Skip to main content

भारत: एक्टिविस्टों और अधिकार समूहों पर बढ़ता हमला

शांतिपूर्ण विरोध करने वालों को हैरान-परेशान करना और संगठन बनाने की आज़ादी का गला घोंटना बंद करो

सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध ठहराने वाले औपनिवेशिक कानून को निरस्त किए जाने के फैसले पर 6 सितंबर, 2018 को बेंगलुरु, भारत में जश्न मनाते लोग. © 2018 एजाज राही/एपी फोटो

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज जारी वर्ल्ड रिपोर्ट 2019 में कहा कि साल 2018 में भारत सरकार ने आलोचना करने वालों को बड़े पैमाने पर हैरान-परेशान किया और कई मौकों पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की. सरकार ने शांतिपूर्ण विरोध को कुचलने के लिए राजद्रोह और आतंकवाद-निरोधी काले कानूनों का इस्तेमाल किया. सरकार के कार्यों या नीतियों की आलोचना करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को बदनाम करने और उनकी आवाज़ दबाने के लिए विदेशी अंशदान विनियमनों और अन्य कानूनों का दुरुपयोग किया.

हालांकि, सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालते हुए लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) लोगों की पूर्ण संवैधानिक सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त किया. इस फैसले ने ऐसे अन्य देशों में सुधार के लिए राह बनाई जहां आज भी समलैंगिक यौन-संबंधों से जुड़े ब्रिटिश औपनिवेशिक कानून लागू हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भारत में असंतोष जाहिर करने की गुंजाइश लगातार कम होती जा रही है और जो कोई भी सरकारी कार्यों की आलोचना करता है, वह निशाना बन सकता है. ऐसा लगता है कि एक्टिविस्टों और पत्रकारों द्वारा उजागर की जाने वाली समस्याओं के समाधान के बजाए उन्हें चुप कराने में सरकार की ज्यादा दिलचस्पी है.”

ह्यूमन राइट्स वॉच ने 674 पृष्ठों वाली वर्ल्ड रिपोर्ट 2019, जो इसका 29वां संस्करण है, में सौ से अधिक देशों में मानवाधिकार की स्थिति की समीक्षा की है. कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ ने अपनी भूमिका में बताया कि अनेक देशों में लोकलुभावनवादी लोगों द्वारा जिस तरह से घृणा और असहिष्णुता फैलाई जा रही है, उससे प्रतिरोध पनप रहे हैं. अधिकारों का सम्मान करनेवाली सरकारों के नए संश्रय, जिन्हें अक्सर नागरिक समूहों और जनसमुदाय का साथ हासिल है, निरंकुश ज्यादतियों के मुद्दे उठा रहे हैं. उनकी कामयाबी मानवाधिकारों की रक्षा करने, यहां तक की सबसे मुश्किल घड़ियों में भी ऐसी जिम्मेवारियों का निर्वाह करने की संभावनाओं का इजहार करती है.

महाराष्ट्र पुलिस ने प्रतिबंधित माओवादी संगठन का सदस्य होने के आरोप में दस नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और लेखकों को गिरफ्तार किया. बीते साल के अंत तक, इनमें से आठ अभी भी जेल में थे और एक को घर में नजरबंद रखा गया था.

कई पत्रकारों और मीडिया संगठनों को भारी-भरकम हर्जाने वाले मानहानि मुकदमों का सामना करना पड़ा. उन्हें अपनी जिन रिपोर्टों के लिए मुकदमों का सामना करना पड़ा उनमें सरकार द्वारा भारतीय वायु सेना के लिए विमानों की खरीद के विवादास्पद सौदे पर उनकी रिपोर्टिंग शामिल है. इस सौदे में व्यवसायी अनिल अंबानी के रिलायंस समूह को कथित रूप से फायदा पहुंचाने का आरोप है.

जून में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर पहली रिपोर्ट जारी की. यह रिपोर्ट जुलाई 2016 से शुरू हुए उत्पीड़न पर केंद्रित है, जब सैनिकों द्वारा एक आतंकवादी नेता की हत्या के विरोध में हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ था. सरकार ने मानवाधिकार रक्षा में असफलताओं का सामना करने और शिकायतों को दूर करने के बजाय रिपोर्ट को खारिज कर दिया.

भीड़ की हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं, जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिमों के खिलाफ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कट्टरपंथी हिंदू समूहों की हिंसा शामिल है. जुलाई में, सुप्रीम कोर्ट ने “भीड़तंत्र के इन भयावह कृत्यों” की निंदा की और “निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक” उपायों के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए.

भारत के #MeToo अभियान ने बीते साल तब जोर पकड़ा जब कई महिलाओं, जिनमें कई मीडिया और मनोरंजन उद्योग की थीं, ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और हमले के अपने अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा किया. प्रतिरोध की इन आवाज़ों ने 2013 में बने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न अधिनियम को पूरी तरह कार्यान्वित करने का दवाब बनाया. यह अधिनियम कार्यस्थल पर शिकायतों की जांच और उनके निवारण के लिए एक प्रणाली निर्धारित करता है.

अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. इसके बजाय, यौन हिंसा, धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव, एक्टिविस्टों पर हमलों और सुरक्षा बलों की जवाबदेही की कमी को दूर करने में विफल रहने के लिए सरकार को पूरे साल संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की तीव्र आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. नस्लवाद पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने अक्टूबर में सात रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेजने के सरकार के फैसले को “सुरक्षा के उनके अधिकार की ज्वलंत अवहेलना” करार दिया.

Your tax deductible gift can help stop human rights violations and save lives around the world.

Region / Country