(न्यूयॉर्क) – ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते कोविड-19 संकट के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को फ़ौरन दूर करे और कमजोर समुदायों तक इलाज़ की समान पहुंच सुनिश्चित करे. भारत की सहायता के लिए उमड़ रहे दाताओं और प्रवासी समूहों को चाहिए कि सरकार को इसके लिए प्रोत्साहित करें कि वह महामारी से निपटने के दौरान अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रतिबंधों को ख़त्म करे और मानवाधिकारों का सम्मान करे.
ऑक्सीजन आपूर्ति और अस्पताल में इलाज़ की कमी से हो रही मौतों के चलते महामारी से निपटने के मामले में व्यापक आलोचना के बाद, भारत सरकार ने लगभग 100 सोशल मीडिया पोस्ट्स को गलत जानकारी फैलाने वाला बताते हुए हटाने का आदेश दिया. हालांकि इन ज्यादातर पोस्ट्स में संकट से निपटने में सरकारी कार्रवाई की कटु आलोचना थी. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ऑक्सीजन की कमी से इनकार किया है और चेतावनी दी कि सोशल मीडिया पर “माहौल बिगाड़ने” के लिए “अफवाहें” फैलाने पर स्वास्थ्य कर्मियों सहित किसी के भी खिलाफ कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामले दर्ज किए जाएंगे.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भारत सरकार को अपना पूरा ध्यान ऐसे लोगों पर केंद्रित करना चाहिए जिन्हें मदद की सख्त जरूरत है और जो चिकित्सा सुविधाओं की कमी से मर रहे हैं. इसके बजाय, हम देखते हैं कि वह संकट से निपटने के अपने तौर-तरीके की तर्कसंगत आलोचना पर अहंकारपूर्ण कार्रवाई कर रही है और सोशल मीडिया को सेंसर करने का प्रयास कर रही है.”
27 अप्रैल को भारत में 3 लाख 20 हजार से अधिक नए संक्रमण दर्ज किए गए. यह पूरी दुनिया में किसी भी देश में एक दिन के संक्रमण का रिकॉर्ड आंकड़ा है. इसी दिन भारत में कोविड-19 संक्रमण से करीब 2,800 मौतें भी हुईं. 2020 में महामारी शुरू होने के बाद से 27 अप्रैल तक भारत में कोरोना से 1.70 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके थे. माना जा रहा है कि भारत में कोविड-19 संक्रमण से हो रही मौतों के आंकड़ों को कम करके बताया जा रहा है जबकि श्मशान और कब्रिस्तानों में आनेवाले शवों का तांता लगा हुआ है. कई अस्पतालों ने ऑक्सीजन की उपलब्धता कम होने पर आपातकालीन आपूर्ति की गुहार लगाई है.
भारत में सोशल मीडिया परिजनों और आपूर्ति की कमी झेल रहे अस्पतालों की मदद की फरियादों से अटी पड़ी है. तेजी से बढ़ते मामलों से चरमरा रहे बुनियादी स्वास्थ्य ढांचे को चुस्त-दुरुस्त करने में सरकारी तंत्र का दम फूल रहा है. दवा, ऑक्सीजन, वेंटीलेटर्स, अस्पताल में बेड, एम्बुलेंस और दाह संस्कार या दफन करने संबंधी सुविधाएं की भारी कमी के कारण जद्दोजहद कर रहे लोगों की मदद के लिए सामुदायिक समूह भी आगे आए हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि कोविड-19 से निपटने में अधिकारों का सम्मान करने वाली कार्रवाई में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वायरस, सेवाओं तक पहुंच, सेवा में व्यवधान और महामारी से निपटने के अन्य पहलुओं के बारे में सटीक और नवीनतम जानकारी सबों के लिए आसानी से उपलब्ध हो और उनकी पहुंच में हो. सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी पर रोक से अंततः महामारी से संबंधित प्रभावी जानकारी सीमित होगी और सरकार पर भरोसा घटेगा.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने महामारी की शुरूआत के बाद देश के कमजोर स्वास्थ्य ढांचे में निवेश करने में विफल रहने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना की है. हालांकि सरकारी तंत्र ने मास्क और अन्य जन स्वास्थ्य संबंधी व्यवहारों पर अमल की वकालत की, लेकिन उन्होंने वायरस पर काबू करने के विरोधाभासी दावे किए और चुनाव रैलियों सहित बड़े समारोहों की अनुमति दी और उनमें शिरकत की. सरकार ने एक हिंदू धार्मिक आयोजन को बढ़ावा दिया जिसमें लाखों लोग शामिल हुए.
अदालतों ने महामारी से ठीक से निपटने में विफलता के लिए सरकार की बार-बार आलोचना की है. मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी ने कहा, “आप के पास योजना बनाने और निर्णय लेने के लिए पूरे एक साल का समय था. अगर ऐसा किया गया होता, तो हम इस स्थिति में नहीं होते... हमें सुरक्षा के झांसे में रखा गया जिसके कारण अभी हम संक्रमण की सुनामी की चपेट में हैं.”
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते, जिसकी भारत ने परिपुष्टि की है, के तहत सभी को “शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक” का अधिकार है. स्वास्थ्य के अधिकार के मुताबिक सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए कि स्वास्थ्य सुविधाएं, वस्तुएं और सेवाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों, जो बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए सुलभ हों और हाशिए के समूह समेत तमाम लोग इसका खर्च वहन करने में समर्थ हों.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सरकार को चाहिए कि आवश्यक चिकित्सा वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति श्रृंखलाओं की अड़चनों को दूर करने और ऑक्सीजन, जीवन-रक्षक दवाओं, वेंटीलेटर्स और जांच किट की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कदम उठाए.
घरेलू संकट के कारण, भारत सरकार ने भारत में उत्पादित टीकों का निर्यात अस्थायी रूप से रोक दिया है. संयुक्त राज्य अमेरिका भारत को वैक्सीन उत्पादन के लिए जरूरी कच्चा माल भेज रहा है ताकि भारतीय निर्माता भारत और अन्य जगहों पर टीकों की कमी दूर कर सकें. हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, और अन्य को विश्व व्यापार संगठन की ट्रिप्स काउंसिल, जिसकी अगली बैठक 30 अप्रैल को है, में प्रस्तुत भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव पर अपना विरोध वापस ले लेना चाहिए. अक्टूबर 2020 का प्रस्ताव कोविड-19 से संबंधित वैक्सीन, रोग चिकित्सा और अन्य चिकित्सा उत्पादों से संबंधित कुछ बौद्धिक संपदा नियमों में अस्थायी रूप से छूट देगा जिससे कि बड़े पैमाने पर उत्पादन को सुगम बना कर इन्हें विश्व स्तर पर सुलभ और सस्ता बनाया जा सके.
भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की उस मांग को अनसुना कर दिया है जिसमें सरकारों से “राजनीतिक कैदी और आलोचना या असहमति जताने के लिए हिरासत में लिए गए लोगों समेत पर्याप्त कानूनी आधार के बिना हिरासत में लिए गए हर व्यक्ति की रिहाई” की बात की गई थी ताकि जेलों और डिटेंशन सेंटर्स जैसी बंद जगहों सहित हर जगह पर बढ़ते संक्रमण को रोका जा सके. इसके बजाय, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों, शांतिप्रिय प्रदर्शनकारियों और अन्य आलोचकों के खिलाफ बड़ी संख्या में राजनीतिक रूप से प्रेरित मामले दर्ज किए हैं और महामारी के दौरान भी उन्हें राज-द्रोह और आतंकवाद निरोधी कठोर कानूनों के तहत जेल में डाल दिया है.
भारत सरकार को शांतिपूर्ण तरीके से असहमति दर्ज करने के लिए राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोपों के आधार पर बंदी बनाए गए तमाम लोगों की रिहाई के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए और समुचित प्रबंधन या कम गंभीर आरोपों में कैद लोगों की समय-पूर्व रिहाई के माध्यम से जेलों में कैदियों की संख्या कम करने पर विचार करना चाहिए. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि इसी तरह वृद्ध, विकलांग या खास बीमारियों से जूझ रहे जैसे कैदियों की रिहाई पर भी विचार किया जाना चाहिए जो वायरस से गंभीर तौर पर पीड़ित हो सकते हैं.
गांगुली ने कहा, “भारत सरकार को जनता को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर किसी को उसकी जरूरत के मुताबिक चिकित्सा सुविधा मिले. सरकार ने नागरिकों और अंतर्राष्ट्रीय सरकारों से मदद मांगी है, लेकिन यह प्रत्येक ज़िंदगी की रक्षा करने की अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकती.”