भारत में उत्तर प्रदेश के हाथरस गांव में कथित रूप से प्रभुत्वशाली जाति के पुरुषों द्वारा 19 वर्षीय दलित महिला के बलात्कार, यातना और हत्या से व्यापक आक्रोश भड़क उठा है. देश भर में लोग विरोध कर रहे हैं, न्याय की मांग कर रहे हैं और यौन हिंसा से निपटने के लिए सरकार से और ज्यादा प्रभावी कार्रवाई की अपेक्षा कर रहे हैं.
लेकिन सभी प्रदर्शनकारी पीड़िता के साथ खड़े नहीं हैं. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थकों का सहारा लेकर कुछ अन्य लोग कथित हमलावरों का बचाव कर रहे हैं. यह जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण नजरिए को प्रतिबिंबित करती है. अफसोस की बात है कि यह असाधारण नहीं है. जनवरी 2018 में जब जम्मू-कश्मीर में 8 साल की बच्ची का बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी, तो कुछ भाजपा नेताओं ने उन अपराधियों का सार्वजनिक तौर पर समर्थन किया था - जिन्हें बाद में दोषी ठहराया गया.
हाथरस में पुलिस ने शिकायत दर्ज करने में देरी की. गंभीर चोटों के बावजूद महिला ने अपने हमलावरों का नाम बताया, जो उस इलाके के हैं. 29 सितंबर को महिला की मौत के बाद, पुलिस ने उनके परिवार की सहमति के बिना आनन-फानन में शव का अंतिम संस्कार कर दिया और उनके साथ बलात्कार के आरोपों से इनकार किया. एक मंत्री ने हमले को “मामूली घटना” बताया और सरकारी तंत्र ने शुरूआत में मीडिया और विपक्ष के नेताओं को परिवार से मिलने की इजाज़त नहीं दी.
पीड़िता के वाल्मीकि समुदाय और अन्य दलित समूहों के सदस्यों ने मामले को रफा-दफ़ा करने के सरकार के प्रयासों का जब विरोध किया, तो उत्तर प्रदेश सरकार ने संघीय जांच की सिफारिश कर दी, संदिग्धों को गिरफ्तार किया और कुछ पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया.
हालांकि, राज्य के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता अजय सिंह बिष्ट, जो हिंदू धार्मिक नाम योगी आदित्यनाथ का उपयोग करना पसंद करते हैं, ने दावा किया कि न्याय की मांग करने वाले प्रदर्शनकारी “जातीय और सांप्रदायिक दंगे भड़काना चाहते हैं” और आरोप लगाया कि यह "कुछ अराजकतावादियों" का “षड्यंत्र” है. पुलिस ने कहा कि उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन से प्रेरित एक “अंतर्राष्ट्रीय साजिश” का पता चला है. उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कथित राजद्रोह, आपराधिक साजिश और विद्वेष बढ़ाने के मामले दर्ज किए हैं, जो बिल्कुल प्रत्याशित कार्रवाई है जिसे अब सरकार शिकायतों को दूर करने के बजाय शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए आजमाती है.
भारत में संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च अधिकारी द्वारा चिंता व्यक्त करने के बाद, भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि “बाह्य एजेंसी की किसी भी गैरजरूरी टिप्पणी को नजरअंदाज करना बेहतर है.”
भारत सरकार को चाहिए कि घृणित अपराध से क्रुद्ध लोगों को निशाना बनाना और सार्वजनिक बहस की दिशा को घटना के जिम्मेदार लोगों की तरफ से हटाकर दूसरी ओर मोड़ने के प्रयासों को बंद करे. ताजा सरकारी आंकड़े बताते हैं कि दलित महिलाओं के साथ बलात्कार समेत महिलाओं और दलितों के खिलाफ अपराध में काफी वृद्धि हुई है. सरकार को चाहिए कि उन बाधाओं को तोड़ने का काम करे जिनका लैंगिक हिंसा उत्तरजीवी – खास तौर से जाति-आधारित भेदभाव का सामना करने वाली महिलाएं – अपराध दर्ज करने और न्याय प्राप्त करने में सामना कर रही हैं.