- महिला एथलीटों, मुख्य रूप से ग्लोबल साउथ (वैश्विक दक्षिण) के देशों की महिला एथलीटों को "लिंग जांच" नियमों के जरिए निशाना बनाया जाता है और उन्हें नुकसान पहुंचाया जाता है.
- नियमों के तहत महिलाओं की निगरानी करने और कुछ मामलों में उन्हें चिकित्सीय जांच के लिए मजबूर करने का मतलब है नारीत्व और नस्लीय रूढ़ियों की मनमानी परिभाषाओं के आधार पर महिलाओं के शरीर को नियंत्रित करना.
- विश्व एथलेटिक्स और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति समेत तमाम खेल शासी निकायों को चाहिए कि उन सभी नियमों को ख़त्म कर दें जिनके तहत पात्रता जारी रखने के लिए चिकित्सकीय रूप से गैर जरूरी हस्तक्षेप आवश्यक होते हैं.
(जिनेवा) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज जारी एक रिपोर्ट में कहा कि मुख्य रूप से ग्लोबल साउथ की महिला ट्रैक एंड फील्ड एथलीट्स को "लिंग जांच" नियमों द्वारा निशाना बनाया जाता है और नुकसान पहुंचाया जाता है. ये नियम 400 मीटर और एक मील की दौड़ में भाग लेने वाली महिलाओं को निशाना बनाते हैं, और ऐसी महिलाओं को मजबूर किया जाता है कि वे चिकित्सीय जांच से गुजरें या उन पर प्रतिस्पर्द्धा से बाहर होने के लिए दबाव डाला जाता है.
120-पृष्ठों की रिपोर्ट - "'वे हमें खेल की दुनिया से बाहर धकेल रहे हैं': उत्कृष्ट महिला एथलीटों की लिंग जांच में मानवाधिकारों का उल्लंघन" ग्लोबल साउथ के ऐसे एक दर्जन से अधिक महिला एथलीटों के अनुभवों का दस्तावेज है जो "लिंग जांच" नियमों से प्रभावित हुई हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि महिला एथलीटों के साथ भेदभाव, उनकी निगरानी और उन पर जबरिया चिकित्सीय हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करने वाले वैश्विक नियमनों के परिणामस्वरूप उन्हें शारीरिक और मनोवैज्ञानिक क्षति हुई है और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. वैश्विक खेलों की सर्वोच्च संस्था - अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति - लिंग जांच नीतियों के कारण होने वाले मानवाधिकार उल्लंघनों से निपटने के लिए दिशानिर्देश तैयार कर रही है.
अध्येता और एथलीट अधिकार अधिवक्ता पायोशनी मित्रा ने कहा, "विश्व एथलेटिक्स ने दशकों से ग्लोबल साउथ की महिलाओं को निशाना बनाया है, उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर वाली महिलाओं को इंसान से कमतर मानते हुए उनके साथ पेश आया है. ये नियम महिलाओं को नीचा दिखाते हैं, उन्हें अयोग्य महसूस कराते हैं और खेल में भागीदारी के लिए चिकित्सीय जांच से गुजरने के लिए उन्हें मजबूर करते हैं. आधुनिक खेलों को बहिष्करण और भेदभाव कायम रखने की जगह समावेशन और गैर-भेदभाव का समर्थन करने के लिए स्वयं में रूपान्तण लाना चाहिए."
साल 2019 में ह्यूमन राइट्स वॉच ने विशेषज्ञ अध्येताओं पायोशनी मित्रा और कैटरीना कार्काज़ीस के साथ मिलकर शोध किया. इस शोध के लिए प्रभावित एथलीटों, प्रशिक्षकों, इस मुद्दे से जुड़े अन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों का साक्षात्कार करने के साथ-साथ अदालती और चिकित्सा दस्तावेजों की समीक्षा की गई.
दशकों तक, खेल शासी निकायों ने ऐसे "लिंग जांच" नियमनों के जरिए खेल में महिलाओं की भागीदारी को नियंत्रित किया है जो उन महिला एथलीटों को निशाना बनाते हैं जिनकी यौन विशेषताओं में कुछ विभिन्नताओं के कारण उनके प्राकृतिक टेस्टोस्टेरोन स्तर सामान्य से अधिक होते हैं. ये नियमन इन महिलाओं को 400 मीटर और एक मील की दौड़ में महिला के बतौर भाग लेने के अधिकार से वंचित करते हैं, जब तक कि वे आक्रामक परीक्षण और अनावश्यक चिकित्सकीय प्रक्रियाओं से नहीं गुजरती हैं. ये प्रथाएं निजता, स्वास्थ्य और समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं. इसके कारण भारत की दूती चांद और साउथ अफ्रीका की कॉस्टर सेमेन्या जैसी महिला धाविकाओं समेत ग्लोबल साउथ की कई महिलाओं को बेहद नुकसान हुआ है.
नियमों के दायरे में आने वाले एथलीटों की पहचान के लिए, अधिकारी सभी महिला एथलीटों की शारीरिक जांच को सार्वजनिक बना देते हैं और "संदिग्धों" को अपमानजनक और अक्सर आक्रामक चिकित्सा जांच से गुजरना पड़ता है. इन चीजों का मतलब है नारीत्व और नस्लीय रूढ़ियों की मनमानी परिभाषाओं के आधार पर महिलाओं के शरीर का नियंत्रण करना. इस पर कोई आम वैज्ञानिक सहमति नहीं है कि प्राकृतिक रूप से उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर वाली महिलाओं को एथलेटिक्स प्रदर्शन में लाभ मिलता है. पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन स्तर की विस्तृत श्रृंखला के बावजूद, कभी भी नियमों में समरूपता नहीं रही है.
साक्षात्कार में महिलाओं ने गहरे तौर पर आत्म-निरीक्षण से गुजरने, शर्मिंदा होने, खेल का उनकी जीविका होने पर भी उसे छोड़ने और आत्महत्या के प्रयासों के बारे में बताया. लिंग जांच के बाद अयोग्य घोषित एक धाविका ने बताया: “मैं जांच परिणाम जानना चाहती थी… मैं जानना चाहती थी कि मैं कौन हूं? वे मेरी जांच क्यों कर रहे हैं? वे अन्य लड़कियों की जांच नहीं कर रहे हैं ... मैं जानना चाहती थी कि वे मुझे अस्पताल क्यों ले गए, मेरे कपड़े क्यों उतरवाए.”
नियमों में निहित मानवाधिकारों के उल्लंघन के अलावा, उन्हें लागू करने के प्रभाव खेल से परे जाते हैं. एथलेटिक्स में सफलता महिलाओं को आर्थिक स्थिरता प्रदान कर सकती है. छात्रवृत्ति से लेकर आवास और भोजन तक, लाभ जल्दी प्राप्त हो सकते हैं और खेल के बाहर स्थिर रोजगार भी मिल सकता है. साक्षात्कार में शामिल अनेक एथलीट भयावह गरीबी में पले-बढे थे. एथलेटिक्स में उनकी सफलता अक्सर उनके विस्तारित परिवारों के लिए आजीविका का स्रोत बन गई. कुछ मामलों में, अयोग्य ठहराए जाने के बाद खेल से उनकी अचानक विदाई ने उनके और उनके परिवारों की आर्थिक खुशहाली को छीन लिया.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों, मानवाधिकार की वकालत करने वालों और उत्कृष्ट एथलीटों ने नियमों के खिलाफ लगातार आवाज़ बुलंद की है. 2020 की एक रिपोर्ट में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने महिला एथलीटों के लिंग जांच नियमों को तुरंत रद्द करने की सिफारिश की. वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन ने अनुशंसा की है कि दुनिया भर के चिकित्सकों को इन नियमों का अनुपालन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये चिकित्सा नीति शास्त्र का उल्लंघन करते हैं.
2019 में, 25 फ्रांसीसी महिला एथलीटों ने विश्व एथलेटिक्स के अध्यक्ष सेबेस्टियन कोए, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थॉमस बाख और दुनिया भर के स्वास्थ्य और खेल मंत्रियों को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें कहा गया, “ये महिलाएं इंसान हैं और हमारी तरह ही ऊंचे दर्जे की एथलीट हैं. खेल और उसके मूल्यों के लिए हमारा जुनून एक जैसा है. उनकी सेहत और उनका भविष्य खतरे में है. खेल की छवि एक बार फिर से दागदार हो गई है. मानवाधिकारों और मानव गरिमा की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं.”
फ्रांस की खेल मंत्री रोक्साना मारसिन्यू ने प्रतिक्रिया में कहा, "हमारे पास ऐसी महिलाएं हैं जो उनसे मुकाबला करती हैं जो अन्य महिलाओं से मजबूत हैं, हमारे पास ऐसे पुरुष हैं जो उनसे प्रतिस्पर्धा करते हैं जो अन्य पुरुषों की तुलना में मजबूत हैं, यह खेल का उसूल है और सर्वश्रेष्ठ जीतता है. खेल के दृष्टिकोण से मैं समझ नहीं पा रही हूं कि क्यों पुरुषों में उसैन बोल्ट, माइकल फेल्प्स, इयान थोर्प और दूसरों को अपनी श्रेणी में वर्चस्व कायम करने का अवसर मिला, और क्यों महिला वर्ग में, महिलाओं को अपनी श्रेणी में वर्चस्व कायम करने का अधिकार नहीं है.”
एमोरी विश्वविद्यालय में महिला, लिंग और सेक्सुअलिटी अध्ययन की अतिथि प्राध्यापक और येल ग्लोबल हेल्थ जस्टिस इनिशिएटिव की फेलो कैटरीना कार्काज़ीस ने कहा, "टेस्टोस्टेरोन, जीव विज्ञान और लिंग के बारे में गलत धारणाओं से अनुप्राणित और महिला एथलीटों की 'सुरक्षा' के इर्द-गिर्द पितृसत्तात्मक भाषा में डूबे ये नियम महिलाओं, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ की महिलाओं को बेइंतहा नुकसान पहुंचाते हैं. ये नियम नुकसानदायक हैं क्योंकि अंतर्निहित पूर्वधारणाएं स्वाभाविक रूप से लिंग भेद करती हैं – यह कि महिला एथलीट हमेशा पुरुष एथलीटों से कमतर होती हैं, इसलिए हमें महिलाओं की सुरक्षा हेतु महिलाओं के खेलों को नियंत्रित करना चाहिए. यह नियंत्रण महिलाओं की सुरक्षा में बिल्कुल मददगार नहीं है; यह केवल उन्हें नुकसान पहुंचाने का काम करता है.”
वैश्विक खेल उद्योग का नियमन खेल शासी निकायों के अलावा स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं की एक जटिल प्रणाली द्वारा किया जाता है. इन संस्थाओं का आधिकारिक मानवाधिकार तंत्रों के साथ अलग-अलग संबंध होते हैं. समूची दुनिया में खेल का नियमन करने में खेल शासी निकायों की विशिष्ट भूमिका होती है.
दुनिया भर की सरकारें महिलाओं के प्रति लैंगिक समानता और गैर-भेदभाव के लिए प्रतिबद्ध हैं. सरकारें अपने देशों का प्रतिनिधित्व और अपनी ज़मीन पर प्रतिस्पर्धा करने वाले एथलीटों के अधिकारों की रक्षा हेतु वचनबद्ध हैं. मानवाधिकार मानक सभी पर लागू होते हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि ऐसी नीतियां जो अन्तर्निहित रूप से भेदभावपूर्ण हैं - जैसे लिंग जांच नियम - सभी के लिए गरिमा और समानता हेतु ओलिंपिक आंदोलन की प्रतिबद्धताओं के ठीक विपरीत हैं. निष्पक्ष खेल का नियमन खेल अधिकारियों की वैध ज़िम्मेदारी है; न कि इस प्रक्रिया में मानवाधिकारों का उल्लंघन करना.
विश्व एथलेटिक्स को तुरंत इन नियमनों को निरस्त्र कर देना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय खेलों के सर्वोच्च प्राधिकार - अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) - को चाहिए कि सिद्धांत 4 सहित ओलंपिक चार्टर के मूल सिद्धांतों की मर्यादा बनाए रखे. सिद्धांत 4 कहता है, "प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना खेलने का मौका मिलना चाहिए." और सिद्धांत 6 कहता है कि "इस ओलंपिक चार्टर में निर्धारित अधिकारों और स्वतंत्रता का उपभोग किसी भी प्रकार के भेदभाव जैसे नस्ल, रंग, लिंग, यौन अभिविन्यास, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या अन्य हैसियत के बिना संरक्षित किया जाएगा."
आईओसी को लिंग जांच नियमों में नस्लीय और लैंगिक पूर्वाग्रहों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना चाहिए, और उन सभी नियमों को समाप्त कर देना चाहिए जो पात्रता जारी रखने के लिए चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक हस्तक्षेप जरूरी बनाते हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच की वरिष्ठ महिला अधिकार शोधकर्ता एग्नेस ओधींबो ने कहा, "महिला प्रतिस्पर्द्धियों की उनके प्राकृतिक हार्मोन स्तर के आधार पर जांच कर और उन्हें बाहर कर, विश्व एथलेटिक्स के नियमन सभी महिलाओं को कलंकित करते हैं, उनकी रूढ़िबद्ध छवि प्रस्तुत करते हैं और उनके साथ भेदभाव करते हैं. चिकित्सकीय जांच से गुजरने के लिए मजबूर किया जाना अपमानजनक हो सकता है क्योंकि यह चिकित्सकीय रूप से गैर-ज़रूरी है. निगरानी और संदेह के जरिए एथलीटों की पहचान करने का अर्थ है नारीत्व और नस्लीय रूढ़ियों की मनमानी परिभाषाओं के आधार पर महिलाओं के शरीर को नियंत्रित करना."
रिपोर्ट से लिए गए चुनिन्दा बयान:
"[महासंघ की अधिकारी ने मुझे बताया] मुझे दवा लेनी पड़ेगी. उन्होंने मुझे बताया कि आईएएएफ मेरे बारे में पूरी जानकारी चाहता है और क्या मैं दवा ले सकती हूं और सर्जरी करा सकती हूं."
- डी..बी, लिंग जांच के बाद विश्व एथलेटिक्स नियमों के तहत अयोग्य करार दी गई एथलीट
"डॉक्टर ने मुझ से मेरे जीवन के बारे में पूछा और मेरी शारीरिक जांच की, जिसमें उन्होंने मेरी छाती, मेरे जननांगों, यहां तक कि अंदर की जांच की, और उन्होंने पूछा कि क्या मुझे माहवारी होती है, क्या मेरी कोई प्रेमिका या प्रेमी है."
- पी.एच., लिंग जांच के बाद विश्व एथलेटिक्स नियमों के तहत अयोग्य करार दी गई एथलीट
"जांच के दौरान, उन्होंने सिर्फ [एक दूसरे एथलीट जिसकी जांच की गई थी] के बारे में बात की. उन्होंने अनुचित फ़ायदे के बारे में कुछ नहीं कहा. और कहा कि वे मेरे पदक छीन लेंगे जैसा उन्होंने [अन्य एथलीट के] पदकों के साथ किया. उन्होंने कहा कि अगर मैं [प्रतिस्पर्धा] छोड़ देती हूं तो वे कुछ नहीं करेंगे. लेकिन अगर मैं जारी रखती हूं, तो वे सब कुछ छीन लेंगे. मुझे समझ नहीं आया कि वे क्या कह रहे थे. मेरे मन में कौतुहल हो रहा था: टेस्टोस्टेरोन क्या है? ... मुझे समझ नहीं आया कि आखिर टेस्टोस्टेरोन क्यों महत्वपूर्ण है."
- पी.एफ., लिंग जांच के बाद विश्व एथलेटिक्स नियमों के तहत अयोग्य करार दी गई एथलीट
“मेरा जीवन खत्म हो गया है- कोई कोच मुझे प्रशिक्षण देने में दिलचस्पी नहीं रखता है; कोई नौकरी नहीं है. मुझे खाने के लाले पड़ गए है."
- जे.जी., अयोग्य ठहराए जाने के दुष्परिणामों का वर्णन करती एक एथलीट
"(विश्व एथलेटिक्स) द्वारा यह कहना कि इन एथलीटों को अपने [टेस्टोस्टेरोन] स्तर को कम करने के लिए ड्रग्स लेना चाहिए, अन्य दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है, यह भयावह है. सीधे-सरल तरीके से मैं कहूं तो यह अपने आप में करीब-करीब डोपिंग का मुद्दा है. जबरन डोपिंग - व्यवस्थाजनित डोपिंग का मुद्दा."
- जे. क्यू., विश्व एथलेटिक्स के लिंग जांच नियमों से प्रभावित कई महिलाओं के लिए कोच
“मरीज के साथ हुई बातचीत के आधार पर, मैं कह सकता हूं कि मेरे ख्याल से वह यह समझ नहीं पाई या जान नहीं पाई कि असल में उसके साथ क्या किया गया, और उसे आगे कैसी देखभाल या चिकित्सा की आवश्यकता होगी या उसे क्या नतीज़े भुगतने होंगे."
- डॉ. थॉमस सेप्पेल, जर्मनी स्थित एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, जिन्होंने ग्लोबल साउथ की एक महिला एथलीट की जांच की, जिसे विश्व एथलेटिक्स नियमों के तहत प्रतियोगिता में भाग लेना जारी रखने की कोशिश में गोनैडक्टोमी से गुजरना पड़ा.