(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार को बांग्लादेश सरहद पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के कथित नए उत्पीड़नों की जांच करनी चाहिए और मुकदमा चलाना चाहिए. दस साल पहले, भारत सरकार ने इस मुद्दे पर ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट “ट्रिगर हैप्पी” के प्रकाशन के बाद यह घोषणा की थी कि वह बीएसएफ को आदेश देगी कि गैर कानूनी रूप से सीमा पार करने वालों के खिलाफ संयम बरते और ज्यादा घातक आग्नेयास्त्रों के बजाय रबर की गोलियों का इस्तेमाल करे.
भारत और बांग्लादेश के गैर सरकारी संगठनों ने बताया है कि बीएसएफ द्वारा भारतीय और बांग्लादेशी दोनों सीमाओं पर रहने वाले लोगों की गैर-न्यायिक हत्याएं, यातना और दुर्व्यवहार समेत उनका उत्पीड़न जारी है. मवेशी चोरी, तस्करी एवं अवैध तरीके से सीमा पार करने की घटनाओं की रोकथाम के लिए तैनात भारतीय सीमा रक्षकों का कहना है कि वे सिर्फ तभी बल का इस्तेमाल करते हैं जब उनपर हमला होता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भारत सरकार का सीमा सुरक्षा बलों को संयम बरतने और सीधे गोला-बारूद के इस्तेमाल को सीमित करने का आदेश नई हत्याओं, यातनाओं और अन्य गंभीर दुर्व्यवहारों को नहीं रोक पाया है. सुरक्षा कर्मियों को जवाबदेह ठहराने में सरकार की विफलता के कारण बेहद गरीब और कमजोर आबादी का उत्पीड़न तथा कष्ट और बढ़ गया है.”
भारत सरकार ने संयम बरतने और गैरकानूनी हत्याएं रोकने संबंधी सरकारी आदेश जारी किए हैं और बांग्लादेश को आश्वासन दिया है, जिसमें दिसंबर 2020 की वार्ता में दिया गया आश्वासन शामिल है. हालांकि, बांग्लादेशी समूह ओधिकार का आरोप है कि सीमा सुरक्षा बलों ने 2011 से कम-से-कम 334 बांग्लादेशियों की हत्या की है और अन्य गंभीर उत्पीड़नों को अंजाम दिया है, जिसमें साल 2020 में की गई 51 हत्याएं शामिल हैं.
पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में 2011 से बीएसएफ द्वारा कम-से-कम 105 कथित हत्याओं की जांच करने वाली एक भारतीय संस्था, बांग्लार मानबाधिकार सुरक्षा मंच (मासूम) ने कहा कि बहुत मुमकिन है कि हत्याओं की वास्तविक संख्या ज्यादा हो. मासूम का यह भी कहना है कि बीएसएफ के जवानों ने संदिग्धों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया और यातनाएं दीं, और सीमावर्ती क्षेत्र में भारतीय निवासियों को परेशान किया और धमकाया. गोलीबारी से हुई मौत के ताजा आरोपों में शामिल हैं:
- मासूम ने भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सूचित किया कि 18 नवंबर, 2020 को कथित रूप से सीमा पार मवेशी तस्करी के लिए बीएसएफ जवानों ने पश्चिम बंगाल के कूच बिहार जिला में 16 साल के समर प्रमाणिक को पीटा और गोली मार कर हत्या कर दी. जवानों ने कथित तौर पर प्रमाणिक को तब हिरासत में लिया जब वह सीमा पार मवेशियों को ले जाने की कोशिश कर रहा था, उसे लाठी और राइफल के कुंदे से बेहोश होने तक पीटा और फिर सीने में गोली मार कर उसे सीमा पर लगे बाड़ के पास छोड़ दिया. हल्दीबाड़ी पुलिस स्टेशन ने अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया, लेकिन पुलिस अभी तक आगे की कार्रवाई करने में विफल रही है.
- मासूम ने बताया कि 9 अगस्त, 2020 को कूच बिहार जिला में एक बीएसएफ जवान ने 23 वर्षीय साहिनुर हक की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी. रात लगभग 7 बजे, बीएसएफ कर्मी द्वारा चलाई गई रबर की एक गोली हक को तब लगी, जब वह अपने घर के सामने सगे और चचेरे भाइयों के साथ सेल फोन पर गेम खेल रहा था. फिर एक जवान ने कथित तौर पर उसे पीटा और गोली मार दी. पुलिस ने अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया.
- मीडिया की खबरों के मुताबिक 19 अप्रैल, 2020 को एक बीएसएफ जवान ने बांग्लादेश के ठाकुरगांव जिला में 16 वर्षीय बांग्लादेशी युवक शिमोन रॉय की हत्या कर दी. उसके पिता, जो स्कूल शिक्षक हैं, ने कहा कि वह जब अपने बेटे के साथ जूट के खेत पर बाड़ लगा रहे थे, बीएसएफ का एक जवान बांग्लादेश के इलाके में घुस आया और उनसे उस जगह से चले जाने को कहा. जब उन्होंने यह कह कर विरोध किया कि वे अपनी जमीन पर हैं, तब उस जवान ने कथित रूप से लड़के के पेट में गोली मार दी.
- 4 जुलाई, 2020 को बीएसएफ के जवानों ने चपई नवाबगंज जिला में कथित तौर पर एक 50 वर्षीय बांग्लादेशी व्यक्ति को गोली मार दी. एक स्थानीय जन प्रतिनिधि ने कहा कि उस इलाके में जानवरों के लिए घास काटने के लिए जाने के बाद वह व्यक्ति अनजाने में सीमा पार कर गया. बीएसएफ कर्मियों ने कथित तौर पर उसे मार डाला और उसके शव को वापस बांग्लादेश क्षेत्र में रख दिया.
शिकायतें दर्ज करने और न्याय के लिए प्रयास करने वाले स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं को धमकियों का सामना करना पड़ा है. मासूम के कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें मनमाने तौर पर हिरासत और मनगढ़ंत आपराधिक आरोप समेत आए दिन पुलिस और बीएसएफ के हाथों उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.
भारत-बांग्लादेश सरहद पर आबादी काफी सघन है, जहां बड़ी तादाद में लोग रिश्तेदारों से मिलने-जुलने, सामान खरीदने और काम की तलाश में इधर से उधर आते-जाते रहते हैं. कुछ लोग सीमा पार छोटे-छोटे अपराध तो कुछ संगीन अपराध में संलिप्त होते हैं. हालांकि, संदिग्धों को गिरफ्तार करने और अभियोजन के लिए पुलिस को सौंपने के बजाय, बीएसएफ के जवान अक्सर संदिग्धों की पिटाई करते हैं और उन्हें यातनाएं देते हैं. कुछ सीमा रक्षक कथित तौर पर मवेशी या मानव तस्करी में भी लिप्त हैं और वसूली की कोशिशों का विरोध करने वालों को निशाना बनाते हैं.
बांग्लादेश ने सीमा पर होने वाले उत्पीड़न का लगातार विरोध किया है. अगस्त में, बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने यह कहते हुए सीमा पर होने वाली हत्याओं पर चिंता जताई, “बांग्लादेश इस बात को उठाता है कि यह सभी द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन है और भारतीय सीमा सुरक्षा बल से अधिकतम संयम बरतने का तकाज़ा करता है.”
ह्यूमन राइट्स वॉच को ऐसे किसी मामले की जानकारी नहीं है जिसमें भारत सरकार ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर हुए उत्पीड़न के लिए बीएसएफ के जवानों को जिम्मेदार ठहराया हो. इनमें एक बांग्लादेशी युवती 15 वर्षीय फेलानी खातून का बहुचर्चित मामला भी शामिल है, जो जनवरी 2011 में बीएसएफ की गोली लगने के बाद सीमा पर तार की बाड़ में फंस गयी थी. 2013 और 2015 में, विशेष बीएसएफ अदालतों ने दो दौर की सुनवाई के बाद उसे गोली मारने के आरोपी बीएसएफ कांस्टेबल को बरी कर दिया. मामले की नई जांच के लिए एक याचिका भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अभी लंबित है.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत सरकार को कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा बल प्रयोग और आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल संबंधी संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी मूल सिद्धांत का अनुपालन करना चाहिए. सिद्धांत केवल तभी घातक बल के इस्तेमाल की अनुमति देते हैं जब जीवन रक्षा के लिए ऐसा किया जाना बिल्कुल आवश्यक हो. मानवाधिकार हनन के लिए अपने सदस्यों पर मुकदमा चलाने के प्रति बीएसएफ की आंतरिक न्याय प्रणाली की विफलता को देखते हुए, असैनिक प्रशासन को अधिकारों के गंभीर उल्लंघन में आरोपित सभी श्रेणी के कर्मियों की जांच करनी चाहिए और असैनिक अदालतों में उन पर मुकदमा चलाना चाहिए.
गांगुली ने कहा, “भारत सरकार को अपने सीमा सुरक्षा बलों के लिए अभयदान की संस्कृति को ख़त्म कर बांग्लादेश की सरहद पर उत्पीड़नों के प्रति अपने जीरो टॉलरेंस के वादे को पूरा करना चाहिए. अपराधों के लिए जिम्मेदार सुरक्षा कर्मियों पर मुकदमा चलाकर, भारत इस क्षेत्र में कानून के शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखा सकता है.”