भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 31 अक्टूबर को निर्णय दिया कि यौन उत्पीड़न या बलात्कार के उत्तरजीवियों का “प्रतिगामी और आक्रामक” टू फिंगर टेस्ट (दो उंगलियों द्वारा परीक्षण) करने वाला कोई भी व्यक्ति अनुचित व्यवहार का दोषी होगा. इस फैसले से यह उम्मीद जगी है कि न्याय प्रणाली आखिरकार इस अवैज्ञानिक प्रक्रिया का इस्तेमाल बंद कर देगी.
“टू-फिंगर टेस्ट” में डॉक्टर किसी बलात्कार के उत्तरजीवी की योनि के अंदर दो उंगलियां डाल कर यह आकलन करते हैं कि लड़की या महिला का “कौमार्य अक्षुण्”" है या वह “यौन संसर्ग की आदी” है.
न्यायिक सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील द्वारा इस परीक्षण के “साक्ष्य” का उपयोग यह दावा करने के लिए किया जाता है कि बलात्कार उत्तरजीवी “चरित्रहीन” है. इससे न्याय प्रक्रिया दोषपूर्ण हो सकती है और दोषी ठहराए जाने का डर बलात्कार के उत्तरजीवियों को अपराध संबंधी मामला दर्ज करने से रोक सकता है.
अदालत के पूर्व के फैसलों में यह पाया गया है कि इस परीक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. हाल के फैसले में, भारत की शीर्ष अदालत ने परीक्षण को “पितृसत्तात्मक और लैंगिक रूप से भेदभावपूर्ण” बताते हुए फिर कहा कि किसी महिला के यौन इतिहास का उसके साथ हुए बलात्कार से कोई संबंध नहीं है.
2014 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न उत्तरजीवियों की चिकित्सीय जांच और इलाज को मानकीकृत करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए. ये दिशानिर्देश फिंगर टेस्ट को ख़त्म करते हैं और आंतरिक योनि परीक्षण को उन “चिकित्सकीय रूप से निर्दिष्ट” मामलों तक सीमित करते हैं जब संक्रमण, चोट या किसी बाहरी वस्तु की उपस्थिति का पता लगाना हो.
हालांकि, ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया है कि डॉक्टर अभी भी यह प्रक्रिया अपनाते हैं. उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश की गायत्री (छद्म नाम) 17 वर्ष की थी, जब उसके भाई ने 2016 में अपने पिता को उसके साथ बलात्कार करते देखा था. बलात्कार कई महीनों से किया जा रहा था. उसके द्वारा बलात्कार का मामला दर्ज करने के बाद, डॉक्टर ने पाया कि गायत्री संभवतः गर्भवती है, उन्होंने “टू-फिंगर टेस्ट” किया, और अपनी पेशेवर टिप्पणी में लिखा कि उसकी “योनि में दो उंगलियां आसानी से प्रविष्ट हो जाती हैं” और कि “उसे यौन संसर्ग की आदत है.”
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि 2014 के दिशानिर्देश सभी अस्पतालों को भेजे जाएं, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की जाएं और मेडिकल संस्थाओं के पाठ्यक्रम की समीक्षा की जाए.
भारत सरकार ने बार-बार कहा है कि वह महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए न्याय सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध है. महिलाओं का अपमान करने वाले पितृसत्तात्मक तौर-तरीकों को जारी रखने के बजाय, सरकारी तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चिकित्सा पेशेवर यौन उत्पीड़न के उत्तरजीवियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करें, इलाज और परीक्षण के लिए विश्वासनीय सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराएं और जरूरी सहायता एवं चिकित्सीय सेवाएं प्रदान करें.