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People wait to get tested for Covid-19 in Hyderabad, India. A crowd stands before two health care workers.

साक्षात्कार: भारत में कोविड-19 लहर के दौर का मानवाधिकार संकट

हैदराबाद में कोविड-19 जांच के लिए इंतजार करते लोग, भारत, 25 अप्रैल, 2021. © 2021 एपी फोटो/महेश कुमार ए.

भारत में कोविड-19 संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप रिकॉर्ड संख्या में नए मामलों के आने के साथ-साथ दवा, ऑक्सीजन और टीके की आपूर्ति में भारी किल्लत से कोहराम मचा हुआ है. यह मानवीय संकट भारत में मानवाधिकार के आधारभूत मुद्दों को कैसे उजागर कर रहा है और अभी क्या करने की आवश्यकता है - इस पर दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली के साथ एमी ब्रॉनस्वेगर ने बातचीत की.

कोविड -19 की वजह से अभी भारत में कैसे हालात हैं?

यह विनाशकारी है. बीते एक साल से, हम दुनिया भर से, चाहे लंदन हो या न्यूयॉर्क या साओ पाओलो, ऐसे सहकर्मियों और दोस्तों से ख़बरें सुन रहे हैं, जो बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. अनेक  लोगों ने दोस्तों को खोया या खुद बीमार हुए हैं. लेकिन वास्तव में मुश्किल यह है कि भारत में 2020 तक उतने गंभीर मामले सामने नहीं आए थे, और शायद सरकारी तंत्र ने यह मानना शुरू कर दिया कि खतरा खत्म हो गया है, और इसलिए उन्होंने आगे के लिए तैयारी नहीं की. अब भारत में लोग कोविड-19 से मर रहे हैं, क्योंकि उन्हें बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी अस्पताल में इलाज़, दवा या ऑक्सीजन सपोर्ट नहीं मिल रहा है. इस अभाव का सिलसिला मौत के बाद भी जारी रहता है: लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने या उन्हें दफनाने के लिए घंटों इंतजार करते हैं. भले ही भारत के पास खुद को तैयार करने और दुनिया भर के अनुभवों से सबक सीखने के लिए एक साल का समय था, लेकिन ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इसमें विफल रही है. इसलिए यह इतना भयावह है. बहुतेरी जिंदगियां बचाई जा सकती थीं.

 

आलोचना पर सरकार की कार्रवाई ने कैसे संकट को और गहरा कर दिया है?

ऐसा लगता है मोदी सरकार को संकट से ज्यादा अपनी छवि की परवाह है. खबरों के मुताबिक कोविड-19 संकट से जुड़ी अप्रिय चर्चाओं और बयानों से निपटने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकें हो रही हैं. जब दिल्ली सरकार के वकील ने आपूर्ति की कमी के बारे में शिकायत की, तो भारत के महाधिवक्ता ने उन्हें “बच्चों की तरह रोना-धोना बंद करने” को कहा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आपूर्ति में कमी के बारे में सोशल मीडिया पर शिकायत करने वाले लोगों के खिलाफ देश के कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के इस्तेमाल की बात कही. उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला भी दायर किया, जिसने ट्विटर पर मौत से लड़ते अपने दादा को ऑक्सीजन दिलाने की अपील की. उन्होंने ऐसे तीन पत्रकारों को नोटिस भी भेजा जिन्होंने एक प्रभावित जिले के अधिकारियों द्वारा कुछ ऑक्सीजन आपूर्ति कहीं और भेजने की खबर लिखी.

सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और कहा है कि सोशल मीडिया पर मदद मांगने वाले किसी नागरिक के खिलाफ पुलिस अगर कार्रवाई करती है तो वह इसे अवमानना मानेगा. लेकिन वास्तव में, अगर लोग, यहां तक कि स्वास्थ्यकर्मी, चुप रहने को मजबूर होते हैं, तो सरकारी तंत्र को कैसे पता चलेगा कि किसे मदद की ज़रूरत है?

भारत की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार के पास संसद में विशाल बहुमत है और उसे पूरे विश्वास के साथ अधिकारों को बरकरार रखना चाहिए. इसके बावजूद, अपनी विफलताओं की आलोचना पर यह ऐसी किसी भी कार्रवाई पर उतारू हो जाती जो इसकी छवि खराब कर सकती है. लेकिन यह एक महामारी है. आप मौतों और लंबे समय से मौत से लड़ रहे लोगों को केवल कुछ ही समय तक छिपा सकते हैं. सरकार को इस समय अपनी छवि चमकाने की चिंता नहीं करनी चाहिए. इसे सभी के जीवन को बचाने के लिए समान रूप से काम करना चाहिए.

 

सरकार को क्या करना चाहिए?

दुनिया भर से बड़े पैमाने पर मिल रही मदद के जरिए, सरकार को चाहिए कि चिकित्सा संबंधी कमियां दूर करने के लिए इस मदद का समुचित वितरण सुनिश्चित करे. हाल ही में ऐसी खबरें आईं कि राज्य सरकारें इस बात को लेकर अचंभित हैं कि विदेशों से पहुंची मदद के साथ क्या हो रहा है. ऐसी अंतर्राष्ट्रीय सहायता केंद्र सरकार के दायरे में आती है.

हम खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के बारे में चिंतित हैं. डर यह है कि हालिया चुनावी रैलियों, धार्मिक उत्सवों और अन्य बड़े समारोहों में भाग लेने वाले लोग ग्रामीण इलाकों में अपने-अपने घर लौटेंगे और अपने साथ वायरस भी लाएंगे. अगर गांवों में ऐसा होता है, तो यह विनाशकारी हो सकता है. ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा कोविड-19 के इस घातक प्रसार को संभालने के लिए बिल्कुल अपर्याप्त है जब तक कि सरकार आवश्यक संसाधनों और चिकित्सा आपूर्तियों का तुरंत इंतजाम नहीं करती है.

उन भीड़ भरी चुनाव रैलियों में से कुछ का, जिनमें प्रधानमंत्री सहित महत्वपूर्ण नेता शामिल हुए,  व्यापक रूप से टीवी पर प्रसारण किया गया. यह वही समय था जब जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ सुरक्षित उपायों को अपनाने की सिफारिश कर रहे थे. इन सबसे जनता में विरोधाभास भरे  संदेश गए. नेतृत्व को सामने आकर अब यह कहना चाहिए कि बड़े पैमाने पर रैलियां आयोजित करना गलत निर्णय था, वायरस के प्रसार को कम करने के लिए जांच और अन्य उपायों को अमल में लाना जरूरी है और मास्क पहनने सहित अन्य सुरक्षा उपायों का पालन किया जाना चाहिए. उन्हें टीकाकरण को बढ़ावा देना चाहिए और इसे व्यापक रूप से उपलब्ध कराना चाहिए. लेकिन इस संदेश का अर्थ है गलती को स्वीकार करना. हम ऐसा होता नहीं देख रहे हैं.

भारत घनी आबादी वाला देश है. देश के अनेक हिस्सों में लोग तंग बस्तियों और छोटे-छोटे घरों में रहते हैं. इसलिए सुरक्षित तरीकों पर अमल करना बेहद मुश्किल है. लिहाजा, राज्य को चाहिए कि ऐसे लोगों की कठिनाइयों को समझे और लोगों को अपना जीवन सुरक्षित बनाने में मदद के लिए अपनी ज्यादा ऊर्जा लगाए.

 

भारत में ऑक्सीजन समेत चिकित्सा आपूर्ति की भारी कमी है. ये कैसे हुआ?

सरकार के अनुसार, यह कमी मौजूदा आपूर्ति की तुलना में उसके वितरण से ज्यादा जुड़ी हुई है. लेकिन अगर ऐसा है, तो आपूर्ति श्रृंखला अभी तक दुरुस्त क्यों नहीं की गई है? लोग अभी भी दवाओं और ऑक्सीजन के लिए क्यों मारे-मारे फिर रहे हैं? शायद शुरू में सरकारी तंत्र इस बात से अनजान रहा कि महामारी कितनी तेजी से फैल सकती है, यह जानने के बावजूद कि यूरोप और अन्य जगहों पर दूसरी लहर के दौरान क्या हुआ. लेकिन भारत के पास संसाधनों की कमी नहीं है. उदाहरण के लिए, महामारी से निपटने में सरकार की मदद के लिए पीएम-केयर्स फंड को भारी दान मिला. लेकिन सरकार इस पैसे के इस्तेमाल के बारे में पारदर्शी नहीं रही है, जिससे लोगों अचंभित हैं कि इन समस्याओं को दूर करने में इतना समय क्यों लग रहा है? हम चिंतित हैं कि सरकार ने शुरू में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई हेतु तंत्र स्थापित करने और विशेषज्ञों के साथ परामर्श करने के बजाय अप्रिय खबरों को नकारने या छिपाने पर ध्यान केंद्रित किया.

 

भारत कोविड-19 वैक्सीन का सबसे बड़ा निर्माता है, लेकिन केवल दो प्रतिशत भारतीयों का ही पूरी तरह से टीकाकरण हुआ है और टीका निर्माण के लिए कच्चा माल ख़त्म हो रहा हैं. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कैसे मदद कर सकता है?

भारत “दुनिया की फार्मेसी” के रूप में दिखना चाहता है. लेकिन ऐसे गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट के दौरान, यह उम्मीद करना बिल्कुल व्यवहारिक नहीं है कि भारतीय निर्माण अकेले अपने और दर्जनों विकासशील देशों के लिए टीके उपलब्ध करा सकता है.

भारत की निर्माण क्षमता का अभी पूरा इस्तेमाल किया जाना बाकी है. लेकिन जटिल वैश्विक बौद्धिक संपदा और व्यापार नियम, और साथ ही दवा कंपनियों की विशिष्ट लाइसेंस कार्यप्रणालियों ने तेजी से निर्माण की क्षमता पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच और कई अन्य संगठन दक्षिण अफ्रीका और भारत के अक्टूबर 2020 के उस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं जिसमें वैश्विक स्तर पर पर्याप्त टीकाकरण होने तक चिकित्सा उत्पादों के लिए कुछ बौद्धिक संपदा अधिकारों में छूट की मांग की गई है. संयुक्त राज्य अमेरिका और न्यूजीलैंड ने हाल ही में इस छूट के अनुरोध का समर्थन किया है. हमें उम्मीद है कि और भी देश अपना विरोध वापस लेंगे और इस प्रभावी छूट को अंतिम रूप देने के लिए जल्दी और पारदर्शी तरीके से आगे बढ़ेंगे.

कोविड-19 महामारी का प्रकोप बढ़ने पर भारत सरकार ने घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए टीकों के निर्यात पर पाबंदी लगा दी, जिसका दर्जनों देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ा, जिनकी आपूर्ति सीमित कर दी गई या इसमें देरी हुई. इसमें ऐसी सरकारें शामिल हैं जिन्हें कोवैक्स नामक वैक्सीन-आपूर्ति की वैश्विक पहल के तहत भारतीय निर्माता, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, से वैक्सीन मिलनी है.

बेशक, अगर भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव के बाद बौद्धिक संपदा अधिकारों में जल्द ही छूट दे दी जाती, तो शायद अभी दुनिया भर के लोगों के लिए अधिक टीके उपलब्ध होते. महामारी का एक सबक यह कि वायरस सरहदों का ख्याल नहीं रखता है. दुनिया भर में अधिक-से-अधिक लोगों को जल्दी-से-जल्दी टीकाकरण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हित में है.

 

चिंतित सरकारें भारत में लोगों की मदद के लिए क्या कर सकती हैं?

चिंतित सरकारें कोविड-19 महामारी से निपटने में भारत की कई तरह से सहायता कर सकती हैं.

भारत में अच्छी-खासी मदद पहुंच रही है. लेकिन सरकारें इसके लिए दबाव डाल सकती हैं कि जरुरतमंदों तक मदद पहुंचना सुनिश्चित करना राज्य की जवाबदेही है.

सरकार को उन मौजूदा प्रतिबंधों को हटा देना चाहिए जो घरेलू संगठनों को विदेशी अनुदान और सहायता प्राप्त करने से रोकते हैं. भारतीय समूहों को महत्वपूर्ण विदेशी अनुदान प्राप्त करने से रोकने वाले नियामक उपायों ने महामारी से निपटने में अपने लक्षित समुदायों की मदद करने की उनकी क्षमता को बुरी तरह सीमित कर दिया है.

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सरकार से मानवाधिकारों की रक्षा, विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के संरक्षण के बारे में भी पूछना चाहिए. सरकारी तंत्र ने बार-बार सरकार के शांतिपूर्ण आलोचकों पर राजद्रोह और अन्य अपराधों के तहत मामले दर्ज किए हैं. और इसके साथ ही, उन्होंने हाशिए के समूहों के खिलाफ नफरत और हिंसा भड़काने वाले सरकार के  समर्थकों को बचाया है.

चूंकि कोविड-19 मामले भीड़भाड़ वाली जेलों में तेजी से बढ़ते हैं, विदेशी सरकारों को चाहिए कि भारतीय सरकार को संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए कहें जिससे कि कैदियों की संख्या घटा कर कोविड-19 प्रसार को कम किया जा सके. उन्हें राजनीति से प्रेरित आरोपों में हिरासत में लिए गए मानवाधिकार रक्षकों और अन्य कार्यकर्ताओं को भी तुरंत रिहा करने की मांग करनी चाहिए.

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भारत सरकार पर इस बात के लिए भी दबाव डालना चाहिए कि अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को निशाना बनाने वाली अपनी उत्पीड़नकारी और भेदभावपूर्ण नीतियों का अंत करे.

सरकार को दलितों, आदिवासियों और हाशिए के अन्य समूहों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कदम उठाने चाहिए, इन समूहों के समक्ष आजीविका खोने का खतरा ज्यादा है या महामारी के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं तक पर्याप्त पहुंच नहीं है.

भारत सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए पुनः तैयारी करने की जरूरत है कि भारत में हर किसी के पास महामारी से बचने के लिए आवश्यक सहायता उपलब्ध हो. सरकारी तंत्र के लिए, इसका मतलब है वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठना और कुशल, सक्षम और निष्पक्ष प्रशासक बनने पर ध्यान केंद्रित करना.

महामारी ने अत्यंत महत्वपूर्ण, जीवनरक्षक आपूर्ति की कमियों को उजागर किया है जिन्हें दूर करने में भारत को मदद करने वाले बहुत कुछ कर सकते हैं. लेकिन इस मानवीय संकट ने मानवाधिकारों से जुड़ी कमजोरियों को भी उजागर किया है, भारत सरकार को चाहिए कि इन्हें दूर करे ताकि महामारी पर सफलतापूर्वक काबू पाया जा सके.

*यह साक्षात्कार संपादित और संक्षिप्त किया हुआ है.

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