(न्यू यॉर्क) – ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार को देश के सबसे गरीब और कमजोर लोगों की सुरक्षा के लिए फौरी तौर पर कदम उठाने चाहिए, अगर कोविड-19 की रोकथाम और राहत से जुड़े उपाय पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहे हों. 24 मार्च, 2020 को सरकार ने देश में कोरोना वायरस प्रसार की रोकथाम के लिए तीन हफ्ते के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया.
रोजी-रोटी के नुकसान और भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य तथा अन्य बुनियादी जरूरतों की कमी के कारण लॉकडाउन ने हाशिए के समुदायों को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है. लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन रेल और बस सेवाएं बंद करने जैसे इसके कुछ कदमों के कारण हजारों-हजार प्रवासी कामगार जहां-तहां फंसे हुए हैं. राज्य की सीमाओं को पूरी तरह बंद कर देने से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में व्यवधान पैदा हुआ है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ी है और सामानों की कमी का अंदेशा है. हजारों बेघर लोगों को संरक्षण की जरूरत है. लॉकडाउन आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई से कथित तौर पर ज़रूरतमंद लोगों का उत्पीड़न हुआ है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भारत सरकार को एक अरब से अधिक अत्यंत घनी आबादी की सुरक्षा के लिए असाधारण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन भारत में कोरोना वायरस प्रसार रोकने के सख्त प्रयासों में अधिकारों की रक्षा को भी शामिल किया जाना चाहिए. सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि कुपोषण और अनुपचारित बीमारियां समस्याओं को और बढ़ायेंगी. उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सबसे हाशिए के लोगों को आवश्यक आपूर्ति की कमी का अनुचित बोझ नहीं उठाना पड़े.”
केंद्र सरकार ने 26 मार्च को, अन्य चीजों के साथ, गरीबों और कमजोर आबादी को मुफ्त भोजन और नकद हस्तांतरण और स्वास्थ्य कर्मियों के स्वास्थ्य बीमा के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की. गौर तलब है कि संकट काल में अग्रिम पंक्ति में रहने वाले सफाईकर्मी, आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी सेविका और मध्यान्ह भोजन रसोइया समेत उच्च ज़ोखिम में काम करने वाले सार्वजनिक सेवा कर्मियों को प्रायः मामूली पारिश्रमिक मिलता है. लिहाजा, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे कर्मियों को सुरक्षा उपकरण, चिकित्सा लाभ प्रदान किए जाएं और समय पर उनके पारिश्रमिक का भुगतान हो.
भारत के 80 फीसदी से अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में नियोजित हैं, और इनमें एक तिहाई आकस्मिक मजदूर हैं. अतः यह ज़रूरी है कि सरकार सेवाओं का वितरण सुनिश्चित करने के लिए अधिकतम उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करे.
सरकार को फंसे हुए प्रवासी कामगारों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए. पूरे देश में राज्य सरकारों को तुरंत सबसे ज्यादा जरूरतमंदों के लिए, शारीरिक दूरी सुनिश्चित करने के उपाय करते हुए आश्रय और सामुदायिक रसोई का इंतजाम करना चाहिए.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न वितरण के लिए सरकार को आधार पहचान पत्र आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. सामान्य परिस्थितियों में भी, आधार की नाकामयाबी ने गरीबों को आवश्यक सेवाओं और सुविधाओं से वंचित किया है. दिल्ली में, फरवरी में सांप्रदायिक हिंसा से विस्थापित मुसलमानों को तुरंत राहत, मुआवजा और आश्रय की जरूरत है.
सरकार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत सभी कार्यों की लंबित मजदूरी का भुगतान करना चाहिए और वर्तमान में बेरोजगार हो गए लोगों के लिए इसका दायरा बढ़ाना चाहिए. लॉकडाउन के कारण ग्रामीण मजदूरों को काम मिलना मुश्किल हो जाएगा इसीलिए संकट के समय उन्हें मजदूरी दी जानी चाहिए. कटनी के मौसम में किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है और खेती से होने वाली आमदनी की सुरक्षा और उपज को बचाने के लिए सरकार को कृषि उत्पादों की खरीद बढ़ानी चाहिए.
सरकार को तुरंत पुलिस को आदेश देना चाहिए कि लॉकडाउन लागू करते समय संयम बरते. कई राज्यों से, जरुरी सामान प्राप्त करने की कोशिश कर रहे लोगों की पुलिस द्वारा पिटाई की तस्वीरें और वीडियोज सामने आए हैं. पश्चिम बंगाल में, अपने घर से दूध लेने बाहर निकले एक 32 वर्षीय व्यक्ति की पुलिस ने कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी. उत्तर प्रदेश से एक वीडियो सामने आया है जिसमें पुलिस पैदल घर लौट रहे प्रवासी कामगारों को अपमानित करने के लिए उन्हें रेंगने पर मजबूर करती हुई दिखाई दे रही है. महाराष्ट्र पुलिस ने सड़कों से हटाने के लिए बेघर लोगों को कथित तौर पर पिटाई की है. पुलिस ने सब्जी और फल बेचने वालों, दूध विक्रेताओं, ऑटो रिक्शा एवं टैक्सी चालकों जैसे दैनिक मजदूरों, और आवश्यक सामानों की आपूर्ति करने वालों अन्य लोगों को निशाना बनाया है. पुलिस ने कथित तौर पर डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी परेशान किया है.
ह्यूमन राइट्स वॉच व्यक्तियों को कलंकित करने और सतर्कता के नाम पर होने वाली हिंसा में बढ़ोतरी पर बेहद चिंतित है. पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों की पुलिस ने मनमाने ढंग से लोगों को दंडित या सार्वजनिक रूप से बेइज्जत किया है. पुलिस ने उन्हें ऐसे पोस्टर पकड़ने के लिए मजबूर किया जिस पर लिखा था “मैं समाज का दुश्मन हूं. मैं घर पर नहीं रहूंगा.”
उत्तर प्रदेश, दिल्ली, तेलंगाना और तमिलनाडु में स्वास्थ्यकर्मियों और एयरलाइन कर्मचारियों को अपने पड़ोसियों और मकान मालिकों के भेदभाव का सामना करना पड़ा है. उन्हें इस डर से घरों से निकालने की धमकी दी गई कि वे कोविड-19 के वाहक हो सकते हैं. क्वारंटीन किए गए लोगों को भी कलंकित किया गया और उन्हें घरों से निकालने की धमकी दी गई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने डॉक्टरों, नर्सों और पारा चिकित्सा कर्मियों के साथ भेदभाव पर दुख व्यक्त किया है.
भारत में बढ़ती भीड़-हिंसा के बावजूद, राजस्थान और कर्नाटक की राज्य सरकारों ने कोविड-19 पीड़ितों के नाम और पते सार्वजनिक कर उन पर हमले का खतरा पैदा कर दिया है. दिल्ली, चंडीगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में अधिकारियों ने उन घरों पर निशान लगाएं हैं जिनमें लोग क्वारंटीन अवधि में हैं. ऐसे कुछ मामलों में उनके नाम भी प्रदर्शित किए गए हैं. चुनाव आयोग ने होम क्वारंटीन में रखे गए लोगों पर मुहर लगाने के इन्डेलिबल स्याही के उपयोग की अनुमति दी है. महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि होम क्वारंटीन के लिए भेजे गए सभी लोगों के बाएं हाथ पर मुहर लगाई जाएगी, इससे उनके साथ दुर्व्यवहार का जोखिम बढ़ गया है.
जन स्वास्थ्य अभियान ने इन कदमों को “मनमाना और प्रतिगामी” बताया है जो “बदले में भय, अलगाव और कलंकित करने का कारण बनेंगे” और लोगों को खुद आगे आकर कोविड-19 जांच कराने से रोकेंगे. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने सरकार से इन कदमों को रोकने और कोविड-19 पीड़ितों की निजता और गोपनीयता का सम्मान करने का आग्रह किया है.
गांगुली ने कहा, “भारत में सरकारों को हर किसी को भोजन और चिकित्सीय देखभाल सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए. उन्हें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीबों और हाशिए के लोगों के साथ दुर्व्यवहार न हो और उन्हें कलंकित नहीं किया जाए. भारत सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि अपने लोगों को महामारी के प्रकोप से बचाए लेकिन यह मानवाधिकारों के उल्लंघन की कीमत पर हरगिज नहीं होना चाहिए.”