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भारत के ग्रामीण इलाकों में लावारिश पड़ी लाशें कोविड-19 से होनेवाली मौतों में बेतहाशा वृद्धि का संकेतक

सरकारी तंत्र को चाहिए कि दिशाहीन, उत्पीड़नकारी नीतियों के बजाय समाधान पर जोर दे

प्रयागराज में गंगा नदी के तट पर उथले कब्रों में दफनाए गए शवों के बगल में खड़े पुलिसकर्मी, भारत, 15 मई, 2021.  © कुमार सिंह/एपी फोटो

उत्तर भारत में नदियों के तट पर सैकड़ों लाशें, जिनमें अनेक के बारे में कोविड-19 से होनेवाली मौतों की आशंका है, लावारिश छोड़ी जा रही हैं. स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि लाशों के सड़ने से यह पता लगाना मुश्किल है कि ये मौतें कोरोना वायरस से हुई हैं. लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि संभवतः बीमारी के डर और दाह संस्कार के लिए पैसों की कमी के कारण परिजन शवों को छोड़कर चले जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा के पास मिलीं लावारिस लाशों ने आधिकारिक कोविड-19 आंकड़ों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर लोगों के बीमार पड़ने या उनकी मौतों के बीच, ये लावारिस लाशें ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी के प्रसार की एक डरावनी तस्वीर पेश करती हैं, जहां स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बेहद कमजोर है और सीमित जांच, महामारी से जुड़े लांछन, और कम टीकाकरण दर के कारण रोकथाम के प्रयास शिथिल हैं.

भारत की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने इस सप्ताह स्थानीय अधिकारियों को ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 से निपटने हेतु दिशानिर्देश जारी किए, जिनमें जांच में वृद्धि, आइसोलेशन और क्वारंटाइन से जुड़े उपायों को सुनिश्चित करना और विशेष देखभाल के लिए विशिष्ट चिकित्सा सुविधाओं का इंतजाम करना शामिल है. हालांकि, ये दिशानिर्देश जारी करने में देरी का मतलब है कि बहुत से ग्रामीणों को अभी तक पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध नहीं है. ग्रामीण भारत में इंटरनेट तक पहुंच या स्मार्ट फोन की कमी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचना के प्रसार, वैक्सीन पंजीकरण और सहायता प्राप्त करने की क्षमता को सीमित कर देती है.

सरकारी तंत्र संक्रमण की दूसरी लहर से निपटने से जुडी चेतावनियों पर कार्रवाई करने में विफल रहा है, इसके बजाए वह बड़े धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों की अनुमति देकर जनता को विरोधाभास भरे संदेश देता रहा है. कुछ भाजपा नेता सुरक्षित उपायों को बढ़ावा देने और लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय, अभी भी शरीर पर गोबर लेपने, गोमूत्र पीने और अन्य अनुष्ठानों को रोकथाम या इलाज के बतौर पेश करते हैं.

नेताओं ने बगैर सोचे-समझे इनकार करना और आलोचकों को निशाना बनाना जारी रखा है.

नागरिक समाज समूहों पर भाजपा की कार्रवाई, जिसमें उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद को प्रतिबंधित करने के प्रयास शामिल हैं, ने गलत सूचना और महामारी से जुड़े लांछन के बीच ग्रामीण समुदायों को बीमारी के बारे में शिक्षित करने और परामर्श देने के प्रयासों को प्रभावित किया है. समुदायों के रोजी-रोजगार, भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के अधिकारों को सुनिश्चित करने में मदद करने के अपने दशकों लंबे कार्यों के कारण इनमें से अनेक जमीनी स्तर के संगठनों की ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के बीच साख है.

सरकार को चाहिए कि अपनी दिशाहीन नीतियों में बदलाव लाए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरक़रार रखे और महामारी से निपटने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों समेत पूरे देश में नागरिक समाज समूहों के साथ मिलकर काम करे. बिना किसी भेदभाव के सस्ती, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करने के लिए फौरी तौर पर कार्रवाई करना बेहद जरूरी है.

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