(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार को तुरंत सभी पुलिस बलों को आदेश देना चाहिए कि वे जन सभाओं के नियंत्रण संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करें. यह मुमकिन है कि 12 दिसंबर, 2019 को अधिनियमित भेदभावपूर्ण नागरिकता संशोधन कानून का देश भर में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस ने अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया हो.
सरकार को चाहिए कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा अत्यधिक बल के इस्तेमाल, क्रूरता और विध्वंसात्मक कारगुज़ारियों के आरोपों की विश्वसनीय स्वतंत्र जांच करे.
दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “अत्यधिक बल का इस्तेमाल कर के विरोध प्रदर्शनों को दबाने के बजाय भारत सरकार को नागरिकता कानून के बारे में प्रकट की जा रही चिंताओं को दूर करना चाहिए. पुलिस को अब तक समझ लेना चाहिए कि प्रदर्शनकारियों पर क्रूरतापूर्ण कार्रवाई और अधिक हिंसा को ही बढ़ावा देती है.”
नया संशोधित कानून पड़ोस के मुस्लिम-बहुल देशों - अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के केवल गैर-मुस्लिम अनियमित प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है. देश भर में प्रदर्शनकारी, जिनमें कई विश्वविद्यालयों के छात्र शामिल हैं, नागरिकता कानून को असंवैधानिक और विभाजनकारी बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग कर रहे हैं.
11 दिसंबर को संसद में कानून पारित होने के तुरंत बाद शुरु हुए विरोध प्रदर्शनों में अब तक छह लोग मारे गए हैं. सबसे पहले विरोध प्रदर्शन भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में शुरु हुए और खबरों के मुताबिक़ वहां पुलिस की गोलीबारी में चार लोग मारे गए हैं. पश्चिम बंगाल में इस कानून के खिलाफ कुछ स्थानों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन भड़क उठे हैं. साथ ही, दिल्ली, मुंबई और बंगुलुरु सहित पूरे देश में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं.
असम में पुलिस ने 175 लोगों को गिरफ्तार किया है और 1,460 अन्य लोगों को निरोधात्मक हिरासत में रखा है. पुलिस अधिकारियों सहित दर्जनों लोग घायल हुए हैं.
15 दिसंबर को पुलिस ने दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अंदर प्रदर्शनकारी छात्रों पर आंसूगैस के गोले छोड़े. विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि पुलिस बिना इजाज़त विश्वविद्यालय में घुस गई और पुस्तकालय और छात्रावासों में छात्रों को निशाना बनाया तथा छात्रों और कुछ कर्मचारियों की पिटाई की. विश्वविद्यालय से सटे एक रिहायशी इलाके से एक वीडियो सामने आया है जिसमें पुलिस एक शख्स की बेरहमी से पिटाई कर रही है जबकि छात्राएं उसे बचाने की कोशिश कर रही हैं और पुलिस को पीछे हटा रही हैं. इस वीडियो ने भी पुलिस कार्रवाई पर सवाल खड़े किए हैं.
पुलिस ने दावा किया कि उसने ज्यादा से ज्यादा संयम बरता और छात्रों द्वारा हिंसक प्रदर्शन, पत्थरबाज़ी तथा सार्वजनिक वाहनों को नुकसान पहुंचाने के बाद कार्रवाई के लिए मजबूर हुई. विश्वविद्यालय के कुलपति ने हिंसा की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है. विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी बयान जारी कर खुद को हिंसा से अलग कर लिया है, उन्होंने कहा: “हमने तब भी शांति बनाई रखी जब छात्रों पर लाठी चार्ज किया गया और महिला प्रदर्शनकारियों को बुरी तरह से पीटा गया.”
जामिया मिलिया इस्लामिया में हुए विरोध प्रदर्शन में छात्रों और पुलिस सहित लगभग 60 लोग घायल हुए हैं. दिल्ली पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सैकड़ों लोगों ने दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया. भारत के कई शहरों में अनेक छात्र जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सड़कों पर उतर आए हैं.
15 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सैकड़ों छात्रों और पुलिस के बीच झड़प हुई और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया और आंसूगैस के गोले छोड़े. झड़प में पुलिस अधिकारी भी घायल हुए. यह देखा गया कि बदले की भावना से पुलिस ने रात के समय विश्वविद्यालय गेट के बाहर पार्क की गई मोटरसाइकिलों के साथ तोड़-फोड़ किया.
शांतिपूर्ण सभा और विरोध-प्रदर्शन का अधिकार अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत संरक्षित एक मौलिक अधिकार है और मानवाधिकार और कानून के शासन के प्रति सम्मान पर निर्मित समाज की नींव का एक पत्थर है. अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के मुताबिक कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इस अधिकार की रक्षा करनी चाहिए और इसे सुगम बनाना चाहिए और जहां तक संभव हो, बल प्रयोग से पहले अहिंसक तरीकों को आज़माना चाहिए.
ह्यूमन राइट्स वॉच प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस द्वारा अनावश्यक या अत्यधिक बल प्रयोग की घटनाओं पर चिंतित है. हालांकि कुछ प्रदर्शनकारियों की कार्रवाई बल प्रयोग हेतु पुलिस को औचित्य प्रदान कर सकती है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानक बल प्रयोग को उन स्थितियों तक सीमित करते हैं जिनमें यह बहुत आवश्यक हो. कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा बल प्रयोग और आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल संबंधी संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों के मुताबिक कानून प्रवर्तन अधिकारी केवल तभी बल प्रयोग कर सकते हैं यदि अन्य तरीकों का कोई असर नहीं होता या इच्छित परिणाम प्राप्त करने का और कोई तरीका नहीं बचता. बल प्रयोग करते समय, कानून प्रवर्तन अधिकारियों को संयम बरतना चाहिए तथा अपराध की गंभीरता के अनुपात में और वैध उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्रवाई करनी चाहिए. घातक बल का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब जान पर आसन्न खतरा हो.
सरकार ने पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के विभिन्न जिलों में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया है. उसका दावा है कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है. भारत ने विरोध-प्रदर्शनों के जवाबी कार्रवाई के तौर पर अक्सर इंटरनेट सेवा बंद की है, और जैसाकि ह्यूमन राइट्स वॉच और अन्य संस्थाओं द्वारा एकत्रित तथ्य व आंकड़े बताते हैं, ये प्रतिबंध व्यापक रूप से असंगत और अनावश्यक रहे हैं तथा अभिव्यक्ति और सभा करने की स्वतंत्रता के अधिकारों समेत भारत के अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करते हैं.
ये प्रतिबंध आवश्यक गतिविधियों और सेवाओं तक पहुंच को भी प्रभावित करते हैं, जिनमें आपातकालीन सेवा और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, मोबाइल बैंकिंग और ई-कॉमर्स, परिवहन, स्कूल की कक्षाएं, बड़ी संकटकालीन स्थितियों और घटनाओं की रिपोर्टिंग तथा मानवाधिकार जांच शामिल हैं.
नागरिकता संशोधन अधिनियम की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई है. इनमें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय शामिल है, जिसने भारत सरकार से शांतिपूर्ण सभा के अधिकार का सम्मान करने और प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मानकों का पालन करने का आग्रह किया है. यह कानून सरकार द्वारा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, राष्ट्रव्यापी नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की कोशिशों के बीच पारित कराया गया है, जो कि अनियमित प्रवासियों की पहचान करेगा और सरकार के बयान इशारा करते हैं कि इसका मकसद मुसलमानों को उनके मताधिकार तथा नागरिकता अधिकारों से वंचित करना है.
गांगुली ने कहा, “इन विरोध-प्रदर्शनों से साफ़ है कि भारत सरकार बुनियादी अधिकारों में कटौती पर जनता के बीच फ़ैल रहे विरोध को समझने में नाकाम रही है. सरकार की तरफ से इन विरोध-प्रदर्शनों का सबसे मजबूत जबाब यह होगा कि वह नागरिकता कानून को निरस्त करे और सीमांत समुदायों में खौफ़ पैदा करने वाली नागरिकता सत्यापन की अपनी योजना वापस ले.”