Skip to main content

भारत में हिंसक ‘गौरक्षकों’ को सज़ा दिलाने में विफलता

भीड़ की हिंसा समाप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करें

अपने पिता पेहलू खान की तस्वीर के साथ इरशाद खान. 2017 में राजस्थान से हरियाणा मवेशी लेकर जा रहे इरशाद, उसके भाई, पिता और दो अन्य लोगों पर गौरक्षा समूह के सदस्यों ने हमला किया. हमले में पेहलू खान की मौत हो गई थी. © 2017 कैथल मक्नॉटन/ राय्टर्स

एक दुग्ध उत्पादक मुस्लिम किसान की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने के दो साल बाद, किसी को भी उसकी मौत के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है. भारत में सरकार पशु व्यापार में लगे लोगों या गोमांस सेवन करने वालों के खिलाफ हिंसक अभियान के लिए जिम्मेदार लोगों के बारे में समुचित जांच करने में विफल साबित हो रही हैं.

राजस्थान की एक अदालत ने 14 अगस्त को दुग्ध उत्पादक मुस्लिम किसान पहलू खान की हत्या के मुकदमे में सभी अभियुक्तों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि जांच में “गंभीर कमियाँ छोड़ी गयी” थीं. 55 साल के खान और चार अन्य को अप्रैल 2017 में अलवर जिले में भीड़ द्वारा तब रोका गया जब वे कानूनी रूप से गायों की ढुलाई कर रहे थे. उन पर हमला कर उन्हें बेरहमी से पीटा गया. इस हमले को मोबाइल फोन पर फिल्माया गया और सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया. खान की दो दिन बाद चोटों की वजह से मौत हो गई.

2014 के बाद से, कम-से-कम 50 लोग इस तरह के हमलों में मारे गए हैं. इनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं. दलितों को भी निशाना बनाया गया है क्योंकि वे जानवरों के शवों और चमड़े का निपटारा करते हैं. सरकार ने इन घृणित अपराधों के लिए न्याय का वादा किया है, लेकिन खान का मामला ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के कई निष्कर्षों पर रोशनी डालता है, जिनमें पुलिस द्वारा जांच में बाधा डालना, प्रक्रियाओं की अनदेखी, गवाहों को परेशान करने और डराने के लिए उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करना और यहां तक कि अपराधियों को बचाने के लिए मामले को छुपाना शामिल है.

उदाहरण के लिए, खान के हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज करने के बजाय पुलिस ने गौ तस्करी का आरोप लगाते हुए गंभीर रूप से घायल खान और उनके बेटों सहित पीड़ितों के खिलाफ तुरंत मामला दर्ज किया. पुलिस ने मौत से पहले दिए गए खान के बयान को अस्वीकार कर दिया, जिसमें उन्होंने कथित अपराधियों के नाम बताए थे. इनमें से कुछ कथित रूप से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध हिंदू कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े थे. फैसले में कहा गया है कि जांच अधिकारी ने अदालत में जांच का ब्योरा पेश नहीं किया. इसके बजाय, वीडियो सबूतों के आधार पर पुलिस ने अन्य पुरुषों को आरोपित किया. हालांकि, जैसा कि फैसले में उल्लेख किया गया है, पुलिस ने पहचान परेड नहीं कराई, एक कानूनी प्रक्रिया जिसमें गवाहों और पीड़ितों को एक पंक्ति में खड़े व्यक्तियों में से अपराधी की पहचान करने के लिए कहा जाता है. अदालत ने यह भी कहा है कि पुलिस द्वारा उस मोबाइल फोन, जिसमें उसे हमले का वीडियो मिला था, को जब्त करने में विफल रहना जांच अधिकारी की “गंभीर लापरवाही” को दर्शाता है.

दो अन्य आरोपियों पर किशोर न्यायालय में अलग से मुकदमा चलाया जा रहा है. राज्य सरकार ने कहा है कि वह फैसले के खिलाफ अपील करेगी.

जुलाई 2018 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने "लिंचिंग"- भारत में भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या के लिए प्रयुक्त शब्द – को रोकने के उपायों के बतौर कई "निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक" निर्देश जारी किए. लेकिन पहलू खान का मामला दिखाता है कि सरकार द्वारा अदालत के निर्देशों का पालन करना बाकी है.

GIVING TUESDAY MATCH EXTENDED:

Did you miss Giving Tuesday? Our special 3X match has been EXTENDED through Friday at midnight. Your gift will now go three times further to help HRW investigate violations, expose what's happening on the ground and push for change.
Region / Country