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भारत: शरणार्थियों को जबरन म्यांमार वापस भेजने पर रोक लगाए

दमनकारी जुंटा शासन में लौटने वाले शरणार्थियों के जीवन और स्वतंत्रता को खतरा

जम्मू के बाहरी इलाके में स्थित अपने अस्थायी शिविर के बाहर खड़े रोहिंग्या शरणार्थी, भारत, 7 मार्च 2021. ©एपी फोटो/चन्नी आनंद

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार को नृजातीय रोहिंग्या और अन्य लोगों को म्यांमार वापस भेजने की किसी भी योजना पर रोक लगानी चाहिए, जहां उन्हें दमनकारी सैन्य शासन हुंटा से खतरा होगा. 6 मार्च, 2021 को जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने लगभग 170 रोहिंग्याओं को हिरासत में लिया, उन्हें सत्यापन के लिए एक होल्डिंग सेंटर भेजा, और कहा कि वे उन्हें वापस भेजने की योजना बना रहे हैं. म्यांमार सरकार ने भी भारत सरकार से उन आठ पुलिस अधिकारियों को वापस भेजने को कहा है, जिन्होंने सैन्य तख्तापलट के बाद अपने परिवारों के साथ भारत में आकर शरण मांगी है.

1 फरवरी के तख्तापलट के बाद, जब म्यांमार सेना ने लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंका, पूरे देश में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सुरक्षा बलों ने अत्यधिक और घातक बल का इस्तेमाल किया है. उन्होंने कम-से-कम 55 लोगों की हत्या की है और सैकड़ों लोगों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया और हिरासत में लिया है, जिनमें जबरन तरीके से गुमशुदा हुए लोग शामिल हैं. हुंटा ने बुनियादी अधिकारों को छीनने के लिए कानूनों में संशोधन किया है, राजनीति से प्रेरित मामले दर्ज किए हैं और समय-समय पर इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाए हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “रोहिंग्याओं और अन्य लोगों को जबरन म्यांमार वापस भेजने की कोई भी योजना उन्हें फिर से दमनकारी सैन्य शासन हुंटा के चंगुल में डाल देगी जिससे बचकर वे भागे हैं. लंबे समय से उत्पीड़न करने वाली म्यांमार सेना सत्ता में वापसी के बाद अब और भी अधिक स्वेच्छाचारी बन गई है, भारत सरकार को चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करे और अपने सीमा क्षेत्र के भीतर शरण मांगने वालों को सुरक्षा प्रदान करे.”

जम्मू और कश्मीर में रोहिंग्याओं को हिरासत में लिए जाने की घटना 2017 में भारत सरकार द्वारा सभी रोहिंग्याओं, जिन्हें वह “अवैध प्रवासी” मानती है, को उनके स्वदेश वापस भेजने की घोषणा का जारी रूप है. अक्टूबर 2018 से, भारत सरकार ने 12 रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजा है और उनका दावा है कि वे अपनी मर्जी से वापस गए हैं.

जम्मू और कश्मीर में रह रहे अनेक रोहिंग्याओं ने बताया कि उनके पास संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) द्वारा जारी पहचान संबंधी दस्तावेज हैं और म्यांमार में उनकी सुरक्षा को खतरा है. दस लाख से अधिक रोहिंग्या म्यांमार से भाग खड़े हुए हैं, जिनमें से ज्यादातर ने बांग्लादेश में शरण ले रखी है. इनमें से ज्यादातर वो हैं जिन्होनें अगस्त 2017 में शुरू हुए सेना के नृजातीय संहार के बाद म्यांमार छोड़ा था. म्यांमार के रखाइन राज्य में बचे हुए 6 लाख रोहिंग्या गंभीर दमन और हिंसा का सामना कर रहे हैं, उन्हें आवाजाही की कोई स्वतंत्रता नहीं है और वे नागरिकता से जुड़े या अन्य बुनियादी अधिकारों से पूरी तरह वंचित हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि रखाइन राज्य में रोहिंग्याओं  का उत्पीड़न मानवता के खिलाफ रंगभेद और अत्याचार जैसे अपराधों के समतुल्य है.

जम्मू-कश्मीर में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी 42-वर्षीय मोहम्मद सलीम ने कहा, “म्यांमार में स्थिति में जब तक सुधार नहीं होता, हम वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं. हमारी इच्छाओं  के विरुद्ध हमें म्यांमार वापस भेजा जाना अत्यंत दुखद है.”

फिर भी, भारत सरकार कहती है कि ऐसे अनियमित रोहिंग्या प्रवासियों को वह वापस भेजेगी जिनके पास विदेशी विषयक अधिनियम के तहत जरूरी वैध यात्रा दस्तावेज नहीं हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि जबरन म्यांमार वापस भेजने का कोई भी प्रयास गैर-वापसी के अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत का उल्लंघन करेगा, यह सिद्धांत देशों को किसी को भी ऐसे देश वापस भेजने से रोकता है जहां उन्हें उत्पीड़न, यातना या अन्य गंभीर क्षति का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी समझौता या 1967 के इसके औपचारिक नियमों और प्रक्रियाओं का हिस्सा नहीं है, लेकिन गैर-वापसी को एक प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय कानून के रूप में मान्यता प्राप्त है और यह सभी देशों के लिए बाध्यकारी है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने म्यांमार में रोहिंग्याओं के मानवाधिकार के बड़े पैमाने पर आक्रामक और सुनियोजित उल्लंघन संबंधी आंकड़ों और तथ्यों का व्यापक संकलन किया है. जनवरी 2020 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने नरसंहार समझौते के कथित उल्लंघन की सुनवाई में नरसंहार की रोकथाम हेतु म्यांमार के खिलाफ अस्थायी तौर पर कई कदम उठाए. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) ने नवंबर 2019 में म्यांमार द्वारा रोहिंग्याओं के जबरन निर्वासन और मानवता के खिलाफ उसके अपराधों की जांच शुरू की.

भारत में अनुमानतः 40,000 रोहिंग्या हैं, जिनमें से कम-से-कम 16,500 यूएनएचसीआर से  पंजीकृत हैं. 2016 से, कट्टरपंथी हिंदू समूहों ने जम्मू में रोहिंग्या शरणार्थियों को निशाना बनाया और उन्हें देश से निकालने की मांग की. रोहिंग्याओं को “आतंकवादी” बताने वाले एक सार्वजनिक रोहिंग्या विरोधी अभियान ने निगरानी समूह जैसी हिंसा भड़काई जिनमें अप्रैल 2017 में अज्ञात हमलावरों द्वारा रोहिंग्याओं के पांच घरों में कथित रूप से आगजनी शामिल है.

फरवरी में, बांग्लादेश शरणार्थी शिविरों के कम-से-कम 81 रोहिंग्या शरणार्थी मछली पकड़ने वाली एक नाव में जानवरों की तरह ठूंसे हुए मिले जो मलेशिया जाते हुए इंजन में खराबी के कारण अंडमान सागर में भटक गई थी. वे बहुत भूखे-प्यासे थे; उनमें आठ लोगों की मौत हो गई. शरणार्थियों द्वारा रिश्तेदारों को अपना जीपीएस लोकेशन भेजे जाने के बाद, भारतीय नौसेना और तटरक्षकों ने नाव का पता लगाया और भोजन, चिकित्सा और तकनीकी सहायता प्रदान की. भारत सरकार ने शरणार्थियों को वापस बांग्लादेश भेजने का प्रयास किया, लेकिन बांग्लादेश ने इसे इंकार कर दिया.

भारत के मिजोरम राज्य में पुलिस ने बताया कि करीब 100 लोग, जिनमें ज्यादातर पुलिस और उनके परिजन हैं, म्यांमार सीमा पार कर भारत में आ गए हैं. म्यांमार के कई पुलिस अधिकारियों ने कहा कि तख्तापलट, जिसने आंग सान सू ची की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की चुनी हुई सरकार को हटा दिया, का विरोध करने वालों के खिलाफ आदेशों का पालन करने और हिंसा का इस्तेमाल करने से इनकार करने के बाद वे वहां से भाग खड़े हुए. मिजोरम सरकार ने शरणार्थियों को मानवीय सहायता प्रदान की है, और दिल्ली स्थित एक समूह नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित भारत सरकार से उनके आश्रय संबंधी दरख्वास्त पर तत्काल कार्रवाई करने का अनुरोध किया है.

भारत सरकार ने तख्तापलट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “हमारा मानना ​​है कि कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखना चाहिए.” म्यांमार के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत क्रिस्टीन श्रानेर बर्गनर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, वर्तमान में भारत जिसका एक सदस्य है, से “सुरक्षा बलों को चेतावनी देने के लिए और नवंबर के स्पष्ट चुनाव परिणामों के  समर्थन में म्यांमार की जनता के साथ मजबूती से खड़े होने के लिए” दृढ़ और सुसंगत कार्रवाई की मांग की है.

भारत को रोहिंग्या या अन्य लोगों और साथ ही पुलिस अधिकारियों और उनके परिवारों को म्यांमार वापस नहीं भेजना चाहिए, जब तक कि भारत सरकार समुचित तौर से यह निर्धारित नहीं कर लेती कि वे आश्रय मांग रहे हैं या नहीं. यदि ऐसा है, तो उन्हें अपने दावे की निष्पक्ष और कार्यक्षम जांच का अधिकार है. शरण पाने वालों की शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार तक पहुंच होनी चाहिए. स्वदेश वापस भेजने के लिए चुने गए किसी भी व्यक्ति की उन उचित प्रक्रियाओं तक पहुंच होनी चाहिए जिनमें यह निर्धारित किया जाता हो कि क्या स्वदेश वापसी पर उसे खतरों का सामना करना पड़ेगा.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि निष्पक्ष आश्रय प्रक्रिया प्रदान करने में भारत की विफलता या यूएनएचसीआर को शरणार्थी निर्धारण करने की अनुमति से इनकार सरकार के अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करते हैं.

गांगुली ने कहा, “तख्तापलट के बाद म्यांमार सेना का बढ़ता क्रूर दमन वापस भेजे जाने वाले किसी भी व्यक्ति के समक्ष गंभीर जोखिम प्रस्तुत करेगा. और अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डालने के बजाय, भारत को अन्य सरकारों के साथ मिलकर लोकतांत्रिक शासन बहाल करने के लिए सैन्य शासन हुंटा पर दबाव डालना चाहिए.”

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