Skip to main content

भारत: शांतिप्रिय आलोचकों को निशाना बनाते आतंकवाद निरोधी धावे

कश्मीरी और दूसरे अधिकार समूहों के खिलाफ़ ग़ैरक़ानूनी कार्रवाइयों पर रोक लगाए

राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा श्रीनगर के बाहरी इलाके में एजेन्स फ्रांस-प्रेस के संवाददाता परवेज बुखारी के आवास की तलाशी के दौरान तैनात भारतीय अर्धसैनिक बल का एक जवान, कश्मीर, 28 अक्टूबर, 2020. © 2020 एपी फोटो/मुख्तार खान

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार शांतिप्रिय विरोधियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को चुप कराने के लिए आतंकवाद निरोधी कार्रवाइयों का इस्तेमाल कर रही है. सरकारी अधिकारियों ने 28 और 29 अक्टूबर, 2020 को जम्मू और कश्मीर, दिल्ली और बैंगलुरु में गैर-सरकारी संगठनों के दफ़्तरों, कार्यकर्ताओं के घरों और एक समाचार पत्र के कार्यालय पर छापे मारे.

ये छापे नागरिक समाज समूहों पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दमनात्मक कार्रवाइयों का हिस्सा हैं. सरकार ने कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, शिक्षाविदों, छात्रों और अन्य लोगों के खिलाफ बड़े पैमाने पर व्यापक रूप से परिभाषित आतंकवाद और राजद्रोह कानूनों का इस्तेमाल करने समेत राजनीतिक रूप से प्रेरित आपराधिक मामले दर्ज किए हैं और मानवाधिकारों के लिए मुखर समूहों को निशाना बनाने के लिए विदेशी अनुदान विनियमनों का इस्तेमाल किया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “बेशक, भारत गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन अधिकारों का सम्मान करते हुए समस्याओं का समाधान करने के बजाय ऐसा लगता है कि सरकार ने शांतिपूर्ण आलोचना को दबाने और जिम्मेदारी तय करने की ठान ली है. मुखर आलोचकों एवं पत्रकारों के खिलाफ सत्तावादी चालों पर फ़ौरन लगाम लगाया जाना चाहिए.”

छापा मारने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने निशाना बनाये गए समूहों पर आरोप लगाया है कि वे “भारत और विदेशों में धर्मार्थ गतिविधियों के नाम पर धन जुटा रहे हैं और फिर जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी और पृथकतावादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.”

जिन लोगों के कार्यालयों और घरों पर छापे मारे गए, उनमें मानवाधिकार रक्षक एवं जम्मू एंड कश्मीर कोएलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी के समन्वयक खुर्रम परवेज; उनके सहयोगी परवेज अहमद मट्टा और बैंगलोर स्थित सहयोगी स्वाति शेषाद्रि; और एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) की अध्यक्ष परवीना अहंगर शामिल हैं. कश्मीर में बलपूर्वक गायब हुए लोगों में परवीना अहंगर के बेटे भी शामिल हैं. दोनों समूह ने लंबे समय से सुरक्षा बल के उत्पीड़न के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए काम किया है.

अहंगर ने एक बयान में कहा कि एनआईए ने जो दस्तावेज जब्त किए हैं उनमें बलपूर्वक गुमशुदगी और राज्य सुरक्षा बलों द्वारा मनमाने हिरासत और यातनाओं समेत पीड़ितों और उनके परिवारों तथा उनके बयानों से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां दर्ज थीं. अहंगर ने उन लोगों के खिलाफ संभावित बदले की कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की है. अधिकारियों ने परवेज और उनके घर के अन्य सदस्यों के मोबाइल फोन जब्त कर लिए.

एनआईए ने एजेन्स फ्रांस-प्रेस के परवेज़ बुखारी के घर; श्रीनगर के अंग्रेजी अखबार ग्रेटर कश्मीर के कार्यालय; और कमजोर समुदायों को शिक्षा और चिकित्सा सहायता प्रदान करने वाले गैर सरकारी संगठन एथ्राउट पर भी छापा मारे.

दिल्ली में, अधिकारियों ने चैरिटी एलायंस और ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन के यहां छापा मारा. उन्होंने चैरिटी एलायंस के प्रमुख और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल-इस्लाम खान के घर पर भी छापा मारा. दिल्ली में फरवरी की सांप्रदायिक हिंसा में पुलिस की पक्षपातपूर्ण कार्रवाई पर मुखर रहे खान पर सोशल मीडिया में “भड़काऊ” बयान देने के लिए पूर्व में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था. खान ने कहा कि उन्हें डर है कि यह उन्हें “किसी आतंकी मामले या दंगे में” फंसाने की कोशिश है.

19 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर सरकार ने समाचार पत्र कश्मीर टाइम्स के श्रीनगर कार्यालय को सील कर दिया. यह इस अखबार के कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन के खिलाफ बदले की कार्रवाई थी जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सरकार के दूरसंचार प्रतिबंधों को चुनौती दी थी. राष्ट्रीय सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर की विशेष स्वायत्त स्थिति रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने के अपने फैसले के बाद राज्य में व्यापक प्रतिबंध लगाए थे. याचिका पर फैसला सुनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट तक पहुंच को मौलिक अधिकार घोषित किया और सरकार को संचार प्रतिबंधों में ढील देने का निर्देश दिया.

हालांकि सरकार ने पिछले एक साल के दौरान राज्य में कुछ प्रतिबंधों में ढील दी है, लेकिन इसने जम्मू और कश्मीर के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में कठोर और भेदभावपूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है, जहां सैकड़ों लोग बिना किसी आरोप के हिरासत में हैं, आलोचकों को गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है और इंटरनेट तक पहुंच सीमित है.

भारत और विदेश में इन छापेमारियों की व्यापक निंदा हुई. वर्ल्ड आर्गेनाईजेशन अगेंस्ट टार्चर और इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर ह्यूमन राइट्स के साझेदार द ऑब्जर्वेटरी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ने “उत्पीड़न की इन नई कार्रवाइयों पर चिंता व्यक्त की है, जो समूहों और व्यक्तियों को उनकी मानवाधिकार गतिविधियों के लिए केवल दंडित करने और डराने के उद्देश्य से की गई कार्रवाइयां मालूम होती हैं.” जम्मू और कश्मीर के आठ पत्रकार समूहों ने कहा कि ये छापे “पत्रकारों को चुप कराने और प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से” किए जा रहे उत्पीड़न की कड़ी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, “मानवाधिकार कार्यकर्ता परवेज और श्रीनगर स्थित ग्रेटर कश्मीर के कार्यालय पर एनआईए की छापेमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति पर भारत सरकार की क्रूरतापूर्ण कार्रवाई की एक और बानगी है.”

भारत सरकार अपनी नीतियों पर सवाल या आलोचना करने वाले संगठनों को परेशान करने, उनकी गतिविधियों में बाधा डालने और विदेशी अनुदान से वंचित करने के लिए विदेशी दाताओं से प्राप्त अनुदान पर नज़र रखने वाले विदेशी सहायता विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) का अधिकाधिक इस्तेमाल कर रही है. एफसीआरए के कथित उल्लंघन के कारण सरकार द्वारा बैंक खातों से लेन-देन पर रोक के बाद सितंबर में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को अपने कार्यालय बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

अक्टूबर में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेशलेट ने कहा कि वह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कानून का इस्तेमाल “वास्तव में मानवाधिकारों की रिपोर्टिंग और वकालत करने, जिसे सरकार आलोचनात्मक कार्य मानती है, से गैर सरकारी संगठनों को रोकने या दंडित करने के लिए किया जा रहा है.” बेशलेट ने 2019 में लागू भेदभावपूर्ण नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों और 2018 में भीमा कोरेगांव में दलित अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए हुए प्रदर्शन में भाग लेने के लिए कार्यकर्ताओं को आतंकवाद निरोधी कानून के तहत निशाना बनाने की भी आलोचना की है.

मई और अक्टूबर में, यूरोपीय संसद की मानवाधिकारों की उपसमिति के अध्यक्ष ने मानवाधिकार रक्षक, पत्रकार और शांतिप्रिय आलोचकों की गिरफ्तारी समेत भारत में “कानून के शासन में गिरावट” को देखकर चिंता व्यक्त की.

गांगुली ने कहा, “भारत सरकार वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करना चाहती है, लेकिन इसके बजाय वह देश के लंबे समय से सम्मानित लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने के लिए अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना कर रही है. सरकार को चाहिए कि वह लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बुलंद करते हुए और अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए अपने रास्ते में बदलाव लाए.”

GIVING TUESDAY MATCH EXTENDED:

Did you miss Giving Tuesday? Our special 3X match has been EXTENDED through Friday at midnight. Your gift will now go three times further to help HRW investigate violations, expose what's happening on the ground and push for change.
Region / Country