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अफगानिस्तान में मानवाधिकार संकट पर भारतीय विदेश मंत्री के नाम पत्र

प्रिय विदेश मंत्री,

हम आपको यह पत्र लिखकर आपकी सरकार से आग्रह करते हैं कि अफगानिस्तान में मानवीय और मानवाधिकार संकट को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाए और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा मानवाधिकार परिषद में अपनी भूमिका में अधिकार केन्द्रित दृष्टि अपनाकर असाधारण जोखिम में फंसे अफगानों को सुरक्षा प्रदान करने में मदद करे.

खास तौर से, हम तत्काल मांग करते हैं कि आप अफगानिस्तान इंडिपेंडेंट ह्यूमन राइट्स कमीशन और 50 से अधिक नागरिक समाज समूहों की मदद करें जो एक ऐसे जांच तंत्र के निर्माण की मांग कर रहे हैं जो लैंगिक रूप से उत्तरदायी हो और जिसके पास आने वाले कई वर्षों तक कार्य करने का अधिकार हो. साथ ही जांच और नियमित रूप से रिपोर्ट करने, सभी पक्षों द्वारा देश भर में किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन और उत्पीड़न के साक्ष्य एकत्र करने एवं अफगानिस्तान में बढ़ते मानवाधिकार और मानवीय संकट को दूर करने के लिए संसाधनों की उनकी मांग का समर्थन करें. यह इसलिए महत्वपूर्ण होगा ताकि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश संकट दूर करने के लिए कर्रवाई करने, अफगानिस्तान के लोगों के अधिकारों और जीवन की रक्षा हेतु मदद करने और भविष्य में अपराध रोकने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय जमीनी हालात से पूरी तरह वाकिफ हों. यह जवाबदेही पूरी करने में मौजूद उन अंतरालों को दूर करने में मदद करेगा जो देश भर में गंभीर उल्लंघनों और उत्पीड़नों को बढ़ावा देते हैं, और यह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपराधों के लिए जवाबदेही तय करने संबंधी अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय प्रयासों में भी सहयोग करेगा.

अफगानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा

संयुक्त राज्य अमेरिका के 31 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान से चले जाने के बाद बहुत से  अफ़गान तालिबान के उत्पीड़न से डरे हुए हैं. भारत सरकार भारतीय दूतावास के सभी कर्मियों और 260 भारतीय नागरिकों सहित कम-से-कम 550 लोगों को निकाल पाने में कामयाब हुई. भारत सरकार ने भारत की यात्रा करने वाले अफगान नागरिकों के लिए एक आपातकालीन ई-वीजा प्रणाली शुरू की है, जिससे उन्हें छह महीने तक भारत में रहने की अनुमति मिलती है.

भारतीय अधिकारियों ने कहा है कि वे भारतीय नागरिकों को बाहर निकलने को प्राथमिकता दे रहे हैं और ई-वीजा लागू करने से ऐसे सभी अफगानों के लिए पहले जारी वीजा अमान्य कर दिए गए हैं जो भारत में नहीं हैं. इनमें वे छात्र भी शामिल हैं जो कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए विश्वविद्यालयों को बंद किए जाने के बाद वापस लौट गए थे.

अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण से पहले भारत में रहने वाले ऐसे अफगान नागरिकों की स्थिति के बारे में निर्णय अभी भी लंबित है जिनकी वीजा अवधि समाप्त हो गई है या भविष्य में समाप्त हो सकती है. साथ-ही-साथ ई-वीजा पर भारत पहुंचने वाले अफगान नागरिकों की स्थिति के बारे में फैसला लिया जाना बाकी है जिनकी वीजा अवधि छह महीने में समाप्त हो जाएगी.

हम जोखिम में पड़े अफ़ग़ान नागरिकों को निकालने के सरकार के प्रयासों का स्वागत करते हैं और आग्रह करते हैं कि किसी भी विचाराधीन वीज़ा नीति में उन अफ़ग़ानों को शामिल किया जाए जिन्होंने भारत सरकार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से काम किया है. इनमें भारत में अध्ययन करने वाले अफगान, भारत में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले सुरक्षा बल, भारत समर्थित विकास या बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से जुड़े लोगों को भी शामिल किया जाए. साथ ही, इनमें भारत से जुड़ा माने जाने वाले अन्य सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से भारतीय संगठनों के स्थानीय साझेदार समूहों के ऐसे अफगान कर्मचारियों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिनकी पहचान अपनी भूमिका के कारण सार्वजनिक हो चुकी हो. उनके परिवार के सदस्यों को भी किसी भी वीजा योजना के योग्य माना जाना चाहिए.

हम भारत से यह भी आग्रह करते हैं कि यात्रा दस्तावेज़ प्रदान कर ऐसे अफ़गानों और उनके निकट संबंधियों, चाहे वे अफ़ग़ानिस्तान के अंदर हों या बाहर, चाहे पूर्व में उनका भारत से संबंध जैसा भी रहा हो, की मदद करने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाए जिनके समक्ष अपने पूर्व के काम या स्थिति के कारण तालिबान के उत्पीड़न का गंभीर खतरा मौजूद है. अनेक अफगान जो पहले से ही देश से बाहर हैं, या जो नई जगह पर बसने की प्रक्रिया में हैं, उन्हें सहायता की जरुरत है, और उन्हें तीसरे देशों में दस्तावेजों और सहायता की जरूरत पड़ सकती है.

विशेष जोखिम वाले लोगों में वैसे लोग शामिल हैं जिन्होंने मानवाधिकार, लोकतंत्र, महिलाओं के अधिकार और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया है. शिक्षाविद, शिक्षक, लेखक, पत्रकार और अन्य मीडियाकर्मियों; सरकार या सार्वजनिक जीवन में अहम जिम्मेदारियां निभाने वाली महिलाओं; और अन्य देशों के लिए काम करने वाले लोगों के समक्ष भी खतरा है. नृजातीय अल्पसंख्यक और शिया मुसलमान, खास तौर से हजारा एवं एलजीबीटी लोगों के समक्ष भी जोखिम अधिक है.

हम आपसे आग्रह करते हैं कि गंभीर जोखिम में फंसे अफगानों के लिए तत्काल स्थानांतरण और पुनर्वास कार्यक्रम की घोषणा करें. इनमें ऐसे विकल्प शामिल होने चाहिए जिसके द्वारा जोखिम का सामना कर रहे अफगान तीसरे देशों में मानवीय आधार पर वीजा के लिए आवेदन कर सकें और साथ ही अफगानिस्तान से उनकी सुरक्षित निकासी का मार्ग प्रशस्त किया जा सके.

इसके अलावा, हम आपसे आग्रह करते हैं कि शरण मांगने वालों अफगानों की शरणार्थियों के रूप में पहचान करने और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्रदान करने के लिए शरणार्थी निर्धारण प्रक्रिया तेज की जाए. हम आपसे यह भी आग्रह करते हैं कि अफ़ग़ान मूल के भारतीयों और भारत में रह रहे अफ़ग़ानों के उन रिश्तेदारों के पारिवारिक पुनर्मिलन आवेदनों को प्राथमिकता दें, जिन पर अफगानिस्तान में खतरा हो सकता है.

मानवीय सहायता और नागरिक समाज सहयोग

हम आपसे आग्रह करते हैं कि उन पड़ोसी देशों को मानवीय सहायता में वृद्धि करें जहां अफगान जान बचा कर भाग रहे हैं और उन्हें आश्रय देने वाले देशों की मदद करें. भारत सरकार को चाहिए कि अफगानिस्तान के अंदर और बाहर काम कर रहे ऐसे गैर-सरकारी समूहों की भी नए सिरे से मदद करे जो शरणार्थी पुनर्वास में सहायता करते हैं, और अन्य तरीकों से

महिलाओं, बच्चों, आंतरिक रूप से विस्थापितों और अन्य लोगों की जरूरतों समेत मानवीय सहायता और मानवाधिकार संबंधी जरूरतों को बढ़ावा देते हैं, इसके साथ-साथ उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, और अन्य महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करते हैं. सहायता और पुनर्वास संबंधी चर्चा में अफगान नागरिक समाज समूहों की भागीदारी महत्वपूर्ण है.

संयुक्त राष्ट्र: रिपोर्टिंग और फैक्ट-फाइंडिंग को मजबूत करना

हम भारत से आग्रह करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के चल रहे 48वें सत्र के दौरान, वह प्राथमिकता के आधार पर फैक्ट-फाइंडिंग मिशन या इसी तरह के किसी अंतरराष्ट्रीय जांच तंत्र के निर्माण का सक्रिय रूप से समर्थन करे. ऐसे मिशन या तंत्र का दायित्व होगा कि वह अफगानिस्तान में सभी पक्षों द्वारा देश भर में किए गए मानवाधिकार उल्लंघन तथा उत्पीड़नों की निगरानी करे, उससे संबंधित रिपोर्ट तैयार करे और साक्ष्य एकत्र करे.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने 13 सितंबर, 2021 के अपने अपडेट में, संकल्प 48/141 के तहत प्रयासों को जारी रखने के लिए प्रतिबद्धता को जाहिर किया है और “अफगानिस्तान में सामने आ रही मानवाधिकारों की स्थिति की बारीकी से निगरानी के लिए एक समर्पित तंत्र की स्थापना करके इस संकट की गंभीरता के अनुरूप साहसिक और जोरदार कार्रवाई करने की” अपील दोहराई है.

भारत को अन्य देशों के साथ मिलकर तालिबान से 30 अगस्त को पारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 का पालन करने का आग्रह करना चाहिए. यह प्रस्ताव तालिबान से अफगानिस्तान छोड़ने के लिए इच्छुक लोगों के वास्ते सुरक्षित रास्ता प्रदान करने, मानवीय सहायता प्रदान करने वाले संगठनों को पूरे देश में काम करने की अनुमति देने एवं महिलाओं और लड़कियों के प्रति दायित्वों सहित अपने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को पूरा करने को कहता है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सितंबर में अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) के गठन के आदेश को नवीनीकृत करने के लिए तैयार है. यूएनएएमए को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों के लिए, और अन्य समूहों के लिए जिनके अधिकारों के उल्लंघन का खतरा ज्यादा है, मानवाधिकारों के हनन की निगरानी और जांच करना जारी रखेगा. परिषद को यूएनएएमए को अपने निष्कर्षों पर सार्वजनिक रूप से रिपोर्टिंग जारी रखने का निर्देश देना चाहिए. यूएनएएमए को चाहिए कि  अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के अभियोजक कार्यालय के साथ-साथ अफगानिस्तान में युद्ध अपराधों और अन्य उत्पीड़नों की जांच करने वाले अन्य अंतरराष्ट्रीय या घरेलू संस्थाओं के साथ सूचनाएं और साक्ष्य साझा करे.

हमें आपके और आपकी टीम के साथ इन मुद्दों पर चर्चा कर प्रसन्नता होगी.

भवदीय,

ह्यूमन राइट्स वॉच

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