इस हफ्ते, भारत सरकार ने सरकारी शैक्षिक ऐप दीक्षा की तीसरे पक्ष द्वारा सुरक्षा जांच कराए जाने की घोषणा की है. इस ऐप का उपयोग कक्षा 1 से 12वीं तक के छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है. सरकार इस ऐप का इस्तेमाल करने वाले बच्चों और शिक्षकों के निजी आंकड़ों की बेहतर सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है.
यह खबर जनवरी में ह्यूमन राइट्स वॉच की इस रिपोर्ट के बाद आई कि ऐप ने एक साल से लाखों छात्रों और शिक्षकों के निजी डेटा को जोखिम में डाला था. असुरक्षित डेटा में बच्चों के नाम, स्कूल, राज्य, उनके निवास से संबंधित जिला और ब्लॉक, परीक्षा में आए अंक और आंशिक रूप से संशोधित फोन नंबर और ईमेल पते शामिल हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने ये तथ्य भी एकत्र किए हैं कि कैसे यह ऐप बच्चों की उपस्थिति संबंधी सटीक स्थान के बारे में आंकड़े एकत्र करने में सक्षम था और इसने विज्ञापन के लिए डिज़ाइन किए गए ट्रैकर का उपयोग कर उनके आंकड़ों को किस तरह एक तीसरे पक्ष की कंपनी भेजा.
नई दिल्ली स्थित डिजिटल अधिकार समूह इंटरनेट फ़्रीडम फ़ाउंडेशन ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से सरकार द्वारा बच्चों की निजता के उल्लंघन की जांच की मांग की है.
भारत सरकार ने इससे इनकार किया कि दीक्षा द्वारा बच्चों की उपस्थिति संबंधी सटीक स्थान के बारे में डेटा एकत्र किए जाते हैं, लेकिन उसने राज्य और जिला संबंधित डेटा एकत्र करने की बात स्वीकार की है. उसने यह नहीं बताया कि यह ऐप उपयोगकर्ताओं के सटीक स्थान के बारे में डेटा एकत्र करने में सक्षम क्यों था, और न ही यह जानकारी दी कि ऐप विज्ञापन ट्रैकर का उपयोग कर बच्चों के डेटा को तीसरे पक्ष की कंपनी तक क्यों पहुंचाता है.
दीक्षा का स्वामित्व रखने और इसका संचालन करने वाली सरकारी एजेंसी के संयुक्त निदेशक अमरेंद्र बेहरा ने कहा कि ऐप की सुरक्षा जांच शुरू करने के अलावा, उनकी एजेंसी ने एकस्टेप से उपयोगकर्ताओं के एकत्रित डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी अनुरोध किया है. उन्होंने एकस्टेप को ऐप के “तकनीकी संचालन का प्रबंधन” करने वाला संगठन बताया.
एकस्टेप ने इनकार किया है कि वह दीक्षा का परिचालन करता है. उसने कहा है कि हालांकि उसने कई वर्षों तक ऐप के लिए “सेवाएं प्रदान” की हैं, लेकिन ऐप के आंकड़ों के प्रबंधन संबंधी सुरक्षा उपायों और नीतियों को लागू करने की जवाबदेही केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय की है.
अंततः यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने छात्रों की सुरक्षा करे, और उसके द्वारा बच्चों की निजता के पिछले कुछ उल्लंघनों की जांच करने का उसका फैसला सही दिशा में एक कदम है. दुर्भाग्य से, इसका प्रस्तावित डेटा सुरक्षा कानून भविष्य में ऐसे उल्लंघनों की पुनरावृति को रोक नहीं पाएगा. सरकार को चाहिए कि एक ऐसा डेटा सुरक्षा कानून पारित करे जो ऑनलाइन में बच्चों को पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान करे और ऐसा करने में विफल रहने वाले सभी लोगों की जिम्मेदारी तय करे.