एशिया में कोरोना वायरस के बारे में आपकी मुख्य चिंताएं क्या हैं?
पूरे एशिया में बहुत कम जांच होने के कारण हमारे पास संक्रमण की व्यापकता की स्पष्ट तस्वीर नहीं है. भीड़-भाड़ वाले शहरों में, जहां सामाजिक दूरी बनाए रखना चुनौतीपूर्ण या नामुमकिन है, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत दयनीय स्थिति में हैं. प्रति व्यक्ति डॉक्टरों और नर्सों का अनुपात बहुत कम है और अस्पतालों के पास संसाधन बेहद सीमित हैं. साथ ही, ये व्यापक गरीबी वाले क्षेत्र हैं, जहां ज्यादातर स्वास्थ्य देखभाल के लिए लोगों को अपनी जेबें ढीली करनी पड़ती है. हम सभी को यह डर है कि इस क्षेत्र के बहुत से इलाकों में मामलों का विस्फोट हो सकता है और बड़ी तादाद में लोगों की मौत हो सकती है.
सरकारें वायरस का ऐसे किन तरीकों से मुकाबला कर रही हैं जिनमें अधिकारों के प्रति सम्मान हो ?
जीवन का अधिकार सबसे मौलिक अधिकार है और इस बीमारी के प्रसार की रोकथाम और इससे ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए स्वास्थ्य के अधिकार की केन्द्रीय भूमिका है. हालांकि मुक्त आवाजाही और एकत्र होने पर लगी पाबंदियां हमारे लिए तकलीफ़देह हैं, लेकिन अगर उन्हें सही तरीके से लागू किया जाता है, तो घर पर रहने के आदेश बहुत सारी जिंदगियां बचा सकते हैं. सिंगापुर ने स्वास्थ्य के अधिकार को गंभीरता से लिया है और इस समय श्रमिकों की मदद करने में वह अग्रणी है. भारत 21 दिवसीय लॉकडाउन के बीच में है. एक अरब से अधिक की आबादी वाले इस देश के लिए, जहां बहुत से लोग रोज की कमाई पर आश्रित हैं, लॉकडाउन साधारण घटना नहीं है. ताइवान ने सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तुरंत पहल की. दक्षिण कोरिया ने अपनी शुरूआती लापरवाही को दुरुस्त किया और बड़ी सभाओं को प्रतिबंधित किया तथा जांच में तेजी लाई. दक्षिण कोरिया में संक्रमण और मौत की संख्या में काफी गिरावट आई है, यही कारण है कि बहुत लोग इसे एक मॉडल के रूप में देख रहे हैं.
सरकारें वायरस का ऐसे किन तरीकों से मुकाबला कर रही हैं जिनसे अधिकारों को नुकसान पहुंच रहा है?
अनेक देश सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने में विफल रहे हैं क्योंकि उन्होंने अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य की कीमत पर अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता दी है. उदाहरण के लिए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि चाहे यह महामारी कितनी भी भयावह क्यों न हो जाए, वह कारोबार बंद करने के लिए नहीं कहेंगे क्योंकि इससे देश के गरीबों पर असर पड़ेगा. हालांकि बाद में वह पीछे हट गए, लेकिन लोगों की सुरक्षा के लिए उन्हें पहले ही सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े समुचित उपाय करने चाहिए थे, जैसे कि उन्हें बेरोजगार श्रमिक को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए थी ताकि वे संकट से बच सकें. थाइलैंड में शुरुआती दौर में ढेर सारे मामले सामने आए, लेकिन सरकार ने पर्यटन चालू रखने के लिए आंकड़ों में हेरा-फेरी की. और अब फुकेट द्वीप पूरी तरह सील कर दिया गया है - आप उसके अंदर या बाहर नहीं जा सकते.
इस क्षेत्र में बहुत सारे सत्तावादी नेता और तानाशाह हैं, जो इसे अपनी सत्ता को मजबूत या विस्तारित करने के एक अवसर के रूप में देख सकते हैं. कंबोडिया में, दुनिया के सबसे लंबे समय तक सत्तारूढ़ तानाशाहों में एक हुन सेन ने एक क्रूज जहाज, जिसे कोई बंदरगाह उतरने देने को तैयार नहीं था, का स्वागत किया और लोगों को उचित जांच के बगैर उतरने दिया. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लोगों से हाथ मिलाया, यात्रियों को गले लगाया और फेस मास्क पहनने वाले पत्रकारों की आलोचना की. फरवरी के अंत में भी, वह यही कहते फिर रहे थे कि कोरोना वायरस वास्तव में कोई खतरा नहीं है.
हुन सेन ने इसके बाद एक आपातकालीन कानून का प्रस्ताव दिया, जिससे उन्हें अनिश्चित काल के लिए लगभग असीमित शक्तियां मिल गईं. इनमें सैन्य शासन की शक्तियां शामिल हैं. इससे सरकार को सब तरह के ईमेल पढ़ने और फोन कॉल सुनने की अनुमति मिल गई है, जो कि किसी भी प्रकार से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक नहीं है.
हमें थाईलैंड, कंबोडिया और चीन में भी ऐसी ही प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं, जहां सरकारों ने आलोचना को दबाने का भरसक प्रयास किया है.
चूंकि लॉकडाउन में बंद परिवारों को कई तरह के तनावों, क्लेस्ट्रोफोबिया और आर्थिक संकट से गुजरना पड़ता है, दुनिया भर में घरेलू हिंसा में भयावह वृद्धि की खबरें आ रही हैं. हालत यह है कि घर में ही पीड़ित और उत्पीड़क एक साथ फंसे हैं और सरकारों ने इससे निपटने की खातिर बहुत कम कदम उठाए हैं. मलेशियाई सरकार ने खास तौर से मर्दवादी (सेक्सिस्ट) रवैये का परिचय दिया. उसने महिलाओं को “घर से काम करने के दौरान सकारात्मक पारिवारिक संबंध बनाए रखने” के लिए अपने पतियों से तकरार करने से बचने के लिए सलाह दी.
एशिया की फैक्ट्रियों के बंद होने के बाद क्या हो रहा है?
एशिया मूल रूप से दुनिया का कारखाना है. वर्षों से, बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी काम के लिए बड़े शहरों में प्रवसन करती रही है. अब कई क्षेत्रों में लॉकडाउन के कारण कोई काम नहीं है. मार्च के अंत में, बैंकाक में 80 हजार लोग - महामारी की वजह से तालाबंदी या काम से बाहर किए जाने के डर से - देश के उत्तर और उत्तर-पूर्व स्थित अपने गृह राज्य जाने के लिए एक बस स्टेशन पर उमड़ पड़े. भारत में, दसियों हज़ार प्रवासी कामगार अपने गांव लौट आए; कुछ पैदल चलकर घर लौटे क्योंकि उनके पास लॉकडाउन की घोषणा के बाद सार्वजनिक परिवहन बंद हो जाने के कारण और कोई रास्ता नहीं था. कौन जानता है कि कितने वायरस से संक्रमित थे और इसके परिणामस्वरूप कितने अन्य लोग संक्रमित हुए? चूंकि एशिया के ग्रामीण इलाकों में बुनियादी तौर पर कोई जांच नहीं हो रही है, लिहाजा हमें शायद कभी यह पता नहीं चले कि आने वाले लम्बे समय तक विभिन्न देशों में इसका क्या अंजाम होगा.
बांग्लादेश, कंबोडिया, म्यांमार और इंडोनेशिया जैसे देशों की गारमेंट फैक्टरियों के ज्यादातर कामगार महिलाएं हैं जो भीड़-भाड़ वाले रिहाइशी इलाकों में रहती हैं. लेकिन प्रमुख ब्रांडों के ऑर्डर रद्द होने के कारण कई फैक्टरियों ने श्रमिकों के पूर्व के कार्यों का भुगतान किए बिना तालाबंदी कर दी. कोरोना वायरस के कारण बांग्लादेश की गारमेंट फैक्टरियों के दस लाख से अधिक कामगारों में अधिकांश को कोई मुआवजा दिए बगैर निकाल दिया गया है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से, इन फैक्टरियों को बंद कर देना चाहिए. लेकिन आवश्यक सामाजिक कल्याण सुरक्षा के बिना कारखानों को बंद करने का नतीजा यह है कि कामगारों और उनके परिवारों, जिन्हें वे पैसे भेजते हैं, को भोजन के लिए संघर्ष करना होगा. यह सार्वजनिक स्वास्थ्य का संकट भी होगा. सबसे बड़ी चुनौती है प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा को लागू करना ताकि कमजोर लोगों के समक्ष आसन्न खतरों को कमतर किया जा सके.
श्रमिकों और उनके परिवारों को समुचित जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए सरकारों को दाताओं, कपड़ों के ब्रांड्स और विश्व बैंक जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ काम करना चाहिए. ब्रांड्स को कम-से-कम पहले से तैयार मालों के लिए भुगतान करना चाहिए ताकि श्रमिकों को पारिश्रमिक दिया जा सके.
चीन की परछाई कोविड-19 पर मंडरा रही है, इसने न सिर्फ इसकी गंभीरता के बारे में जानकारी छुपाये रखी, बल्कि वायरस प्रसार की रोकथाम के लिए बेहद आक्रामक तौर-तरीके अपनाए. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
अब हमने यह देख लिया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान एक पार्टी की तानाशाही की कितनी कीमत चुकानी पड़ती है. अधिकांश विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि चीन में संक्रमण और मौतों की संख्या को काफी कम करके बताया गया है. वुहान संकट पर चीन सरकार की पहली प्रतिक्रिया अगर स्वतंत्र समाचार रिपोर्टिंग को सेंसर करने के बजाय खुली और पारदर्शी होती और अगर यह ख़तरे के प्रति आगाह करने वाले डॉक्टरों को दंडित करने के बजाय सार्वजनिक रूप से सूचना साझा करती, तो चीन और विश्व स्तर पर इसका असर काफी कम होता. संभवतः आज हम वैश्विक महामारी का सामना नहीं कर रहे होते.
इस संकट के पार हो जाने के बाद, यह जरूरी है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व को जवाबदेह ठहराया जाए.
क्वारंटीन को लागू किया जा सकता है, लेकिन यह आवश्यक और आनुपातिक होना चाहिए. लोगों को भोजन, दवा और अन्य सहायता की जरूरत होती है. लगभग छह करोड़ से अधिक लोगों को चीन द्वारा क्वारंटीन पर रखना बहुत ज्यादा था जिसके दौरान अधिकारों को बहुत कम सम्मान दिया गया. कड़े सेंसरशिप के बावजूद, ऐसी कई रिपोर्ट्स आईं हैं कि क्वारंटीन में लोगों को चिकित्सा देखभाल और जरुरी चीज़ें प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. मौत एवं बीमारियों की लोमहर्षक कहानियां भी सामने आईं हैं.
साथ ही, हम संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ के वायरस संबंधी एशिया विरोधी नस्लवादी बयानबाजी की कड़ी निंदा करते हैं. उन्होंने अपनी नस्लीय उग्रता भरी राजनीति के वास्ते सस्ती सियासी बढ़त हासिल करने के लिए ऐसे बयान दिए हैं. दुनिया भर के कई देशों में एशियाई लोग नस्लवाद को झेल रहे हैं, हम इसकी भी कड़ी निंदा करते हैं.
कोविड-19 से निपटने के लिए एशियाई देशों का बुनियादी ढांचा कितना तैयार है?
एशिया में सभी स्तर का बुनियादी ढांचा और आर्थिक विकास मौजूद है. यहां पूरी तरह से विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश जापान, सिंगापुर, ताइवान और दक्षिण कोरिया हैं. यहां मध्यम आय वाले मलेशिया और थाईलैंड जैसे देश हैं, जिनके पास शहरी क्षेत्रों में बहुत अच्छा बुनियादी ढांचा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा कम है. इसके बाद एशिया के सबसे अधिक आबादी वाले चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे देश हैं. इन देशों में कुलीन वर्ग तो बेहतर चिकित्सा देखभाल का उपयोग करने में सक्षम हैं, लेकिन गरीब या मध्यम वर्ग के लोगों को सार्वजनिक स्वास्थ्य के बहुत कमजोर बुनियादी ढांचे के भरोसे छोड़ दिया गया है.
दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था और संघर्ष के जारी रहने के कारण अफगानिस्तान खास चुनौतियों का सामना कर रहा है. यह स्थिति महामारी से निपटने में सरकार की क्षमता को कमजोर कर रही है.
लेकिन इस संकट में मुख्य बाधा, जो महज एशियाई मामला नहीं है, वह है कोविड-19 जांच की गति बहुत धीमी होना. एशिया के कुछ देशों में बहुत कम जांच हुई है.
एशिया में किन लोगों को वायरस से सबसे अधिक खतरा है?
उम्रदराज़ लोग और खास तरह की पुरानी बीमारी से ग्रसित सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. यदि वे संक्रमित होते हैं, तो आप गंभीर बीमारी और मृत्यु की दरों में उछाल देखेंगे. लेकिन व्यापक रूप से, गरीब और सामाजिक रूप से हाशिए के लोग बेशुमार तौर पर प्रभावित होते हैं. इनमें नृजातीय और भाषाई अल्पसंख्यक हो सकते हैं जिनकी शायद सूचना या स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच नहीं हो. शरणार्थी, कैदी, विकलांग - विशेष रूप से हवालात में बंद या बेड़ियों में जकड़े हुए लोग - और कई अन्य लोग भी इनमें शामिल हैं.
2017 में म्यांमार सेना के जातीय संहार अभियान के बाद, वर्तमान में बांग्लादेश में कॉक्स बाजार के पास शरणार्थी शिविरों में लगभग दस लाख रोहिंग्या मुस्लिम रह रहे हैं. कोविड-19 संकट से पहले ही, ये साधनविहीन शरणार्थी, लोगों से ठसाठस भरी जगहों में रहते आ रहे हैं, उनके बच्चे शिक्षा से वंचित हैं. वे पर्याप्त स्वच्छ पानी, साफ़-सफाई, आश्रय और स्वास्थ्य मानकों को बनाए रखने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं, ऐसी स्थिति में वे सामाजिक दूरी की बात सोच ही नहीं सकते. इसके अलावा, बांग्लादेश रोहिंग्याओं को मोबाइल फोन सिम कार्ड नहीं देने और शिविरों में इंटरनेट प्रतिबंध पर जोर देता है. ये कदम शरणार्थियों को कोविड-19 के बारे में जानकारी तक पहुंच से रोकते हैं. हमने तो बस अपनी सांसें थाम रखी हैं.
अनेक एशियाई देशों में कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा है. उन्हें भीड़भाड़ वाले और अस्वास्थ्यकर क़ैदख़ाने में रखा जाता है. फिलीपींस की जेलों में अधिक्षमता दर 464 प्रतिशत है जो दुनिया की सबसे भीड़भाड़ वाली जेल व्यवस्था है. इसकी कुछ जेलों में क्षमता से पांच गुना ज्यादा कैदी हैं. हमने कई सरकारों से बंदियों को पर्याप्त स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की मांग की है. हमने उनसे मामूली अपराधों में आरोपितों, खास तरह की स्वास्थ्य स्थितियों से जूझ रहे कैदियों और अन्य लोगों को रिहा करने की भी मांग की है, जिससे कि उन्हें सुरक्षा दी जा सके और संक्रमण के जोखिम को कम किया जा सके.