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भारत: कश्मीर में अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे

प्रतिबंधों को हटाए, सुरक्षा बलों को संयम बरतने का आदेश दे

श्रीनगर में कर्फ्यू के दौरान अर्धसैनिक बलों के पास से गुजरता साइकिल सवार, भारत, 17 अगस्त, 2019.   © 2019 साकिब मजीद/एसओपीए इमेजेज/सिपा यूएसए वाया एपी इमेजेज

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत सरकार को जम्मू और कश्मीर में कुछ प्रतिबंधों को हटाने के बाद अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए. सरकार ने घोषणा की है कि उसने आंशिक रूप से लैंडलाइन टेलीफोन कनेक्शंस बहाल कर दिए हैं, स्कूलों को फिर से खोल दिया है और बड़ी सभाओं पर से प्रतिबंध वापस ले लिया है. सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को राज्य की विशेष स्वायत्त स्थिति रद्द करने के बाद प्रतिबंध लगा दिए थे और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था.

सरकार ने हिंसक विरोध प्रदर्शनों की जानकारी दी है कि इनमें 17-18 अगस्त के सप्ताहांत में आठ लोग घायल हुए हैं. सैकड़ों नेता और कार्यकर्ता नजरबंद हैं, जिनमें कई कश्मीर के बाहर रखे गए हैं. इन लोगों को परिजनों या वकील से मिलने नहीं दिया जा रहा है. सरकार ने “कानून व व्यवस्था बनाए रखने एवं शांति भंग की आशंका के मद्देनजर” केवल “कुछ निरोधात्मक नज़रबंदी” की बात स्वीकार की है. हालांकि सरकार ने 16 अगस्त को कहा कि मुस्लिम बहुल इलाकों में लैंडलाइन बहाल की जाएगी लेकिन अभी भी बहुत से इलाके मोबाइल फोन और इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भारत सरकार कश्मीर में प्रतिबंध हटाने का महज दावा नहीं कर सकती, बल्कि उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों का सम्मान हो. अधिकारियों को चाहिए कि वे सूचना प्रवाह को कम करने या लोगों को शांति से इकट्ठा होने और अपने विचारों को व्यक्त करने से रोकने के लिए व्यापक, दमनकारी साधनों का इस्तेमाल बंद करें.”

5 अगस्त को सरकार ने जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट, सेलफोन और लैंडलाइन सहित संचार के सभी साधनों को बंद कर दिया. सरकार ने आवाजाही की आज़ादी पर भी व्यापक प्रतिबंध लगा दिए और सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगा दी. जहां इंटरनेट और दूरसंचार सेवाओं पर प्रतिबंध ने सूचनाओं पर छाए अंधेरा को और गहरा कर दिया, वहीँ आवाजाही पर प्रतिबंध ने जरूरी चिकित्सा देखभाल और अन्य सेवाओं तक पहुंच को बाधित कर असुरक्षित लोगों को जोखिम में डाल दिया.

कथित रूप से गलत जानकारी फैलाने के लिए सरकार ने सोशल मीडिया साइट ट्विटर से कुछ खातों को निलंबित करने के लिए भी कहा है. अभिव्यक्ति और विचार के स्वतंत्रता संबंधी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड काए ने वर्तमान कठोर संचार प्रतिबंधों पर चिंता व्यक्त की है.

भारत अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि इंटरनेट आधारित प्रतिबंध कानून के अनुसार लागू किए जाएं और ये प्रतिबन्ध विशिष्ट सुरक्षा  के लिए जरुरी और आनुपातिक कार्रवाई के तौर पर हों. जुलाई 2016 में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने ऑनलाइन सूचना तक पहुंच या उसके प्रसार को जान बूझकर रोकने या बाधित करने के उपायों की निंदा की थी और कहा था कि सभी देशों को ऐसे तरीकों पर रोक लगानी चाहिए.

कश्मीर में 5 अगस्त से ही छिटपुट विरोध प्रदर्शनों और सुरक्षा बलों द्वारा पैलेट गन के इस्तेमाल की सूचना आ रही है. पैलेट गन से लगभग एक दर्जन लोगों के घायल होने की खबर है. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों की मौत और उनके घायल होने के कारण कश्मीर में भीड़-नियंत्रण के हथियार के रूप में पैलेट गन के इस्तेमाल की व्यापक निंदा हुई है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत सरकार को सुरक्षा बलों को सार्वजनिक रूप से यह आदेश देना चाहिए कि वे कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा बल और आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल संबंधी संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों का अनुपालन करें और उसे यह सुनिश्चित करने के लिए अन्य सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए कि सुरक्षा बल संयम से काम लें. विरोध प्रदर्शन आयोजकों को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे कि उनके समर्थक आम लोगों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के खिलाफ हिंसा में शामिल न हों.

एजेंसी फ्रांस-प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने लोक सुरक्षा कानून के तहत हजारों कश्मीरियों को हिरासत में लिया है. यह एक विवादास्पद कानून है जो बिना आरोप या अदालती सुनवाई के दो साल तक हिरासत की अनुमति देता है. 15 अगस्त को सरकार ने कश्मीरी राजनीतिक नेता शाह फैसल को हिरासत में ले लिया. शाह फैसल पर यह कार्रवाई एक दिन पहले दिए गए उस मीडिया इंटरव्यू के बाद की गई जिसमें उन्होंने सरकार के फैसले की आलोचना की थी. स्थानीय कार्यकर्ताओं ने एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि बच्चों को भी हिरासत में लिया गया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सरकार को समय-समय पर हिरासत में लिए गए लोगों की सूची जारी करनी चाहिए, उनके ठौर-ठिकाने के बारे में परिवारों को सूचित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बंदियों को उनके परिवार और वकील तक समुचित पहुंच हो. अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून आम तौर पर आरोप के बिना हिरासत में लेने पर रोक लगाता है और मनमाना हिरासत रोकने के लिए त्वरित और नियमित न्यायिक समीक्षा की अपेक्षा करता है.

सरकार का कहना है कि उसने ये कदम कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए उठाए हैं. पाकिस्तान पर हिंसक विरोध प्रदर्शनों और उग्रवादी हमलों के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए सरकार ने इस क्षेत्र में दसियों हज़ार अतिरिक्त सैनिक भी तैनात कर दिए हैं. 16 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने विवादित क्षेत्र को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चर्चा करने के लिए बंद कमरे में एक बैठक बुलाई.

जुलाई में जारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की 43-पृष्ठों की रिपोर्ट में कश्मीर के भारतीय और पाकिस्तानी नियंत्रण वाले दोनों हिस्सों में राज्य सुरक्षा बलों और सशस्त्र समूहों के दुर्व्यवहार के बारे में गंभीर चिंता प्रकट की गई है. संयुक्त राष्ट्र ने पाया कि भारतीय सुरक्षा बलों ने जुलाई 2016 में शुरू हुए हिंसक विरोध के जवाब में अक्सर अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया. इस रिपोर्ट में हिंदू कश्मीरी पंडितों की हत्या और उनके जबरन विस्थापन, बलात गुमशुदगी और भारतीय सुरक्षा बल जवानों द्वारा कथित यौन हिंसा जैसे अतीत के उत्पीड़नों के लिए न्याय नहीं होने की भी निंदा की गई है. भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को “झूठी और प्रेरित कहानी,” जो कि “सीमा पार आतंकवाद के मूल मुद्दे” को नजरअंदाज करती है, बता कर खारिज कर दिया.

गांगुली ने कहा, “मानवाधिकारों के उल्लंघन से इनकार करने के बजाय, भारत सरकार को पिछली गलतियों से सबक लेना चाहिए, जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए और भविष्य के उत्पीड़न को रोकना चाहिए. उच्चायुक्त की सिफारिशों को लागू करने और कश्मीर में सभी लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए इस मुद्दे पर चिंतित सरकारों और संयुक्त राष्ट्र को भारत पर दबाव डालना चाहिए.”

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