Skip to main content

भारत: नागरिकता विधेयक में मुसलमानों के साथ भेदभाव

मसौदा क़ानून में हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिम आप्रवासियों की तरफदारी

भारत के गुवाहाटी में नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन, 10 दिसंबर, 2019. © 2019 एपी फोटो/अनुपम नाथ
ताज़ा जानकारी: 11 दिसंबर को भारतीय संसद के ऊपरी सदन ने भी इस विधेयक को पारित कर दिया. भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद अब यह कानून बन जाएगा.


(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करने वाला भारत सरकार का प्रस्तावित कानून भारत के अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करता है. नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 पड़ोसी मुस्लिम बहुल देशों – अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान – से आने वाले सिर्फ गैर-मुस्लिम अनियमित आप्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करता है.

यह विधेयक 9 दिसंबर को संसद के निचले सदन से पारित हो गया और 11 दिसंबर को उच्च सदन में पेश किया जाएगा. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने गैर-मुस्लिम प्रवासियों को अलग से तरजीह देने को यह कह कर जायज़ ठहराया है कि प्रस्तावित कानून में पड़ोसी देशों से उत्पीड़न के कारण भाग रहे धार्मिक अल्पसंख्यकों को शरण दिया जाएगा.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “पाकिस्तान के अहमदिया और म्यांमार के रोहिंग्या को नागरिकता से बाहर रखना भारत सरकार के इस दावे को खोखला बना देता है कि नागरिकता कानून का मकसद धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है. विधेयक शरण और आश्रय देने की बात तो करता है, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है.”

यह विधेयक मुसलमानों की कीमत पर बहुसंख्यक हिंदुओं का पक्षपात करने वाली भाजपा सरकार द्वारा प्रोन्नत धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों में संलिप्त पार्टी समर्थकों के समुचित अभियोजन की विफलता जैसी कई अन्य नीतियों को भी प्रतिबिम्बित करता है. सरकार ने रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को उनके जीवन और सुरक्षा के जोखिम के बावज़ूद म्यांमार में निर्वासित किया है.

भाजपा नेताओं ने चुनावी समर्थन हासिल करने के लिए मुस्लिम प्रवासियों और शरणागतों को “घुसपैठिया” बताने के साथ-साथ उन्हें खलनायक के बतौर चित्रित किया है. उदाहरण के लिए, सितंबर 2018 में दिल्ली की एक चुनावी रैली में गृह मंत्री अमित शाह ने बांग्लादेश से आए मुस्लिम प्रवासियों की ओर इशारा करते हुए कहा, “अवैध अप्रवासी दीमक की तरह हैं, वे हमारे गरीबों का खाना हज्म कर रहे हैं और हमारी नौकरियां छीन रहे हैं. वे हमारे देश में धमाकों को अंजाम देते हैं और हमारे कई लोग मारे जाते हैं.” उन्होंने वादा किया कि, “अगर 2019 में हम सत्ता में आते हैं, तो एक-एक को ढूंढ निकालेंगे और वापस भेज देंगे. उनके खिलाफ कार्रवाई से किसी भी देशभक्त को चिंता नहीं होनी चाहिए.”

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019, नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करता है जिससे कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी समुदायों के अनियमित आप्रवासी नागरिकता के योग्य बन सकें, लेकिन यह मुसलमानों को इससे बाहर कर देता है. सरकार मुसलमानों, जो इसके मुताबिक अवैध प्रवासी हैं, और “शरणार्थी” अर्थात् अपने मूल देश में उत्पीड़न से बचने की कोशिश में भाग कर बच निकले मुख्यतः हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन, के बीच फर्क करती है. संसद में विधेयक का बचाव करते हुए शाह ने कहा, “शरणार्थी और घुसपैठिए के बीच एक बुनियादी अंतर है. यह विधेयक शरणार्थियों के लिए है.”

जनवरी में, विधेयक की समीक्षा करने वाली संयुक्त संसदीय समिति के कई विपक्षी सांसदों ने कहा था कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15, जो कि समानता और भेदभाव से सुरक्षा के अधिकार की गारंटी करते हैं, का उल्लंघन करता है.

9 दिसंबर को संसदीय बहस के दौरान, विपक्ष के कई नेताओं ने देश के मूलभूत मूल्यों पर हमला बताते हुए विधेयक का विरोध किया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा, “यह भारत में एक पूरे समुदाय को निशाना बनाने और मताधिकार से वंचित करने की महज एक विद्वेषपूर्ण राजनीतिक कवायद है और ऐसा करना हमारी सभ्यता की तमाम अच्छाइयों और महानता के साथ विश्वासघात है.”

यह विधेयक भाजपा सरकार द्वारा राष्ट्रव्यापी नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को आगे बढ़ाने की कोशिशों के बीच आया है, जो कि अनियमित प्रवासियों की पहचान करेगा और सरकार के बयान इशारा करते हैं कि इसका मकसद मुसलमानों को उनके मताधिकार तथा नागरिकता अधिकारों से वंचित करना है. शाह ने बताया कि यह विधेयक हिंदुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा. अक्टूबर में शाह ने कहा था, “मैं सभी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि आपको केंद्र [सरकार] द्वारा भारत छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा. अफवाहों पर विश्वास न करें. एनआरसी से पहले, हम नागरिकता संशोधन विधेयक लाएंगे, जो सुनिश्चित करेगा कि इन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त हो.”

भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर ने पहले ही लगभग बीस लाख लोगों को मनमाने ढंग से नजरबंदी और राज्यविहीन नागरिक होने के लिए छोड़ दिया है. अगस्त में, असम में नृजातीय बंगाली निवासियों के खिलाफ असमिया समूहों के बार-बार विरोध और हिंसा के बाद एनआरसी की प्रक्रिया पूरी की गई. असमिया समूहों का कहना है कि नृजातीय बंगाली असम के मूल निवासियों के सांस्कृतिक, नृजातीय और आर्थिक अधिकारों को प्रभावित कर रहे हैं. हालांकि, नागरिक सूची से बाहर किए गए बीस लाख लोगों में हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं. भाजपा ने संकेत दिया है कि वह नए नागरिकता कानून को असम के एनआरसी में छूट गए बंगाली भाषी हिंदुओं के लिए समाधान के रूप में देखती है. भाजपा सांसद दिलीप कुमार पॉल ने कहा, “भाजपा का मानना है कि हिंदू कभी भी विदेशी नहीं हो सकते.”

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित कानून की निंदा हुई है. अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भी इसकी निंदा की है. इसने कहा है कि यदि विधेयक पारित हो जाता है, तो अमेरिकी सरकार को “गृह मंत्री और अन्य प्रमुख नेताओं के खिलाफ प्रतिबंधों पर विचार करना चाहिए.”

प्रस्तावित कानून नस्ल, रंग, वंश या राष्ट्रीय या नृजातीय मूल के आधार पर नागरिकता से वंचित करने से रोकने के भारत के उन अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करता है जैसा कि नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय समझौतों (आईसीसीपीआर) तथा अन्य मानवाधिकार संधियों में तय किया गया है. राष्ट्रीय या नृजातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित 1992 की घोषणा में देशों के लिए अपने-अपने भू-क्षेत्रों के भीतर धार्मिक अल्पसंख्यकों के अस्तित्व और पहचान की रक्षा करने और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समुचित कदम उठाने का दायित्व सुनिश्चित किया गया है. सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित अन्य अल्पसंख्यक समूहों के लोग कानून के समक्ष बगैर भेदभाव और पूरी समानता के साथ अपने मानवधिकारों का प्रयोग कर सकें.

गांगुली ने कहा, “भारत सरकार लाखों मुस्लिमों से नागरिकता तक समान पहुंच के बुनियादी अधिकार छीनने के लिए कानूनी आधार तैयार कर रही है. सरकार को एक ऐसा कानून पारित करके शरणार्थियों की रक्षा हेतु अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिए जो धर्म पर विचार किए बिना उनकी सुरक्षा करता हो.”

GIVING TUESDAY MATCH EXTENDED:

Did you miss Giving Tuesday? Our special 3X match has been EXTENDED through Friday at midnight. Your gift will now go three times further to help HRW investigate violations, expose what's happening on the ground and push for change.
Region / Country