“मेरी मां डिटेंशन सेंटर्स के बारे में मुझसे पूछती रहती हैं. वह बहुत चिंतित हैं.”- हाल ही में मेरी दोस्त ने मुझे फोन पर बताया.
यह सुनते ही मैं शर्म से भर गई. वह मुस्लिम है और मैं हिंदू. लेकिन इसका हमारी पहली मुलाकात और न्यूयॉर्क में एक साथ पढ़ाई करते तथा घूमते वक़्त हमारे लिए कभी कोई मायने नहीं रहा. जब कभी उसकी मां मिलने आतीं तो मैं हमेशा खुशी से झूम उठती थी क्योंकि इसका मतलब था गरमागरम और लज़ीज़ खाना जो घर से दूर होने के हमारे दर्द को कम कर देता था. लेकिन अब कई सालों से, हमारे लिए घर के मायने कुछ अलग हो गए हैं. मुसलमानों को बदनाम करने का चरम अभियान, हिंसक भीड़ के हमलों में इजाफ़ा जिसमें बहुत से लोग मारे गए और घायल हुए हैं, अनेक भारतीय हिंदुओं की इन घटनाओं के प्रति प्रत्यक्ष सहमति; इन सबका मतलब है कि हमारे अपने ही देश का जीवंत यथार्थ बदल चुका है.
आज जब समूची दुनिया लाखों लोगों की जान लेने वाले कोरोनो वायरस (कोविड-19) से जूझ रही है, भारत जीवन के लिए एक और खतरनाक चुनौती – मुस्लिमों के प्रति नफरत का भी सामना कर रहा है. हाल के हफ़्तों में, सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स पर मुस्लिमों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार की मांग जोर-शोर से उठायी जा रही है. जान-बूझ कर वायरस फैलाने के झूठे आरोपों के बीच राहत सामग्री बांटने वाले स्वयंसेवकों समेत मुसलमानों पर अनगिनत हमले हुए हैं.
इसकी शुरुआत तब हुई जब भारत के सत्ता संस्थानों ने ऐलान किया कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय इस्लामिक धर्म-प्रचारक आंदोलन तब्लीगी जमात द्वारा दिल्ली में आयोजित एक बड़ी धार्मिक सभा में भाग लेने वाले मुसलमानों के बीच बड़ी संख्या में कोरोनो वायरस पॉजिटिव केस मिले हैं. जहां सरकारी तंत्र संक्रमितों का पता लगाने के लिए जी जान से जुट गया, सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने पहले ही जमात की बैठक को “तालिबानी अपराध” और “कोरोना टेररिज़म” करार दिया. मुख्यधारा के कुछ मीडिया संस्थान ने “कोरोना जिहाद” का शोर मचाना शुरू किया और इससे जुड़ा हैशटैग सोशल मीडिया में वायरल हो गया.
तब्लीगी जमात को लेकर ऐसी स्थिति बन गई कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को यह बयान जारी करना पड़ा: “यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम नस्लीय, धार्मिक और नृजातीय आधार पर मामलों का वर्गीकरण न करें.” चिकित्सा विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि एक समुदाय को इस तरह कलंकित करना महामारी के दौरान बहुत नुकसान पहुंचाएगा, इससे लोग भयभीत होंगे, “मामलों को छिपाएंगे और इनका पता लगाने में देरी होगी.”
19 अप्रैल 2020 को इस्लामिक सहयोग संगठन ने “कोविड-19 के प्रसार के लिए मुसलमानों को बदनाम करने के भारत में लगातार चल रहे दुर्भावनापूर्ण इस्लामोफोबिक अभियान की आलोचना की.” इसके बाद एक घंटे से भी कम समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर पहली बार ट्वीट किया, “कोविड-19 व्यक्ति को शिकार बनाने से पहले नस्ल, धर्म, रंग, जाति, पंथ, भाषा या सरहदों को नहीं देखता है. इस मामले में हमारी प्रतिक्रिया और आचरण ऐसे होने चाहिए जिनमें एकता और भाईचारे की प्रधानता हो. इस लड़ाई में हम एक साथ हैं.”
हालांकि, कोरोना वायरस ने तो महज़ उस हालात को उजागर किया है जिसका मुसलमान 2014 में पहली बार मोदी की भाजपा सरकार चुने जाने के बाद से अधिकाधिक सामना कर रहे हैं. भाजपा नेताओं ने अपने भाषणों और साक्षात्कारों में बार-बार हिंदू राष्ट्रवादी और मुस्लिम विरोधी टिप्पणियां की हैं. उनकी इन हरकतों ने कई मौकों पर पार्टी समर्थकों, जो यह मानते हैं कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण और स्वीकृति हासिल है, को हिंसक हमलों के लिए प्रेरित किया और यहां तक कि भड़काया है. उन्होंने हिंदू महिलाओं से प्रेम प्रसंग के लिए मुस्लिम पुरुषों के साथ मारपीट की है. 2015 के बाद, भाजपा से जुड़ी भीड़ ने गोमांस के लिए गायों के व्यापार या क़त्ल की अफवाहों के बीच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के अनेक लोगों की हत्या की है और उन्हें घायल किया है.
सरकार की नीतियों में भी मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह परिलक्षित हुआ है. दिसंबर 2019 में मोदी सरकार भेदभावपूर्ण नागरिकता (संशोधन) कानून पारित करवाने में सफल रही. इस कानून के तहत भारत ने पहली बार धर्म को नागरिकता प्रदान करने का आधार बना दिया है. यह कानून पड़ोसी देशों - अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर-मुस्लिम अनियमित आप्रवासियों के आश्रय संबंधी दावों का खास तौर पर तेजी से निपटारा करता है. हालांकि, यह संशोधित कानून सरकार द्वारा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के जरिए राष्ट्रव्यापी नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बीच लागू किया गया, जिसका उद्देश्य “अवैध प्रवासियों” की पहचान करना है. मगर इससे यह आशंका पैदा हुई है कि लाखों भारतीय मुसलमानों से, जिनमें अनेक परिवार कई पीढ़ियों से देश में रहते आ रहे हैं, उनके मताधिकार और नागरिकता अधिकार छीने जा सकते हैं और उन्हें हिरासत में लिया जा सकता है.
आश्वस्त करने वाली बात यह थी कि लाखों भारतीयों ने इन योजनाओं का विरोध किया. यह बताता है कि बड़ी संख्या में लोग इससे सहमत नहीं है कि अल्पसंख्यक समूहों के साथ भेदभाव बरता जाए और उन्हें निशाना बनाया जाए. लेकिन यह बहुत ही परेशान करने वाली बात थी कि पुलिस और अन्य अधिकारी सरकार की प्रस्तावित नागरिकता नीतियों का विरोध कर रहे मुसलमानों और अन्य लोगों पर सरकार समर्थकों के हमलों की स्थिति में हस्तक्षेप करने में बार-बार विफल रहे. लेकिन सरकार की नीतियों के आलोचकों को गिरफ्तार करने और उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को तितर-बितर करने में पुलिस खूब तत्पर रही और इसके लिए उन्होंने अत्यधिक और अनावश्यक घातक बल का इस्तेमाल किया. कई भाजपा नेताओं ने प्रदर्शनकारियों का मज़ाक उड़ाया और उन्हें धमकी दी, जबकि कुछ ने तो प्रदर्शनकारियों को “गद्दार” बताते हुए “गोली मारो” का खुलेआम नारा लगाया, जिसने मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा को और बढ़ावा दिया.
भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में, ऐसी ही नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया ने पहले से ही लगभग बीस लाख लोगों को बाहर कर दिया है, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं. अपर्याप्त दस्तावेज के कारण जिन गैर-मुसलमानों को संदिग्ध नागरिक या अवैध प्रवासी माना गया है, उन्हें नए संशोधित कानून के तहत नागरिकता प्राप्त करने का अवसर मिलेगा, लेकिन इसी तरह अपर्याप्त दस्तावेज वाले मुसलमानों के समक्ष राज्यविहीनता का खतरा होगा और कई लोग डिटेंशन सेंटर्स भेजे जा सकते हैं, जिनका असम और अन्य राज्यों में पहले से ही निर्माण हो रहा है.
ये वही डिटेंशन सेंटर्स हैं जिनका खौफ़ मेरी दोस्त की मां को सता रहा था. मुझे पता है कि उनका डर पूरी तरह से निराधार नहीं है. मैं असम में ऐसे अनेक परिवारों से मिली हूं, जो दशकों से वहां रह रहे हैं, लेकिन अब “विदेशी” घोषित अपने प्रियजनों की रिहाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं. मैं शर्म में डूबी हुई हूं क्योंकि अगर हम दोनों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जाए, तो अपनी दोस्त की तरह मुझ पर शक नहीं किया जाएगा. और यहां तक कि अगर हम दोनों के पास अपर्याप्त दस्तावेज हों, तो संभवतः मुझे डिटेंशन सेंटर नहीं भेजा जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि इन दिनों भारत में मुसलमानों के साथ हिंदुओं से अलग व्यवहार किया जा रहा है.