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बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर भारत द्वारा प्रतिबंध व्यापक कठोर कार्रवाई को दर्शाता है

डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों में सरकार की भूमिका के बारे में नए साक्ष्य सामने लाती है

गुजरात के 2002 के मुस्लिम-विरोधी दंगों, जिसमें 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे, की बरसी पर अहमदाबाद में विरोध प्रदर्शन करते दंगा पीड़ित, भारत, 28 फरवरी, 2014 © 2014 एपी फोटो/अजीत सोलंकी

साल 2002 में गुजरात के मुस्लिम-विरोधी दंगों पर आधारित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना पर लगाम लगाने की महज एक और कोशिश है.

पिछले हफ्ते, बीबीसी ने अपनी डॉक्यूमेंट्री के दो भाग का पहला भाग “द मोदी क्वेश्चन” प्रसारित किया. यह डॉक्यूमेंट्री यूनाइटेड किंगडम के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास विभाग की एक पूर्व अप्रकाशित रिपोर्ट के निष्कर्षों को उजागर करती है, जिसमें 2002 के दंगों, जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, की जांच की गई थी. डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण के तुरंत बाद, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों को भारत में यह वीडियो हटाने के लिए मजबूर किया.

फरवरी 2002 में, कुछ मुसलमानों द्वारा एक ट्रेन, जिसमें हिंदू तीर्थयात्री सवार थे, पर हमले के बाद पूरे गुजरात में बदले की कार्रवाइयों में बलात्कार और हत्याएं की गई थीं. खबरों के मुताबिक दंगों में 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे. ऐसे आरोप लगाए गए कि राज्य सरकार ने मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की रोकथाम के लिए कार्रवाई नहीं की. प्रायः इस हिंसा का नेतृत्व मोदी की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) या इसके सहयोगी संगठनों के नेताओं ने किया. इस घटना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आलोचना हुई. यूके की रिपोर्ट में पाया गया है कि जिस माहौल में हिंसा हुई, उस “बेख़ौफ़ माहौल” के लिए मोदी “सीधे तौर पर जिम्मेदार” थे. ब्रिटेन समेत अनेक विदेशी सरकारों ने उस समय मोदी से किसी प्रकार के संबंध पर रोक लगा दी थी, जबकि अमेरिका ने उनका वीजा रद्द कर दिया था.

2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सब कुछ बदल गया. भारतीय अधिकारियों और भाजपा समर्थकों ने उनकी छवि सुधारने के लिए कड़ी मेहनत की. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारतीय राजनयिक मानवाधिकारों के गंभीर हनन में मोदी की संलिप्तता की किसी भी आलोचना का सख्त विरोध करते हैं.

2022 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक साजिश साबित करने संबंधी पर्याप्त सबूत नहीं होने के पुलिस जांच निष्कर्षों की पुष्टि करते हुए, मोदी को आपराधिक जिम्मेदारी के आरोपों से मुक्त कर दिया.

लेकिन घाव तभी भरते और मानवाधिकार संबंधी दायित्व पूरे होते हैं जब न्याय और गलतियों में सुधार के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता हो. इसके बजाय, बीजेपी समर्थकों ने 2002 के दंगों में सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी लोगों को सम्मानित किया. हिंदू श्रेष्ठता की भाजपा की विचारधारा ने न्याय प्रणाली और मीडिया में घुसपैठ कर ली है. इसने पार्टी समर्थकों को इस तरह लैस कर दिया है कि वे धार्मिक अल्पसंख्यकों, खास तौर से मुसलमानों को बेखौफ होकर धमकाएं, हैरान-परेशान करें और उन पर हमला करें. मोदी सरकार ने मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण कानून और नीतियां लागू की है और स्वतंत्र संस्थानों पर अंकुश लगाने की कोशिश की है. इसने अपने आलोचकों को जेल में डालने के लिए अक्सर कठोर कानूनों का इस्तेमाल किया है.

प्रधानमंत्री मोदी ने विकास और रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत के साथ अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव पर जोर दिया है. लेकिन भारत की छवि तब बेहतर होगी अगर सरकारी तंत्र तमाम भारतीयों के अधिकारों - और इन मुद्दों पर जनता का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश कर रहे लोगों के अधिकारों - की रक्षा के लिए अधिक-से-अधिक प्रयास करे.

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