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कठोर भारतीय कानून के तहत हिरासत में कश्मीरी पत्रकार

जन सुरक्षा कानून लोगों को स्वतंत्रता और नियत प्रक्रिया जैसे मूल अधिकारों से वंचित करता है

कश्मीर स्थित समाचार वेबसाइट कश्मीर वाला के प्रधान संपादक फहद शाह, श्रीनगर में अपने कार्यालय में, दायीं ओर बैठे हुए, भारत, जनवरी 21, 2022.   © 2022 एपी फोटो/डार यासीन, फाइल

भारत के जम्मू और कश्मीर में एक मजिस्ट्रेट ने सम्मानित कश्मीरी पत्रकार और संपादक फहद शाह की हिरासत को जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत इस आधार पर मंजूरी दे दी कि वह “सरकार और इसकी नीतियों के खिलाफ फर्जी खबरें प्रसारित कर आम जनता को गुमराह कर रहे थे.”

सरकार आए दिन इस कानून का इस्तेमाल करती रहती है क्योंकि यह कानून संदिग्ध व्यक्ति को “राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को बरकरार रखने के लिए किसी भी नुकसानदेह तरह की कार्रवाई” से रोकने के लिए अस्पष्ट आधारों पर दो साल तक बिना मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति देता है. बुनियादी तौर पर, सरकारी तंत्र बिना सबूत के लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने के लिए पीएसए का इस्तेमाल करता है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने ऐसे मामलों का दस्तावेजीकरण किया है जिनमें बंदियों को जमानत मिलने के बाद उनकी रिहाई रोकने के लिए पीएसए लागू किया गया.

शाह के सहयोगियों और वकील का आरोप है कि सरकारी तंत्र ने पीएसए लगाने का फैसला इसलिए किया क्योंकि अदालतों ने बार-बार उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था. 33 वर्षीय शाह को पहली बार चार फरवरी को आतंकवाद और राजद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार किया गया. उनके कामों में सुरक्षा बलों द्वारा अन्यायपूर्ण हत्याओं के आरोपों की रिपोर्टिंग शामिल है. शाह के वकील उमैर रोंगा ने कहा, “यह देखते हुए कि माननीय विशेष अदालत आरोपी को जमानत दे सकती है क्योंकि उसके खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया उसे किसी प्रकार के अपराध से नहीं जोड़ते हैं, सरकारी तंत्र ने जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा कानून का सहारा लिया है.”

भारत सरकार द्वारा 2019 में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्वायत्त स्थिति रद्द करने के बाद सरकारी तंत्र ने हजारों कश्मीरियों को पीएसए के तहत मनमाने ढंग से हिरासत में लिया है. दर्जनों कश्मीरी पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के लिए पुलिस पूछताछ, छापों, धमकियों, शारीरिक हमलों और मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा है.

शाह के नजरबंदी आदेश में यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने सरकार के “सुशासन या सकारात्मक हस्तक्षेप” से संबंधित खबरों की अनदेखी की है. ऐसे में हमारी एक सलाह है: यदि सरकार पीएसए और अत्यधिक दुरुपयोग किए जाने वाले कानूनों, जैसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) एवं औपनिवेशिक राजद्रोह कानून को रद्द कर दे, तो पत्रकारों के पास रिपोर्ट करने के लिए कुछ अच्छी खबरें होंगी. सरकार को इसे आजमाना चाहिए.

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