भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह अमरीका की यात्रा के दौरान ह्यूस्टन में अमरीकी भारतीयों की एक बड़ी सभा को संबोधित करेंगे. इस मौके पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी मौजूद रहेंगे. मोदी व्यापार जगत की हस्तियों से भी मिलेंगे, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से पुरस्कार प्राप्त करेंगे और संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे.
वह जहां भी जाएंगे, भारतीय प्रतिनिधिमंडल को भारत में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति को लेकर विरोध का सामना करना पड़ सकता है. हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 2014 में सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों पर हमले बढ़े हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात हुआ है और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है.
हालांकि ज्यादातर आलोचना सरकार द्वारा अगस्त में जम्मू और कश्मीर की स्वायत स्थिति को समाप्त कर देने के बाद राज्य में भारत की कार्रवाइयों पर केन्द्रित होगी. इन कार्रवाइयों में शामिल हैं इंटरनेट और मोबाइल फोन पर व्यापक प्रतिबंध और राजनीतिक दलों व अलगाववादी समूहों के नेताओं, तथा पत्रकारों और वकीलों समेत हजारों लोगों को बिना किसी आरोप की नज़रबंदी.
कश्मीर में मानवाधिकार की मौजूदा स्थिति को क़रीब तीन दशकों से जारी अलगाववादी विद्रोह और इस विद्रोह के खिलाफ की गई कार्रवाइयों से अलग नहीं किया जा सकता जिसके दौरान दसियों हजार लोग मारे गए और इससे कहीं ज्यादा घायल और विस्थापित हुए. विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने कहा है कि उनकी सरकार “एक बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति का वास्तव में ज्यादा प्रभावी हल ढूंढ़ने” की कोशिश कर रही है.
मगर साथ ही, भाजपा नेताओं की शेख़ीभरी इन बातों ने कि कश्मीर से जुड़े हालिया फैसलों से उन्हें कश्मीरी ज़मीन और दुल्हन हासिल होंगी, अनेक कश्मीरियों को इस गहरी चिंता में डाल दिया है कि उत्पीडन का एक नया दौर शुरू हो चुका है.
संगीनों के साए में जी रहे समुदाय पर और उत्पीड़न ढाने के बजाए, मोदी सरकार मानवाधिकार उल्लंघनों के मामले में कश्मीरियों की शिकायतें दूर कर बेहतर पहल कर सकती है. लिहाजा, मोदी और उनके प्रतिनिधिमंडल को जब अमरीका में विरोध का सामना करना पड़े तो उन्हें गुस्से का इजहार करने के बजाए उनकी बातों को ध्यान से सुनना चाहिए और उनसे संवाद करने की कोशिश करनी चाहिए.
और जब अमरीकी अधिकारी और व्यापार जगत की हस्तियां मोदी से मिलें तो उन्हें याद रखना चाहिए कि भारत का कोई भी सम्मान लंबे समय से लोकतंत्र, नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों को क़ायम रखने के लिए उसकी तारीफ में होना चाहिए. लेकिन इस मामले में, मोदी सरकार बुरी तरह लड़खड़ा गई है.