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भारत: तकनीक का इस्तेमाल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करने के लिए न हो

प्रश्न-उत्तर दस्तावेज टेक फर्म, व्यक्तिगत आंकड़ों के दुरुपयोग, हिंसा को बढ़ावा जैसे मुद्दों को संबोधित करते हैं

आगामी आम चुनावों में मतदाताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने के एक कार्यक्रम में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रंगों से अपने चेहरे को रंगे हुए स्कूल शिक्षक, चेन्नई, भारत, 28 मार्च, 2024 © 2024 एपी फोटो/आर. पार्थीभन

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज प्रश्न-उत्तर दस्तावेज़ जारी कर कहा कि भारतीय सरकारी तंत्र द्वारा डिजिटल इकोसिस्टम पर व्यापक नियंत्रण रखे जाने के कारण भारत के मतदाता इन चिंताओं के बीच मतदान करेंगे कि आम चुनाव के मैदान में असमानता की संभावना है. ये  चुनाव 19 अप्रैल, 2024 से शुरू होकर छह सप्ताह तक चलेंगे. इसके बाद लोक सभा के 543 सीटों पर बहुमत हासिल करने वाला राजनीतिक दल या गठबंधन प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार नामजद करेगा और सरकार का गठन करेगा.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने चुनावों से पहले भारत के ऑनलाइन माहौल के संभावित खतरों की जांच-परख की. सरकारी तंत्र ने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों पर अपना शिकंजा कस दिया है और बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत आंकड़े इकट्ठा किए हैं. ये चुनाव अभियान को प्रभावित कर सकते हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने ऐसे विशेष प्रयासों का विवरण प्रस्तुत किया है जिनपर टेक्नोलॉजी कंपनियां इस चुनाव में अपनी मानवाधिकार जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए अमल कर सकती हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच के कार्यकारी सहायक निदेशक, प्रौद्योगिकी और मानवाधिकार, डेबरा ब्राउन, ने कहा, “भारत के चुनाव में टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल का व्यापक खतरा है और इस कारण चुनाव में माहौल को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में और ज्यादा मोड़ा जा सकता है. भारत के चुनाव आयोग को चाहिए कि यह सुनिश्चित करे कि तमाम राजनीतिक दल आदर्श आचार संहिता का पालन करें और अपने प्रचार अभियान में मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें.”

ह्यूमन राइट्स वॉच ने लोकप्रिय कंपनियों की नीतियों की समीक्षा की और पाया कि सभी कंपनियों को अपने उत्पादों, सेवाओं और कारोबार के ऐसे किसी भी पहलू पर और अधिक ध्यान देना चाहिए जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं, इसमें योगदान दे सकते  हैं या इससे जुड़े हो सकते हैं.

भारत के राजनीतिक दल डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से बड़े पैमाने पर प्रचार करते हैं. आगामी चुनावों से पहले, 2024 के प्रथम तीन माह में गूगल पर राजनीतिक विज्ञापनों में खूब तेजी आई है. पिछले तीन महीनों के दौरान राजनीतिक दलों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गूगल और मेटा दोनों पर सबसे ज्यादा विज्ञापन दिए हैं और उसने व्हाट्सएप पर भी बड़े पैमाने पर संपर्क अभियान चलाया है.

हाल के वर्षों में, भारत के सरकारी तंत्र ने आलोचनात्मक भाषण को प्रतिबंधित करने और सरकार से संबद्ध तत्वों के ऑनलाइन भाषण को जारी रखने के लिए तकनीकी कंपनियों पर औपचारिक और अनौपचारिक दबाव डाला है जोकि इन डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों की नीतियों का सीधा-सीधी अतिक्रमण है. भारत किसी भी अन्य देश की तुलना में इंटरनेट पर सबसे अधिक पाबंदी लगाता है. यहां का सरकारी तंत्र अक्सर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानकों का उल्लंघन करते हुए राजनीतिक विरोध और सरकार की आलोचना पर अंकुश के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगाता है.

व्यक्तिगत आंकड़े, जिनमें लोगों की पहचान, उम्र, धर्म, जाति, स्थान, व्यवहार, संपर्क, गतिविधियों और राजनीतिक विश्वास के बारे में संवेदनशील और महत्वपूर्ण जानकारियां शामिल हो सकती हैं, का गलत इस्तेमाल भारत के चुनावों में चिंता का प्रमुख विषय है. भारत ने व्यापक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा तैयार किया है जिसके जरिए भारतीय सामाजिक-सुरक्षा कार्यक्रमों का लाभ उठाते हैं. भारत सरकार ने ऐसे सक्षम डेटा संरक्षण कानूनों की गैर-मौज़ूदगी के बीच बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत आंकड़े इकट्ठा किए हैं जो चुनाव प्रचार के दौरान आंकड़ों का दुरुपयोग रोकते और निजता संबंधी अधिकारों को समुचित सुरक्षा प्रदान करते.

16 मार्च से शुरू हुए अभियान के दौरान व्यक्तिगत आंकड़ों के दुरुपयोग की खबरें सामने आ चुकी हैं. चुनाव आयोग ने 21 मार्च को सरकार से कहा कि वह मतदाताओं को सरकारी नीतियों को बढ़ावा देने वाले संदेश भेजना बंद करे क्योंकि यह चुनाव अभियान से संबंधित दिशानिर्देशों का उल्लंघन है. संदेश और इससे संबंधित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पत्र ने आंकड़ों की निजता के साथ-साथ राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सरकारी संचार तंत्र के दुरुपयोग संबंधी चिंताओं को उजागर किया.

हाल के वर्षों में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों की इस कारण आलोचना होती रही है कि वे लोकतांत्रिक चुनावों में भागीदारी को कमजोर करने में अपने प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल की रोकथाम  और इसके लिए पर्याप्त निवेश करने में नाकामयाब रहे हैं. भारत में, मेटा को नफरती भाषण और हिंसा उकसाने वाली सामग्रियों पर रोक लगाने में विफल रहने और पिछले चुनावों के दौरान ऑनलाइन राजनीतिक प्रचार में भाजपा को अनुचित लाभ पहुंचाने में मदद के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है.

सस्ते और कम तकनीकी विशेषज्ञता वाले जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल की व्यापक उपलब्धता नई चिंताएं पैदा करती है. जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल किसी उम्मीदवार, अधिकारी या मीडिया संस्थान के नाम पर भ्रामक वीडियो, ऑडियो रिकॉर्डिंग और तस्वीरें तैयार करने के लिए किया जा सकता है. इन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेजी से प्रसारित किया जाता है, जो चुनाव की शुचिता को संभावित नुकसान पहुंचा सकते हैं या धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, नफरत या भेदभाव को बढ़ावा दे सकते हैं. 2024 के चुनावों की तैयारी के लिए कई पार्टियां अपने अभियानों में एआई का उपयोग कर रही हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि कंपनियों को आंकड़ा या सामग्री हटाने के सरकारी अनुरोधों पर कार्रवाई करते हुए सरकारी तंत्र की धमकियों का विरोध करना चाहिए. उन्हें तमाम दलों और उम्मीदवारों के साथ एक सामान व्यवहार करना चाहिए, खासकर हिंसा या नफरत भड़काने वाले भाषण के मामलों में ऐसा किया जाना चाहिए.

व्यापार और मानवाधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत, कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे मानवाधिकारों का सम्मान करें और अधिकारों के उल्लंघन को रोकें. इन जिम्मेदारियों में यह भी शामिल है कि वे अपने कार्य-व्यापार के किसी भी ऐसे पहलू पर लगाम लगाएं जो लोकतांत्रिक चुनावों में भाग लेने के अधिकार को कमजोर करते हों.

ब्राउन ने कहा, “भारत में चुनावों के मौके पर तकनीकी कंपनियों को यह दिखाना चाहिए कि मानवाधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता खोखली नहीं है. यानी उन्हें चाहिए कि सामग्रियों के संतुलन में पर्याप्त निवेश करें, मानवाधिकार प्रभावों का सख्ती से आकलन करें और नागरिक समाज के साथ सार्थक रूप से जुडें.”

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