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भारत: व्यापक हिंसा को उजागर करते भीड़ के हमले

सरकार की अनदेखी से 'भीड़तंत्र' का विस्तार

 

एक बुजुर्ग कार्यकर्ता के साथ भीड़ द्वारा मार-पीट का वीडियो सामने आता है. युवकों के हमले में वह अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों में जमीन पर गिर जाते हैं.

ऐसे हमले डरानेवाले हैं, लेकिन दुख की बात है कि भारत में ऐसा असामान्य नहीं है.

9 दिसंबर, 2004 को स्टॉकहोम में पुरस्कार वितरण समारोह के बाद 'राईट लाइवलीहुड अवार्ड' के साथ भारत के हिंदू मानवाधिकार कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश. इस अवार्ड को आमतौर पर 'वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है. © 2004 रॉयटर्स/वुल्फगैंग रट्टी डब्ल्यूआर/एमडी

हाल में, 78-वर्षीय हिंदू सन्यासी स्वामी अग्निवेश पर झारखंड में हमला हुआ. वह दलित अधिकारों और बंधुआ मजदूरी उन्मूलन सहित कई सामाजिक मुद्दों पर लम्बे समय से आवाज़ बुलंद करते रहे हैं. अग्निवेश ने हमले के बाद कहा कि उन्हें झारखंड में सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी दल भारतीय जनता पार्टी की दो युवा इकाइयों द्वारा निशाना बनाया गया. अग्निवेश ने कहा, “उन्होंने आरोप लगाया कि मैं हिन्दुओं के खिलाफ बोल रहा था.”

भारत की केंद्र सरकार और साथ ही कई राज्य सरकारों की अगुवाई करने वाली भाजपा सुशासन और विकास के वादे का प्रचार करती है, लेकिन ऐसे समूहों के सदस्यों को शामिल करती है जो हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा को उग्र तरीके से बढ़ावा देते हैं.

हाल के वर्षों में, भाजपा से जुड़े समूहों ने गाय या गोमांस के अवैध व्यापार करने के शक पर मुसलमानों और दलितों पर हमले किए हैं. उन्होंने ईसाई जनजातीय समूहों और दलितों को हिंदू धर्म में “पुनःवापसी” के लिए मजबूर किया है. उन्होंने पत्रकारों, मानवाधिकार वकीलों और कार्यकर्ताओं पर हमले किए हैं. उनके नेताओं को अक्सर राजनीतिक संरक्षण मिलता है और कुछ तो राजनीतिक पदों पर भी आसीन हैं.

“आहत” भावनाओं को जाहिर करने के लिए हिंसा के साथ संगठित भीड़ के इस्तेमाल ने कई स्थानों पर कानून के शासन को कमजोर किया है. ऐसे कई हमलों में बड़ी संख्या में लोगों के साथ मार-पीट की गई है. यहाँ तक कि लोग मारे भी गए हैं. भारतीय मीडिया इसे “लिंचिंग” के रूप में पेश करती है. मंगलवार,17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने “भीड़तंत्र के ऐसे भयानक कृत्यों” की निंदा की और इस बढ़ती हुई समस्या से निपटने के लिए सरकार को नए कानून बनाने के लिए कहा. बीजेपी नेताओं ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है.

कानून केवल तभी असरदार साबित होते हैं जब उन्हें ज़मीन पर उतारा जाए और ऐसा लगता है कि इस हिंसा को समाप्त करने में भाजपा की ज्यादा रुचि नहीं है. हालाँकि भाजपा ने इससे इनकार किया है कि इसके सदस्य अग्निवेश पर हमले में शामिल थे, पर इसे उचित भी ठहराया है. एक नेता ने उन्हें “विदेशी चंदे पर पलने वाला धोखेबाज़” बताया और यह भी कहा कि उन्होंने “लोकप्रियता हासिल करने के लिए खुद इस हमले की योजना बनाई.” एक अन्य ने कहा कि अग्निवेश ने “धार्मिक भावना को ठेस पहुंचायी.”

जब तक भाजपा अपने समर्थकों को बच निकलने, यहाँ तक कि हत्या करके भाग निकलने का मौक़ा देने वाली इस सांकेतिक भाव-भंगिमा वाली दृष्टि को समाप्त नहीं करती, उसे भीड़तंत्र के नतीजों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.

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