(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज जारी एक वीडियो में कहा कि दक्षिण एशियाई सरकारों को चाहिए कि मृत्युदंड की लोकलुभावन लफ्फाजियों को ख़ारिज करें और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा रोकने और ख़त्म करने की खातिर अपने विशेषज्ञों की बातों को अहमियत दें. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के यौन हिंसा विशेषज्ञों ने बढ़ते विरोध आंदोलनों पर बात की जो चर्चित यौन हिंसा मामलों में सरकार के गलत तरीके से निपटने के कारण उग्र हो गए हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “पूरे दक्षिण एशिया में महिलाएं और लड़कियां यौन हिंसा से निपटने में अपनी सरकारों की विफलता से आज़िज हो चुकी हैं. उन्होंने लंबे समय से देखा है कि उनकी सरकारें यौन हिंसा बर्दाश्त करती हैं या इसके लिए रास्ता खोलती हैं और अभयदान प्रदान करती हैं. और वे सड़कों पर उतरकर बदलाव की मांग कर रही हैं.”
पाकिस्तान में, पुलिस प्रमुख ने अपने बच्चों के सामने सामूहिक-बलात्कार की शिकार एक महिला की आलोचना की क्योंकि उनकी कार का तेल ख़त्म हो गया था. भारत में, पुलिस और अन्य सरकारी अधिकारियों ने 19 वर्षीय एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार से इनकार किया जबकि उसने मृत्यु पूर्व बयान दिया था. जाहिर तौर पर ऐसा आरोपियों को बचाने के लिए किया गया जो कथित तौर पर एक प्रभावशाली जाति के हैं. राज्य के मुख्यमंत्री ने न्याय के लिए प्रदर्शन कर रहे लोगों पर “अराजकतावादी” होने का इलज़ाम लगाया. बांग्लादेश में, सरकार उस वीडियो को वायरल होने से रोकने में विफल रही जिसमें पुरुषों का समूह एक महिला पर हमला करता, उनके कपड़े उतारता और यौन उत्पीड़न करता दिखाई दे रहा है. तीनों मामलों में महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने 2020 में विरोध प्रदर्शन किया.
मालदीव की महिलाओं ने यौन हिंसा और सरकारी निष्क्रियता के साथ-साथ स्थानीय रूप से व्याप्त लिंग आधारित हिंसा का विरोध किया है. नेपाल में, बलात्कार के दिल दहलाने वाले कई मामलों के बाद विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जबकि सरकार बड़े पैमाने पर सामने आ रही लिंग आधारित ऑनलाइन हिंसा के नए मामलों पर कार्रवाई करने में भी विफल रही है. अफगानिस्तान में, महिलाओं को हिंसा से बचाने में सरकार की विफलता और महिलाओं की आवाजाही की स्वतंत्रता और शिक्षा एवं काम के अधिकारों पर तालिबान के दमनकारी प्रतिबंधों के बीच फंसी महिलाएं विरोध प्रदर्शनों और शांति वार्ताओं में अपने अधिकारों की मांग कर रही हैं. श्रीलंका में, बड़े पैमाने पर कार्यकर्ता यौन हिंसा कानून में सुधार की मांग कर रहे हैं, जबकि अपने गुम हो गए प्रियजनों के बारे में जानकारी मांगने वाली महिलाओं के विरोध आंदोलन को सरकारी तंत्र की धमकी का सामना करना पड़ रहा है.
क्षेत्र के अनेक देशों में, कार्यकर्ताओं ने चिली के एक प्रतिरोध गीत, “ए रेपिस्ट इन योर पाथ,” का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया है और इसे विरोध प्रदर्शनों में गा रहे हैं. गीत के बोल इस तरह हैं, “पितृसत्ता एक न्यायाधीश है जो हमें पैदा होने पर आंकता है, और हमारी सजा वह हिंसा है जिसे आप देख नहीं पाते हैं. बलात्कारी हो तुम. यह बलात्कारी पुलिस है, न्यायाधीश, राज्य, राष्ट्रपति है. दमनकारी राज्य एक मर्दाना बलात्कारी है.”
ह्यूमन राइट्स वॉच के साक्षात्कार में विशेषज्ञों ने उन महत्वपूर्ण कदमों के बारे में बताया, जो यौन हिंसा रोकने के लिए सरकारों को उठाने चाहिए. उत्तरजीवी अक्सर सेवाएं प्राप्त करने के लिए संघर्ष करती हैं. श्रीलंका की पूर्व मानवाधिकार आयुक्त अंबिका सतकुनानाथन ने कहा, “हमें उत्तरजीवियों को और अधिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की आवश्यकता है, हमें ज्यादा कानूनी सेवाएं चाहिए, हमें पुलिस को संवेदनशील बनाने की जरुरत है. इसलिए, यह कोई छोटी अवधि की परियोजना नहीं है क्योंकि समस्या से निपटने के लिए दीर्घकालिक बदलाव की आवश्यकता है.”
कुछ देशों में कानूनी सुधार की आवश्यकता है, लेकिन इससे भी अहम है कानून लागू करने में मौजूद अंतराल जो उत्तरजीवियों को न्याय से वंचित करते हैं. पाकिस्तान स्थित संगठन “बोलो भी” की सह-संस्थापक फ़ारिहा अजीज ने कहा, “हमारे पास कानून हैं और कुछ प्रक्रियाएं भी हैं, जरुरत उन्हें लागू करने की है.”
जब उत्तरजीवी न्याय पाने की कोशिश करते हैं, तो वे अक्सर अदालतों में बड़ी-बड़ी बाधाओं का सामना करते हैं. पूरे क्षेत्र में यौन हिंसा के मामलों में अभियोजन दर बहुत कम है. मिसाल के लिए, एक अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश में पुलिस द्वारा जांच किए बलात्कार के मामलों में 1 फीसदी से भी कम में आरोप साबित हुए.
नेपाल के विशेषज्ञ डॉ. ल्हामो यंगचेन शेरपा ने कहा, “केवल पुलिस द्वारा मामला दर्ज करने की बात नहीं है, इसके बाद आपको अदालत का चक्कर लगाना होगा, जहां कई साल लग सकते हैं... [आरोपी] के पास अच्छे वकील होते हैं, इसका मतलब है कि मामला या तो खारिज़ होगा या बहुत लंबे समय तक खिंचेगा. इस कारण लोग मामला दर्ज नहीं करते हैं या अदालत के बाहर ही इसका निपटारा कर लेते हैं.”
कानूनी प्रक्रिया अक्सर उत्तरजीवियों के ज़ख्मों को फिर से कुरेद देती है. अफगानिस्तान स्वाधीन मानवाधिकार आयोग की आयुक्त शबनम सालेही ने कहा, “न्यायाधीश अभी भी [पीड़िता] को अपराधी मानते हैं, और वे बहुतेरे ऐसे सवाल पूछते हैं जो मानव गरिमा के खिलाफ हैं.”
सबसे मूल बात यह है कि सरकारों को पूरे समाज में लैंगिक असमानता ख़त्म करने के लिए काम करने समेत यौन हिंसा की रोकथाम हेतु और अधिक प्रयास करने चाहिए. बांग्लादेश में लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ कार्यरत एक नारीवादी संगठन कौथा (कथा) की संस्थापक और निदेशक उमामा जिल्लुर ने कहा, “एक चीज जिसकी हम वकालत करते रहे हैं और जिसके लिए संघर्ष कर रहे हैं वो यह कि हमारे सभी स्कूलों में व्यापक यौन शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए.” दक्षिण एशिया में ज्यादातर बच्चे यौनिकता, सहमति और स्वस्थ संबंधों के बारे में स्कूल में बहुत कम शिक्षा प्राप्त करते हैं या कोई शिक्षा प्राप्त नहीं करते हैं.
किसी सार्थक परिवर्तन करने के लिए जरुरी कार्य करने के बजाय, इस क्षेत्र की कुछ सरकारों ने विरोध प्रदर्शनों के जवाब में बलात्कारियों को फांसी देने की लोकलुभावन घोषणा की है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने बलात्कारियों को सार्वजनिक रूप से फांसी देने की बात कही. 2020 में बांग्लादेश ने बलात्कार के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया. भारतीय कानून बार-बार बलात्कार या 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार के दोषियों को मृत्युदंड की अनुमति देता है.
विशेषज्ञ इस पर सहमत हैं कि मृत्युदंड कोई समाधान नहीं है. मृत्युदंड कुछ उत्तरजीवियों को आगे आने से रोक सकता है, और विशेषज्ञों ने कमजोर न्याय प्रणाली को ऐसी शक्ति से लैस करने और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार सहित प्रक्रियात्मक अधिकारों पर कमजोर न्यायिक प्रणालियों के प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है. मालदीव में वॉयस ऑफ चिल्ड्रन की संस्थापक इक्लेला हमीद ने कहा, “जब हमारी न्याय प्रणाली इतनी सशक्त नहीं है तो ऐसे में मृत्युदंड वास्तव में निर्दोष व्यक्ति की मौत की वजह बन सकता है.”
भारत की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, “मौत की सजा किसी भी अपराध के लिए निवारक नहीं है. यह राज्य को उस जिम्मेदारी से मुक्त कर देता है जिसका निर्वाह उसे महिलाओं और लड़कियों का स्वतंत्र जीवन सुनिश्चित करने के लिए करना चाहिए.”