/north/story/naqvi-dying-without-beef-should-go-to-pakistan-manthan-254120-2015-05-21 (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[5]“बीजेपी एमपी साक्षी महाराज सेज रेडी टू किल एंड गेट किल्ड फॉर आवर मदर, कॉल्स आज़म खान ए 'पाकिस्तानी,” news18.com, 6 अक्टूबर, 2015, https://www.news18.com/news/politics/bjp-mp-sakshi-maharaj-says-ready-to-kill-and-get-killed-for-our-mother-calls-sps-azam-khan-a-pakistani-1143939.html (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[6]वरिंदर भाटिया एंड निरुपमा सुब्रमण्यन, “मुस्लिम्स कैन लिव इन दिस कंट्री, बट विल हैव टू गिव अप ईटिंग बीफ, सेज हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर,” इंडियन एक्सप्रेस, 16 अक्टूबर, 2015, https://indianexpress.com/article/india/india-news-india/muslims-can-live-in-this-country-but-they-will-have-to-give-up-eating-beef-says-haryana-cm-manohar-lal-khattar/ (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[7]“विल हैंग दोज हू किल काऊ: छत्तीसगढ़ चीफ मिनिस्टर रमन सिंह,” IndiaToday.in, 2 अप्रैल, 2017, https://www.indiatoday.in/india/story/will-hang-cow-killers-chhattisgarh-chief-minister-968979-2017-04-01 (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[8]अनिंदिता सान्याल, “विल ब्रेक लिम्ब्स ऑफ़ काऊ किलर्स': लेजिस्लेचर अक्यूज़्ड इन मुज़फ्फरनगर केस,” ndtv.com, 27 मार्च, 2017, https://www.ndtv.com/india-news/will-break-limbs-of-cow-killers-legislator-accused-in-muzaffarnagar-case-1673601 (7 सितंबर, 2018 को देखा गया).

 

[9]मार्च 2018 में संसद में एक सवाल के जवाब में, गृह राज्य मंत्री ने कहा कि 40 “लिंचिंग” हुई हैं. भारत में मीडिया और नागरिक समाज समूहों द्वारा भीड़ द्वारा की गई हत्याओं को मॉब लिंचिंग कहा जाता है. सरकार के अनुसार, 2014 से 2017 के बीच इन हमलों में 45 लोग मारे गए और 217 लोग गिरफ्तार किए गए. सरकार ने हमलों के कारण या मकसद या पीड़ितों या अपराधियों की पहचान पर अलग-अलग विवरण उपलब्ध नहीं कराया है. भारत सरकार, गृह मंत्रालय, लोकसभा, तारांकित प्रश्न संख्या 242, 13 मार्च, 2018, http://164.100.47.190/loksabhaquestions/annex/14/AS242.pdf (पिछली बार 20 नवंबर, 2018 को देखा गया).

[10]डॉक्यूमेंटेशन ऑफ़ द ओप्प्रेस्ड डाटाबेस http://dotodatabase.com/; हाल्ट द हेट डाटाबेस बाय एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया http://haltthehate.amnesty.org.in/index.html; हेट क्राइम वॉच बाय फैक्ट चेकर https://p.factchecker.in/; हेट क्राइम: काउ रिलेटेड वायलेंस इन इंडिया, Indiaspend.com, http://lynch.factchecker.in/ (पिछली बार 19 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

 

[11]डब्लू नार्मन ब्राउन, “द सेंक्टिटी ऑफ़ द काउ इन हिंदूज्म,” इकॉनोमिक वीकली, फरवरी 1964,

https://www.epw.in/system/files/pdf/1964_16/5-6-7/the_sanctity_of_the_cow_in_hinduism.pdf

(10 दिसंबर, 2018 को देखा गया). कुछ इतिहासकारों और अकादमिकों का दावा है कि प्राचीन भारत में  हिंदू गोमांस का सेवन करते थे और जानवरों की बलि भी दी जाती थी. देखें, डीएन झा, द मिथ ऑफ द होली काउ, 2001.

[12]1857 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ भारतीय सैनिकों के पहले व्यापक विद्रोह की एक वजह गाय थी. अंग्रेजों ने एक नई राइफल पेश की, जिसमें कारतूस डालने के लिए सैनिकों को चिकनाई लगे कारतूसों के छोर को मुंह से काटना पड़ता था और यह अफवाह फैली कि कारतूसों को चिकना करने के लिए सूअर और गायों की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है. इसने मुसलमानों और हिंदुओं दोनों को आक्रोशित किया और सैनिक विद्रोह भड़क उठा. देखें, पीटर मार्शल, “ब्रिटिश इंडिया एंड द 'ग्रेट रिबेलियन,” बीबीसी हिस्ट्री, 17 फरवरी, 2011, http://www.bbc.co.uk/history/british/victorians/indian_rebellion_01.shtml

1870 के दशक में, पहला संगठित गौरक्षा आंदोलन पंजाब में सिख कुका संप्रदाय द्वारा शुरू हुआ. जल्द ही, दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में आर्य समाज के जन्म के साथ हिंदू पुनरुद्धार आंदोलन गौरक्षा का एक प्रबल समर्थक बन गया. सरस्वती के लेखन और गतिविधियों ने 1882 में कई गौरक्षिणी सभाओं या गौरक्षा समितियों को प्रेरित किया. देखें, आदिराजा रॉय चौधरी, “व्हाई द काउ इज वरशिप्ड इन हिंदुत्व पॉलिटिक्स,” इंडियन एक्सप्रेस, 17 जुलाई, 2018,

https://indianexpress.com/article/research/cow-protection-hindutva-politics-bjp-india-5227382/.

पश्चिम में शिक्षित भारतीयों के नेतृत्व में उस समय चल रहे सामाजिक सुधारों, जो रूढ़िवादी हिंदू प्रथाओं पर सवाल उठा रहे थे, को पीछे धकेलने के लिए संगठित गाय संरक्षण आंदोलन हिंदू पुनरुत्थानवाद का हिस्सा था. इतिहासकार जॉन मैकलेन ने लिखा है: “जो हिंदू पहले असंगठित थे, वे अब खुले तौर पर मूर्ति पूजा, जाति, पुराणों और गायों की पवित्रता और प्रचलित विवाह प्रथाओं की वैधता का बचाव कर रहे हैं.” देखें, सौतिक विश्वास,”व्हाई द हम्बल काउ इज इंडियाज मोस्ट पोलाराइजिंग एनिमल,” BBC.com, 15 अक्टूबर, 2015,  https://www.bbc.com/news/world-asia-india-34513185 यह भी देखें, शैलश्री शंकर, “हिंदूज एंड सेक्रेड काउज: रेसिपी फॉर आइडेंटिटी पॉलिटिक्स,” ओपन मैगज़ीन, 21 अप्रैल, 2017, http://www.openthemagazine.com/article/essay/hindus-and-sacred-cows-recipe-for-indentity-politics;

जॉन आर. मैक्लेन, इंडियन नेशनलिज्म एंड द अर्ली कांग्रेस (प्रिंसटन: प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 1977).

1947 में आजादी के बाद, गौरक्षा को लेकर कई प्रदर्शन हुए हैं. नवंबर,1966 में, भारतीय संसद के बाहर हिंसा में तब कम-से-कम आठ लोग मारे गए थे, जब भारतीय जनता पार्टी के पूर्ववर्ती संगठन भारतीय जन संघ के विधायक रामेश्वरानंद ने गौहत्या पर देशव्यापी प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए हिंदू साधुओं के साथ संसद मार्च किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गृह मंत्री गुलजारीलाल नंदा को बर्खास्त कर दिया, नंदा भारत साधु समाज से भी जुड़े हुए थे. हालांकि, अगले वर्ष चुनावों में अपनी जीत के बाद, गांधी ने गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने सम्बन्धी राष्ट्रीय कानून के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया. समिति ने अपनी सिफारिशें कभी प्रस्तुत नहीं कीं और अंततः 1979 में उसे भंग कर दिया गया. देखें, सीमा चिश्ती, “डायरेक्टिव प्रिंसिपल, नॉट राइट: हाउ काउ प्रोटेक्शन बिकम पार्ट ऑफ़ कान्स्टिटूशन,” इंडियन एक्सप्रेस, 1 जून, 2017, https://indianexpress.com/article/explained/directive-principle-not-right-how-cow-protection-became-part-of-constitution-4683383/ (4 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[13]1925 में नागपुर शहर में केशव बलिराम हेडगेवार ने हिंदू राष्ट्रवादी राज्य बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. आरएसएस की विचारधारा में, पश्चिमी विचार और सभ्यता को हिंदू संस्कृति का शत्रु माना जाता है और इस्लाम और ईसाई जैसे धर्मों को भारत के लिए पराया धर्म बताते हुए इसे विदेशी आक्रमणकारियों और उपनिवेशवादियों के धर्म के रूप में दर्शाया गया है. आरएसएस “सामाजिक जीवन के संपूर्ण विस्तार” को “हिंदू राष्ट्रवाद की बुनियाद पर” गढ़ना चाहता है, एक ऐसा लक्ष्य जिसने आरएसएस के राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षणिक संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया है.यह संगठनों का एक समूह है जो अब समग्र रूप से संघ परिवार के बतौर जाना जाता है. भाजपा उसकी राजनीतिक शाखा है और इस परिवार में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), बजरंग दल और अन्य संगठन भी शामिल हैं. विहिप का गठन 1964 में भारत के बाहर रहने वाले हिंदुओं को संगठित करने और उनके बीच आरएसएस के संदेश को पहुंचाने के साथ-साथ पूरे देश के हिंदू धार्मिक नेताओं के लिए सम्मेलन आयोजित करने के लिए किया गया था. बजरंग दल विहिप की आक्रामक तेवर वाली युवा शाखा है. उत्तर प्रदेश के अयोध्या की बाबरी मस्जिद की जगह पर हिंदू भगवान राम का मंदिर बनाने के वीएचपी के अभियान के लिए युवाओं को जुटाने के लिए 1984 में इसका गठन किया गया था. युवा महिला संगठन, दुर्गा वाहिनी की स्थापना भी इसी समय हुई थी. माना जाता है कि बजरंग दल के कार्यकर्ता हिंदुत्व संगठनों द्वारा की गई हिंसा की कई घटनाओं में शामिल रहे हैं. 1951 में जन संघ पार्टी का गठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा के रूप में किया गया था. बाद में इसे 1980 में भाजपा में बदल दिया गया. देखें, ह्यूमन राइट्स वॉच, “वी हेव टू नो ऑर्डर्स टू सेव यू:” स्टेट पार्टिसिपेशन एंड कम्प्लीसिटी इन कम्युनल वायलेंस इन गुजरात (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2002), https://www.hrw.org/reports/2002/india/; ह्यूमन राइट्स वॉच, “पॉलिटिक्स बाय अदर मीन्स: अटैक अगेंस्ट क्रिस्चियंस इन इंडिया,” खंड 11, संख्या 6, सितम्बर, 1999, अध्याय III, http://www.hrw.org/reports/1999/indiachr/christians8-03.htm#P191_32616; तापियो तममिने, हिन्दू रिवाइवलिज़म एंड द हिंदुतत्व मूवमेंट, 1996; वाइडनिंग होरिजोंस: अ बुक ऑन जेनेसिस, फिलोसोफी, मेथडालजी, प्रोग्रेस एंड द थ्रस्ट ऑफ़ द आरएसएस, https://samvada.org/2011/news/widening-horizons-a-book-on-genesis-philosophy-methodology-progress-the-thrust-of-the-rss/ (18 अक्टूबर, 2018 को देखा गया); एन. के. सिंह एंड यू. महुरकर, “बजरंग दल: लूनीज एट लार्ज,” इंडिया टुडे, 8 फरवरी, 1999, https://www.indiatoday.in/magazine/cover-story/story/19990208-bajrang-dal-the-rogue-child-of-the-sangh-parivar-780109-1999-02-08 (18 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[14]“गवर्नमेंट्स 'पिंक रेवोलुशन' डिस्ट्रॉयिंग कैटल, सेज नरेंद्र मोदी,” NDTV, 2 अप्रैल, 2014, https://www.youtube.com/watch?v=1ElnjqtBbuc (4 अगस्त, 2018 को देखा गया). प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ भाषणों और साक्षात्कारों में भीड़-हिंसा की घटनाओं की निंदा की है, लेकिन अल्पसंख्यकों के बीच बढ़ती असुरक्षा की भावना को राजनीति से प्रेरित बताते हुए खारिज किया है. “आई वांट टू मेक इट क्लियर लिंचिंग इज अ क्राइम, नो मैटर द मोटिव: पीएम मोदी,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 12 अगस्त 2018, https://timesofindia.indiatimes.com/india/i-want-to-make-it-clear-lynching-is-a-crime-no-matter-the-motive-pm-modi/articleshow/65371020.cms; एएनआई को दिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साक्षात्कार का पूरा पाठ, 2 जनवरी, 2019, https://www.ndtv.com/india-news/pm-narendra-modi-interview-to-ani-full-transcript-1971143 (17 जनवरी, 2019 को देखा गया).

[15]एनडीटीवी ने 1,300 लेखों की बारीकी से जांच कर और भारत में घृणा अपराधों को दर्ज करने वाले डेटाबेस से इनका मिलान करने के साथ-साथ 1,000 सोशल मीडिया पोस्ट से गुजरने के बाद यह डेटा एकत्र किया. इसने विश्लेषण के लिए दो समय-सीमा को चुना. पहला, मोदी सरकार का 2014 से अप्रैल, 2018 तक का चार साल और दूसरा, कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए) के तहत 2009 से 2014 तक का पांच साल. इसने ऐसे बयानों को नफरत भरा भाषण माना जो स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक, जातिवादी हैं या फिर हिंसा के लिए भड़काते हैं. इनमें से कुछ बयानों पर नफरत भरे भाषण से संबंधित कानूनों के तहत कार्रवाई हो सकती है. जैसे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 295A (धार्मिक भावना को भड़काना), धारा 153 (समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) या धारा 505 (सार्वजनिक नुकसान के लिए उकसाने वाला बयान देना). देखें, निमिषा जायसवाल, श्रीनिवासन जैन और मानस प्रताप सिंह, “अंडर मोदी गवर्नमेंट, वीआईपी हेट स्पीच स्काईरोकेट्स बाय 500%,” NDTV.com, 19 अप्रैल, 2018, https://www.ndtv.com/india-news/under-narendra-modi-government-vip-hate-speech-skyrockets-by-500-1838925 (16 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[16]हेट क्राइम: काउ-रिलेटेड वायलेंस इन इंडिया, Indiaspend.com, http://lynch.factchecker.in/; डॉक्यूमेंटेशन ऑफ़ द ओप्रेस्ड डेटाबेस http://dotodatabase.com/ (16 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[17]“काउ स्लॉटर नाउ पनिशेबल विथ लाइफ टर्म इन गुजरात, रूल्स नोटिफायिड.” टाइम्स ऑफ़ इंडिया, 4 जून, 2017,

https://timesofindia.indiatimes.com/city/ahmedabad/cow-slaughter-now-punishable-with-life-term-in-gujarat-rules-notified/articleshow/58980619.cms (5 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[18]छह राज्यों- केरल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में गौहत्या पर रोक नहीं है. लक्षद्वीप एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश है जहां गोहत्या पर प्रतिबंध नहीं है. देखें परिशिष्ट: गौरक्षा कानूनों की सूची

[19]इन राज्यों में छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं.

[20]“द स्टेट्स वेयर काउ स्लॉटर इज लीगल इन इंडिया,” इंडियन एक्सप्रेस, 8 अक्टूबर, 2015, https://indianexpress.com/article/explained/explained-no-beef-nation/ (5 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[21]पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण (पशुधन बाजार विनियमन) नियम, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, 23 मई, 2017,  http://www.egazette.nic.in/WriteReadData/2017/176216.pdf (5 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[22]समन्वया रौत्रय, “सुप्रीम कोर्ट स्टेज गवर्नमेंट रूल ओं लाइवस्टॉक ट्रेड,” टाइम्स ऑफ़ इंडिया, 12 अगस्त, 2017, https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/supreme-court-stays-government-rule-on-livestock-trade/articleshow/60027810.cms (5 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[23]पशु बाज़ार में पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण नियम, 2018, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, 22 मार्च, 2018 http://envfor.nic.in/sites/default/files/Draft%20Prevention.PDF (5 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[24]पशु के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, 1960 की स. 59, धारा 32,

http://wgbis.ces.iisc.ernet.in/biodiversity/Environ_sys/legis/aniact.htm (15 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[25]देखें परिशिष्ट: गौरक्षा कानूनों की सूची.

[26]पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, “काउ टेल: हरियाणाज गौवंश संरक्षण एंड गौ संवर्धन एक्ट इन करनाल एंड इट्स इकॉनोमिक एंड एडमिनिस्ट्रेटिव फॉलआउट्स,” अगस्त 2017. इस कानून के कानूनी प्रावधान, जैसे हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौ संवर्धन [गौरक्षा और कल्याण] अधिनियम की धारा 16 कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और “सरकार द्वारा इस संबंध में अधिकृत किसी भी व्यक्ति” को वाहनों में प्रवेश करने, रोकने और उसकी जांच करने और जानवरों को जब्त करने का अधिकार देती है. हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौ संवर्धन अधिनियम, 2015, हरियाणा अधिनियम सं. 2015 का 20, धारा 16 http://pashudhanharyana.gov.in/sites/default/files/documents/The_Haryana_Gauvansh_Sanrakshan_and_gausamvardhan_act_2015_-_Eng.PDF (10 अक्टूबर, 2018 को देखा गया). कार्यकर्ताओं और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इसने गाय संरक्षण समूहों को सशक्त बनाया है. अक्सर ये समूह  इन कार्यों में पुलिस की सहायता करते हैं. माइकल सफी, “ऑन पैट्रॉल विथ द हिंदू विजलैन्टीज हू वुड किल टू प्रोटेक्ट इंडियाज काउज,” गार्डियन, 27 अक्टूबर, 2016, https://www.theguardian.com/world/2016/oct/27/on-patrol-hindu-vigilantes-smuggling-protect-india-cows-kill (20 अगस्त, 2018 को देखा गया). यह भी देखें, इशान मार्वल, “इन द नेम ऑफ द मदर”, कारवां मैगज़ीन, 1 सितंबर, 2016, http://www.caravanmagazine.in/reportage/in-the-name-of-the-mother (21 अगस्त, 2018 को देखा गया) स्निग्धा पूनम, “ड्रीमर्स: हाउ यंग इंडियन्स आर चेंजिंग द वर्ल्ड, (इंडिया: पेंगुइन रैंडम हाउस, 2018), https://penguin.co.in/book/non-fiction/dreamers/ (5 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[27]गुजरात पशु निवारण अधिनियम, 1954, धारा 12, https://lpd.gujarat.gov.in/assets/downloads/act_31052012_a10.pdf; महाराष्ट्र पशु निवारण अधिनियम, 1976, धारा 13, http://bwcindia.org/Web/Info&Action/Legislation/MaharashtraAnimalPreservationAct1976(AmendedMarch2015).pdf; कर्नाटक गौहत्या निवारण और मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1964, धारा 15, http://dpal.kar.nic.in/pdf_files/35%20of%201964%20(E).pdf (20 नवंबर, को देखा गया) कानून कहता है कि “इस अधिनियम के तहत शक्तियों का प्रयोग करने वाले ऐसे सक्षम अधिकारी या किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी मुकदमा, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी, जो इस अधिनियम या इसके तहत बनी नियमावली के अधीन नेक-नियत से कोई कार्य करते हैं या ऐसा करने की मंशा  रखते हैं. हालांकि याचिका में इन तीन राज्यों के कानूनों का ही उल्लेख किया गया है, मगर गौहत्या पर रोक लगाने वाले कई अन्य राज्यों के कानून भी ऐसी ही सुरक्षा प्रदान करते हैं. उदाहरण के लिए देखें: दिल्ली, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के कानून. देखें परिशिष्ट: गौरक्षा कानूनों की सूची.

[28]“एससी नोटिस टू सेंटर, स्टेट्स ऑन पीआईएल सीकिंग बैन ऑन काउ विजिलांट ग्रुप,” लाइव लॉ, 7 अप्रैल, 2017, https://www.livelaw.in/sc-notice-to-centre-states-on-pil-seeking-ban-on-cow-vigilante-groups/ (20 नवंबर, 2018 को देखा गया). यह भी देखें, सत्य प्रसून एंड प्रवीण कश्यप, “द ग्रेट इवेजन,” डेक्कन हेराल्ड, 5 सितम्बर, 2018, https://www.deccanherald.com/opinion/main-article/great-evasion-691305.html (10 नवंबर, 2018 को देखा गया).

[29]उदाहरण के लिए, कांग्रेस पार्टी की अगुवाई वाली कर्नाटक सरकार ने कहा:”यदि व्यक्ति,जो ऐसे समिति, संघ या संस्था या गौरक्षक समूहों के सदस्य हैं, जो हिंसा में लिप्त हैं और कानून अपने हाथों में लेकर विभिन्न समुदायों और जातियों के बीच घृणा पैदा करते हैं और निर्दोष लोगों पर अत्याचार करते हैं तो ऐसे व्यक्तियों के लिए अधिनियम की धारा 15 के तहत संरक्षण उपलब्ध नहीं है. इसलिए, धारा 15 के प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित करने का सवाल ही नहीं उठता है.” “कर्नाटक सेज इट्स काउ प्रोटेक्शन लॉ डजंट प्रोटेक्ट गौरक्षक्स.” इंडियन एक्सप्रेस, 5 मई, 2017, https://indianexpress.com/article/india/karnataka-says-its-cow-protection-law-doesnt-protect-gau-rakshaks-4641068/ (10 नवंबर, 2018 को देखा गया). हालांकि, खबरों के मुताबिक राज्य के एक भाजपा नेता ने कानून की धारा 15 का बचाव करने के सरकारी रुख का स्वागत करते हुए कहा, “हमें लगता है कि गौरक्षकों को सुरक्षा दी जानी चाहिए क्योंकि वे एक महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं, उस सबसे मूल्यवान पशु को संरक्षित कर रहे हैं जो सदियों से कृषि क्षेत्र को कायम रखने में मदद करते आ रहे हैं.” के.एम. राजेश, “काउ लॉ हीट ऑन कर्नाटक,” टेलीग्राफ, 5 मई, 2017, https://www.telegraphindia.com/india/cow-law-heat-on-karnataka/cid/1519963 (10 नवंबर, 2018 को देखा गया).

[30]सज्जाद हसन के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, नई दिल्ली, 26 सितंबर, 2018. यह भी देखें, सिटिजन्स अगेंस्ट हेट, “लिंचिंग विथाउट एंड: फैक्ट फाइंडिंग इन्वेस्टीगेशन इनटू रिलीजियसली-मोटिवेटेड विजिलांट वायलेंस इन इंडिया,” सितंबर, 2017, http://www.misaal.ngo/wp-content/uploads/2017/09/FINAL-report-Lynching-without-End.pdf (1 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[31]संविधान सभा बहस, भारत की संविधान सभा, खंड VII, 24 नवंबर, 1948, https://indiankanoon.org/doc/1945234/ (2 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[32]जैसे कि एक सदस्य आर.वी. धुलेकर ने कहा: “हमारे हिंदू समाज या हमारे भारतीय समाज ने गाय को आत्मसात कर लिया है. यह हमारी मां की तरह है. वास्तव में, यह हमारी मां से बढ़कर है. मैं इस मंच से घोषणा कर सकता हूं कि ऐसे हजारों लोग हैं जो अपनी मां या पत्नी या बच्चों को मारने वाले व्यक्ति पर नहीं टूटेंगे, लेकिन वे एक ऐसे आदमी पर टूट पड़ेंगे जो आदमी गाय की रक्षा नहीं करना चाहता है या उसे मारना चाहता है. देखें, आर.वी. धुलेकर, संविधान सभा सदस्य, संविधान सभा बहस, भारत की संविधान सभा, खंड VII, 24 नवंबर, 1948, https://indiankanoon.org/doc/1945234/ (2 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[33]भारत का संविधान, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, अनुच्छेद 48, “कृषि और पशुपालन संगठन,” https://www.india.gov.in/sites/upload_files/npi/files/coi_part_full.pdf (2 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[34]गौतम भाटिया, “काउ स्लॉटर एंड द कान्स्टिटूशन,” द हिंदू, 1 जून, 2017, https://www.thehindu.com/opinion/lead/cow-slaughter-and-the-constitution/article18683942.ece  (2 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[35]एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया. “इंडिया: हेट क्राइम्स अगेंस्ट मुस्लिम्स एंड राइजिंग इस्लामोफोबिया मस्ट बी कन्डेम्ड,” 28 जून, 2017, https://www.amnesty.org/en/latest/news/2017/06/india-hate-crimes-against-muslims-and-rising-islamophobia-must-be-condemned/ (18 अक्टूबर, 2018 देखा गया).

[36]अंतर-धार्मिक विवाहों को “लव जिहाद” बताते हुए इसका विरोध किया जाना चाहिए, इस आधार पर नैतिक निगरानी रखने वालों ने अंतर-धार्मिक जोड़ों को निशाना बनाया है. ऐसे एक मामले में उत्तर प्रदेश में एक 65 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी. मई, 2017 में, उत्तर प्रदेश में, एक हिंदू भीड़, जिसमें कथित रूप से राज्य के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा स्थापित हिंसक कट्टपंथी संगठन हिंदू युवा वाहिनी के सदस्य शामिल थे, ने गुलाम अहमद को पीट-पीट कर मार डाला, उन्हें शक था कि वे एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा हिंदू महिला को साथ भाग ले जाने की साजिश में शामिल थे. “बुलंदशहर: सस्पेक्टेड हिंदू युवावाहिनी वर्कर्स लिंच अ मुस्लिम मैन फॉर हेल्पिंग अ हिंदू गर्ल ऍलोप,” scroll.in, 3 मई, 2017, https://scroll.in/latest/836431/bulandshahr-suspected-hindu-yuva-vahini-workers-lynch-a-muslim-man-for-helping-a-hindu-girl-elope (13 अक्टूबर, 2018 देखा गया).

[37]“भारत में अपराध: 2016,” राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, अक्टूबर 2017.

[38]फैक्टचेकर स्पेंडिंग एंड पॉलिसी रिसर्च फाउंडेशन की एक पहल है, जो डेटा-जर्नलिज्म वेबसाइट Indiaspend.org भी चलाती है. इस वेबसाइट ने ही गाय से संबंधित हिंसा पर आंकड़े प्रकाशित किए हैं.

[39]हेट क्राइम वॉच, Factchecker.in, https://p.factchecker.in/ (1 नवंबर, 2018 को देखा गया). इन आंकड़ों से यह बात सामने आई है कि मुस्लिम, जो भारत की आबादी का 14 प्रतिशत हैं, 62 प्रतिशत मामलों (254 में से 158) में पीड़ित थे और ईसाई, जो भारत की आबादी का 2 प्रतिशत हैं, 14 प्रतिशत (35) मामलों में पीड़ित थे. बहुसंख्यक या 80 प्रतिशत आबादी वाले हिंदू 10 प्रतिशत (25) मामलों में पीड़ित थे.

[40]भाजपा सरकार के समर्थक इन आंकड़ों को विवादित बताते हैं कि आंकड़ों का चयन गलत और त्रुटिपूर्ण हैं, जो पक्षपाती अंग्रेजी मीडिया पर आधारित हैं. स्वाति गोयल शर्मा, “सेलेक्टिव डेटा ऑन कम्युनल वायलेंस इन इंडिया: इंडियास्पेंड, इंग्लिश मीडिया हेव अ लॉट टू आंसर फॉर,” स्वराज्य, 14 नवंबर, 2018, https://swarajyamag.com/ideas/selective-data-on-communal-violence-in-india-indiaspend-english-media-has-a-lot-to-answer-for (20 नवंबर, 2018 को देखा गया).

[41]तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी. (सिविल) 2016 की संख्या 754, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, 17 जुलाई, 2018, https://indiankanoon.org/doc/71965246/ (1 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[42]एलिसन सलदान्हा और कार्तिक माधवपेडी, “फैक्टचेकर आवर न्यू हेट-क्राइम डेटाबेस: 76% ऑफ़ विक्टिम्स ऑवर 10 इयर्स माइनॉरिटीज: 90% अटैक्स रिपोर्टेड सिंस 2014,” “Factchecker.in, 30 अक्टूबर, 2018, https://factchecker.in/our-new-hate-crime-database-76-of-victims-over-10-years-minorities-90-attacks-reported-since-2014/ (10 नवंबर, 2018 को देखा गया).

[43]रिपोर्ट ऑफ़ द वर्ल्ड कांफ्रेंस अगेंस्ट रेसिज्म, रेसियल डिस्क्रिमिनेशन, ज़ेनोफोबिया, एंड रिलेटेड इनटॉलेरेंस, प्रोग्राम ऑफ़ एक्शन (डब्लूसीएआर रिपोर्ट), http://www.un.org/WCAR/durban.pdf (20 नवंबर, 2018 को देखा गया).

[44]ह्यूमन राइट्स वॉच, “इंडिया: नो जस्टिस फॉर 1984 एंटी-सिख ब्लडशेड,” 29 अक्टूबर, 2014,

https://www.hrw.org/news/2014/10/29/india-no-justice-1984-anti-sikh-bloodshed.

[45]ह्यूमन राइट्स वॉच, “वी हैव टू नो ऑर्डर टू सेव यू:” स्टेट पार्टिसिपेशन एंड कॉम्प्लिसिटी इन कम्युनल वायलेंस इन गुजरात, (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2002), https://www.hrw.org/report/2002/04/30/we-have-no-orders-save-you/state-participation-and-complicity-communal-violence

[46]ह्यूमन राइट्स वॉच, “इंडिया: स्टॉप फोर्स्ड एविक्संस ऑफ़ रायट विक्टिम्स,” 17 जनवरी, 2014,

https://www.hrw.org/news/2014/01/17/india-stop-forced-evictions-riot-victims

[47]989 में जम्मू और कश्मीर में भारतीय शासन के खिलाफ सशस्त्र अलगाववादी संघर्ष के बाद, कश्मीरी हिंदुओं, जिन्हें पंडित कहा जाता है, पर हमले शुरू हुए. पाकिस्तान से हथियार और प्रशिक्षण प्राप्त कर आतंकवादी समूहों ने कई हिंदुओं का अपहरण किया, उनकी हत्या की और उन्हें धमकाया. हजारों कश्मीरी पंडित मुस्लिम-बहुल कश्मीर घाटी से पलायन कर गए. उन्हें जम्मू और दिल्ली के मलिन व गंदे शिविरों में स्थानांतरित किया गया. ह्यूमन राइट्स वॉच, “एवरीवन लिव्स इन फियर:” पैटर्न ऑफ़ इम्पुनिटी इन जम्मू एंड कश्मीर (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2006), https://www.hrw.org/report/2006/09/11/everyone-lives-fear/patterns-impunity-jammu-and-kashmir.

[48]द प्रिवेंशन ऑफ़ कम्युनल एंड टारगेटेड वायलेंस (एक्सेस टू जस्टिस एंड रेप्रेशंस) बिल, 2011,

http://www.prsindia.org/uploads/media/draft/NAC%20Draft%20Communal%20Violence%20Bill%202011.pdf (20 अक्टूबर, 2018 को देखा गया). सुनील प्रभु. “आफ्टर फिएर्स डिबेट, एंटी-कम्युनल वायलेंस बिल इस ड्रॉप्ड. हियर इज व्हाई.” NDTV.com, 5 फरवरी, 2014, https://www.ndtv.com/cheat-sheet/after-fierce-debate-anti-communal-violence-bill-is-dropped-heres-why-549881 (20 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[49]भारतीय दंड संहिता की धारा 153A समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सौहार्द बनाए रखने के लिए नुकसानदेह कार्यों; 153B राष्ट्रीय एकता बनाए रखने के लिए नुकसानदेह कार्यों; 295A धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के उद्देश्य से किए गए कार्यों और 295B धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से कही गई बातों से संबंधित है. भारतीय दंड संहिता, 1860 की संख्या 45, धारा 153A, 153B, 295A और 295B, http://www.hyderabadpolice.gov.in/acts/Indianpenalcode1860.pdf (17 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[50]ह्यूमन राइट्स वॉच, “स्टिफ़्लिंग डिसेंट: द क्रिमिनलाइज़ेशन ऑफ़ पीसफुल एक्सप्रेशन इन इंडिया” (न्यूयॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2016), https://www.hrw.org/report/2016/05/24/stifling-dissent/criminalization-peaceful-expression-india

[51]तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी. (सिविल) 2016 की संख्या 754, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, 17 जुलाई, 2018, https://indiankanoon.org/doc/71965246/ (1 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[52]सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भीड़-हिंसा के सभी मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक अदालतों द्वारा करने की कोशिश की जानी चाहिए और संज्ञान लेने की तारीख से छह महीने के भीतर प्राथमिकता के साथ सुनवाई पूरी कर लेनी चाहिए और यह लंबित मामलों पर भी लागू होगा. यदि आवेदन किया गया हो,  तो अदालतों को गवाहों की पहचान छिपाने समेत उन्हें सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए. वही.

[53]पीड़ितों या उनके परिवार के सदस्यों को किसी भी अदालती कार्यवाही की समय पर सूचना दी जानी चाहिए और आरोपी व्यक्तियों द्वारा दायर जमानत, दोष-मुक्ति, रिहाई और पैरोल जैसे आवेदनों पर सुनवाई के दौरान उनका पक्ष भी सुना जाना चाहिए. वही.

[54]सुप्रीम कोर्ट में दायर अनुपालन रिपोर्ट, ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[55]ह्यूमन राइट्स वॉच का इंदिरा जयसिंह से ईमेल पर साक्षात्कार, 29 अक्टूबर, 2018.

[56]इंदिरा जयसिंह, “व्हाई गवर्नमेंट शुड मेक न्यू लॉ ऑन लिंचिंग” इकोनॉमिक टाइम्स, 22 जुलाई, 2018,

https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/why-government-should-make-new-law-on-lynching-soon-before-its-too-late/articleshow/65085294.cms (30 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[57]भारत का संविधान, अनुच्छेद 14, 15 और 16, https://www.india.gov.in/sites/upload_files/npi/files/coi_part_full.pdf (2 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[58]अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2018, 2018 की संख्या 27. http://socialjustice.nic.in/writereaddata/UploadFile/PoA_Act_2018636706385256863314.pdf (25 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[59]ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन, एआइआर 1986, एससी1980.

[60]नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता (आईसीसीपीआर), G.A. res. 2200A (XXI), 21 U.N. GAOR Supp. (No. 16) at 52, U.N. Doc. A/6316 (1966), 999 U.N.T.S. 171, 23 मार्च, 1976 से लागू, अनुच्छेद 18; नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीईआरडी), 660 U.N.T.S 195, 4 जनवरी, 1969 से लागू, अनुच्छेद 5.

[61]आईसीईआरडी अनुच्छेद 2 (1).

[62]इसी तरह नस्लीय भेदभाव उन्मूलन समिति, आईसीईआरडी के आधार पर बनाई गई समझौता निगरानी समिति ने भी सरकारों से “किसी नस्ल या अन्य रंग या जातीय मूल के व्यक्तियों के समूह के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा” के लिए दंडित करने की मांग की है. नस्लीय भेदभाव उन्मूलन समिति, प्रमुख सिफारिश XV, पारा 3 और 4.

[63]धर्म या आस्था के आधार पर की जाने वाली सभी तरह की असहिष्णुता और भेदभाव के उन्मूलन की घोषणा, यू.एन.जी.ए. आरीईएस 36/55, 25 नवंबर, 1981. घोषणा का अनुच्छेद 4 कहता है कि “सभी राज्य मानवाधिकारों के सम्मान, प्रयोग और उपभोग एवं नागरिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के सभी क्षेत्र में मौलिक स्वतंत्रता के लिए धर्म या आस्था के आधार पर भेदभाव को रोकने और समाप्त करने के लिए प्रभावी कदम उठाएंगे,” और “सभी राज्य जरुरी होने पर ऐसे किसी भी भेदभाव को रोकने के लिए कानून लागू करने या फिर उसे रद्द करने के लिए सभी प्रयास करेंगे और इस संबंध में धर्म या अन्य मान्यताओं के आधार पर होने वाली असहिष्णुता का मुकाबला करने के लिए सभी उचित उपाय करेंगे.”

[64]आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता, 16 दिसम्बर, 1966 को स्वीकृत, जी.ए. आरीईएस 2200ए (XXI), 3 जनवरी, 1976 को लागू, अनु. 6.

[65]आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति, प्रमुख टिप्पणी संख्या.18: काम का अधिकार, ई/सी.12/जीसी/18, 6 फरवरी, 2006, पारा 31.

[66]हेट क्राइम डेटाबेस, डोटो और इंडियासपेंड डेटाबेस पर आधारित ह्यूमन राइट्स वॉच का विश्लेषण (http://dotodatabase.com/, https://lynch.factchecker.in/), मीडिया रिपोर्ट्स, पीड़ितों के परिवारों का साक्षात्कार और मामलों से संबंधित दस्तावेज.

[67]मीरन बोरवंकर के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, नई दिल्ली, 4 अक्टूबर, 2018.

[68]पेहलू खान ने पुलिस को बताया कि जब वह और उनके दो बेटे नूंह जिले में अपने गाँव जा रहे थे, राजस्थान में बेहरोर पार करने के बाद लगभग 200 लोगों की भीड़ ने उन पर हमला किया. उन्होंने कहा: “वे हमें गाली देने और मारपीट करने लगे. हमलावरों ने एक-दूसरे को ओम यादव, हुकुमचंद यादव, नवीन शर्मा, सुधीर यादव, राहुल सैनी और जगमाल के नाम से बुलाया और कहा कि वे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के सदस्य हैं. उन्होंने कहा कि वे गायों के साथ उस इलाके को पार करने वाले किसी भी व्यक्ति की पिटाई करते हैं और उन्होंने लात-घूंसों और लाठी से हमारी पिटाई की. उन्होंने हमारे कपड़े फाड़ डाले और जेब से पैसे निकाल लिए. जब हम सड़क पर घायल पड़े हुए थे, उन्होंने हमारे पिक-अप ट्रक को भी तोड़-फोड़ डाला. उसी समय, वहां एक अन्य वाहन में रफीक और अज़मत तीन गायों के साथ पहुंचे और भीड़ ने उन्हें भी पीटा. मेरे सिर और चेहरे पर गंभीर चोटें आईं. फिर पुलिस पहुंची और हमें एंबुलेंस में अस्पताल ले गई.” जुलाई, 2017 में पुलिस द्वारा दायर आरोप-पत्र. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[69]ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रतियां उपलब्ध.

[70]दीप मुखर्जी, “पेहलू खान लिंचिंग केस: अलवर पुलिस चार्ज ऑल विक्टिम्स विथ काउ स्मगलिंग,” इंडियन एक्सप्रेस, 1 फरवरी, 2018, https://indianexpress.com/article/india/pehlu-khans-lynching-case-alwar-police-charge-all-victims-with-cow-smuggling-5046962/ (15 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[71]ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध.

[72]दीप मुखर्जी, “अलवर लिंचिंग: राजस्थान पुलिस क्लोज प्रोब अगेंस्ट 6 हिंदू राईट-विंग मेन नेम्ड बॉय पेहलू खान,” हिंदुस्तान टाइम्स, 14 सितंबर, 2017, https://www.hindustantimes.com/india-news/no-one-killed-pehlu-khan-probe-against-hindu-right-wing-men-named-by-dying-cattle-farmer-closed/story-SDghUwo8QQJRAArn2Gy2rK.html (15 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[73]पोस्टमार्टम रिपोर्ट, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बेह्ररोर, अलवर जिला, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, राजस्थान, 4 अप्रैल 2017. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[74]कैलाश अस्पताल के डॉक्टरों के बयान, ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[75]“पुलिस डाइल्युटेड चार्जेज अगेंस्ट अक्यूज़्ड इन पेहलू खान्स मर्डर केस: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट्स,” The Wire.in, 26 अक्तूबर, 2017. https://thewire.in/politics/police-diluted-charges-accused-pehlu-khans-murder-case-fact-finding-report (15 अगस्त, 2018 को देखा गया). यह भी देखें, केन्द्रीय कैबिनेट में संस्कृति राज्य मंत्री और भाजपा नेता महेश शर्मा की आधिकारिक जीवनी, http://www.moef.gov.in/sites/default/files/Biography_MoS.pdf (पिछली बार 12 दिसंबर, 2018 को देखा गया).

[76]“पुलिस डाइल्युटेड चार्जेज अगेंस्ट अक्यूज़्ड इन पहलू खान्स मर्डर केस: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट्स,” TheWire.in, 26 अक्तूबर, 2017. https://thewire.in/politics/police-diluted-charges-accused-pehlu-khans-murder-case-fact-finding-report (15 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[77]“पेहलू खान्स सन डिमांडस सुप्रीम कोर्ट-मोनिटर्ड प्रोब इन लिंचिंग केस,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 26 अक्टूबर, 2017, http://www.newindianexpress.com/nation/2017/oct/26/pehlu-khans-son-demands-supreme-court-monitored-probe-in-lynching-case-1684033.html (पिछली बार 11 दिसंबर, 2018 को देखा गया).

[78]दीप मुखर्जी, “पेहलू खान लिंचिंग केस: अलवर पुलिस चार्ज ऑल विक्टिम्स विथ काउ स्मगलिंग,” इंडियन एक्सप्रेस, 1 फ़रवरी, 2018, https://indianexpress.com/article/india/pehlu-khans-lynching-case-alwar-police-charge-all-victims-with-cow-smuggling-5046962/ (15 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[79]ह्यूमन राइट्स वॉच के पास एफआईआर की प्रति उपलब्ध.

[80]ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, विवरण नहीं दिया गया, गाजियाबाद जिला, उत्तर प्रदेश, 9 जुलाई, 2018.

[81]ह्यूमन राइट्स वॉच के पास एफआईआर की प्रति उपलब्ध.

[82]4 अगस्त, 2015 को पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक, केंद्रीय गृह मंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को आरिफ कुरैशी के भाई साजिद द्वारा लिखा पत्र, ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[83]अनस की मां और आरिफ के भाई के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, 9 जुलाई, 2018.

[84]ह्यूमन राइट्स वॉच के पास 12 नवंबर, 2017 को दर्ज एफआईआर की प्रति उपलब्ध.

[85]वही.

[86]मोहम्मद इकबाल, “डेयरी फार्मर उमर खान्स कम्पैनियंस अरेस्टेड,” द हिंदू, 20 नवंबर, 2017, https://www.thehindu.com/news/dairy-farmer-umar-khans-companions-arrested/article20601039.ece (17 अगस्त, 2018 को देखा).

[87](वही),मोहम्मद इकबाल, “डेयरी फार्मर उमर खान्स कम्पैनियंस अरेस्टेड,” द हिंदू, 20 नवंबर, 2017, https://www.thehindu.com/news/dairy-farmer-umar-khans-companions-arrested/article20601039.ece (17 अगस्त, 2018 को देखा).

[88]देव अंकुर वधावन, “अलवर पुलिस अरेस्ट्स फोर मोर पीपल इन उमर खान मर्डर केस,” इंडिया टुडे, 7 जनवरी, 2018, https://www.indiatoday.in/india/story/alwar-police-umar-khan-murder-case-alwar-superintendent-of-police-rahul-prakash-cow-vigilantes-1124530-2018-01-07 (17 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[89]15 अक्टूबर, 2015 की पोस्टमार्टम रिपोर्ट. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[90]“डिवाइड एंड रूल इन द नेम ऑफ काउ,” रिपोर्ट ऑफ़ फैक्ट फाइंडिंग टीम ऑन लिंचिंग इन हरियाणा एंड राजस्थान, भूमि अधिकार आंदोलन, मार्च 2018, https://cjp.org.in/wp-content/uploads/2018/03/AIKS-Divide-and-Rule-PDF.pdf (19 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[91]जयश्री बाजोरिया, ह्यूमन राइट्स वॉच, “इंडियाज़ काउ प्रोटेक्शन ग्रुप्स रेज टेंशन,” 21 मार्च, 2016, https://www.hrw.org/news/2016/03/21/dispatches-indias-cow-protection-groups-raise-tensions

[92]मजलूम अंसारी और मोहम्मद इम्तेयाज़ खान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, लातेहार, झारखंड, 18 मार्च, 2016. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[93]“लातेहार लिंचिंग केस: ऐट गेट लाइफ टर्म फॉर डबल मर्डर इन झारखण्ड,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 21 दिसंबर, 2018, https://www.thehindu.com/news/national/other-states/latehar-lynching-case-eight-get-life-term-for-double-murder-in-jharkhand/article25799853.ece (12 जनवरी, 2019 को देखा गया).

[94]सत्र न्यायालय में सायरा बीबी का बयान, 2016 की केस स. 97, 24 मार्च, 2017. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[95]आजाद खान के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, झारखंड, 12 जून, 2018.

[96]मई, 2016 में दायर चार्जशीट में सभी आरोपियों के इकबालिया बयान, ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध. इकबालिया बयान 11 मानवाधिकार समूहों की स्वतंत्र जांच रिपोर्ट, “हैंग्ड बॉय गौरक्षक, डिनाइड जस्टिस बॉय द स्टेट,” में भी देखें, 2 अप्रैल, 2018, https://cjp.org.in/wp-content/uploads/2018/04/Latehar-Report-Proofing-Draft.pdf (13 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[97]31 मई 2016 को दायर चार्जशीट संख्या 65/16 की प्रति, ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[98]चार्जशीट के अनुसार, “अभी तक की जांच में मुख्य अभियुक्त विनोद प्रजापति के अपराध में शामिल होने के सबूत नहीं मिले हैं” और इसलिए “जांच (उसकी संभावित भूमिका की) अभी भी जारी है.” वही.

[99]सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, “लिंचिंग विथाउट एंड: फैक्ट फाइंडिंग इन्वेस्टीगेशन इंटू रिलीजियसली मोटिवेटेड विजिलांट वायलेंस इन इंडिया,” सितम्बर, 2017, http://www.misaal.ngo/wp-content/uploads/2017/09/FINAL-report-Lynching-without-End.pdf (1 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[100]भारतीय कानून के तहत, पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई स्वीकारोक्ति सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, स. 25, 26, http://www.advocatekhoj.com/library/bareacts/indianevidence/index.php?Title=Indian%20Evidence%20Act,%201872 (13 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[101]अपराधियों पर मुकदमा चलाने में सुस्ती से निराश दोनों पीड़ित परिवारों ने राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित एक लाख रुपये का मुआवजा लेने से इनकार कर दिया.

[102]“लोकल झारखण्ड पुलिस यूज्ड कम्युनल स्लोगन: एनसीएम ऑन लातेहार हेअरिंग्स,” SabrangIndia.in, 25 मई, 2016, https://sabrangindia.in/article/local-jharkand-police-used-communal-slogans-ncm-latehar-hangings (13 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[103] ह्यूमन राइट्स वॉच का मनुवर अंसारी के साथ इंटरव्यू, रांची, 12 जून, 2018.

[104]“लोकल झारखण्ड पुलिस यूज्ड कम्युनल स्लोगन: एनसीएम ऑन लातेहार हेअरिंग्स,” SabrangIndia.in, 25 मई, 2016, https://sabrangindia.in/article/local-jharkand-police-used-communal-slogans-ncm-latehar-hangings (13 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[105]वही.

[106]कथित तौर पर घटना के दो वीडियो भी न्यूज़ मीडिया पर साझा किए गए. एक में, कासिम पानी के लिए गुहार लगा रहा है जबकि लोगों का एक समूह उसके पीछे खड़ा है. एक आवाज यह कहते हुए सुनी जा सकती है कि गायों को क़त्ल करने के लिए खेतों में बांध कर रखा गया था. एक अन्य व्यक्ति लोगों को यह कहते हुए शांत होने के लिए कहता है कि वे पहले ही कासिम की पिटाई कर चुके हैं और अगर उसकी हालत ज्यादा खराब होती है, तो वे मुश्किल में पड़ सकते हैं. “हापुड़ लिंचिंग: वीडियो शोज मॉब फोर्सिंग मैन टू कन्फेस ही वांटेड तो स्लॉटर काउज,” scroll.in, 24 जून, 2018, https://scroll.in/latest/883863/hapur-lynching-video-shows-mob-forcing-man-to-confess-he-wanted-to-slaughter-cows (13 अगस्त, 2018 को देखा गया). हालांकि, किसी ने भी कासिम को पानी नहीं दिया. कासिम के छोटे भाई मोहम्मद सलीम ने बताया, “उन्होंने उसे पानी नहीं दिया क्योंकि वह मुस्लिम था.” अदिति वत्स, “यूपी: हापुड़ लिंचिंग लिंक्ड टू काउज, क्लेम विक्टिम्स किन; पुलिस डिनाय, से रोड रेज,” इंडियन एक्सप्रेस, 20 जून, 2018, https://indianexpress.com/article/india/uttar-pradesh-hapur-lynching-linked-to-cows-claim-victims-kin-police-deny-say-road-rage-5224925/ (13 अगस्त, 2018 को देखा गया).

एक दूसरे वीडियो में कुछ लोग समयदीन से सवाल और दुर्व्यवहार करते दिखाई दे रहे हैं और उस पर गायों की हत्या करने की कोशिश का आरोप भी लगा रहे हैं. जब वह इससे इनकार करता है, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी देने वाली आवाजें सुनी जा सकती हैं. “हापुड़ लिंचिंग: वीडियो शोज मॉब फोर्सिंग मैन टू कन्फेस ही वांटेड तो स्लॉटर काउज,” scroll.in, 24 जून, 2018, https://scroll.in/latest/883863/hapur-lynching-video-shows-mob-forcing-man-to-confess-he-wanted-to-slaughter-cows (13 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[107]पुलिस महानिरीक्षक, मेरठ, उत्तर प्रदेश को समयदीन का पत्र, 14 जुलाई, 2018. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति मौजूद. घटना के दो माह बाद 21 अगस्त, 2018 को हापुड़ में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने उसका बयान दर्ज किया गया.

[108]वही.

[109]वही.

[110]यासीन के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, हापुड़ जिला, उत्तर प्रदेश, 19 जुलाई, 2018.

[111]एस राजू, “हापुड़ लिंचिंग: यूपी पुलिस अपोलोजाइज़ आफ्टर वायरल पिक्चर शोज विक्टिम बीइंग 'डैग्ड' इन कॉप्स प्रजेंस,” हिंदुस्तान टाइम्स, 22 जून, 2018, https://www.hindustantimes.com/india-news/hapur-lynching-up-police-apologise-after-viral-picture-shows-victim-being-dragged-in-cops-presence/story-vOzuCxh2qN2esq7NOL5wJL.html (13 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[112]सलीम के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, हापुड़ जिला, उत्तर प्रदेश, 19 जुलाई, 2018.

[113]“प्रोब हापुड़ लिंचिंग: सुप्रीम कोर्ट,” द हिन्दू, 13 अगस्त 2018, https://www.thehindu.com/news/national/probe-hapur-lynching-supreme-court/article24682309.ece (24 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[114]ए वैद्यनाथन, “सुप्रीम कोर्ट टू टेक अप हापुड़ लिंचिंग ऑन पिटिशन ऑवर एनडीटीवी एक्सपोज़,” NDTV.com, 7 अगस्त, 2018, https://www.ndtv.com/india-news/supreme-court-to-take-up-hapur-lynching-on-petition-over-ndtv-expose-in-which-accused-boast-on-camer-1896418 (24 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[115]के.एम. राकेश, “काउ ट्रेडर लिंच्ड, कॉप्स हेल्ड,” टेलीग्राफ, 6 जून, 2018, https://www.telegraphindia.com/india/cow-trader-lynched-cops-held/cid/1347336 (12 जनवरी, 2019 को देखा गया).

[116]हर्ष राज गट्टी, “उदिपी कैटल ट्रेडर्स डेथ: 3 कॉप्स, 8 बजरंग दल एक्टिविस्ट्स अरेस्टेड,” Newsminute.com, 6 जून, 2018, https://www.thenewsminute.com/article/udupi-cattle-trader-s-death-3-cops-8-bajrang-dal-activists-arrested-82574 (28 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[117]मेवात एक ऐतिहासिक क्षेत्र है जिसकी कोई सटीक सीमा नहीं है. इसमें हरियाणा के नूहं, गुड़गांव, पलवल और फरीदाबाद जिले; राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के कुछ हिस्से शामिल हैं.

[118]नेहा दीक्षित, “फॉर हरियाणा पुलिस, द होली काउ इज एन एक्सक्यूज फॉर एक्स्ट्रा-जुडिशल किलिंग्स,” Wire.in, 10 मई,  2018,  https://thewire.in/communalism/for-haryana-police-the-holy-cow-is-an-excuse-for-extra-judicial-killings (25 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[119]श्रुति जैन,”ग्राउंड रिपोर्ट: 'वीएचपी मैन द मेन कलप्रिट इन द अलवर लिंचिंग, पुलिस रोल सेकेंडरी, Wire.in, 24 जुलाई, 2018, https://thewire.in/communalism/ground-report-vhp-men-the-main-culprits-in-alwar-lynching-police-role-secondary (19 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[120]21 जुलाई, 2018 को दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट, ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[121]हर्षा कुमारी सिंह और नीता शर्मा, ““पनिश मी”: राजस्थान कॉप एडमिटस डिले इन टेकिंग मॉब विक्टिम टू हॉस्पिटल,” NDTV.com, 23 जुलाई, 2018, https://www.ndtv.com/india-news/alwar-mob-lynching-punish-me-rajasthan-cop-admits-delay-in-taking-mob-victim-to-hospital-1888311 (20 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[122] देव अंकुर वधावन, “रकबर खांस डेथ रेमेंस श्राउडेड इन मिस्ट्री,” इंडिया टुडे, 25 जुलाई, 2018, https://www.indiatoday.in/india/story/rakbar-khan-s-death-remains-shrouded-in-mystery-1295293-2018-07-25 (19 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[123]वही.

[124]हर्षा कुमारी सिंह,”एरर इन जजमेंट,” से पुलिस, अंडर फायर ऑवर अलवर मॉब विक्टिम डेथ,” NDTV.com, 24 जुलाई, 2018, https://www.ndtv.com/india-news/alwar-mob-killing-rajasthan-officer-suspended-constables-shifted-after-mob-victims-death-1888383 (19 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[125]पोस्टमार्टम रिपोर्ट, चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग, राजस्थान, अलवर, 21 जुलाई, 2018. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[126]मोहम्मद अकबर के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, नई दिल्ली, 13 अगस्त, 2018.

[127]“मेओ कम्युनिटी डिमांड्स अरेस्ट ऑफ़ राजस्थान एमएलए इन रकबर खान लिंचिंग केस,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, 29 जुलाई, 2018, https://www.hindustantimes.com/india-news/meo-community-demands-arrest-of-rajasthan-mla-in-rakbar-khan-lynching-case/story-RPOp5aUkZm2mlIuOFtWH2J.html (20 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[128]“रकबर खान केस अपीयर्स टू बी कस्टोडियल डेथ, जुडिसिअल प्रोब विल बी हेल्ड: राजस्थान होम मिनिस्टर,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 24 जुलाई, 2018, https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/rakbar-khan-case-appears-to-be-custodial-death-judicial-probe-will-be-held-rajasthan-home-minister/articleshow/65121250.cms (20 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[129]“अलवर लिंचिंग: ऑटोप्सी सेज रकबर खान डाइड ऑफ़ 'शॉक', मिस्ट्री डीपंस ऑवर विक्टिम्स फोटो इनसाइड कॉप वैन, टॉप 10 डेवलपमेंट्स,” फाइनेंसियल एक्सप्रेस, 24 जुलाई, 2018, https://www.financialexpress.com/india-news/alwar-lynching-autopsy-says-rakbar-khan-died-of-shock-mystery-deepens-over-victims-photo-inside-cop-van-top-10-developments/1256278/ (20 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[130]4 अक्टूबर, 2016 को दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 153/16. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[131]6 अक्टूबर, 2016 को दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 154/16. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[132]6 अक्टूबर, 2016 को दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध. अजोला बीबी के मुताबिक, जब पानी के छींटे देने के बाद भी उसके बेटे को होश नहीं आया तो पुलिस उसे पास के सरकारी अस्पताल ले गई. लेकिन गंभीर चोटों के कारण उसे धनबाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल स्थानांतरित कर दिया गया. 7 अक्टूबर को वहां के डॉक्टरों ने उसे बेहतर इलाज के लिए रांची के राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज रेफर किया. अजोला बीबी ने कहा, दूसरे अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि अंसारी की हालत गंभीर है और वह कोमा में चला गया है.

[133]9 अक्टूबर, 2016 की पोस्टमार्टम रिपोर्ट. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध. 

[134]6 अक्टूबर, 2016 को दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट. ह्यूमन राइट्स वॉच के पास प्रति उपलब्ध.

[135]अनुमेहा यादव, “व्हाट्सएप बीफ अरेस्ट: फैमिली ऑफ़ मुस्लिम मैन हू डाइड इन पुलिस कस्टडी डिमांड्स जस्टिस,” scroll.in, 24 अक्टूबर, 2016, https://scroll.in/article/819729/whatsapp-calf-photo-arrest-family-of-muslim-man-who-died-in-police-custody-demand-justice (16 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[136]हरीश कुमार पाठक बनाम झारखंड राज्य, झारखंड उच्च न्यायालय, 2018 की संख्या 4304, 18 दिसंबर, 2018,

https://indiankanoon.org/doc/24495465/ (12 जनवरी, 2018 को देखा गया).

[137]ताहिर हसन बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, 2016 की सीआरडब्लूपी संख्या 382, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय.

[138]ताहिर हसन बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, 2016 की सीआरडब्लूपी संख्या 382, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय.

[139]ताहिर हसन बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, 2016 की सीआरडब्लूपी संख्या 382, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय, 9 मई, 2016.

[140]असलम का बयान, 26 जुलाई, 2016.

[141]ताहिर हसन बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, 2016 की विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) संख्या 4123, भारत का सर्वोच्च न्यायालय.

[142]अशोक कुमार, “हरियाणा गवर्नमेंट येट टू इशू आइडेंटिटी कार्ड्स टू 'जेन्युइन' गौरक्षक्स.” हिंदू, 27 जुलाई, 2018, https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/haryana-govt-yet-to-issue-identity-cards-to-genuine-gau-rakshaks/article24524887.ece (5 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[143]माइकल सफी, “ऑन पैट्रॉल विथ द हिंदू विज्लेंट्स हू वुड किल टू प्रोटेक्ट इंडियाज काउ,” गार्डियन, 27 अक्टूबर,  2016, https://www.theguardian.com/world/2016/oct/27/on-patrol-hindu-vigilantes-smuggling-protect-india-cows-kill (20 अगस्त, 2018 को देखा गया). यह भी देखें, इशान मार्वल, “इन द नेम ऑफ द मदर,” कारवां मैगज़ीन, 1 सितंबर, 2016, http://www.caravanmagazine.in/reportage/in-the-name-of-the-mother (21 अगस्त, 2018 को देखा गया). स्निग्धा पूनम, ड्रीमर्स: हाउ यंग इंडियंस आर चेंजिंग द वर्ल्ड, (इंडिया: पेंगुइन रैंडम हाउस, 2018), https://penguin.co.in/book/non-fiction/dreamers/ (5 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[144]“आफ्टर स्ट्रिक्ट लॉ, हरियाणा गिव्स काउज 24-ऑवर हेल्पलाइन,” इंडियन एक्सप्रेस, 4 जुलाई, 2016, https://indianexpress.com/article/india/india-news-india/after-strict-law-haryana-gives-cows-24-hour-helpline-beef-ban-slaughtering-transport-2892352/ (28 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[145]स्निग्धा पूनम, ड्रीमर्स: हाउ यंग इंडियंस आर चेंजिंग द वर्ल्ड, (इंडिया: पेंगुइन रैंडम हाउस, 2018), https://penguin.co.in/book/non-fiction/dreamers/ (5 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[146]माइकल सफी, “ऑन पैट्रॉल विथ द हिंदू विज्लेंट्स हू वुड किल टू प्रोटेक्ट इंडियाज काउ,” गार्डियन, 27 अक्टूबर,  2016, https://www.theguardian.com/world/2016/oct/27/on-patrol-hindu-vigilantes-smuggling-protect-india-cows-kill  (20 अगस्त, 2018 को देखा गया). यह भी देखें, इशान मार्वल, “इन द नेम ऑफ द मदर,” कारवां मैगज़ीन, 1 सितंबर, 2016, http://www.caravanmagazine.in/reportage/in-the-name-of-the-mother (21 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[147]शोएब डेनियल, “'बीजेपी इज टेकिंग रिवेंज ऑन मुस्लिम्स': यूपीज क्रैकडाउन हेज लेफ्ट द मीट इंडस्ट्री पैनिक्ड एंड स्केयर्ड,” scroll.in, 26 मार्च, 2017, https://scroll.in/article/832802/bjp-is-taking-revenge-on-muslims-ups-crackdown-has-left-the-meat-industry-panicked-and-scared (18 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[148]“इनसाइड योगीज हिंदू युवा वाहिनी,” Rediff.com, 18 अप्रैल, 2017, http://www.rediff.com/news/report/pix-inside-yogis-hindu-yuva-vahini/20170418.htm (15 अक्टूबर, 2018 को देखा गया). आदित्यनाथ सहित समूह के कई सदस्यों पर हिंसा भड़काने, हत्या का प्रयास, दंगा करने, घातक हथियार रखने और दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आपराधिक आरोप हैं. आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद, उनकी सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा उकसाने के मामले में उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. उनकी सरकार ने उनके और कुछ अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ निषेधात्मक आदेशों का उल्लंघन करने संबंधी एक आपराधिक मामला भी ख़त्म कर दिया और एक कानून पारित किया जिसके तहत नेताओं द्वारा निषेधात्मक आदेशों का उल्लंघन करके किए गए प्रदर्शनों के बीस हजार से अधिक मामले वापस ले लिए गए. सरकार ने कहा कि मामले राजनीति से प्रेरित थे. इन मामलों में ऐसे प्रदर्शन शामिल थे जो कथित रूप से सांप्रदायिक हिंसा का कारण बने. मनीष साहू, “योगी गवर्नमेंट इशू आर्डर टू स्क्रैप केस अगेंस्ट योगी आदित्यनाथ,” इंडियन एक्सप्रेस, 27 दिसंबर, 2017, https://indianexpress.com/article/india/yogi-adityanath-government-issues-order-to-scrap-case-against-yogi-5000402/ (18 अगस्त, 2018 को देखा गया); रोहन वेंकटरमकृष्णन, “हाउ डज आदित्यनाथ विथड्राइंग क्रिमिनल केस अगेंस्ट हिम्सेल्फ़ नॉट काउंट एज 'जंगल राज'?,” scroll.in, 27 दिसंबर, 2017 https://scroll.in/article/862892/how-does-adityanath-withdrawing-criminal-case-against-himself-not-count-as-jungle-raj (20 अगस्त, 2018 को देखा गया); “नॉट ऑल केसेज अगेंस्ट पॉलिटिशियंस विल बी विथड्रान, सेज उत्तर प्रदेश लॉ मिनिस्टर,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, 25 जनवरी, 2018, https://www.ndtv.com/india-news/not-all-cases-against-politicians-will-be-withdrawn-says-uttar-pradesh-law-minister-1804707 (15 अक्टूबर, 2018 को देखा गया). मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच 2013 में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े 131 मामलों को वापस लेने की पहल भी सरकार ने की है, जिसमें 60 से अधिक मौतें हुईं और हजारों लोग विस्थापित हुए, इनमें बड़े पैमाने पर मुस्लिम थे. इन मामलों में हत्या और अपहरण के आरोप शामिल हैं. नमिता बाजपेयी, “योगी आदित्यनाथ गवर्नमेंट टू विथ ड्रा 131 केसेज लिंक्ड टू मुजफ्फरनगर रायटस,” न्यू इंडियन एक्सप्रेस, 22 मार्च, 2018, http://www.newindianexpress.com/nation/2018/mar/22/yogi-adityanath-government-to-withdraw-131-cases-linked-to-muzaffarnagar-riots-1791015.html (16 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[149]हालांकि राज्य के उपमुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि आदित्यनाथ के संगठन के सदस्य जिम्मेदार नागरिक के रूप में कार्य कर रहे हैं और इन आरोपों को खारिज कर दिया कि वे “एक समानांतर प्रशासन के रूप में कार्य कर रहे हैं.” “योगी आदित्यनाथ गवर्नमेंट 30 डेज: हाउ फोरेन मीडिया रिपोर्टेड द मंथ,” रॉयटर्स, 19 अप्रैल, 2017, http://indiatoday.intoday.in/story/yogi-adityanath-government-one-month-in-power-bjp-pm-modi-gorakhpur/1/932456.html (19 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[150]एनी गोवेन, “काउज आर सेक्रेड टू इंडियाज हिंदू मेजोरिटी. फॉर मुस्लिम्स हू ट्रेड कैटल, दैट मीन्स ग्रोइंग ट्रबल,” वाशिंगटन पोस्ट, 16 जुलाई, 2018, https://www.washingtonpost.com/world/asia_pacific/cows-are-sacred-to-indias-hindu-majority-for-muslims-who-trade-cattle-that-means-growing-trouble/2018/07/15/9e4d7a50-591a-11e8-9889-07bcc1327f4b_story.html (29 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[151]एक गौरक्षक चौकी के हेड कांस्टेबल के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, अलवर जिला, राजस्थान, 22 जुलाई, 2018.

[152]दिशांक पुरोहित, “'गौ रक्षा चौकीज' आर एक्स्टोरसन पॉइंट्स इन अलवर,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 10 दिसंबर, 2017, https://timesofindia.indiatimes.com/city/jaipur/gau-raksha-chowkis-are-extortion-points-in-alwar/articleshow/62003594.cms (20 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[153]बेतवा शर्मा, “थ्री इयर्स आफ्टर दादरी, द मैन अक्यूज़्ड ऑफ लिंचिंग मोहम्मद अख़लाक इज फ्री एंड रनिंग फ़ॉर लोकसभा,” HuffingtonPost.in, 26 सितंबर, 2018, https://www.huffingtonpost.in/2018/09/26/three-years-on-accused-in-mohammad-akhlaqs-lynching-is-free-and-ready-to-fight-the-lok-sabha-election_a_23542377/ (25 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[154]“राजस्थान मैन अक्यूज़्ड ऑफ़ मर्डरिंग मुस्लिम ऑन कैमरा सेट टू कांटेस्ट लोक सभा इलेक्शन,” हिंदुस्तान टाइम्स, 19 सितंबर, 2018, https://www.hindustantimes.com/india-news/rajasthan-man-accused-of-murdering-muslim-on-camera-set-to-contest-lok-sabha-election/story-dendb2a8ZZrrB48QF6k1yM.html (25 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[155]हर्षा कुमारी सिंह, “चिलिंग मर्डर इन राजस्थान ऑन वीडियो. मैन हैक्स लेबर, बर्न्स हिम,” NDTV.com, 7 दिसंबर, 2017, https://www.ndtv.com/india-news/chilling-murder-in-rajasthans-rajsamand-on-video-man-hacks-labourer-burns-him-1784669 (30 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[156]पथिकृत सान्याल, “आस्क हू अलावुड शंभू रेगर - इन राजस्थान जेल फॉर बर्निंग मैन अलाइव - टू मेक हेट वीडियो अगेंस्ट मुस्लिम्स,” Dailyo.in, 20 फरवरी, 2018, https://www.dailyo.in/variety/shambhu-lal-regar-rajsamand-murder-love-jihad-afrazul-khan-propaganda-video-hindutva-communal-polarisation/story/1/22446.html; “इन सपोर्ट ऑफ़ शंभू लाल रेगर, हिंदू ग्रुप्स अनफर्ल सैफरन फ्लैग ऑन द उदयपुर कोर्ट प्रेमिसेस, अटैक पुलिस,” आउटलुक, 15 दिसंबर, 2017, https://www.outlookindia.com/website/story/hindu-groups-attack-police-unfurl-saffron-flag-on-udaipur-court-premises-in-supp/305606; दीप मुखर्जी, “राजस्थान हैकिंग: व्हाट्सएप ग्रुप विथ बीजेपी एमपी, एमएलए एज मेंबर्स हेल किलर,” इंडियन एक्सप्रेस, 10 दिसंबर, 2017, https://indianexpress.com/article/india/rajasthan-hacking-whatsapp-group-with-bjp-mp-mla-as-members-hail-killer-4975919/ (28 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[157]झारखंड के अलीमुद्दीन अंसारी और राजस्थान के अकबर खान के मामलों को देखें.

[158]रीछपाल सिंह के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, जयपुर, राजस्थान, 25 जुलाई, 2018.

[159]जयश्री बाजोरिया, ह्यूमन राइट्स वॉच, “होल्डिंग किलर्स टू अकाउंट फॉर हेट क्राइम इन इंडिया,” 21 मार्च, 2018, https://www.hrw.org/news/2018/03/21/holding-killers-account-hate-crimes-india.

[160]बजरंग दल और आरएसएस के बारे में अधिक जानने के लिए, देखें अध्याय I: भारत में गौरक्षा की राजनीति.

[161]राज्य जरिए मरियम खातून बनाम दीपक मिश्रा और अन्य, सेशन ट्रायल केस नंबर - 120/2017, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश II-सह--फास्ट ट्रैक कोर्ट, रामगढ़, निर्णय, 16 मार्च, 2018.

[162]“रामगढ़ लिंचिंग केस: झारखंड हाई कोर्ट ग्रांट्स बेल टू टेंथ अक्यूज़्ड,” scroll.in, जुलाई, 2018, https://scroll.in/latest/886038/ramgarh-lynching-case-jharkhand-high-court-grants-bail-to-tenth-accused  (12 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[163]“जयंत सिन्हा लीगली असिस्टेड 'इनोसेंट' लिंचिंग कंविक्ट्स, बट रिग्रेट्स गारलैंडिंग देम,” wire.in, 23 जुलाई, 2018, https://thewire.in/rights/jayant-sinha-ramgarh-lynching-convicts (1 सितंबर, 2018 को देखा गया).

[164]“यूनियन मिनिस्टर जयंत सिन्हा गार्लेंड्स 8 लिंचिंग कंविक्ट्स, फेस अपोजिसन फ्लेक,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 8 जुलाई, 2018, https://timesofindia.indiatimes.com/india/union-minister-jayant-sinha-garlands-8-lynching-convicts-faces-opposition-flak/articleshow/64901863.cms (25 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[165]प्रशांत झा, “इट्स अ मैटर ऑफ़ जस्टिस, नॉट लिंचिंग: जयंत सिन्हा,” हिंदुस्तान टाइम्स, 23 जुलाई, 2018, https://www.hindustantimes.com/india-news/regret-garlanding-ramgarh-lynching-convicts-jayant-sinha/story-JYadtspAUurWZ8vRLaCcwI.html (26 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[166]“मोदी ब्रेक्स साइलेंस: 'किलिंग पीपल इन द नेम ऑफ़ प्रोटेक्टिंग काउज नॉट एक्सेप्टेबल,'“ The Wire.in, 29 जून, 2017, https://thewire.in/communalism/modi-breaks-silence-on-lynchings-says-killing-in-the-name-ofcows-not-acceptable (12 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[167]सान्या ढींगरा, “हाउ इंडिया मैनेज्ड टू पनिश काउ विजिलान्ट्स फॉर द फर्स्ट टाइम इन अ बीफ-लिंचिंग केस.” The Print.i, 23 मार्च, 2018, https://theprint.in/governance/india-punish-cow-vigilantes-beef-lynching-case/44047/ (12 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[168]सान्या ढींगरा, “हाउ इंडिया मैनेज्ड टू पनिश काउ विजिलान्ट्स फॉर द फर्स्ट टाइम इन अ बीफ-लिंचिंग केस.” The Print.i, 23 मार्च, 2018, https://theprint.in/governance/india-punish-cow-vigilantes-beef-lynching-case/44047/ (12 जुलाई, 2018 को देखा गया)

[169]मरियम खातून के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, झारखंड, 7 जून, 2018.

[170]वही.

[171]सागर, “इन अनदर ब्लो टू द रामगढ़ लिंचिंग केस, वाइफ ऑफ मेन विटनेस डाइज नियर कोर्ट; डेपज़िशन स्टाल्ड,” कारवां मैगज़ीन, 13 अक्टूबर, 2017, http://www.caravanmagazine.in/vantage/ramgarh-lynching-case-wife-main-witness-dies-near-court-deposition-stalled (12 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[172]मरियम खातून के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, झारखंड,7 जून, 2018. दोषियों पर फैसले के बाद, भाजपा के स्थानीय नेता और पूर्व विधायक शंकर चौधरी ने भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ रामगढ़ में एक रैली निकाली, फैसले के विरोध में अपना सिर मुंडवा लिया और नई जांच की मांग की. एनके अग्रवाल, “आउटफिट्स होस्ट फ्लैग रैली टू प्रेस फॉर सीबीआई प्रोब इंटू रामगढ़ लिंचिंग केस,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 11 अप्रैल, 2018, https://timesofindia.indiatimes.com/city/ranchi/outfits-host-flag-rally-to-press-for-cbi-probe-into-ramgarh-lynching-case/articleshow/63703199.cms (12 जुलाई, 2018 को देखा गया).

[173]इंद्राणी बसु, “सिक्स आउटरेजियस थिंग्स बीजेपी लीडर्स हेव सैड अबाउट दादरी मर्डर ओवर बीफ,” HuffingtonPost.in, 1 अक्टूबर, 2015, https://www.huffingtonpost.in/2015/10/01/bjp-leaders-dadri-murder_n_8225574.html (15 अगस्त 2018 को देखा गया).

[174]वरिंदर भाटिया एंड निरुपमा सुब्रमण्यन, “मुस्लिम्स कैन लिव इन दिस कंट्री बट विल हैव टू गिव अप ईटिंग बीफ, सेज हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर,” इंडियन एक्सप्रेस, 16 अक्टूबर, 2015, https://indianexpress.com/article/india/india-news-india/muslims-can-live-in-this-country-but-they-will-have-to-give-up-eating-beef-says-haryana-cm-manohar-lal-khattar/ (16 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[175]रोहिणी मोहन, “अ टेम्पल फॉर हेट,” हार्पर्स मैगज़ीन, सितंबर 2018, https://harpers.org/archive/2018/09/india-bharatiya-janata-party-intolerance-bjp-muslim-hindu/ (15 अगस्त 2018 को देखा गया).

[176]तनिमा बिस्वास, “दादरी लिंचिंग चार्ज-शीट नेम्स 15 पीपल इन्क्लुडिंग माइनर, 'बीफ' नॉट मेंशनड्ड,” NDTV.com, 24 दिसंबर, 2015, https://www.ndtv.com/india-news/dadri-lynching-case-15-people-including-a-minor-named-in-chargesheet-1258286 (16 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[177]इसको लेकर विरोधाभासी खबरें हैं कि क्या घर से बरामद किया गया मांस वास्तव में गोमांस था. मई 2016 में, उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित पशु चिकित्सा विज्ञान और पशुपालन विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में कहा गया कि अख़लाक़ के मामले में एकत्र मांस “गाय या गोवंश” का था. इसने उत्तर प्रदेश पशु चिकित्सा विभाग की एक प्रारंभिक रिपोर्ट का खंडन किया जिसमें कहा गया कि मांस “बकरी के बच्चे” का था. हालांकि, समाचार रिपोर्टों में पाया गया कि मथुरा में लैब द्वारा परीक्षण किया गया मांस अखलाक के घर से नहीं बल्कि उसके घर के पास से आया था. “इट्स बीफ, सेज रिपोर्ट, बट सैंपल नॉट फ्रॉम अखलाक हाउस,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 1 जून, 2016, https://timesofindia.indiatimes.com/city/noida/Its-beef-says-report-but-sample-not-from-Akhlaq-house/articleshow/52530167.cms (16 अगस्त, 2018 को देखा गया). इसके बावजूद, नई लैब रिपोर्ट के आधार पर भाजपा समर्थकों द्वारा अखलाक और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ गोहत्या का मामला दर्ज करने की मांग की गई, जबकि दूसरे लोगों और कुछ भाजपा नेताओं ने तो उसके परिवार को दिया मुआवजा वापस लेने की भी मांग की. जब समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नई रिपोर्ट की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया, तो भाजपा नेताओं द्वारा उनकी आलोचना की गई. आलोचना करने वालों में वर्तमान भाजपाई मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी शामिल थे. “दादरी लिंचिंग: बीजेपी डिमांड्स विथड्रावल ऑफ़ कंपनसेशन पेड टू अखलाक्स फैमिली,” एएनआई, 2 जून, 2016, https://indianexpress.com/article/india/india-news-india/bjp-demands-withdrawal-of-compensation-paid-to-akhlaqs-family-2830114/ (16 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[178]अदिति वत्स, “दादरी अक्यूज़्डस बॉडी क्रीमीटेड आफ्टर फैमिली, गवर्नमेंट स्ट्राइक अ डील,” इंडियन एक्सप्रेस, 8 अक्टूबर, 2016, https://indianexpress.com/article/india/india-news-india/dadri-akhlaq-killing-accused-body-cremated-after-family-government-strike-a-deal-3071382/ (16 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[179]मोहम्मद अली, “इलाहाबाद एचसी स्टेज अरेस्ट ऑफ़ अखलाक्स फैमिली इन काउ स्लॉटर केस,” द हिंदू, 26 अगस्त, 2016, https://www.thehindu.com/news/national/other-states/Allahabad-HC-stays-arrest-of-Akhlaques-family-in-cow-slaughter-case/article14591382.ece (17 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[180]अमन शर्मा, “आफ्टर 43 कोर्ट हेअरिंग्स अखलाक्स फैमिली बैंक्स ऑन सुप्रीम कोर्ट फॉर जस्टिस,” इकोनॉमिक टाइम्स, 23 अगस्त, 2018, https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/after-43-court-hearings-akhlaqs-family-banks-on-supreme-court-order-for-justice/articleshow/65509607.cms (29 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[181]मनुवर अंसारी के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, 12 जून, 2018.

[182]आजाद खान के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, 12 जून, 2018.

[183]शफ़क़ आलम, “अख़लाक्स ब्रदर गेट्स ऑफर टू सैटल केस,” टाइम्स ऑफ़ इंडिया, 24 मई, 2018, https://timesofindia.indiatimes.com/city/noida/akhlaqs-brother-gets-offer-to-settle-case/articleshow/64295877.cms (16 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[184]“हापुड़ लिंचिंग केस: एससी आस्क्स पुलिस टू सबमिट रिपोर्ट, प्रोवाइड प्रोटेक्शन टू विटनेस,” टाइम्स ऑफ इंडिया, 13 अगस्त, 2018, https://timesofindia.indiatimes.com/india/hapur-lynching-case-sc-asks-police-to-submit-report-provide-protection-to-witnesses/articleshow/65384259.cms (24 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[185]मकसूद खान के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, जयपुर, राजस्थान, 24 जुलाई, 2018.

[186]एम. एल. परिहार के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, जयपुर, राजस्थान, 24 जुलाई, 2018.

[187]वार्षिक रिपोर्ट: 2017-18, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, http://agricoop.gov.in/sites/default/files/Krishi%20AR%202017-18-1%20for%20web.pdf (6 अगस्त को देखा गया).

[188]वार्षिक रिपोर्ट: 2017-18, कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, http://agricoop.gov.in/sites/default/files/Krishi%20AR%202017-18-1%20for%20web.pdf (6 अगस्त को देखा गया).

[189]वही.

[190]हरीश दामोदरन, “इन  थ्रॉल टू द होली काऊ,” इंडियन एक्सप्रेस, 6 अप्रैल, 2018, https://indianexpress.com/article/opinion/columns/slaughter-of-cows-cattle-rearing-hindu-muslim-white-revolution-5125397/ (10 अगस्त को देखा गया).

[191]हरीश्वर दयाल के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, झारखण्ड, 13 जून, 2018.

[192]शहाबुद्दीन के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, अलवर जिला, राजस्थान, 22 जुलाई, 2018.

[193]पी. साईनाथ के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, नई दिल्ली, 22 अगस्त, 2018.

[194]वही.

[195]एम. एल. परिहार के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, जयपुर, राजस्थान, 24 जुलाई, 2018.

[196]जावेद राही, “व्हाई द अटैक ऑन कश्मीरस पस्तोरालिस्ट्स इज अ बिग  कंसर्न,” DownToEarth, 27 अप्रैल, 2017, https://www.downtoearth.org.in/blog/agriculture/threatening-a-centuries-old-tradition-57703 (8 अक्टूबर, 2018 को देखा गया).

[197]“चिलिंग वीडियो सीम्स टू शो हाउ जम्मू काउ विजिलान्टीज ब्रुटली अटैकड अ फैमिली ऑफ़ नोमेडिक हर्डर्स,” Scroll.in, 23 अप्रैल, 2017, https://scroll.in/article/835441/video-purporting-to-show-cow-vigilantes-attacking-nomadic-herders-in-jammu-emerges (10 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[198]मोहम्मद इकबाल, “2 हर्ट एज काउ विजिलान्टीज स्ट्राइक इन राजस्थान,” द हिंदू, 6 अक्टूबर, 2016, https://www.thehindu.com/news/national/other-states/2-hurt-as-cow-vigilantes-strike-in-Rajasthan/article15470833.ece (10 अगस्त 2018 को देखा गया).

[199]पारस बंजारा, निखिल डे और चेरिल डीसूज़ा, “टायर्ड ऑफ़ पर्सक्यूशन बॉय 'गौरक्षक्स' राजस्थान्स बंजाराज आर रेजिंग देयर वॉइस,” Wire.in, 24 अक्टूबर, 2016, https://thewire.in/rights/gau-raksha-banjara (10 अगस्त 2018 को देखा गया).

[200]राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग के वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी राजेश वर्मा के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, जयपुर, राजस्थान, 24 जुलाई, 2018.

[201]राजस्थान सरकार के पशुपालन विभाग के आंकड़े.

[202]आजाद खान के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, रांची, झारखंड, 12 जून, 2018.

[203]ह्यूमन राइट्स वॉच के दस्तावेजीकरण से पता चलता है कि भारतीय सीमा पर सुरक्षा बलों ने कथित रूप से मवेशी चोरों सहित तस्करों को निशाना बनाने के लिए भारतीय और बांग्लादेशी सीमा के निवासियों के साथ गैर-न्यायिक हत्याओं, यातनाओं और दुर्व्यवहारों सहित कई तरह के उत्पीड़न किए हैं. देखें “ट्रिगर हैप्पी:” एक्स्सेसिव यूज़ ऑफ़ फ़ोर्स बॉय इंडियन ट्रूप्स एट द बांग्लादेश बॉर्डर (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2010), https://www.hrw.org/report/2010/12/09/trigger-happy/excessive-use-force-indian-troops-bangladesh-border

[204]“स्टॉप काउ स्मगलिंग अलोंग इंडो-बांग्ला बॉर्डर, राजनाथ टू बीएसएफ,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 1 दिसंबर 2014, https://www.thehindu.com/news/national/cow-smuggling-along-indiabangladesh-border/article6651881.ece  (5 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[205]“काउ स्मगलिंग हैज टू स्टॉप; बीएसएफ नीड्स टू बी मोर अलर्ट: राजनाथ सिंह,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 20 मई, 2016, https://www.hindustantimes.com/india/cow-smuggling-has-to-stop-bsf-needs-to-be-more-alert-rajnath-singh/story-Dw4bvrRuvKCtt0znai183N.html (5 अगस्त, 2018 को देखा गया). केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने एक सवाल के जवाब में संसद में ये आंकड़े पेश किए. अतारांकित प्रश्न 2465, राज्यसभा, 8 अगस्त, 2018. https://mha.gov.in/MHA1/Par2017/pdfs/par2018-pdfs/rs-08082018-English/2465.pdf

वर्ष

मवेशी तस्करी के मामलों की संख्या

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा जब्त मवेशियों की संख्या

गिरफ्तार व्यक्तियों की संख्या

मवेशी तस्करी के खिलाफ बीएसएफ द्वारा

 दर्ज प्रथम सूचना रिपोर्ट की संख्या

दायर आरोप- पत्रों की संख्या

अंतिम निर्णय/ दोषसिध्द होनेवाले   मामलों की संख्या

2015

17,537

153,602

605

705

429

60

2016

20,903

168,801

670

652

327

48

2017

17,919

119,299

514

437

0

0

2018

(जनवरी –जून)

 4,938

  21,617

 99

 84

0

0

 

[206]शोएब दानियाल, “'बीजेपी इज टेकिंग रिवेंज ऑन मुस्लिम्स': यूपीज क्रैकडाउन हेज लेफ्ट द मीट इंडस्ट्री पैनिक्ड एंड स्केयर्ड,” scroll.in, 26 मार्च, 2017, https://scroll.in/article/832802/bjp-is-taking-revenge-on-muslims-ups-crackdown-has-left-the-meat-industry-panicked-and-scared (7 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[207]वार्षिक रिपोर्ट 2017-18, वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार http://commerce.gov.in/writereaddata/uploadedfile/MOC_636626711232248483_Annual%20Report%20%202017-18%20English.pdf

[208]“अपैरल एंड लेदर इंडस्ट्री की टू जनरेशन ऑफ़ फॉर्मल एंड प्रोडक्टिव जॉब्स: इकॉनोमिक सर्वे 2016-17,” प्रेस सूचना ब्यूरो, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार, 31 जनवरी, 2017, http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=157800 (7 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[209]वही.

[210]एमी काज़मिन, “मोदीज इंडिया: द हाई कॉस्ट ऑफ़ प्रोटेक्टिंग होली काउज,” फाइनेंशियल टाइम्स, 22 नवंबर, 2017, https://www.ft.com/content/63522f50-caf3-11e7-ab18-7a9fb7d6163e; टॉमी विल्क्स और मयंक भारद्वाज, “कैटल स्लॉटर क्रैकडाउन रिपल्स थ्रू इंडियाज लेदर इंडस्ट्री,” रायटर, 14 जून, 2017, https://in.reuters.com/article/uk-india-politics-religion-insight/cattle-slaughter-crackdown-ripples-through-indias-leather-industry-idINKBN1951QQ (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[211]सौरव रॉय बर्मन, “उत्तर प्रदेश्स एनिमल फार्म: एंगर इज ग्रोइंग, सोल्यूसन ड्विन्डलिंग,” इंडियन एक्सप्रेस, 6 जनवरी, 2019, https://indianexpress.com/article/india/up-farmers-stray-cattle-rabi-crops-yogi-adityanath-govt-gaurakshaks-beef-ban-slaughterhouse-ban-5524943/ (15 जनवरी, 2019 को देखा गया).

[212]एमी काज़मिन, “मोदीज इंडिया: द हाई कॉस्ट ऑफ़ प्रोटेक्टिंग होली काउज,” फाइनेंशियल टाइम्स, 22 नवंबर, 2017, https://www.ft.com/content/63522f50-caf3-11e7-ab18-7a9fb7d6163e (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[213]“उत्तर प्रदेश ओफिसिअल्स मिस 10 जनवरी डेडलाइन टू रिलोकेट स्ट्रे कैटल,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 13 जनवरी, 2019, https://timesofindia.indiatimes.com/india/uttar-pradesh-officials-miss-jan-10-deadline-to-relocate-stray-cattle/articleshow/67512964.cms (15 जनवरी, 2019 को देखा गया).

[214]राज्य सरकार ने गौ कल्याण के लिए 2017-18 में 60 करोड़ रुपये और 2018-19 में 95 करोड़ रुपये आवंटित किए और अस्थायी गाय आश्रयों की स्थापना और रखरखाव के लिए धन जुटाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के आठ विभागों पर 0.5 प्रतिशत उपकर(सेस) लगाने का फैसला किया. देखें, “यूपी कैबिनेट गिव्स नोड टू इम्पोज़ काउ वेलफेयर सेस ऑन एट पब्लिक सेक्टर डिपार्टमेंट्स,” इंडियन एक्सप्रेस, 2 जनवरी, 2019, https://indianexpress.com/article/india/uttar-pradesh-cabinet-gives-nod-to-impose-cow-welfare-cess-on-eight-public-sector-depts-5519206/ (16 जनवरी, 2019 को देखा गया).

[215]नीलांशु शुक्ला, “उत्तर प्रदेश गवर्नमेंट टू बिल्ड गौशालाज इन प्रिजन,” इंडिया टुडे, 5 जुलाई, 2018, https://www.indiatoday.in/india/story/uttar-pradesh-government-to-build-gaushalas-in-prisons-1278659-2018-07-05 (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[216]नीरज मोहन और हार्दिक आनंद, “प्रॉब्लम ऑफ़ प्लेंटी इन हरियाणा गौशालाज,” हिंदुस्तान टाइम्स, 19 जुलाई, 2017, https://www.hindustantimes.com/india-news/ht-spotlight-problem-of-plenty-in-haryana-gaushalas/story-y6Q1uIkPcOhj7kHjqMFedJ.html (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[217]हरियाणा सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के एक अधिकारी के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का टेलीफोन द्वारा साक्षात्कार, 18 सितंबर, 2018.

[218]“हरियाणा गवर्नमेंट टू सेट अप 'गौशाला' इन आल जेल्स: मनोहर लाल खट्टर,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया, 3 मई, 2018, https://www.ndtv.com/india-news/haryana-government-to-set-up-gaushalas-in-all-jails-haryana-chief-minister-manohar-lal-khattar-1846802 (11 अगस्त, 2018 को देखा गया). “सेटिंग अप गौशालाज ऑन सरप्लस जेल लैंड विल नोट हेल्प प्रिजनर्स,” हिंदुस्तान टाइम्स, 19 जून, 2017, (अंतिम बार 12 दिसंबर, 2018 को देखा गया).

[219]राजस्थान सरकार के गोपालन निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, 24 जुलाई, 2018.

[220]वही.

[221]राहुल नोरोन्हा, “टिल द काउज कम होम: कैन गौशालाज सोल्व फार्मर्स वूज?,” इंडिया टुडे मैगज़ीन, 22 मार्च, 2018, https://www.indiatoday.in/magazine/the-big-story/story/20180402-uttar-pradesh-yogi-adityanath-cow-shelter-budget-gaushalas-1196432-2018-03-22 (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[222]मिलिंद घाटवई, “नो फंड्स ऑर मैनपावर: फर्स्ट काउ सैंक्चुअरी सेज कांट टेक इन मोर,” इंडियन एक्सप्रेस, 30 जुलाई, 2018, https://indianexpress.com/article/india/no-funds-or-manpower-first-cow-sanctuary-says-cant-take-in-more-5282277/ (11 अगस्त 2018 को देखा गया).

[223]बी विजय मूर्ति, “झारखंड टू डबल मोनेटरी सपोर्ट टू गौशालाज,” हिंदुस्तान टाइम्स, 7 जून, 2016, https://www.hindustantimes.com/ranchi/jharkhand-to-double-monetary-support-to-gaushalas/story-zrGu3I0WOjuXjhPOhCxVzI.html (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[224]जीशान शेख, “महाराष्ट्र गवर्नमेंट टू स्पेंड रुपीज 34 करोड़ फॉर काउ शेल्टर्स,” इंडियन एक्सप्रेस, 29 अप्रैल, 2017, https://indianexpress.com/article/india/maharashtra-government-to-spend-rs-34-crore-for-cow-shelters-4632658/ (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).

[225]“यूनियन मिनिस्टर अक्यूजेज पंजाब गवर्नमेंट ऑफ़ डिसकंटीन्यूइंग फ्री इलेक्ट्रिसिटी फॉर गौशालाज,” प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, 24 जून, 2018, https://energy.economictimes.indiatimes.com/news/power/union-min-accuses-punjab-govt-of-discontinuing-free-electricity-for-gaushalas/64717616 (11 अगस्त, 2018 को देखा गया). दिव्या गोयल, “नो फ्री पॉवर टू गौशालाज इन पंजाब: गौसेवा चीफ क्वेश्चन्स काउ सेस कलेक्शन, राइटस टू पॉवर यूटिलिटी,” इंडियन एक्सप्रेस, 15 अगस्त, 2018, https://indianexpress.com/article/cities/no-free-power-to-gaushalas-in-state-gau-sewa-chief-questions-cow-cess-collection-writes-to-power-utility-4797133/ (11 अगस्त, 2018 को देखा गया).