Skip to main content

कश्मीर: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक़ गंभीर उत्पीड़न

भारत और पाकिस्तान रिपोर्ट के निष्कर्षों को स्वीकार करें; न्याय सुनिश्चित करें

कश्मीर में लापता लोगों की जांच की मांग करते हुए मौन विरोध प्रदर्शन में शामिल उनके रिश्तेदार. © 2019 एपी फोटो/डार यासीन

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारत और पाकिस्तान को चाहिए कि वे कश्मीर के विवादित क्षेत्र में बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की सिफारिशों पर कार्रवाई करें.

8 जुलाई, 2019 को जारी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) की 43 पृष्ठों की रिपोर्ट में कश्मीर के भारतीय और पाकिस्तानी नियंत्रण वाले दोनों हिस्सों में राज्य सुरक्षा बलों और सशस्त्र समूहों के दुर्व्यवहार के बारे में गंभीर चिंता प्रकट की गई है. भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को “झूठी और प्रेरित कहानी,” जो कि “सीमा पार आतंकवाद के मूल मुद्दे” को नजरअंदाज करती है, बताकर खारिज कर दिया. हालांकि पाकिस्तान ने रिपोर्ट का स्वागत किया लेकिन अनुरोध किया कि उन धाराओं को हटा दिया जाए या संशोधित किया जाए, जो “पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से संबंधित जानकारी न होकर पूरे पाकिस्तान से जुड़े आम मानवाधिकार के मामले हैं.”

दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “कश्मीर में हो रहे उत्पीड़न के मामलों में अपनी-अपनी जिम्मेदारी से इंकार करते हुए भारत और पाकिस्तान मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराते हैं. दोनों देशों की सरकारों को अपनी कार्यदिशा में बदलाव के लिए संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट द्वारा प्रस्तुत अवसर का उपयोग करना चाहिए और गंभीर उत्पीड़न के गुनाहगारों की जिम्मेदारी तय करनी चाहिए.”

ओएचसीएचआर ने कहा कि जून 2018 में कश्मीर में मानवाधिकारों पर उसकी पहली रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल करने के लिए कोई स्पष्ट कदम उठाने में भारत और पाकिस्तान दोनों विफल रहे हैं. ताजा रिपोर्ट फरवरी में पाकिस्तान स्थित सशस्त्र समूह जैश-ए-मोहम्मद के घातक हमले के बाद आई है. इस हमले में कश्मीर में सुरक्षा बलों के काफिले को निशाना बनाया गया जिसमें 40 भारतीय सैनिकों को मौत के घाट उतर दिया गया. नतीजे के तौर पर, विवादित कश्मीर में वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय सीमा – नियंत्रण रेखा (एलओसी) – पर सीमा पार से गोलाबारी सहित भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य गतिविधियों में तेजी आई.

श्रीनगर स्थित जम्मू एंड कश्मीर कोएलिशन ऑफ़ सिविल सोसाइटी की रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष 2008 के बाद 2018 में संघर्ष के कारण सबसे अधिक मौतें हुईं जिसमें 586 लोग मारे गए. हताहत हुए लोगों में सशस्त्र समूहों के 267 सदस्य, 159 सुरक्षा बल के जवान और 160 नागरिक शामिल थे. वहीँ भारत सरकार ने दावा किया कि इस दौरान 238 आतंकवादी, 86 सुरक्षा बल के जवान और 37 नागरिक मारे गए.

ओएचसीएचआर ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि भारतीय सुरक्षा बलों ने जुलाई 2016 में शुरू हुए हिंसक विरोध के जवाब में अक्सर अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया, भीड़-नियंत्रण के हथियार के रूप में पैलेट गन का इस्तेमाल जारी रखा जबकि इससे बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए और घायल हुए. भारत सरकार को अपनी भीड़ नियंत्रण तकनीकों और जवाबी कार्रवाई के नियमों की समीक्षा करनी चाहिए और सुरक्षा बलों को सार्वजनिक रूप से यह आदेश देना चाहिए कि कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा बल और आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल संबंधी संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों का अनुपालन करें.

इस रिपोर्ट में हिंदू कश्मीरी पंडितों की हत्या और उनके जबरन विस्थापन, बलात या अनैच्छिक गुमशुदगी और भारतीय सुरक्षा बल जवानों द्वारा कथित यौन हिंसा जैसे अतीत के उत्पीड़नों के लिए न्याय नहीं होने की भी निंदा की गई है. इसमें घेराबंदी और तलाशी अभियान के दौरान बल के अत्यधिक उपयोग पर चिंता व्यक्त की गई है, जिसके परिणामस्वरूप नागरिकों की मौत हुई और साथ ही हिरासत में यातना और मौत के नए आरोप भी लगाए गए.

ओएचसीएचआर ने उल्लेख किया है कि भारत का सशस्त्र बल (जम्मू और कश्मीर) विशेष अधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) “जवाबदेही तय करने में एक महत्वपूर्ण बाधा बना हुआ है” क्योंकि यह मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन के मामलों में प्रभावी अभयदान प्रदान करता है. 1990 में कश्मीर में यह कानून लागू होने के बाद से, भारत सरकार ने सुरक्षा बल के किसी भी जवान के खिलाफ नागरिक अदालतों में मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने यह भी कहा है कि भारत को अपने लोक सुरक्षा कानून में संशोधन करना चाहिए. यह एक प्रशासकीय हिरासत कानून है जो बिना आरोप या अदालती सुनवाई के दो साल तक के हिरासत की अनुमति देता है. अक्सर इस कानून का इस्तेमाल नियमित आपराधिक न्याय सुरक्षा की अनदेखी करते हुए प्रदर्शनकारियों, राजनीतिक विरोधियों और अन्य कार्यकर्ताओं को बगैर ठोस आधार पर लंबे समय तक हिरासत में रखने के लिए किया जाता है.

जुलाई 2018 में, जम्मू और कश्मीर की भारतीय राज्य सरकार ने लोक सुरक्षा अधिनियम की धारा 10 में संशोधन किया, जिससे जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों को राज्य के बाहर हिरासत में रखने पर रोक हटा दी गई. ओएचसीएचआर ने बताया कि 2018 में कम-से-कम 40 लोगों, मुख्य रूप से अलगाववादी राजनीतिक नेताओं को राज्य के बाहर की जेलों में स्थानांतरित किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि बंदियों को राज्य के बाहर स्थानांतरित करने से उनके परिवार के सदस्यों और वकीलों के लिए उनसे मुलाकात करना कठिन हो जाता है. इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि राज्य के बाहर की जेलों को कश्मीरी मुस्लिम बंदियों, विशेष रूप से अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं माना जाता है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि सशस्त्र समूह अपहरण, नागरिकों की हत्या, यौन हिंसा, सशस्त्र संघर्ष के लिए बच्चों की भर्ती समेत मानवाधिकारों के हनन तथा जम्मू और कश्मीर में राजनीतिक संगठनों से जुड़े या संबद्ध लोगों पर हमलों के लिए जिम्मेदार हैं. इसने फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का हवाला दिया है, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण की निगरानी करने वाला अंतर-सरकारी संगठन है. एफएटीएफ ने पाकिस्तान से अपनी “रणनीतिक कमियों” को दूर करने की मांग की है. भारत लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवादी समूहों को आर्थिक मदद, हथियार और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने का आरोप लगाता रहा है. सन 1989 से आज तक कश्मीर में हुए हमलों में पचास हजार से अधिक मौतें हुई हैं.

ओएचसीएचआर ने यह भी पाया है कि पाकिस्तान द्वारा प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संगठन बनाने के अधिकार पर प्रतिबंध, अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव और राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए आतंकवाद निरोधी कानूनों का दुरुपयोग शामिल हैं. इसमें उन खतरों का उल्लेख किया गया है जिनका सामना पत्रकार अपने कार्यों के दौरान करते हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने पाकिस्तान द्वारा प्रशासित कश्मीर से लोगों के गायब होने पर भी चिंता व्यक्त की है, इस बात का जिक्र किया है कि पीड़ित समूहों का आरोप है कि लोगों के गायब होने के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों का हाथ है.

गांगुली ने कहा, “भारत सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट को ख़ारिज करना यह दर्शाता है कि वह मानवाधिकार संबंधी अपनी विफलताओं का सामना करने के लिए तैयार नहीं है. भारत और पाकिस्तान दोनों को रिपोर्ट के निष्कर्षों को स्वीकार करना चाहिए और कश्मीर में गंभीर उत्पीड़न की घटनाओं को समाप्त करने में मदद के लिए एक स्वतंत्र जांच हेतु पहल करनी चाहिए.”

GIVING TUESDAY MATCH EXTENDED:

Did you miss Giving Tuesday? Our special 3X match has been EXTENDED through Friday at midnight. Your gift will now go three times further to help HRW investigate violations, expose what's happening on the ground and push for change.
Region / Country