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भारत: टेक फर्मों को निजता, अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्ष में खड़े होना चाहिए

आलोचकों, किसान आंदोलन के समर्थकों को निशाना बनाता सरकारी तंत्र

बेंगलुरु में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान भारत की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की रिहाई की मांग संबंधी तख्तियां लिए छात्र, भारत, 16 फरवरी, 2021.  © 2021 एपी फोटो/एजाज़ राही

(न्यूयॉर्क) - भारत सरकार ने किसान आंदोलन से निपटने के अपने तौर-तरीकों की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय आलोचना के जवाब में जिस प्रकार की कार्रवाइयां की हैं, वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, एक्सेस नाउ, आर्टिकल 19, एसोसिएशन फॉर प्रोग्रेसिव कम्युनिकेशंस, कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स, डेंजरस स्पीच प्रोजेक्ट, डेरेचोस डिजिटल, इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन, ह्यूमन राइट्स वॉच, निमौनिक, रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स और विटनेस ने आज एक संयुक्त बयान जारी कर कहा.

14 फरवरी, 2021 को भारतीय अधिकारियों ने स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग द्वारा शुरू आंदोलन फ्राइडेज फ़ॉर फ्यूचर के लिए स्वेच्छा से काम करने वाली बेंगलुरु स्थित 21 वर्षीय कार्यकर्ता दिशा रवि को राजद्रोह और आपराधिक षड्यंत्र सहित दूसरे कई आरोपों में गिरफ्तार कर लिया, और वकील निकिता जैकब एवं कार्यकर्ता शांतनु मुलुक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए. हालांकि इन दोनों को गिरफ्तारी से पहले जमानत मिल गई.

सरकारी तंत्र ने आरोप लगाया कि ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर थनबर्ग द्वारा साझा किए गए एक ऑनलाइन टूलकिट, जो जारी किसान आंदोलनों के शांतिपूर्वक समर्थकों को जानकारी प्रदान करने के मकसद से तैयार किया गया था, को संपादित और साझा करने के मामले में रवि “मुख्य साजिशकर्ता” हैं. रवि को जमानत देते हुए दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि प्रस्तुत किए गए सबूत “अपर्याप्त तथा अस्पष्ट” हैं, और नागरिकों को केवल इसलिए जेल में नहीं डाला जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं. उसने यह भी कहा, “सरकारों के जख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए देशद्रोह का मुकदमा नहीं किया जा सकता.”

सरकार के ये कदम आलोचनाओं को दबाने एवं आंदोलन और लोकतांत्रिक विरोध से संबंधित सूचनाओं को नियंत्रित करने की नवीनतम कार्रवाइयां थीं. इसके साथ ही सरकार ने विरोध प्रदर्शन स्थलों पर इंटरनेट बंद करने, पत्रकारों को आंदोलन स्थलों तक पहुंचने से रोकने, आंदोलन पर खबर लिखने वाले  पत्रकारों पर बेबुनियाद आपराधिक आरोप लगाने और आलोचनात्मक सामग्री पर रोक लगाने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों पर दबाव बनाने के लिए कठोर कानून का उपयोग करने जैसी अनेक कार्रवाइयां की हैं.

दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसने फरवरी में गूगल और अन्य टेक्नोलॉजी कंपनियों को पत्र लिखकर टूलकिट बनाने और साझा करने वालों की गतिविधि से जुड़े रिकॉर्ड उपलब्ध कराने की मांग की थी. पुलिस ने कहा कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप्लिकेशन ज़ूम से उन लोगों के बारे में भी जानकारी मांग रही है जिन्होंने टूलकिट तैयार करने संबंधी बैठक में भाग लिया था. और उसने व्हाट्सएप से किसान आंदोलनों के समर्थन में बनाए गए एक ग्रूप के बारे में भी जानकारी मांगी है. समूहों ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और शांतिपूर्ण सभा करने के अपने अधिकारों का प्रयोग करने वाले किसी उपयोगकर्ता की संरक्षित जानकारी का खुलासा करना, व्यापार और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत कंपनियों की जिम्मेदारियों के अनुरूप नहीं होगा.

25 फरवरी को भारत सरकार ने सोशल मीडिया सेवाओं, डिजिटल समाचार सेवाओं और क्यूरेटेड वीडियो स्ट्रीमिंग साइट्स सहित इंटरनेट इन्टर्मीडीएरीज को निशाना बनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत नए नियमों की घोषणा की. सरकार का कहना है कि नियमों का उद्देश्य सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर रोक लगाना है, जिसमें “फेक न्यूज़” का प्रसार भी शामिल है. ये नियम ऑनलाइन सामग्री पर पहले से अधिक सरकारी नियंत्रण की अनुमति देते हैं, एन्क्रिप्शन को कमजोर करने का खतरा प्रस्तुत करते हैं और ऑनलाइन निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों को गंभीर रूप से कमजोर करेंगे. समूहों ने कहा कि सरकार को नए नियमों को निलंबित करना चाहिए.

समूहों ने कहा, भारत सरकार को रवि और अन्य आरोपियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर साझा दस्तावेज़ में कथित संलिप्तता संबंधी आरोपों को वापस लेना चाहिए, ऑनलाइन माध्यमों पर शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति में शामिल कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना बंद करना चाहिए, और सोशल मीडिया सेन्सर करने एवं इंटरनेट तक पहुंच को प्रतिबंधित करने की कोशिशों पर रोक लगानी चाहिए.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को लागू करने के बाद नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमा पर लाखों किसान आंदोलनरत हैं. सरकार का कहना है कि ये कानून कृषि क्षेत्र में सुधार लायेंगे जबकि किसानों का कहना है कि इन कानूनों से उनकी आजीविका खतरे में पड़ जाएगी.

26 जनवरी को पुलिस बैरिकेड्स तोड़कर दिल्ली प्रवेश करने वाले किसानों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं. सरकार ने भारत को बदनाम करने की “अंतरराष्ट्रीय साजिश” का आरोप लगाया, आंदोलन के आयोजकों एवं कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामले दर्ज किए, और ट्विटर को  पत्रकारों और समाचार संगठनों के खातों समेत लगभग 1,200 खातों को बंद करने का आदेश दिया.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने सामग्री हटाने एवं प्रतिबंध संबंधी सरकार के हालिया आदेशों और दिशा रवि के मामले में सरकार द्वारा मांगी गई सूचनाओं के बारे में गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और ज़ूम को पत्र लिखा. फेसबुक, जिसके पास इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का भी स्वामित्व है, ने जवाब दिया कि वह गोपनीयता की वजहों से व्यक्तिगत मामलों पर टिप्पणी नहीं कर सकता है, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रिपोर्टों से पता चलता है कि रवि की गिरफ्तारी के बाद उनकी व्हाट्सएप चैट की जानकारी प्राप्त की गई, जो यह संकेत करता है कि पुलिस ने हिरासत में लेने के बाद उनके मोबाइल डिवाइस तक पहुंच बनाई. गूगल और ज़ूम से पत्र का कोई जवाब नहीं मिला है.

31 जनवरी के बाद से, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत ट्विटर को 1,000 से अधिक खातों को बंद करने के अलग-अलग आदेश दिए हैं. सरकार का दावा है कि ये ट्विटर खाते किसान आंदोलनों के बारे में गलत सूचना फैला रहे थे. ट्विटर ने शुरू में आदेश का अनुपालन किया, लेकिन फिर कहा कि वह समाचार मीडिया संस्थाओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के खातों पर कार्रवाई नहीं करेगा. उसने कहा, “हमारा मानना है कि ऐसा करना भारतीय कानून के तहत स्वतंत्र अभिव्यक्ति के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा.”

भारत सरकार ने जिन खातों को बंद करने का आदेश दिया, उनमें से ट्विटर ने कुछ को ही बंद किया. सरकार ने ट्विटर के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि वह कंपनी की कार्रवाई से निराश है. सरकार ने ट्विटर को आदेशों का अनुपालन नहीं करने का नोटिस भी भेजा जिसमें  भारतीय कानून के अनुसार उसके भारत स्थित कर्मचारियों पर जुर्माना लगाने और जेल की सजा की चेतावनी दी गई. गूगल के स्वामित्व वाले यूट्यूब ने किसान आंदोलनों से जुड़े दो गीतों को हटा दिया. इसने ह्यूमन राइट्स वॉच के इस प्रश्न का जवाब नहीं दिया कि क्या ऐसा गोपनीय सरकारी आदेशों के कारण किया गया.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म समेत तमाम कंपनियों की यह जिम्मेवारी है कि सरकार के अपने मानवाधिकार संबंधी दायित्वों को पूरा करने की तत्परता से स्वतंत्र होकर मानवाधिकारों का सम्मान करें. अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, कंपनियों को “स्थानीय कानून से टकराव की स्थितियों में निवारण और शमन संबंधी ऐसी रणनीतियों में संलग्न होना चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य मानवाधिकारों के सिद्धांतों का यथासंभव सम्मान करती हों.” उन्हें बेहद बारीकी से कानूनी मांगों की व्याख्या करनी चाहिए और उनपर अमल करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अभिव्यक्ति पर कम से कम प्रतिबंध हो, उपयोगकर्ताओं को सूचित किया जा सके, सरकार से स्पष्टीकरण या संशोधन की मांग की जा सके और चुनौती देने के लिए सभी कानूनी विकल्पों का पता लगाया जा सके.

26 जनवरी की हिंसा के बाद, सरकारी तंत्र ने विभिन्न प्रदर्शन स्थलों और हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों के अनेक जिलों एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कुछ हिस्सों में कई दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया. वर्ष 2019 में 121 बार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाकर भारत ऐसा करने में पूरी दुनिया में सबसे अव्वल रहा. कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 में इसने कम-से-कम 109 बार ऐसे आदेश दिए. इसने जम्मू और कश्मीर में 18 महीने तक इंटरनेट पर रिकॉर्ड प्रतिबंध लगाया, जिसे आखिरकार फरवरी में हटा लिया गया.

समूहों ने कहा कि इंटरनेट बंद करना और ऑनलाइन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने की कोशिश प्रदर्शनों पर कार्रवाई का भारत सरकार का तयशुदा तरीका बन गया है. यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन करता है, जिसके मुताबिक किसी भी तरह का इंटरनेट-आधारित प्रतिबंध विशिष्ट सुरक्षा सरोकारों के प्रति आवश्यक और समुचित कार्रवाई होना चाहिए. अधिकारियों को सूचना प्रवाह रोकने या स्वतंत्र रूप से एकत्र होने एवं राजनीतिक विचारों को व्यक्त करने की लोगों की क्षमता को कुंद करने के लिए व्यापक, अंधाधुंध प्रतिबंधों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

भारत सरकार को चाहिए कि सभी इंटरनेट प्रतिबंध आदेशों को प्रकाशित करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी अनुपालन करे. सरकार को समीक्षा समिति की बैठकों के विवरण प्रकाशित करने चाहिए और खुले सार्वजनिक परामर्श के जरिए 2017 के दूरसंचार सेवा निलंबन नियमों की समीक्षा करनी चाहिए.

भारत सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और संबंधित नियमों की धारा 69ए में भी संशोधन करना चाहिए ताकि ऑनलाइन सामग्री पर रोक लगाने से पहले नियत प्रक्रियाओं को मजबूत किया जा सके. 2008 के सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम की धारा 69ए में इंटरनेट इन्टर्मीडीएरीज द्वारा अनुपालन में विफल रहने पर जुर्माना और सात साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है. भारत सरकार ने गोपनीयता का दावा करते हुए अब तक इस कानून की धारा 69A के तहत जारी आदेशों को प्रकाशित नहीं किया है, वह शायद ही कभी प्रतिबंधित सामग्री के उपयोगकर्ता को सूचित करती है, और न ही अपने निर्णयों की स्वतंत्र समीक्षा का प्रयास करती है. यह जरूरी है कि संशोधित नियमों में प्रतिबंध के कारणों की जानकारी देते हुए प्रत्येक प्रतिबंध आदेश की एक प्रति प्रकाशित की जाए और प्रतिबंध से पहले उपयोगकर्ताओं को सूचित करना चाहिए और उन्हें सरकार के आदेश के खिलाफ अपील करने की अनुमति देनी चाहिए.

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