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भारत: एमनेस्टी इंटरनेशनल काम रोकने के लिए विवश

सरकार अधिकार समूहों को अधिकाधिक निशाना बना रही है

बंगलौर स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया का मुख्यालय, भारत. © 2019 एपी फोटो/एजाज राही

(न्यूयॉर्क)- एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने घोषणा की है कि वह भारत में अपना काम बंद कर रहा है. संगठन के मानवाधिकार कार्यों के लिए बदले की कार्रवाई के तौर पर भारत सरकार द्वारा उसके बैंक खातों से लेन-देन पर रोक के बाद उसने यह घोषणा की. 15 अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने एमनेस्टी इंडिया के खिलाफ भारत सरकार की कार्रवाई की निंदा की है और ताजा कठोर कार्रवाइयों के खिलाफ स्थानीय मानवाधिकार रक्षकों और संगठनों के लिए समर्थन जारी रखने का संकल्प लिया है.

एमनेस्टी इंडिया के खिलाफ भारत सरकार की कार्रवाइयां आलोचनात्मक आवाजों और मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षित करने और बरकरार रखने के लिए काम करने वाली समूहों को चुप कराने के लिए तेज होती दमनकारी कार्यनीति का हिस्सा है – यह बयान दिया है  एसोसिएशन फॉर प्रोग्रेसिव कम्युनिकेशंस, ग्लोबल इंडियन प्रोग्रेसिव एलायंस, इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स, सिविकस: वर्ल्ड एलायंस फॉर सिटीजन पार्टिसिपेशन, फ्रंट लाइन डिफेंडर्स, फोरम-एशिया, फाउंडेशन द लंदन स्टोरी, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स, ह्यूमन राइट्स वॉच, इंटरनेशनल सर्विस फॉर ह्यूमन राइट्स, माइनॉरिटी राइट्स ग्रुप, ओधिकार, साउथ एशियन्स फॉर ह्यूमन राइट्स, और इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर ह्यूमन राइट्स (एफआईडीएच) और वर्ल्ड आर्गेनाईजेशन अगेंस्ट टार्चर (ओएमसीटी) मानवाधिकार रक्षकों के संरक्षण की निगरानी प्रणाली के ढांचे में.

हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने एमनेस्टी इंडिया पर विदेशी अंशदान कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया है. संगठन ने इस आरोप को राजनीति से प्रेरित बताया है और कहा कि यह ऐसे साक्ष्य की बुनियाद पर खड़ा है कि “जब मानवाधिकार रक्षक और समूह सरकार की गंभीर अकर्मण्यताओं और ज्यादतियों को चुनौती देते हैं तो कानून  का विशाल तंत्र दुर्भावनापूर्ण तरीके से क्रियाशील हो जाता है.”

भाजपा सरकार ने नागरिक समाज पर ढेर सारी कठोर कार्रवाइयां की हैं, वह मानवाधिकार रक्षकों, शिक्षाविदों, छात्र कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार के अन्य आलोचकों के खिलाफ राजद्रोह, आतंकवाद और अन्य दमनकारी कानूनों के तहत राजनीति से प्रेरित मामलों को दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित कर रही है.

ये कार्रवाइयां तेजी से सत्तावादी शासन के नक़्शेकदम पर हो रही हैं, जो किसी भी आलोचना को बर्दाश्त नहीं करता है और आवाज़ उठाने की हिम्मत करने वालों को बेशर्मी से निशाना बनाता  है. सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों और कानून के शासन पर हमलों की बढ़ती आलोचना के साथ, ऐसा लगता है कि सत्ता तंत्र शिकायतों को दूर करने के बजाय शिकायतकर्ताओं पर ही दोष मढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा है. महिला अधिकार कार्यकर्ता और आदिवासी एवं अल्पसंख्यक मानवाधिकार रक्षक खास तौर से असुरक्षित रहे हैं. एमनेस्टी इंडिया के खिलाफ हालिया कार्रवाई स्थानीय रक्षकों, चाहे उनका कद कुछ भी हो, द्वारा ज़मीनी स्तर पर महसूस किए जा रहे बढ़ते दबाव और हिंसा को उजागर करता है.

सरकार ने बार-बार विदेशी सहायता विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत विदेशी सहायता नियमों का इस्तेमाल मुखर समूहों को निशाना बनाने के लिए किया है. अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और मानकों का उल्लंघन करने के लिए इस कानून की व्यापक निंदा की गई है. मानवाधिकार रक्षकों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और संगठन बनाने की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने सरकार से इस कानून को निरस्त करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा है कि “नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय या सांस्कृतिक प्राथमिकताओं की वकालत करने वाले वैसे संगठनों को चुप करने ले लिए इसका अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है जो संभवतः इन सब मुद्दों पर सरकार से भिन्न राय रखते हैं.”

फिर भी, भारतीय संसद ने इस माह एफसीआरए में संशोधन कर इसमें भारी-भरकम सरकारी चौकसी, अतिरिक्त नियमनों और प्रमाणन प्रक्रियाओं, एवं परिचालन संबंधी आवश्यकताओं को जोड़ा है, जो नागरिक समाज समूहों पर प्रतिकूल असर डालेगा और छोटे गैर सरकारी संगठनों की विदेशी सहायता तक पहुंच को बुरी तरह सीमित कर देगा.

किसी भी लोकतंत्र में सरकार पर लगाम लगाने, इसे जवाबदेह बनाने और इस प्रकार उसे   बेहतर काम करने हेतु दबाव डालने के लिए एक सुदृढ़, स्वतंत्र और मुखर नागरिक समाज अपरिहार्य है. मानवाधिकार समूहों को अपना दुश्मन मानने के बजाय, सरकार को चाहिए कि तमाम लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ काम करे और सरकार के सभी स्तरों पर जवाबदेही सुनिश्चित करे.

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