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पाकिस्तान की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार समिति को नवीनतम रिपोर्ट

सारांश

यह रिपोर्ट पाकिस्तान में शिक्षा के संरक्षण, शरणार्थियों एवं शरण मांगने वालों की स्थिति पर केंद्रित है. यह हाल की घटनाओं पर आधारित पर हमारी पिछली रिपोर्ट का नवीनतम रूप है. यह आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता ("समझौता") के अनुच्छेद 2, 6, 7, 11, 13 और 14 से संबंधित है और उन मुद्दों और सवालों को सामने लाती है जिसे समिति के सदस्य सरकार के साथ उठाना चाहेंगे.

इस रिपोर्ट में शामिल साक्ष्य 2007 से अक्टूबर 2016 के बीच छात्रों, शिक्षकों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर हुए हमलों और स्कूलों के सैन्य उपयोग पर ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसंधान पर आधारित हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पंजाब, सिंध और ख़ैबर पख्तूनख्वा (केपी) प्रांतों के शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों और स्कूल प्रशासकों समेत 48 लोगों का साक्षात्कार किया;  मीडिया रिपोर्ट्स की मॉनिटरिंग और उनका विश्लेषण किया और अकादमिक प्रकाशनों तथा सरकारी दस्तावेजों की समीक्षा की. अधिक जानकारी के लिए ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स: अटैक्स ऑन स्टूडेंट्स, टीचर्स, एंड स्कूल इन पाकिस्तान"  देखी जा सकती है.

यह रिपोर्ट पाकिस्तान में शरणार्थियों के अधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित फरवरी 2017 की रिपोर्ट पर भी आधारित है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने 26 अक्टूबर से 1 नवंबर, 2016 के बीच काबुल लौटने वाले 92 अफ़ग़ान शरणार्थियों और 8 से 11 नवंबर, 2016 के बीच पाकिस्तान के पेशावर में 23 अफगान शरणार्थियों और बिना दस्तावेज़ के रह रहे अफगानों का साक्षात्कार किया. अधिक जानकारी के लिए ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट देखें- "पाकिस्तान कोअर्शन, यूएन काम्प्लीसिटी: द मास फोर्स्ड रिटर्न ऑफ़ अफ़ग़ान रिफ्यूजीज".

शिक्षा (अनुच्छेद 13, 14)

शिक्षा तक अपर्याप्त पहुंच, निम्न नामांकन दर, लैंगिक पूर्वाग्रह, प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी और बदतर बुनियादी ढांचे के कारण पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था कमजोर है. 2015 में,पाकिस्तान में 6-11 वर्ष आयु समूह के 55,99,070 बच्चे, जिनमें 33,09,514 लड़कियां थीं और 12-17 वर्ष आयु समूह के 54,45,332 किशोर, जिनमें 29,02,032 लड़कियां थीं, स्कूल से बाहर थे.[1]

पाकिस्तान में छात्रों, शिक्षकों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर हमले जारी हैं  जिनका शिक्षा के अधिकार पर विध्वंसकारी प्रभाव पड़ा है. पाकिस्तान सरकार राष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर हमलों की संख्या या ऐसे हमलों में मारे गए और घायल लोगों की संख्या पर सुसंगत या पारदर्शी आंकड़ा एकत्रित नहीं करती है. हालांकि, ग्लोबल टेररिज्म डाटाबेस के अनुसार, 2007 से 2015 के बीच पाकिस्तान में शैक्षणिक संस्थानों पर 867 हमले हुए, जिनमें 3 9 2 मौतें हुईं और 724 लोग घायल हुए. .[2]

ह्यूमन राइट्स वॉच ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), जिसे पाकिस्तानी तालिबान के नाम से भी जाना जाता है, लश्कर-ए-झांगवी (एलईजे) और कई अन्य इस्लामी आतंकवादी समूहों के हमलों का दस्तावेजीकरण किया है जिन्होंने स्कूल भवनों को नष्ट कर दिया, शिक्षकों और छात्रों पर हमले किये और माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल से बाहर रखने के लिए मजबूर किया. उन्होंने उच्च शिक्षा के संस्थानों- कॉलेजों को भी निशाना बनाया है.[3]

पाकिस्तान के आतंकवादी इस्लामी समूह असहिष्णुता और बहिष्कार को बढ़ावा देने और सरकारी संस्थानों को निशाना बनाने के लिए स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर हमले करते हैं; कुछ समूह स्कूलों पर आक्रमण करते हैं क्योंकि उनका उपयोग सुरक्षा बलों द्वारा छावनी के रूप में किया जाता है या फिर उनका पाठ्यक्रम बहुत ही "धर्मनिरपेक्ष" या पश्चिमी है.[4]

शिक्षा पर हमलों का लड़कियों पर ज्यादा असर पड़ता है, सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण इनके स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक रहती है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने जिन हमलों का दस्तावेजीकरण किया है वे खास तौर पर शिक्षा तक लड़कियों की पहुंच ख़त्म करने के लिए किए गए थे. यह पाकिस्तान में लड़कियों की  शैक्षणिक स्थिति को और भी बदतर बना देता है. टीटीपी ने 2009 में केपी की स्वात घाटी पर पूरा नियंत्रण हासिल करने के बाद लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ हिंसक अभियान शुरू किया. लड़कियों के 900 से अधिक स्कूलों को जबरन बंद करा दिया गया और 1,20,000 से अधिक लड़कियों और 8,000 महिला शिक्षकों के स्कूल जाने पर पाबन्दी लगा दी गई. पाकिस्तानी सेना द्वारा इलाके से तालिबान के नियंत्रण को खत्म करने के बाद भी कई छात्र स्कूल नहीं लौट पाए.[5]

जून 2012 में केपी  के कोहट इलाके के गवर्नमेंट गर्ल्स प्राइमरी स्कूल, गुलाम बंदा को बम हमले का  निशाना बनाया गया. स्कूल के चौकीदार ने यह स्वीकार किया कि उसने तालिबान के आदेश पर स्कूल को उड़ाया था.[6] शिक्षक अहमद अली ने कहा कि उन्हें ऐसे हमले का डर था क्योंकि लड़कियां स्कूल आती थीं:

मैं स्कूल के पास घर पर सो रहा था. आधी रात को धमाके की आवाज़ से उठ गया, लेकिन बहुत डरे होने के कारण बाहर नहीं निकला. सुबह स्कूल आने पर मैंने देखा कि कुछ अज्ञात आतंकियों ने स्कूल पर बम धमाका कर दो कमरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया है. बीच के हिस्से का एक अन्य कमरा भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. तालिबान ने पूरे केपी इलाके में लड़कियों के स्कूलों पर हमला किया और पुलिस ने पहले ही चेतावनी दी थी कि हमारा स्कूल भी निशाना बन सकता है. हालांकि, स्कूल को कोई पुलिस सुरक्षा नहीं दी गई थी.[7]

ह्यूमन राइट्स वॉच ने जब दौरा किया गया तब तक स्कूल का पुनर्निर्माण कर दिया गया था और वहां पढाई शुरू हो चुकी थी.[8]

फरवरी 2016 में, उग्रवादियों ने संघ प्रशासित जनजातीय क्षेत्र (एफएटीए) के दक्षिण वजीरिस्तान में लड़कियों के लिए बने एक नए स्कूल को बम हमले का निशाना बनाया. टीटीपी के एक गुट साजना समूह ने एक बयान में जिम्मेदारी लेते हुए कहा, "हमने स्कूल को उड़ाया है क्योंकि यह एक सरकारी संस्थान था."[9]

7 जनवरी, 2014 को केपी के हांगु जिले में सरकारी हाई स्कूल इब्राहिमजई में आत्मघाती हमलावर को घुसने से रोकते हुए 15 वर्षीय लड़के ऐतज़ाज़ हसन की मौत हो गई.[10] हांगु के शिया-प्रभुत्व वाले क्षेत्र इब्राहिमजई में यही एक मात्र स्कूल है. हमले के समय लगभग दो हज़ार छात्र स्कूल में थे. एलईजे ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी.[11] इस गांव के निवासी एक बुजुर्ग अली हुसैन ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया:

हम पहले से ही डरे हुए हैं क्योंकि हम शिया हैं. हालांकि, किसी ने सोचा नहीं था कि एलईजे स्कूल पर हमला करेगा. स्कूल हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान माना जाता है. हमले के कई दिनों बाद भी मेरा बेटा स्कूल नहीं जा पाया. मैं भी नहीं चाहता था कि वो स्कूल जाए. स्कूल में अब पुलिस की सुरक्षा है, लेकिन ज्यादातर दिनों वहां सिर्फ एक पुलिस कांस्टेबल रहता है. हमने स्कूल की सुरक्षा के लिए स्थानीय स्वयंसेवकों की एक टीम को साथ रखा है. लेकिन आत्मघाती हमलावर का सामना होने पर हम क्या कर सकते हैं? गांव में केवल एक स्कूल है और हमारे सभी बच्चे इस स्कूल में जाते हैं. इस स्कूल पर हमला हमारे लिए विनाशकारी है. ऐतजाज़ हसन के शहीद होने के बाद गांव के बहुत से लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है.[12]

20 जनवरी, 2016 को केपी के चेरसड्डा जिले में बाखा खान विश्वविद्यालय में चार बंदूकधारियों ने गोलीबारी की. पाकिस्तान सेना के अनुसार, चारों हमलावर विश्वविद्यालय की दीवारों पर चढ़ गए और अंधाधुंध गोलीबारी की. वे आत्मघाती जैकेट पहने हुए थे, लेकिन सैनिकों ने उन्हें विस्फोट करने से पहले ही मार डाला.[13] असिम (छद्मनाम), भूविज्ञान के 23 वर्षीय छात्र ने हमले और उसके प्रभाव के बारे में बताया:

जब मैं कुछ अन्य छात्रों के साथ हॉस्टल में अपने कमरे में था तो भारी गोलीबारी की आवाज सुनी. हमने खुद को कमरे में बंद कर दिया. हम गोलीबारी और क़दमों की आहट सुन सकते थे. आतंकियों ने हमारा दरवाजा खटखटाया, हमें इसे खोलने के लिए कहा. मैं अपने कमरे में बिस्तर के नीचे छिप गया. उन्होंने अंततः दरवाजा तोड़ दिया और अंदर आ गए. उन्होंने मेरे सामने मेरे पांच दोस्तों को मार डाला. फिर वे कमरे से चले गए. कुछ मिनटों के बाद आतंकी फिर यह देखने के लिए आए कि कहीं कोई जिंदा तो नहीं बच गया है. उन्होंने बिस्तर के नीचे नहीं देखा. लेकिन उन्होंने कमरे में एक ग्रेनेड फेंका और निकल गए. ग्रेनेड के टुकड़ों से मैं बहुत गंभीर रूप से घायल हो गया. मैं बीस दिनों तक अस्पताल में रहा. मुझे बुरे सपने आते और दौरे पड़ते हैं. मैं पिछले कई महीनों से पढाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा हूँ. हमारे विश्वविद्यालय में, हॉस्टल के हरेक कमरे में पांच छात्र रहते हैं- मेरे साथ कमरे में रहने वाले बाकी चारों मर चुके हैं, मेरी आँखों के सामने उन्हें मार दिया गया. मैं यह कैसे भूल सकता हूँ? मैं हॉस्टल में फिर से नहीं रह सकता.[14]

स्कूलों और विश्वविद्यालयों का सैन्य उपयोग

पाकिस्तान में और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन पर तैनात सरकारी सेनाओं ने, दोनों ही मौकों पर, सैन्य उद्देश्यों के लिए स्कूलों का इस्तेमाल किया है.

पाकिस्तान के संघर्षरत क्षेत्रों में, खासकर केपी और एफएटीए में, सेना ने आंशिक रूप से या पूरी तरह से शैक्षणिक संस्थानों को कब्ज़े में ले लिया. सेना द्वारा अधिकार में लिए जाने से पहले, जब सेना ने स्वात और एफएटीए में प्रवेश किया तो कई स्कूल तालिबान के कब्जे में थे.

स्वात में, पाकिस्तानी सेना ने अपने सैन्य आक्रमण के बाद, तालिबान को स्कूलों को खाली करने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन उनकी जगह पर खुद काबिज़ हो गई. हालांकि अधिकांश स्कूल अब खाली कर दिए गए हैं, लेकिन दिसंबर 2016 तक स्वात में करीब 20 स्कूल सैन्य उपयोग में थे.[15]

जुलाई 2016 में स्वात के एक स्कूल अधिकारी ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि 2009 से उनके स्कूल को सैन्य उद्देश्यों के लिए कब्जा में ले लिया गया है:

 सेना जब स्वात में आई तो उन्होंने दावा किया कि उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है इसलिए उन्होंने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को अपना ठिकाना बनाया. उन्होंने कुछ निजी स्कूलों पर भी कब्जा कर लिया. मेरे निजी स्कूल को भी उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया. मई 2009 में सैन्य कार्रवाई शुरू होने के बाद मैंने आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति के रूप में स्वात छोड़ दिया और जब जुलाई में लौटा, मुझे पता चला कि पाकिस्तानी सेना के बलूच रेजिमेंट की एक इकाई ने मेरे स्कूल पर कब्जा कर लिया है. उन्होंने कोई मुआवजा नहीं दिया. जब मैं स्कूल गया और पूछा कि मेरा स्कूल कब तक खाली हो जाएगा, तो मुझे इंतजार करने के लिए कहा गया. मैंने विरोध किया और आखिर में अपना विरोध दर्ज कराते हुए मैंने पाकिस्तानी सेना के जनरल हेडक्वार्टर (जीएचक्यू) को पत्र लिखा. जीएचक्यू को मेरी शिकायत के बाद, हमारे क्षेत्र के प्रभारी कर्नल ने मुझसे आगे और शिकायत नहीं करने को कहा. जिला प्रशासन ने भी मेरी मदद करने में असमर्थता व्यक्त की. सेना के निर्णय को स्वीकार करने के आलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं रह गया था. अब वे स्कूल भवन के लिए किराया देते हैं, हालांकि किराया किसी भी तरह से बाजार मूल्य पर निर्धारित नहीं है, वे (सेना) अपनी मर्जी से भुगतान करते हैं. मैंने अब एक और निजी स्कूल खोल लिया है.[16]

संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में भाग लेने वाले पाकिस्तानी सैनिक संयुक्त राष्ट्र नियमों के तहत अपने अभियान के दौरान स्कूलों का उपयोग नहीं करने के लिए बाध्य हैं.[17] फिर भी, पाकिस्तानी शांति सेना ने यूएन मल्टीडायमेंशनल इंटीग्रेटेड स्टेबिलाइजेशन मिशन इन द सेंट्रल अफ़्रीकन रिपब्लिक (एमआईएनयएससीए) के सदस्य के रूप में सेवाएं देते हुए मध्य अफ्रीकी गणराज्य के ओका प्रांत के एक छोटे से शहर मौरौबा में स्कूल के मैदानों का इस्तेमाल किया. यह दिसंबर 2015 के एमआईएनयएससीए निर्देश के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि सेना और पुलिस सैन्य प्रयोजनों के लिए स्कूलों का उपयोग नहीं करेंगे.[18] ह्यूमन राइट्स वाच के शोधकर्ताओं ने 22 जून, 2017 को मौरौबा दौरे के दौरान पाकिस्तान के शांति सैनिकों को स्कूल के मैदानों का इस्तेमाल अपनी छावनी के रूप में करते हुए देखा. ह्यूमन राइट्स वॉच ने एमआईएनयएससीए अधिकारियों को मौरौबा में कब्जे वाले स्कूल के बारे में सूचित किया और इसके बाद इसे खाली कर दिया गया.[19]

ह्यूमन राइट्स वॉच ने राजनैतिक दल मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) और आपराधिक समूहों द्वारा स्कूलों और विश्वविद्यालयों के कब्जे का भी दस्तावेजीकरण किया है. 2004 के बाद से सिंध इलाके के कराची के कम आय वाले आवासीय इलाके ल्यारी में आपराधिक गिरोहों, उनमें से कई विभिन्न राजनीतिक दलों के संरक्षण और सरपरस्ती में हैं, के बीच लगातार हिंसक लड़ाई देखी गई.[20] इस हिंसा में नगर निगम के भवनों, स्कूलों और अस्पतालों को काफी नुकसान पहुंचा.

स्कूलों का इस्तेमाल राजनीतिक दलों के कार्यालयों और गिरोहों के छिपने के अड्डे के रूप में भी किया जाता है. ल्यारी में कई स्कूलों जैसे घईराबाद गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल और एम. अल्वी गवर्नमेंट गर्ल्स प्राइमरी स्कूल की दीवारों पर गोलियों के निशान हैं,  जो 2010 में पुलिस अधिकारियों और गिरोह सदस्यों के बीच हुई गोलीबारी से बने हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित स्कूल उन इलाकों में थे जो विभिन्न गिरोहों के इलाकों के सीमाओं पर थे. लगभग 80 प्रतिशत स्कूल या तो क्षतिग्रस्त थे या फिर गिरोहों के कब्जा में थे.[21]

पाकिस्तान का 1938 का मनूवर्स, फील्ड फायरिंग और आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट सैन्य कार्रवाई के दौरान किसी भी शैक्षणिक संस्था में प्रवेश या हस्तक्षेप पर प्रतिबंध लगाता है.[22]

शिक्षा पर हमले पर सरकार की प्रतिक्रिया

पाकिस्तान सरकार ने 16 दिसंबर, 2015 को पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में टीटीपी द्वारा किए गए हमले- जिसमें 145 लोग मारे गए थे जिनमें लगभग सभी बच्चे थे- से पहले छात्रों, शिक्षकों और शैक्षणिक सुविधाओं के संरक्षण पर थोड़ा सा ही ध्यान दिया था. इस हमले के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने आतंकवाद से व्यापक रूप से निपटने के लिए 20 सूत्री राष्ट्रीय कार्य योजना की घोषणा की, लेकिन इन 20 बिंदुओं में से कोई भी छात्रों या शिक्षा से संबंधित नहीं है.[23] शिक्षकों, छात्रों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर सैकड़ों हमलों के बावजूद, पाकिस्तान सरकार ने ज्यादातर मामलों में अपराधियों पर सफलतापूर्वक मुकदमा नहीं चलाया है.[24]

स्कूलों में सुरक्षा बढ़ाने और उसे बनाए रखने की ज़िम्मेदारी काफी हद तक प्रांतीय सरकारों पर छोड़ दी गई है. यह ज़िम्मेदारी छिटपुट रूप से ही पूरी की गई है और अलग-अलग प्रांतों में यह बदलती रहती है, और इसमें लड़कियों की शिक्षा की सुरक्षा सम्बन्धी विशिष्ट जरूरतों पर थोड़ा ध्यान दिया गया है. ज्यादातर मामलों में, सुरक्षा बढ़ाने और बनाए रखने की ज़िम्मेदारी स्कूल प्रबंधन को थमा दी गई है. इससे परेशानियाँ और अराजकता बढ़ गई है. कुछ स्कूलों में ट्रामैटिक सुरक्षा अभ्यासों का आयोजन किया जा रहा है, जबकि अन्य में शिक्षकों और छात्रों को हथियारबंद किया जा रहा है. सुरक्षा उपायों को लागू नहीं करने के लिए शिक्षकों और प्राचार्यों के खिलाफ आपराधिक मामले भी दर्ज किए गए हैं.[25]

ह्यूमन राइट्स वॉच ने जिन स्कूलों का दौरा किया उनमें से कई में कक्षाएं मैदान में आयोजित की जाती हैं, जबकि स्कूल या इसके कुछ हिस्सों का पुनर्निर्माण हो चुका है. कई साक्षात्कारकर्ताओं ने पुनर्निर्माण की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की और बताया कि अधिकारी पुनर्निर्माण की हड़बड़ी में हैं और र्निर्माण की गुणवत्ता से समझौता करते हैं.[26]

समिति से ह्यूमन राइट्स वॉच संस्तुति करता है कि वह पाकिस्तान की सरकार से पूछे कि:

• रिपोर्टिंग अवधि के प्रत्येक वर्ष में और उसके बाद सरकारी सुरक्षा बलों और नन-स्टेट सशस्त्र समूहों के हमलों में कितने स्कूल, विश्वविद्यालय या शैक्षणिक संस्था क्षतिग्रस्त या नष्ट किए गए हैं?

• स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर नन-स्टेट सशस्त्र समूहों के हमलों को रोकने और हमलों के बाद सरकार ने उनके प्रभाव को कम करने के लिए क्या कार्रवाई की है?

• रिपोर्टिंग अवधि के प्रत्येक वर्ष में और उसके बाद सरकारी सुरक्षा बलों और नन-स्टेट सशस्त्र समूहों द्वारा कितने स्कूलों, विश्वविद्यालयों या शैक्षणिक संस्थाओं पर पूरी तरह या आंशिक रूप से कब्जा कर लिया गया या उनका उपयोग किया गया?

• सरकार ने स्कूलों पर अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानूनों का उल्लंघन करते हुए किए गए हमलों की जांच  और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए क्या किया है?

• संघर्ष से विस्थापित हुए बच्चे की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सुरक्षित पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

 

समिति से ह्यूमन राइट्स वॉच संस्तुति करता है कि वह पाकिस्तान सरकार से यह अपील करे कि:

• वह सुरक्षित स्कूलों की घोषणा का अनुमोदन करे, इस तरह सशस्त्र संघर्ष के दौरान स्कूलों और विश्वविद्यालयों के सैन्य उपयोग से बचाव के लिए दिशा-निर्देशों को लागू करने का अनुमोदन करे और प्रतिबद्धता दिखाए.

• स्कूलों पर हमले होने पर उन्नत त्वरित कार्रवाई तंत्र विकसित करने के लिए प्रांतीय सरकारों के साथ सहयोग करे, ताकि इनकी तुरंत मरम्मत या पुनर्निर्माण हो और नष्ट शैक्षणिक सामग्री को बदला जाए जिससे कि बच्चे जल्द-से-जल्द स्कूल वापस लौट सकें. पुनर्निर्माण के दौरान छात्रों को वैकल्पिक साधनों के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए और जहां उचित हो, मनो-सामाजिक मदद दी जानी चाहिए.
• छात्र, शिक्षक, स्कूल और विश्वविद्यालयों पर हमलों और स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों के सैन्य उपयोग पर विश्वसनीय, पारदर्शी राष्ट्रीय आंकड़े इकट्ठा करे; क्षतिग्रस्त स्कूलों की मरम्मत पर नज़र रखने के लिए ऐसे तरीकों की पहचान करे जिससे रक्षात्मक उपायों के लिए सूचनाएं प्राप्त हो सकें और जिम्मेदार व्यक्तियों की जांच और अभियोजन में सहायता मिले.

• शिक्षा पर हमले से सम्बंधित अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन में शामिल जिम्मेदार व्यक्तियों की जांच करे और उन पर उचित अभियोजन चलाए और ऐसा करना एक प्रमुख जिम्मेदारी समझे.

• संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 2143 (2014) और 2225 (2015) का पालन करते हुए स्कूलों का सैन्य उपयोग रोकने और हमलों से शिक्षा को बचाने के लिए ठोस उपाय करे.
• सशस्त्र संघर्ष के शिकार या सशस्त्र बलों या नन-स्टेट सशस्त्र समूहों में भर्ती किए गए बच्चों के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य लाभ के लिए काम करे और उनको फिर से समाज की मुख्यधारा में शामिल करे.
• यह सुनिश्चित करे कि संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में तैनात सभी सैनिकों को पूर्व-तैनाती प्रशिक्षण मिले, जिसमें ऐसे कार्यों के दौरान स्कूलों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध की जानकारी शामिल हो.

पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों और शरण मांगने वालों की स्थिति (अनुच्छेद 2, 6, 7, 11, 13)

पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों और शरण मांगने वालों की स्थिति चिंता का विषय बना हुआ है. 2016 की दूसरी छमाही में, पाकिस्तानी पुलिस ने अफगान शरणार्थियों के खिलाफ दुर्व्यवहार की एक मुहिम चलाई. यह मुहिम उस सरकारी सूचना अभियान के साथ चलाई गई जिसमें यह प्रचारित किया गया कि अफगानियों के लिए पाकिस्तान छोड़ने का समय आ गया है. इस बदतर होती असुरक्षित कानूनी स्थिति में, करीब 3,65,00 पंजीकृत अफ़ग़ान शरणार्थियों और बिना दस्तावेज के रह रहे 2,00,000 से अधिक अफगानों को पाकिस्तान से बाहर निकाल दिया गया, जिसमें अज्ञात संख्या में ऐसे अपंजीकृत लोग शामिल थे जो 2007 की शुरुआत में शरणार्थी पंजीकरण समाप्त होने के बाद कोशिश करने के बावजूद सुरक्षा प्राप्त करने में असमर्थ रहे थे. इन लोगों को अब अफगानिस्तान में सशस्त्र संघर्ष, हिंसा, निराशा और विस्थापन का सामना करना पड़ रहा  है.[27]

हजारों पंजीकृत अफगान शरणार्थियों पर अफगानिस्तान लौटने के लिए पाकिस्तान ने जबरदस्त दबाव बनाकर शरणार्थियों की जबरन वापसी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानूनी निषेध का उल्लंघन किया है. 2016 की दूसरी छमाही में हुआ निर्गमन हाल के वर्षों में दुनिया में शरणार्थियों की सबसे बड़ी जबरन वापसी थी.

ह्यूमन राइट्स वॉच से साक्षात्कार में लगभग हर अफगानिस्तानी ने पंगु कर देने वाली पुलिस की जबरन वसूली की बात कही, जिससे काम पर जाने का कोई मतलब नहीं रह गया और उनके लिए जरूरत पूरा करना असंभव हो गया. उन्होंने बताया कि जुलाई 2016 से, पाकिस्तानी पुलिस ने बार-बार उन्हें रोका और हर बार उनसे 100 से 3000 रुपये (यूएस $1 - $30) तक ऐंठ लिए. कई मामलों में पुलिस ने इस बिना पर पैसे ऐंठे कि दिसंबर 2015 के अंत में शरणार्थियों के पंजीकरण प्रमाण (पीओआर) कार्ड की अवधि समाप्त हो गई है. वैधता बढ़ाने की सरकार की घोषणाओं के बावजूद यह उनके लिए पैसे उगाही का बहाना बना रहा और पैसे नहीं देने पर पुलिस ने उनके कार्ड जब्त करने या उन्हें निर्वासित करने की धमकी दी.[28] पेशावर के निकट स्थित बोर्ड ताजबाड़ शहर में रहने वाले एक 28 वर्षीय व्यक्ति ने कहा:

करीब तीन हफ्ते पहले (अक्टूबर 2016 की शुरुआत में) पुलिस के साथ रिश्ते इतने बुरे हो गए कि हम घर से नहीं निकल सकते थे. पुलिस हमें हर समय रोक रही थी और पैसे मांग रही थी. उन्होंने हमारा सब कुछ छीन लिया ताकि हम काम करना बंद कर दें और घर पर ही रहें. हमें एहसास हुआ कि हमें (पाकिस्तान) छोड़ना होगा.[29]

काबुल में वापस आने वाले कई शरणार्थियों और पेशावर में अफगानों ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि पाकिस्तानी पुलिस ने पैसे की जबरन वसूली करते हुए या उनकी पास की संपत्ति चोरी करते हुए उन्हें थप्पड़ मारा या उनके साथ मारपीट की. पांच अन्य ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ कि पुलिस ने हजारों रुपए कीमत वाले सामान और व्यापारिक उपकरण चोरी कर लिए. इसके कारण वे बेसहारा हो गए, काम करने की उनकी क्षमता ख़त्म हो गई और उन्हें यह मानने के लिए मजबूर किया गया कि पाकिस्तान छोड़ने का समय आ गया है.[30]

अफ़ग़ानों के पाकिस्तान छोड़ने की एक अहम् वजह उनको मनमाने तरीके से हिरासत में लेना भी था. दर्जनों अफगानों ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि पुलिस ने कुछ दिनों से लेकर दो महीने तक उन्हें या साथ ही उनके रिश्तेदारों, बीमार, बुजुर्ग लोगों  को पुलिस स्टेशनों में हिरासत में रखा और रिहाई के बदले में प्रति व्यक्ति 50,000 रुपये (500 डॉलर) तक वसूले. कई साक्षात्कारकर्ताओं ने कहा कि पुलिस ने पहले उनसे सड़कों पर पैसे मांगे और कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो वे उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाएंगे जहां वे अधिक पैसे की मांग करेंगे.[31]

दर्जनों इंटरव्यू देने वालों के मुताबिक, विभिन्न सुरक्षा बलों ने उनकी बस्तियों या पड़ोस पर छापा मारा और दिन हो या रात अफगानों के घरों में घुस गए. ऐसा ज्यादातर जुलाई और अगस्त में किया गया जब सभी मर्द स्थानीय मस्जिदों में होते थे और महिलाएं घर पर अकेली होती थीं. इन छापों से विशेष रूप से महिलाएं और लड़कियां डर जाति थीं. छापे में शामिल सैनिक या पुलिस अधिकारी उन्हें बताते कि सभी अफगान निर्वासित होने के कगार पर हैं और पैसे वसूलने के लिए उनके कुछ रिश्तेदारों को पुलिस स्टेशन ले जाते. कुछ ने कहा कि उनके घरों में अधिकारियों ने उन पर आतंकवादी होने का आरोप लगाया.[32]

अफगानों ने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया कि 2015 के आखिरी दिनों से शरणार्थी कार्ड की अवधि को छोटा विस्तार दिए जाने की वजह से उनकी कानूनी स्थिति लगातार कमजोर हुई है और वैधता विस्तार करने की सरकारी घोषणाओं के बावजूद उन्हें निर्वासन का खतरा सताता रहता है क्यूंकि पुलिस कहती है कि जिन कार्ड्स की अवधि 2015 में समाप्त हो चुकी है वे अमान्य हैं.[33] 9 सितंबर, 2016 को पाकिस्तान ने मार्च 2017 के अंत तक तीन महीने के लिए कार्ड की वैधता बढ़ा दी, लेकिन फिर भी नए कार्ड जारी नहीं किए. 7 फरवरी को कार्ड की वैधता 31 दिसंबर, 2017 तक बढ़ा दी गई.[34]

सर्दियों के दौरान जल्दबाजी में निर्वासित किए जाने और परिवारों से अलग होने के साथ-साथ निर्वासित होने से पहले अपनी संपत्ति बेचने का समय नहीं मिल पाने का डर शरणार्थियों के पाकिस्तान छोड़ने के महत्वपूर्ण कारण थे.[35]

कई अफगानों ने अफगान शरणार्थी स्कूलों को बंद करने और पाकिस्तानी स्कूलों से अफगान शरणार्थी बच्चों को बाहर किये जाने को अपने पाकिस्तान छोड़ने का मुख्य कारण बताया. ह्यूमन राइट्स वॉच ने जितने अफगानों का साक्षात्कार किया उनमें से लगभग आधे ने कहा कि मई 2016 से उनके बच्चों को पाकिस्तान के सरकारी स्कूलों से बाहर किया जाने लगा या फिर सरकार ने अफगान शरणार्थी स्कूलों को बंद कर दिया .[36]

शरणार्थियों के पाकिस्तान छोड़ने के अन्य कारणों में शामिल थे: स्थानीय पाकिस्तानी समुदायों द्वारा अफगानिस्तान विरोधी विद्वेष; पाकिस्तानी मकान मालिकों का अचानक अपार्टमेंट और व्यवसायिक  परिसरों के किराए में काफी बढ़ोतरी; अफगान सरकार द्वारा मालिकाना हक़ वाली ज़मीन देने का वादा; सरहद पार जाने सम्बन्धी नए प्रतिबंध जो उन्हें जनाज़े के लिए घर वापस लौटने या अफगानी सीमा क्षेत्रों में काम करने से रोकते थे और रिश्तेदारों या यहां तक कि पूरे समुदाय,जो पहले ही लौट गए थे और जिनके बिना वे पाकिस्तान में रहना नहीं चाहते थे, के पीछे-पीछे वापस लौटने की इच्छा आदि..[37]

अंत में, कई शरणार्थियों ने कहा कि जून के अंत में लौटने वाले प्रत्येक शरणार्थी के लिए नकद मदद को दोगुना कर 400 अमरीकी डालर करने का यूएनएचसीआर का फैसला उन्हें पाकिस्तान के शोषण से बचने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ, भले ही वे संघर्षरत इलाकों में स्थित अपने घरों को नहीं लौट सकते थे या फिर वापस जाने के लिए उनके पास कोई घर या जमीन नहीं थी.[38]

समिति से ह्यूमन राइट्स वॉच संस्तुति करता है कि वह पाकिस्तान की सरकार से पूछे कि:

• यह सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं कि 2016 में अफगानों के खिलाफ हुए पुलिस दुर्व्यवहार की पुनरावृति न हो?

• सरकार यह घोषणा कब करेगी कि वह पाकिस्तान छोड़ने के लिए पंजीकृत और बिना दस्तावेज के रह रहे  अफगानों को दी गई 31 दिसंबर, 2017 की अंतिम तारीख की समय सीमा को आगे बढ़ाएगी या नहीं.

• सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठा रही है कि आप्रवासन स्थिति पर ध्यान दिए बिना अफगान समेत सभी विदेशी राष्ट्रीयता वाले बच्चों को पाकिस्तानी बच्चों के समान निःशुल्क प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा सुलभ हो.

समिति से ह्यूमन राइट्स वॉच संस्तुति करता है कि वह पाकिस्तान सरकार से यह अपील करे कि:

• वह सार्वजनिक रूप से सभी पंजीकृत अफगान शरणार्थियों को आश्वस्त करे कि उन्हें पाकिस्तान में गरिमा के साथ रहने की इजाजत दी जाएगी जब तक कि उनका अफगानिस्तान लौटना वास्तव में सुरक्षित न हो.

• अफगान शरणार्थियों की सामूहिक जबरन वापसी रोकने करने के लिए, शरणार्थियों के पंजीकरण प्रमाण कार्ड की वैधता छोटी अवधि के लिए बढ़ाना बंद करे और निर्वासन से संबंधित खतरों को ख़त्म करे;  इसके बजाय दो साल की अवधि विस्तार की पिछले नीति पर वापस लौटे और 2018 के अक्टूबर के अंत तक विस्तारित करने की प्रतिबद्धता जताते हुए कार्ड की वैधता कम-से-कम 2019 के 31 मार्च तक के लिए बढ़ाये; कार्ड की वैधता का विस्तार करना तब तक जारी रखे जब तक कि अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सुरक्षित और गरिमापूर्ण वापसी सुनिश्चित करने के लिए स्थिरता की स्थिति तक न पहुंच जाए.

• पाकिस्तान में बिना दस्तावेज के रह रहे अफगान शरणार्थियों की जबरन वापसी रोकने के लिए, पंजीयन प्रमाण पत्र का फिर से पंजीकरण शुरू करे ताकि 2007 के मध्य फरवरी के बाद आने वाले अफगान इस तरह का दर्जा प्राप्त कर सकें या जबरन वापसी के खिलाफ तुलनात्मक रूप से व्यापक सुरक्षा प्रदान करे.

• सभी संबंधित सरकारी अधिकारियों और राज्य सुरक्षा बलों को पंजीकृत और बिना दस्तावेज के रह रहे अफगानों के खिलाफ धन-उगाही, मनमाने तरीके से हिरासत में लेने, बिना वारंट के घर पर छापा डालने, पुलिस या सुरक्षा बल के गैरकानूनी इस्तेमाल और चोरी सहित अन्य अत्याचार फिर से शुरू नहीं करने का निर्देश देते हुए लिखित आदेश जारी करे; अफगानों के खिलाफ गंभीर अत्याचार के लिए जिम्मेदार पुलिस और अन्य अधिकारियों की जांच करे और उचित अभियोजन चलाए.

 

 

[1] संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्टैटिक्स, "पाकिस्तान,"  तिथि अज्ञात, http://uis.unesco.org/country/PK (20 मार्च, 2017 को देखा गया)

[2] ग्लोबल टेररिज्म डाटाबेस, 2007 से 2015 के बीच पाकिस्तान में शैक्षणिक संस्थानों पर हमले सम्बन्धी खोज का परिणाम, https://www.start.umd.edu/gtd/search/Results.aspx?start_yearonly=2007&end_yearonly=2015&start_year=&start_month=&start_day=&end_year=&end_month=&end_day=&asmSelect0=&country=153&asmSelect1=&target=8&dtp2=all&success=yes&casualties_type=b&casualties_max=, (28 अक्टूबर, 2016 को देखा गया)

[3] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स": अटैक्स ऑन स्टूडेंट्स, टीचर्स, एंड स्कूल इन पाकिस्तान, मार्च 2017, https://www.hrw.org/node/301266/.

[4] वही

[5] वही

[6] अब्दुल समी पर्चा, "वाचमैन कांफेस्सेस टू ब्लोइंग अप स्कूल इन कोहट," डॉन, 25 जून 2012, http://www.dawn.com/news/729501/watchman-confesses-to-blowing-up-school-in-kohat, (26 नवम्बर, 2016 को देखा गया).

[7] अहमद अली (छद्म नाम) से ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, कोहट, 7 फरवरी, 2016.

[8] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स".

[9] "न्यू गवर्न्मनेट स्कूल ब्लोन अप इन साउथ वजीरिस्तान,"  द एक्सप्रेस ट्रिब्यून, 20 फरवरी, 2016, http://tribune.com.pk/story/1050956/new-government-school-blown-up-in-waziristan/ (7 नवंबर, 2016 को देखा गया).

[10] मलाला युसुफजई "ऐतज़ाज़ हसन, आवर हीरो ऑफ़ आल टाइम्स," डॉन, 22 जनवरी 2015, http://www.dawn.com/news/1158034, (3 नवंबर, 2016 को देखा गया)

[11] "सेविंग लाइफ्स: अ टीन एजर्स सैक्रिफाइस फॉर हंड्रेड्स ऑफ़ मदर्स," द एक्सप्रेस द ट्रिब्यून, 9 जनवरी, 2014, http://tribune.com.pk/story/656766/saving-lives-a-teenagers-sacrifice-for-hundreds-of-mothers/ (4 नवंबर, 2016 को देखा गया)

[12] अली हुसैन (छद्म नाम) का ह्यूमन राइट्स वॉच को दिया गया साक्षात्कार, हांगु, 9 फरवरी, 2016.

[13] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स".

[14] असिम (छद्मनाम), बाखा खान विश्वविद्यालय, चेरसड्डा, केपी,  के छात्र ने 20 जनवरी, 2017 को हुए तालिबान हमले का वर्णन किया.

 [15] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स".

[16] रजा खान (छद्मनाम) से ह्यूमन राइट्स वॉच का साक्षात्कार, स्वात, 1 9 जुलाई, 2016.

[17] यूनाइटेड नेशंस इन्फेंट्री बटालियन मैन्युअल, 2012, सेक्शन 2.13, "स्कूल्स शैल नॉट बी यूज्ड बाय द मिलिट्री इन देयर ऑपरेशंस."

[18] एमआईएनयएससीए डायरेक्टिव्स ऑन द प्रोटेक्शन ऑफ़ स्कूल्स एंड यूनिवर्सिटीज अगेंस्ट मिलिट्री यूज़," 24 दिसम्बर, 2015, एमआईएनयएससीए/ओएसआरएसजी/045/ 2015, https://minusca.unmissions.org/sites/default/files/151224-046_minusca_directive_on_the_protection_of_schools_and_universities_against_military_use.pdf (3 अप्रैल, 2017 को देखा गया)

[19] ह्यूमन राइट्स वाच, नो क्लास, व्हेन आर्म्ड ग्रुप्स यूज़ स्कूल्स इन द सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, मार्च 2017, https://www.hrw.org/report/2017/03/23/no-class/when-armed-groups-use-sch....

[20] मैथ्यू अकिंस, "गैंग्स ऑफ़ कराची," हार्पर्स मैगज़ीन, सितम्बर 2015, http://harpers.org/archive/2015/09/gangs-of-karachi/, (5 नवम्बर, 2016 को देखा गया)

[21] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स".

[22] मनूवर्स, फील्ड फायरिंग और आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट, 1938 का एक्ट न. V, 12 मार्च, 1938, आर्टिकल 3.

[23] "डेज ऑफ़ टेररिस्ट आर नंबर्ड, सेज पीएम," 25 दिसम्बर, 2014, http://www.dawn.com/news/1152966, (28 अक्टूबर, 2016 को देखा गया); नेशनल काउंटर टेररिज्म अथॉरिटी पाकिस्तान, "20 पॉइंट्स ऑफ़ नेशनल एक्शन प्लान", एन.डी., http://nacta.gov.pk/NAPPoints20.htm, (28 अक्टूबर, 2016 को देखा गया).

[24] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ड्रीम्स टर्न्ड इन्टू नाईटमेयर्स".

[25] वही

[26] वही

[27] ह्यूमन राइट्स वॉच, पाकिस्तान कोअर्शन, यूएन काम्प्लीसिटी: द मास फोर्स्ड रिटर्न ऑफ़ अफ़ग़ान रिफ्यूजीज, फरवरी 2017, https://www.hrw.org/report/2017/02/13/pakistan-coercion-un-complicity/ma....

[28] जनवरी और फिर जून 2016 में, पाकिस्तानी सरकार ने नए कार्ड जारी किए बिना अफगानिस्तानियों के "पंजीकरण प्रमाण" कार्ड की वैधता बढ़ा दी.

[29] ह्यूमन राइट्स वॉच इंटरव्यू, काबुल, 27 अक्टूबर, 2016.

[30] ह्यूमन राइट्स वॉच के साक्षात्कार, 28 और 30 अक्टूबर, 2016 को काबुल में और 8 और 11 नवंबर, 2016 को पेशावर में.

[31] ह्यूमन राइट्स वॉच, पाकिस्तान कोअर्शन, यूएन काम्प्लीसिटी.

[32] ह्यूमन राइट्स वॉच के साक्षात्कार, काबुल, 27-31 अक्टूबर और 1 नवंबर, 2016.

[33] ह्यूमन राइट्स वॉच, पाकिस्तान कोअर्शन, यूएन काम्प्लीसिटी.

[34] असद हाशिम, "अफगान शरणार्थियों" का दर्जा वर्ष के अंत तक बढाया गया.

"पाकिस्तान कैबिनेट डिसाइड्स टू पुश बैक अफगान रिफ्यूजीज लीगल राईट टू स्टे इन द कंट्री फ्रॉम मार्च 31 टू एंड ऑफ़ 2017," अल जजीरा, फरवरी, 2017, (3 अप्रैल, 2017 को देखा गया)

[35] ह्यूमन राइट्स वॉच के साक्षात्कार, काबुल, 27-31 अक्टूबर, 2016.

[36] ह्यूमन राइट्स वॉच, पाकिस्तान कोअर्शन, यूएन काम्प्लीसिटी.

[37] पाकिस्तान कोअर्शन, यूएन काम्प्लीसिटी, पृष्ठ 25-26

[38] वही

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