Skip to main content

आरिफ़ जाफ़र: जिन्होंने लड़ी समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने की लड़ाई

Published in: BBC

भारत के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोलकाता में 6 सितंबर को जश्न मनाते लोग. कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं हैं. © 2018 दिव्यांशु सरकार/एएफ़पी/गेट्टी इमेजेज

सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार को आए ऐतिहासिक फैसले ने समलैंगिकता को अपराध घोषित करने वाले औपनिवेशक काल के कानून को खत्म कर दिया.

इस फैसले पर एलजीबीटी एक्टिविस्ट आरिफ जाफ़र से मैंने बात की. इस मामले में खुद एक याचिकाकर्ता आरिफ जाफ़र को धारा 377 के तहत 47 दिन जेल में बिताने पड़े थे.

चश्मा लगाए हुए एक छोटे कद का शख्स जिसकी कमीज में एक चमकदार सा गुलाबी रंग का बटन लगा हुआ था. वह अपने दिल के सबसे करीबी मुद्दे का सुप्रीम कोर्ट के बाहर समर्थन कर रहा था.

फ़ैसले के इंतज़ार में सुप्रीम कोर्ट के लॉन में खड़े और कई तरह की आशंकाओं से घिरे आरिफ़ ने उस वक्त को याद करते हुए कहा, ''वह बहुत दर्दनाक था.''

आरिफ़ ने बताया, ''सिर्फ़ मेरी लैंगिकता के कारण मुझे पानी तक नहीं दिया जाना और रोज पीटना एक भयानक अनुभव था. मुझे उस वक्त के बारे में बात करने में भी करीब 17 साल का समय लगा और तब जाकर मैं हिम्मत जुटा पाया.''

समलैंगिकता को आपराधिक श्रेणी से हटाने की मांग को लेकर याचिका दाखिल करने वालों में आरिफ़ जाफ़र भी शामिल थे.

उनकी याचिका में 2013 के उस फ़ैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की गई थी, जिसमें समलैंगिकता को अपराध मानने वाली औपनिवेशिक काल की धारा 377 को बरकरार रखा गया था.

यह क़ानून ब्रिटिश काल की निशानी है जिसका इस्तेमाल एलजीबीटी के लोगों के साथ भेदभाव करने के लिए किया जाता था. यह पुलिस और अन्य लोगों के हाथ में एलजीबीटी को प्रताड़ित, शोषित और ब्लैकमेल करने का एक हथियार था.

लेकिन, खुद को गे मानने वाले आरिफ़ जाफ़र के मुताबिक ये कानून उत्पीड़न से भी कहीं आगे चला गया था.

आरिफ़ को उनके चार सहकर्मियों के साथ एक संस्था 'भरोसा ट्रस्ट' से गिरफ्तार किया गया था. उन पर समलैंगिक और ट्रांसजेंडर लोगों को जानकारी, सलाह देने और उनका समर्थन करने का आरोप था.

उन्हें 8 जुलाई 2001 को धारा 377 के तहत गिरफ्तार किया गया था. यहां त​क कि गिरफ्तारी से पहले पुलिस ने उन्हें सरेआम पीटा भी था.

पुलिस ने उनके दफ्तरों पर छापेमारी की और लैंगिकता पर किताबों, जानकारी देने के मकसद से रखने गए कंडोम और डिल्डो को जब्त कर लिया गया. इस सब सामान को उनकी 'विकृति' के सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश किया गया.

आरिफ़ जाफ़र ने उन 47 दिनों पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए फ़रवरी 2018 में लिखा था, ''शाम तक भारतीय न्यूज चैनल्स पर एक 'गे सेक्स रैकेट' की खबर दिखाई जा रही थी और वो लोग ये बात कर रहे थे कि मैं कैसे पाकिस्तान से फंड लेकर भारत के मर्दों को समलैंगिक बना रहा हूं.''

पुलिस ने कोर्ट में कहा था आरिफ़ और उनके सहकर्मी समलैंगिकता को बढ़ावा देने की एक साजिश का हिस्सा हैं.

उन्होंने कई बार ज़मानत की भी गुहार लगाई लेकिन उसे रद्द कर दिया गया.

आरिफ़ जाफ़र का आरोप था कि समलैंगिकता के विरोध में पुलिसवालों की निजी राय के कारण उन्हें और उनके सहयोगियों को पीटा गया था.

आरिफ़ ने अप्रैल 2017 को समलैंगिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

हाल में आया फैसला समलैंगिक संबंधों की वैधता को लेकर एक लंबे संघर्ष का नतीजा है.

साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2009 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों को धारा 377 से बाहर कर दिया था.

इस फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लैंगिक अल्पसंख्यकों के साथ देश या समाज द्वारा भेदभावपूर्ण व्यवहार किए जाने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं.

आरिफ़ ने बताया, ''इसलिए मैं अपनी कहानी सामने लाना चाहता था कि कैसे मुझे और मेरे सहकर्मियों को इस कानून ने प्रभावित किया था और 17 साल बाद भी आज हम कैसे परेशानी का सामना कर रहे हैं.''

हालांकि, जाफ़र और उनके सहकर्मियों के ख़िलाफ़ चला मामला अब भी ख़त्म नहीं हुआ है पर वो कहते हैं कि गुरुवार को आए फैसले से उन्हें कुछ सुकून जरूर मिला है.

यह फैसला सुनाने वाली पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था, ''एलजीबीटी समुदाय और उनके परिवार को दशकों से जो अपमान और बहिष्कार झेलना पड़ा उसके लिए इतिहास को उनसे माफी मांगनी चाहिए. इस समुदाय के लोग हिंसा और उत्पाीड़न के खौफ़ में जिंदगी जीने को मजबूर थे.''

सुप्रीम कोर्ट के बाहर इन शब्दों को दोहराते हुए आरिफ़ जाफ़र भावुक हो गए.

उन्होंने कहा, ''ये शब्द हमारे लिए बहुत मायने रखते हैं. 30 साल का ये सफर बेकार नहीं गया. इस फैसले ने इसका महत्व साबित कर दिया.''

GIVING TUESDAY MATCH EXTENDED:

Did you miss Giving Tuesday? Our special 3X match has been EXTENDED through Friday at midnight. Your gift will now go three times further to help HRW investigate violations, expose what's happening on the ground and push for change.
Region / Country
Topic