जम्मू और कश्मीर राज्य की विशेष संवैधानिक स्वायत्तता रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने संबंधी भारत सरकार का फ़ैसला आज लागू हुआ.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दोनों क्षेत्रों ने “आज नए भविष्य की दिशा में एक कदम बढ़ाया है.” लेकिन यह साफ़ नहीं है कि इस भविष्य में कश्मीरियों के अधिकारों की रक्षा करना शामिल है या नहीं, जिन पर अगस्त में सरकार के फ़ैसले की घोषणा के पहले से ही हमले होते रहे हैं.
घोषणा के विरोध में प्रतिक्रिया का अंदाज़ा लगाते हुए, सरकार ने आवाज़ाही की आज़ादी पर व्यापक प्रतिबंध लगाए, मनमाने ढंग से अज्ञात संख्या में नेताओं और अन्य लोगों को हिरासत में लिया और इंटरनेट, फोन सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया.
हालांकि कुछ प्रतिबंध हटा दिए गए हैं, लेकिन अभी भी सैकड़ों लोग हिरासत में या घर में नजरबंद हैं और इंटरनेट सेवा उपलब्ध नहीं है. स्कूल और कॉलेज खुले हुए हैं, लेकिन उपस्थिति बहुत कम है क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों को घर से बाहर भेजने से डरते हैं. सुरक्षा बलों ने मनमाने ढंग से बहुतेरे बच्चों को हिरासत में लिया है, हालांकि सरकार ने ज़ोर देकर कहा है कि चेतावनी के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. सुरक्षा बलों द्वारा यातना और अन्य उल्लंघनों की विश्वसनीय रिपोर्ट्स मौजूद हैं.
हिंसक प्रदर्शनकारियों ने कई बार उन लोगों को धमकी दी है कि जो सरकार के हालात सामान्य होने के दावों के विरोध में आयोजित बंद में शामिल नहीं हुए. आतंकवादी समूहों द्वारा भी हमले किए गए हैं.
कश्मीर के हालात ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा कर दी है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने हाल ही में कहा है कि कश्मीरियों को “कई तरह के मानवाधिकारों से वंचित” किया जा रहा है. स्थिति का आकलन करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस में एक सुनवाई हुई.
लेकिन सरकार ने आरोपों पर कार्रवाई करने के बजाय, विपक्ष के नेताओं, विदेशी राजनयिकों और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को कश्मीर के स्वतंत्र दौरे से रोक दिया. ठीक उसी समय, भारत सरकार ने यूरोपीय सांसदों के एक समूह का स्वागत किया, जिसमें मुख्य रूप से दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल थे और जिनसे सरकार की नीतियों पर सवाल करने की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती. दौरे पर गए तीन सांसदों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “स्थिति उतनी बुरी नहीं जितना हमने सोचा था.”
ऐसे में जबकि जम्मू और कश्मीर एक नए, अनिश्चित भविष्य में प्रवेश कर रहा है, भारत सरकार को उत्पीड़न छिपाने या उसे तर्कसंगत ठहराने की कोशिश बंद करनी चाहिए और मानवाधिकारों को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.