Skip to main content

भारत में इंटरसेक्स संरक्षण के मुद्दे ने जोर पकड़ा

दिल्ली बाल अधिकार आयोग द्वारा जोखिम भरी सर्जरी पर प्रतिबन्ध लगाने की सिफारिश

इंटरसेक्स झंडा

भारत की राजधानी की बाल अधिकार एजेंसी ने इस हफ्ते इंटरसेक्स भिन्नताओं के साथ जन्मे बच्चों के चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक “सामान्यीकरण” सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है. यह सिफारिश दक्षिणी राज्य तमिलनाडु द्वारा 2019 में इस तरह के ऑपरेशन पर प्रतिबंध लगाने के बाद की गई है. तमिलनाडु ने एक अदालत द्वारा इंटरसेक्स बच्चों के सुविचारित सहमति अधिकारों को मान्य ठहराए जाने के बाद यह प्रतिबंध लगाया था.

“इन्टरटेक्स,” जिसे कभी-कभी “यौन विकास की भिन्नता” कहा जाता है, से तात्पर्य यौन विशिष्टताओं के साथ जन्म लेने वाले अनुमानतः 1.7 फीसदी ऐसे लोगों से हैं, जिनके क्रोमोजोम, जनन-ग्रंथि या जननांग जैसी विशिष्टताएं महिला या पुरुष की सामाजिक अपेक्षाओं से भिन्न होती हैं. बेहद बिरले मामलों को छोड़कर, जब बच्चा पेशाब नहीं कर पाता है या उसके  आंतरिक अंग बाहर निकले हुए होते हैं, ये चिकित्सकीय रूप से मानव शरीर रचना की मामूली  प्राकृतिक विविधताएं होती हैं, और सर्जरी जरूरी नहीं होती है.

1960 के दशक में, संयुक्त राज्य अमेरिका में डॉक्टरों ने इंटरसेक्स बच्चों के “सामान्यीकरण” कॉस्मेटिक शल्य क्रिया को लोकप्रिय बनाया, जैसे कि क्लिटॉरिस (भग-शिश्न) के आकार को छोटा करना जिसके परिणामस्वरूप जख्म के गहरे निशान सकते हैं, बंध्याकरण हो सकता है और मनोवैज्ञानिक सदमा पहुंच सकता है. ऐसी सर्जरी विश्व स्तर पर सामान्य हो गई, लेकिन आम सहमति बदल रही है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संधि निकायों ने 2011 के बाद, 50 से अधिक बार ऐसी शल्य क्रियाओं की निंदा की है.

दशकों से, दुनिया भर में इंटरसेक्स व्यक्तियों के लिए आवाज बुलंद करने वालों ने सरकारों और चिकित्सा समुदाय से इंटरसेक्स बच्चों की सर्जरी प्रक्रिया स्थगित करने संबंधी मानक विकसित करने की मांग की है जब तक कि वे सहमति देने की उम्र प्राप्त नहीं कर लेते. ज्यादातर देशों में, डॉक्टरों को ऐसी सर्जरी करने के लिए केवल माता-पिता की सहमति आवश्यक होती है. लेकिन, जहां कुछ चिकित्सा संगठनों और निजी स्तर पर चिकित्सकों ने इंटरसेक्स व्यक्तियों के स्व-निर्णय के अधिकारों का समर्थन किया है, वहीँ अन्य लोग आम तौर पर इस मुद्दे पर कुछ करने के लिए तैयार नहीं हैं.

पिछले वर्ष के अंत में दिल्ली बाल अधिकार आयोग की परामर्श प्रक्रिया के दौरान, दिल्ली चिकित्सा परिषद ने इंटरसेक्स बच्चों के अधिकारों का समर्थन किया. परिषद ने लिखा कि वह “शिकायतकर्ताओं से सहमत है कि यौन विकास की भिन्नता/इन्टरसेक्स (डिफरेंसेस ऑफ़ सेक्स डेवलपमेंट - डीएसडी) के मुद्दे [एक] मानवाधिकार मुद्दा है क्योंकि यह शारीरिक पूर्णता और स्वत्व अधिकार से संबंधित है,” और डीएसडी के लिए ऐसी सर्जरी से जुड़े हस्तक्षेप और लिंग संबंधी चिकित्सीय हस्तक्षेप जिन्हें चिकित्सकीय रूप से आवश्यक नहीं समझा जाता है, को तब तक विलंबित किया जाना चाहिए जब तक कि रोगी सुविचारित सूचित सहमति प्रदान नहीं कर सके.”

इन सर्जरीज का नियमन करने वाली नीति तैयार करने की जिम्मेदारी अब दिल्ली नगरपालिका की है. जैसा कि आयोग ने ज़ोर देकर कहा है, सभी को सुविचारित सहमति का अधिकार है - यहां तक कि उन्हें भी जिनके शरीर जन्म से थोड़े भिन्न हैं.

Your tax deductible gift can help stop human rights violations and save lives around the world.

Donate today to protect and defend human rights

Human Rights Watch operates in over 100 countries, where we work to investigate and document human rights abuses, expose the truth and hold perpetrators to account. Your generosity helps us continue to research abuses, report on our findings, and advocate for change, ensuring that human rights are protected for all.

Region / Country
Topic