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भारत: 25 समूहों को हैरान-परेशान करने के लिए इस्तेमाल हुआ विदेशी अनुदान कानून का इस्तेमाल

सरकार शांतिपूर्ण पूर्वक संगठन एकत्र होने और , अभिव्यक्ति पर नियंत्रण को नियंत्रित करने के लिए एफसीआरए का इस्तेमाल रोकना बंद करे रो

(दिल्ली) - वैध कारणों के बिना 25 गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के विदेशी अनुदान लाइसेंस के नवीनीकरण से भारत  सरकार का इंकार उनकी  अभिव्यक्ति और संघ बनाने की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है. यह बात एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कही.

5 नवंबर, 2016 को मीडिया में एक खबर आई जिसमें  नाम न छापने की शर्त पर गृह मंत्रालय के अधिकारियों  के हवाले से  कहा गया  कि उन गैर-सरकारी संगठनों को विदेशी सहायता विनियमन कानून (एफसीआरए), जो गैर सरकारी संगठनों के विदेशी अनुदान को नियंत्रित करता  है, के तहत अनुमति नहीं दी गई गई जिनकी  गतिविधियां "राष्ट्रीय हित" में नहीं हैं.  हालांकि, सरकार ने प्रभावित समूहों की सूची प्रकाशित नहीं की है, लेकिन इसमें कई मानवाधिकार संगठन शामिल हैं.

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल ने कहा कि "विदेशी अनुदान प्राप्त करना  संगठन बनाने और अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकारों का अभिन्न अंग है, जिसे केवल संकीर्ण निर्दिष्ट आधारों पर प्रतिबंधित किया जा सकता है. बिना पर्याप्त कारण के गैर-सरकारी संगठनों को विदेशी अनुदान प्राप्त करने से रोकने का गृह मंत्रालय का निर्णय रहस्यपूर्ण है. मंत्रालय  यह स्पष्ट करे कि ये प्रतिबंध कैसे आवश्यक और उचित हैं."

29 अक्टूबर को प्रमुख भारतीय मानवाधिकार संगठन सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ़ सोशल कंसर्न्स, जो अपने प्रोग्राम यूनिट पीपुल्स वॉच के नाम से ज्यादा जाना  जाता  है,  ने बताया कि एफसीआरए के तहत उसके विदेशी अनुदान लाइसेंस के नवीनीकरण के आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया है. एफसीआरए वेबसाइट पर यह जानकारी दर्ज है : "फील्ड एजेंसी की रिपोर्ट के आधार पर सक्षम प्राधिकारी ने (पीपुल्स वॉच के) नवीनीकरण के आवेदन को अस्वीकार करने का निर्णय लिया है." कोई अन्य कारण नहीं बताया गया.

2012 और 2013 में, पूर्ववर्ती केंद्र सरकार ने भी पीपुल्स वॉच को निशाना बनाया था. इसका एफसीआरए कुल 18 महीनों के लिए तीन बार निलंबित कर दिया गया था और संगठन के बैंक खातों से निकासी पर रोक लगा दी गई थी. पीपुल्स वॉच ने सरकार के फैसले को चुनौती दी और मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया.

21 अक्तूबर को गृह मंत्रालय ने बिना कोई कारण बताए एनजीओ और जनांदोलनों के नेटवर्क 'इंडियन सोशल एक्शन फोरम' (इंसाफ) के एफसीआरए लाइसेंस नवीनीकरण के आवेदन को भी अस्वीकार कर दिया. इंसाफ को मंत्रालय के ईमेल में केवल यह बताया गया: "आपका आवेदन ... निम्नलिखित कारणों से अस्वीकार कर दिया गया है: नवीनीकरण के लिए आपका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया है." अप्रैल 2013 में भी इंसाफ का एफसीआरए लाइसेंस निलंबित कर दिया था, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने उसी वर्ष सितंबर में निलंबन रद्द कर दिया था.

28 अक्टूबर 2016 को, गृह मंत्रालय ने संचल फाउंडेशन की इकाई एनजीओ हज़ार्ड्स सेंटर को भी एक पंक्ति का ईमेल भेजा, जिसमें कहा गया था कि नवीनीकरण का उनका आवेदन "फील्ड एजेंसी रिपोर्ट के आधार पर" अस्वीकृत कर दिया गया है.

3 नवंबर को गृह मंत्रालय ने कहा कि उसने ऐसे 11,319 गैर-सरकारी संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिए हैं, जिन्होंने 30 जून की तय समयसीमा में अपने लाइसेंस नवीनीकरण के लिए आवेदन नहीं दिया था. मंत्रालय की ओर से यह भी कहा गया है कि 1,736 अन्य गैर-सरकारी संगठनों के आवेदनों को "दस्तावेज जमा नहीं करने या कम दस्तावेजों के साथ जमा करने के कारण रद्द कर दिया गया ." इन गैर-सरकारी संगठनों को 8 नवंबर तक दस्तावेज़ जमा करने का एक और मौका दिया गया है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि "एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने सरकार  के नज़रिए और कार्यों  की  आलोचना करने वाले  समूहों को हैरान-परेशान करने के लिए राजनीतिक उपकरण के रूप में एफसीआरए का इस्तेमाल किया है."

इस कानून में "सार्वजनिक हित" और "राष्ट्रीय हित" जैसे व्यापक और अस्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिससे इसके दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है. मई में, मोदी सरकार ने एफसीआरए के  कथित उल्लंघन का हवाला देते हुए प्रसिद्ध वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंघ द्वारा स्थापित संगठन लॉयर्स कलेक्टिव के एफसीआरए को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया. आरोप राजनीतिक रूप से प्रेरित लग रहे थे क्योंकि  यह संगठन वर्तमान सरकार के खिलाफ मामलों में नियमित रूप से ग्रीनपीस इंडिया की प्रिया पिल्लई और गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के न्याय के लिए संघर्ष कर रहीं एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा था.

जहाँ संगठनों ने अपने एफसीआरए के निलंबन को चुनौती दी , आम तौर पर ऐसे मामलों में अदालतों ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है. अदालतों ने बार-बार सरकार को यह भी याद दिलाया है कि लोकतंत्र में असहमति के स्वर को दबाना नहीं चाहिए. ग्रीनपीस इंडिया कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई को  कोयला संयंत्र पर सवाल खड़ा करने के क्रम में लंदन जाने से रोका गया था. इस मामले में अपने आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, "कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि बतौर नागरिक उन्हें राज्य की विकास नीतियों में  असंगतियों की तरफ राज्य का ध्यान खींचने का अधिकार है. हो सकता है कि राज्य नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के विचारों को स्वीकार नहीं करें , लेकिन यह असहमति को ख़त्म करने का पर्याप्त कारण नहीं हो सकता है."

संघ बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को संयुक्त राष्ट्र महासभा एवं नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौता द्वारा स्वीकृत सार्विक मानवाधिकार घोषणा जैसे दस्तावेजों में शामिल किया गया है, जिसका भारत भी हिस्सा है. भारतीय संविधान भी इनकी गारंटी करता है. अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत, राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर संघ बनाने और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रतिबंधों का पूरी तरह से औचित्य समझाया जाना चाहिए, और यह एक वैध खतरे से निपटने के लिए आवश्यक और आनुपातिक होना चाहिए. हालांकि भ्रष्टाचार और वैध राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए गैर-लाभकारी संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों के वित्तीय मामलों का विनियमन और उनकी जांच उचित है, लेकिन भारत में सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों की गतिविधियों के मामले में एफसीआरए अनावश्यक रूप से बहुत व्यापक है और यह उनके अधिकारों का बेवजह उल्लंघन करता है.

अप्रैल 2016 में, एकत्र होने और संघ बनाने की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टर्र ने एक कानूनी विश्लेषण प्रकाशित किया जिसमें इस पर जोर दिया गया था कि एफसीआरए अंतरराष्ट्रीय कानून, सिद्धांतों और मानकों के अनुरूप नहीं है. जून 2016 में, मानवाधिकार रक्षकों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संघ बनाने की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टर्र ने भारत सरकार से एफसीआरए को निरस्त करने की अपील की , उन्होंने कहा कि "नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरण या सांस्कृतिक प्राथमिकताओं, जो कि सरकार समर्थित प्राथमिकताओं से अलग हो सकती है, की वकालत करने वाले संगठनों को चुप कराने के लिए इसका अधिक-से-अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है."

जहाँ सरकार गैर-सरकारी समूहों पर प्रतिबंध कठोर  के लिए एफसीआरए का इस्तेमाल कर रही है, वहीं मार्च में सरकार ने विदेशी संस्थाओं द्वारा राजनीतिक दलों को दिए अनुदान को वैध बनाने के लिए क़ानूनी संशोधन किया. यह संशोधन बहुत ही विडंबनापूर्ण है क्योंकि एफसीआरए मुख्य रूप से राजनीतिक दलों, नेताओं और चुनाव में खड़े उम्मीदवारों को विदेशी मदद स्वीकार करने से रोकने के लिए बनाया गया था  ताकि विदेशी हितों स भारतीय चुनावों को प्रभावित नहीं किया जा सके.

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि "भारत सरकार को एफसीआरए को निरस्त कर देना चाहिए या इसे संशोधित करना चाहिए ताकि यह अभिव्यक्ति और संघ बनाने की स्वतंत्रता के अधिकारों में हस्तक्षेप न करे और राजनीतिक कारणों से गैर-सरकारी संगठनों की शांतिपूर्ण गतिविधियों को प्रतिबंधित करने में इसका गलत इस्तेमाल नहीं किया जा सके.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि "एक ओर जहाँ भारत प्रमुख उद्योगों में विदेशी निवेश को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह सबसे कमजोर और वंचित लोगों के सहायतार्थ  अनुदानों  को रोकने की कोशिश कर रहा है. आलोचना को कुचल देने वाला खतरा मानने के बजाय सरकार को चाहिए कि वह  अधिकारों के लिए काम करने वालों के साथ मिलकर कार्य  करे , इन की कमियों को दूर करे  और इन्हें सशक्त बनाए ."

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