अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) का 140वां सालाना सत्र 15 से 17 अक्टूबर के बीच भारत के मुंबई में आयोजित हो रहा है. ऐसी संभावना है कि इसमें भारत सरकार देश के पश्चिमी राज्य गुजरात में 2036 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए अपनी बोली लगाए.
भारत ने कभी ओलंपिक की मेजबानी नहीं की है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का मानना है कि यही "सही समय" है.
लेकिन मीडिया की आजादी पर हमले और भारतीय एथलीटों की अपर्याप्त सुरक्षा समेत मानवाधिकारों की खराब हालात अभी भी चिंता का सबब बने हुए हैं और भारत में प्रतिष्ठित वैश्विक खेलों की मेजबानी की राह में बाधा बन सकते हैं. लगभग एक दशक मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दमनकारी कानून और नीतियां लागू की है. ये कानून और नीतियां धार्मिक अल्पसंख्यकों, खास तौर से मुसलमानों के खिलाफ सुनियोजित रूप से भेदभाव करती हैं और कार्यकर्ताओं, प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों को डरा-धमका कर और राजनीति प्रेरित आपराधिक मामलों के जरिए निशाना बनाकर विरोध की आवाजों को बदनाम करती हैं.
मई में, स्पोर्ट एंड राइट्स एलायंस और खुद आईओसी ने भारतीय कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृज भूषण सिंह के खिलाफ दिल्ली में जारी एक विरोध प्रदर्शन के दौरान महिला एथलीटों के साथ भारतीय सरकारी तंत्र के दुर्व्यवहार की निंदा की. सुरक्षा बलों ने उस समय ओलंपिक पदक विजेताओं सहित महिला पहलवानों के साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें जबरन हिरासत में लिया, जब वे सिंह के खिलाफ एक दशक तक यौन शोषण की पुलिस शिकायतें दर्ज कराने वाली महिला एथलीटों के लिए न्याय और सुरक्षा की मांग कर रहे थे. प्रारंभ में, सरकारी तंत्र सिंह का बचाव करता दिखा, लेकिन अब शिकायतों की जांच चल रही है.
मेजबान सरकारों ने विशाल खेल-आयोजनों का अधिकाधिक इस्तेमाल अधिकार सुनिश्चित करने के अपने खराब रिकॉर्ड पर मुलम्मा चढ़ाने केलिए किया है. इसके बजाय, ऐसे आयोजनों से मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार और इनकी सुरक्षा में तेजी लानी चाहिए.
आईओसी ने व्यापार और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुसार मानवाधिकार फ्रेमवर्क (रूपरेखा) बनाया है. मुंबई में, आईओसी कार्यकारी परिषद ओलंपिक आंदोलन में तमाम तरह के भेदभाव खत्म करने की अपनी प्रतिबद्धता को "बेहतर ढंग से स्पष्ट" करने के लिए ओलंपिक घोषणापत्र में संशोधनों का प्रस्ताव रखेगा.
मोदी सरकार द्वारा ओलंपिक के लिए बोली लगाने से आईओसी के पास मानवाधिकार सुधारों और उत्पीड़न के शिकार भारतीय एथलीटों को न्याय दिलाने हेतु दबाव डालने का बड़ा मौका है. यदि सरकारें खेल के सबसे बड़े आयोजन की मेजबानी से जुड़ी प्रतिष्ठा हासिल करना चाहती हैं, तो आईओसी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सारे भावी मेजबान अपने देश में मानवाधिकारों के लिए जरूरी तत्परता दिखाएं और अधिकारों के हनन, जिसमें एथलीटों के साथ दुर्व्यवहार और पत्रकारों को निशाना बनाना ख़त्म करना शामिल है, की रोकथाम के लिए जरूरी उपाय करें.