Skip to main content

भारतः संगठन और अभिव्यक्ति पर बढ़ती बंदिशें

एक्टिविस्टों का दम घोंटने वाला काला कानून संशोधित करें, अल्पसंख्यकों पर शिकंजा कसना बंद करें

(न्यूयार्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज जारी अपनी वर्ल्ड रिपोर्ट 2017 में कहा कि भारत सरकार ने विदेशी वित्तीय मदद रोक दी है और सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाली मीडिया और नागरिक समाज समूहों पर दबाव बढ़ा दिया है. सरकार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थक होने का दावा करने वाले निगरानी समूहों द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ किए जा रहे हमलों और उनको परेशान करने वालों को रोक पाने में भी नाकाम रही है.

687 पृष्ठोंवाली वर्ल्ड रिपोर्ट के 27वें संस्करण में ह्यूमन राइट्स वॉच ने 90 से अधिक देशों में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा की है. रिपोर्ट की प्रस्तावना में कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ लिखते हैं कि लोक-लुभावनवादी सर्वसत्तावादियों की एक नई पीढ़ी मानवाधिकार संरक्षण की अवधारणा को खत्म कर देना चाहती है, वह अधिकारों को बहुमत की पसंद की राह का रोड़ा समझती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में पीछे छूट जाने और बढ़ते हिंसक अपराधों के खौफ में जीनेवालों के लिए, अधिकारों का सम्मान करने वाला लोकतंत्र जिन मूल्यों पर खड़ा है उन्हें पुनर्स्थापित करने में सिविल सोसाइटी, मीडिया और जनता की अहम भूमिका है.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, "नागरिक समाज समूहों के खिलाफ भारत की कार्रवाई देश की जनांदोलनों की समृद्ध परंपरा के लिए खतरा है. काम में बाधा उत्पन्न कर कार्यकर्ताओं पर दमनात्मक कार्रवाई करने के बजाय, अधिकार और न्याय तक पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार को उनका साथ लेना चाहिए."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए), जो नागरिक समाज संगठनों को मिलने वाले विदेशी धन को नियमित करता है, का लगातार इस्तेमाल पर्यावरण और अधिकार समूहों को मिलने वाली आर्थिक सहायता और गतिविधियों को रोकने के लिए कर रही है. 2016 में, संयुक्त राष्ट्र के तीन विशेष दूतों ने सरकार से एफसीआरए निरस्त करने की अपील की. लेकिन, मोदी प्रशासन ने बिना वैध कारण बताए कुछ प्रमुख मानवाधिकार रक्षकों समेत 25 समूहों को मिलने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगा दी.

आलोचकों, जिनको अक्सर राष्ट्र विरोधी बताया जाता है, पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार राजद्रोह और आपराधिक मानहानि कानूनों का लगातार उपयोग कर रही है. हिंदू निगरानी समूहों ने इस शक पर मुसलमानों और दलितों पर हमला किया है कि उन्होंने गोमांस के लिए गाय मारा है, उसकी चोरी की है या उसे बेचा है. अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत की जाति आधारित भेदभाव पर एक नई रिपोर्ट में इसका जिक्र गया किया है कि जाति प्रभावित समूह अब भी बहिष्कार और अमानवीय स्थितियों के शिकार हैं.

2016 के जुलाई में जम्मू एवं कश्मीर में शुरू हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में 90 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैंकड़ों घायल हुए हैं. सरकार कश्मीर और अन्य राज्यों में पुलिस और सैनिकों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और काले कानून सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को निरस्त करने में विफल रही है.

भारत ने मानवाधिकार संरक्षण संबंधी संयुक्त राष्ट्र के महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की है.

गांगुली ने कहा, "भाजपा विकास और विदेशी निवेश के वादे के साथ सत्ता में आई थी, लेकिन वह निगरानी के नाम पर हिंसा करने वाले अपने समर्थकों पर लगाम लगाने में असमर्थ रही है. आगे उन्होंने कहा कि "दमन और समस्याओं के प्रति शुतुरमुर्गी दृष्टिकोण बुनियादी अधिकारों और कानून के शासन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर केवल निवेशकों में शक ही पैदा करेगा."

भारत पर ह्यूमन राइट्स वॉच की अन्य रिपोर्ट्स के लिए, कृपया देखें:

Your tax deductible gift can help stop human rights violations and save lives around the world.

Region / Country