मीनाक्षी गांगुली
मीनाक्षी गांगुली ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक हैं. वह इस क्षेत्र में संगठन का काम-काज देखती हैं. 2010 में दक्षिण एशिया निदेशक के रूप में कार्यभार संभालने से पहले उन्होंने 2004 से ह्यूमन राइट्स वॉच के दक्षिण एशिया शोधकर्ता के रूप में कार्य किया.
गांगुली ने पुलिस सुधार, यौन हिंसा, धर्म या जाति आधारित भेदभाव, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सशस्त्र संघर्ष सहित व्यापक मुद्दों पर काम किया है. भारत में, उन्होंने गुजरात में सांप्रदायिक दंगों के दौरान हुए उत्पीड़न, पंजाब में न्याय के आभाव, धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों, माओवादी संघर्ष से प्रभावित लोगों सहित भारत के कमजोर समुदायों की सुरक्षा की विफलता और मणिपुर एवं जम्मू और कश्मीर में संघर्ष से जुड़े उत्पीड़न पर शोध किया है. उन्होंने यौन उत्पीड़न सहित महिलाओं और बच्चों की हिंसा से सुरक्षा और भारत की विदेश नीति में मानवाधिकार दृष्टिकोण की भी वकालत की है.
नेपाल में गांगुली लगातार सशस्त्र संघर्ष के दौरान अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही तय करने और सरकारी बलों एवं माओवादी लड़ाकों के ऐसे सदस्यों, जिनके खिलाफ़ उत्पीड़न के मामले हैं, को क़ानून के कठघरे में लाने के लिए सुधार हेतु प्रयास कर रही हैं. श्रीलंका में युद्ध की समाप्ति के बाद, उन्होंने इसकी वकालत की कि श्रीलंकाई सेना और साथ ही तमिल टाइगर्स के ऐसे सदस्यों को ज़िम्मेदार ठहराया जाए जिन्होंने मानवाधिकारों का हनन किया है. गांगुली ने नेपाल में भूटानी शरणार्थियों के मुद्दे और साथ ही भूटान में रहने वाले नृजातीय नेपाली नागरिकों के साथ भेदभाव पर शोध किया है. उन्होंने बांग्लादेश में मानवाधिकारों के उल्लंघन का दस्तावेजीकरण किया है और श्रम अधिकारों के बेहतर संरक्षण पर ज़ोर दिया है. इसके आलावा, संघर्ष के दौरान बच्चों की सुरक्षा, एचआईवी/एड्स संक्रमित व्यक्तियों के साथ भेदभाव और समलैंगिक पुरुषों के अधिकारों जैसे मुद्दों पर काम किया है. उनके लेख कई समाचार पत्र, वेबसाइट और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच से जुड़ने से पहले गांगुली टाइम मैगज़ीन की दक्षिण एशिया संवाददाता थीं. उनका कार्य क्षेत्र अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका था. गांगुली दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं.
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