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नेपाल: अदालत द्वारा समलैंगिक जीवनसाथी को मान्यता देने का आदेश

यह आदेश वैवाहिक संबंध में समानता की पुष्टि करता है

काठमांडू में समान कानूनी अधिकारों और जून को प्राइड माह घोषित करने की मांग के समर्थन में प्राइड परेड में भाग लेते एलजीबीटीक्यूआईए कार्यकर्ता और समर्थक, नेपाल, 11 जून, 2022 © 2022 अभिषेक महाराजन/सिपा यूएसए वाया एपी इमेजेज

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वह नेपाली नागरिक के समान लिंग वाले विदेशी जीवनसाथी को मान्यता दे.


अदालत ने सरकार को यह भी आदेश दिया कि वह अदालत के आदेश पर 2015 में तैयार की गई उस रिपोर्ट पर तत्काल विचार करे, जिसमें समलैंगिक संबंधों को व्यापक मान्यता देने की सिफारिश की गई थी. लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) लोगों के अधिकारों को मान्यता देने वाले 2007 और 2017 के निर्णयों के आधार पर अदालत ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक जोड़ों को मान्यता देने में विफलता नेपाल के संविधान और उसके अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन करती है.

ह्यूमन राइट्स वॉच के वरिष्ठ एलजीबीटी अधिकार शोधकर्ता काइल नाइट ने कहा, "सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिक संबंधों को मान्यता देने के अदालती आदेशों के क्रियान्वयन में सरकार की देरी पर फिर से ध्यान खींचा है. पूरी दुनिया में नेपाल एलजीबीटी अधिकारों का अगुआ रहा है और सरकार को चाहिए कि नीतियों में ठोस बदलाव करके इस भूमिका का निर्वाह करे."

नेपाली नागरिक, पोखरेल और जर्मन नागरिक, वोल्ज़ के एक समलैंगिक जोड़े ने अधीप पोखरेल और टोबायस वोल्ज़ बनाम गृह मंत्रालय, आप्रवासन विभाग, का मामला दायर किया था. इस जोड़ी ने 2018 में जर्मनी में कानूनी रूप से शादी की थी. उन्होंने जुलाई 2022 में वोल्ज़ के गैर-पर्यटक वीजा के लिए आवेदन किया था, जो उन्हें नेपाल में विपरीत लिंग के नेपाली नागरिक के विदेशी विवाहित जीवनसाथी के समान अधिकारों का हकदार बनाता. नेपाली अधिकारियों ने इस आधार पर अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था कि आवेदन पत्र में "पति" और "पत्नी" के विवरण का उल्लेख है और इसमें दो पतियों के विवरण दर्ज करने का कोई उल्लेख नहीं है.
 

पोखरेल और वोल्ज ने नेपाल में संबंधित एजेंसियों के समक्ष जर्मनी में संपन्न अपने विवाह को पंजीकृत कराने का प्रयास किया, मगर उनके इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया. उन्होंने अगस्त 2022 में वोल्ज़ के गैर-पर्यटक वीजा के लिए फिर से आवेदन किया. उन्होंने सुमन पंत बनाम गृह मंत्रालय, आप्रवासन विभाग, और अन्य (2017) मामले से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले के आधार पर विदेशी समलैंगिक जीवनसाथी को गैर-पर्यटक वीजा जारी करने के लिए आवेदन किया, लेकिन अधिकारियों ने फिर से इसे अस्वीकार कर दिया.

2017 में, एक नेपाली, सुमन पंत और एक अमेरिकी, लेस्ली लुइन मेलनिक के लेस्बियन जोड़े को सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज करना पड़ा था क्योंकि अमेरिकी जीवनसाथी को गैर-पर्यटक वीजा से वंचित कर दिया गया था. अदालत ने सरकार को वीज़ा जारी करने का आदेश दिया और अपने फैसले में कहा कि "यदि कोई विदेशी नागरिक नेपाली नागरिक से शादी करने का दावा करते हुए विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र जमा करता है और वह नेपाली नागरिक अपने वीज़ा आवेदन में इस शादी की पुष्टि करता है, तो फिर उस विदेशी नागरिक को वीज़ा जारी करने से इनकार नहीं किया जा सकता है."

यह मामला एवं पोखरेल और वोल्ज का मामला सुप्रीम कोर्ट के अन्य फैसलों से काफी प्रभावित रहा है, जिसमें सुनील बाबू पंत और अन्य बनाम नेपाल सरकार का ऐतिहासिक मामला भी शामिल है. 2007 में, सुनील बाबू पंत सहित चार एलजीबीटी कार्यकर्ताओं की एक याचिका पर नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को समलैंगिक संबंध को मान्यता देने वाले दुनिया भर के कानूनों के अध्ययन के लिए समिति बनाने का आदेश दिया था.


न्यायाधीशों ने अपने फैसले में लिखा: "[हम] मानते हैं कि यह एक वयस्क को किसी अन्य वयस्क के साथ अपनी पूरी सहमति और इच्छा के अनुसार वैवाहिक संबंध बनाने का मौलिक अधिकार है. समलैंगिक विवाह को संबंधित लोगों की पसंद और अधिकारों के साथ-साथ समाज, परिवार और अन्य सभी के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए."

अदालत के आदेश पर गठित समिति द्वारा 2015 में प्रकाशित रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुसार, "नेपाल सरकार को वह कानूनी प्रावधान हटाना चाहिए जिसके मुताबिक विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच हो सकता है और इस मानदंड को स्वीकार करना चाहिए कि विवाह दो व्यक्तियों के बीच हो सकता है और समानता के सिद्धांत के आधार पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करनी चाहिए."


अब, पोखरेल और वोल्ज़ के मामले में, न्यायाधीशों ने एक बार फिर आप्रवासन विभाग को एक विदेशी विवाहित जीवनसाथी को गैर-पर्यटक वीजा जारी करने का आदेश देते हुए लिखा: "इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि समलैंगिक विवाह एक ऐसा विषय माना जाना चाहिए जिसकी संविधान में परिकल्पना की गई है और जो नेपाल के संविधान, इस न्यायालय के निर्णय, इस न्यायालय के आदेश पर गठित समिति की रिपोर्ट और नेपाल द्वारा स्वीकृत मानवाधिकार समझौतों के अनुरूप है."

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि नेपाल सरकार को एलजीबीटी अधिकारों के अगुआ की अपनी प्रतिष्ठा पर खरा उतरना चाहिए और एलजीबीटी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए नए कानून प्रस्तावित करने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में एलजीबीटी अधिकारों के अन्य मामलों पर विचार कर रहा है. इनमें ट्रांससेक्सुअल महिला रुखशाना कपाली का मामला भी है, जिसमें उन्होंने कानूनी रूप से महिला के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए याचिका दायर की है.


नाइट ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने 16 साल पहले समलैंगिक संबंधों को मान्यता देने के मुद्दे का अध्ययन करने के लिए सरकारी समिति गठित करने का आदेश दिया था और इस समिति ने आठ साल पहले सरकार को समलैंगिक संबंधों को मान्यता देने के लिए ठोस और व्यापक कार्रवाई करने की सिफारिश की थी. सरकार को चाहिए कि समिति की रिपोर्ट और कानूनी परिवर्तन के संबंध में अदालत के व्यापक विश्लेषण की तत्काल समीक्षा करे ताकि नेपाल के समलैंगिक जोड़ों को उनके समान अधिकार प्रदान किए जा सकें."

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