(बैंकॉक) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज अपनी विश्व रिपोर्ट 2024 जारी करते हुए कहा कि एशिया में सरकारों द्वारा बढ़ता दमन स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों पर नकारात्मक असर डाल रहा है.
2023 में, चीन की सरकार ने शिनजियांग में उइगर और अन्य तुर्क मुसलमानों के खिलाफ मानवता-विरोधी अपराध करना जारी रखा और देश भर में उत्पीड़नकारी नीतियों और कार्रवाइयों में बढ़ोतरी की. उत्तर कोरिया और वियतनाम ने घरेलू स्तर पर दमन तेज किया. भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और बांग्लादेश, जिनमें 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं, ने लोकतांत्रिक संस्थानों और कानून के शासन पर आक्रमण बढ़ा दिए.
ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया निदेशक एलेन पियर्सन ने कहा, "एशिया की उत्पीड़नकारी सरकारों द्वारा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के समक्ष पैदा किए गए खतरे अधिकारों का सम्मान करने वाली सरकारों और लोकतांत्रिक संस्थानों से साहसिक और नए दृष्टिकोण की मांग करते हैं. पूरे एशिया में लोग अपने अधिकारों और स्वतंत्रता का दमन या उपेक्षा होते देख रहे हैं. इस क्षेत्र में मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए मजबूत नेतृत्व जरूरी है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो स्थिति और भी बदतर हो जाएगी.”
ह्यूमन राइट्स वॉच ने 734 पन्नों की विश्व रिपोर्ट, जो कि इसका 34वां संस्करण है, में 100 से अधिक देशों में मानवाधिकार स्थितियों की समीक्षा की है. अपने परिचयात्मक आलेख में, कार्यकारी निदेशक तिराना हसन ने कहा कि साल 2023 न केवल मानवाधिकारों के हनन और युद्धकालीन अत्याचारों के लिहाज से, बल्कि सरकारों के चुनिंदा आक्रोश और लेन-देन आधारित कूटनीति के लिए भी एक अहम साल था, जिसने उन लोगों के अधिकारों पर भी भारी आघात पहुंचाया जो इन सौदों का हिस्सा नहीं थे. उन्होंने आगे कहा कि लेकिन उम्मीद की किरण भी दिखाई दी जिसने एक अलग रास्ते की संभावना सामने रखी, उन्होंने सरकारों से कहा कि वे अपने मानवाधिकार दायित्वों का दृढ़ता से पालन करें.
यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका के विपरीत, एशिया में मानवाधिकार मानकों की सुरक्षा के लिए अहम मानवाधिकार घोषणापत्र या क्षेत्रीय संस्थानों का अभाव है. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन (आसियान), एक राजनीतिक संस्था है जो क्षेत्रीय स्तर पर उभरे मानवाधिकार संकटों को संबोधित करने में बार-बार असमर्थ साबित हुआ है. म्यांमार संकट के दौरान ऐसा साफ़ तौर पर देखा गया.
2023 में पूरे साल एशिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमले होते रहे. थाईलैंड में, मई में चुनावों के बाद, सबसे ज्यादा मत प्राप्त करने वाले दल को सेना द्वारा नियुक्त सीनेट और सैन्य शासन हुंटा द्वारा तैयार संविधान के तहत बनाए गए अन्य तंत्रों ने सरकार बनाने से रोक दिया. जुलाई में कंबोडिया की चुनावी प्रक्रिया को चुनाव नहीं माना जा सकता क्योंकि सरकार ने मुख्य विपक्षी दल को चुनाव में भाग लेने से रोक दिया. बांग्लादेश में 2024 के चुनावों से पहले, सरकारी तंत्र ने विपक्षी राजनीतिक दलों पर हमले तेज कर दिए, दस हजार से अधिक असंतुष्टों और विपक्षी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया.
वियतनाम और भारत में, सरकारी तंत्र ने पर्यावरण कार्यकर्ताओं सहित सरकार से असहमत और उसकी आलोचना करने वालों की मनमानी गिरफ्तारी और उन पर मुकदमे की कार्रवाई तेज कर दी. फिलीपींस में, यूनियन नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं पर कम्युनिस्ट का "ठप्पा" (रेड-टैगिंग) लगाकर निशाना बनाया गया. कंबोडिया में लंबे समय तक शासन करने वाले हन सेन ने अपना प्रधानमंत्री पद अपने बेटे हन मनेट को सौंप दिया. मनेट ने भी नागरिक समूहों और स्वतंत्र मीडिया पर कठोर प्रतिबंधों को जारी रखा.
उत्तर कोरिया की सर्वसत्तावादी सरकार ने अपनी सीमा को बंद रखते हुए अपनी आबादी को दुनिया के बाकी हिस्सों से लगभग पूरी तरह से काट दिया, लिहाजा, देश में मानवाधिकारों की स्थिति और खराब हो गई. अफगानिस्तान में, तालिबान ने मानवीय संकट के बावजूद अधिकारों पर, खास तौर से महिलाओं और लड़कियों पर कड़े प्रतिबंधों थोप दिए.
2023 में, एशिया में अनेक सरकारें अपनी सीमाओं के बाहर दमनकारी कार्रवाई में लिप्त रहीं. चीन की सरकार ने अन्य देशों में लोगों और संस्थानों को डराया-धमकाया. थाईलैंड में शरण चाहने वालों को म्यांमार, चीन, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में जबरन निर्वासित करने की धमकियों का सामना करना पड़ा.
सितंबर में, कनाडा सरकार ने बताया कि भारत सरकार के एजेंट कनाडा में एक अलगाववादी सिख कार्यकर्ता की हत्या में शामिल थे. इस दावे का भारत सरकार ने खंडन किया. नवंबर में, अमेरिकी अधिकारियों ने एक व्यक्ति पर आरोप लगाया कि उसने भारत सरकार के एक अधिकारी के साथ मिलकर अमेरिका में एक सिख कार्यकर्ता की हत्या की साजिश रची.
एशिया में लोकतांत्रिक सरकारों ने क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार मानकों की वकालत या समर्थन करने के लिए मामूली कोशिशें की. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जापान ने अधिकारों पर अपेक्षाकृत चुप्पी साधे रखी और उत्पीड़नकारी दक्षिण पूर्वी एशियाई सरकारों पर प्रतिबंध लगाने या लागू करने से इनकार कर दिया. इसी तरह, 2024-2025 के लिए सुरक्षा परिषद के लिए चुने गए दक्षिण कोरिया ने भी अन्य एशियाई देशों में मानवाधिकारों का समर्थन के लिए मामूली प्रयास किए. मानवाधिकार हनन करने वालों पर लक्षित प्रतिबंध लगाने में अन्य पश्चिमी सरकारों की तुलना में ऑस्ट्रेलिया ने बहुत धीमी कार्रवाई की. विशेष रूप से उत्पीड़न करने के लिए अन्य सरकारों द्वारा प्रतिबंधित चीनी अधिकारियों के मामले में ऑस्ट्रेलिया का ढीला-ढाला रवैया रहा.
भारत सरकार का अतीत में म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने का जो रवैया रहा है, अब उसने इस पर अमल करना पूरी तरह से बंद कर दिया है. हाल के वर्षों में इंडोनेशिया एक ऐसे देश के रूप में उभरा है जहां अधिकारों का ज्यादा सम्मान किया जाता है लेकिन इसके बावजूद, यहां की सरकार दूसरी जगहों पर मानवाधिकारों या लोकतांत्रिक शासन की हिमायत नहीं कर पाई.
पियर्सन ने कहा, "एशिया के स्थापित लोकतंत्र – खास तौर से भारत, इंडोनेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया – इस क्षेत्र या दुनिया में मानवाधिकारों की अग्रगति का नेतृत्व करने में नाकाम रहे हैं. उन्हें यह समझना चाहिए कि उनकी सीमाओं के बाहर होने वाला दमन उनके घर में भी मानवाधिकारों को प्रभावित करता है."