(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज अपनी विश्व रिपोर्ट 2022 में कहा कि भारतीय सरकारी तंत्र ने 2021 में राजनीतिक रूप से प्रेरित अभियोजनों का इस्तेमाल कर कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार के दूसरे आलोचकों पर अपनी दमनात्मक कार्रवाई तेज कर दी है. भारत में कोविड-19 के मामलों में बेतहाशा वृद्धि के दौरान दसियों हज़ार लोगों की मौत हो गई, जहां सरकार जरूरतमंद लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल मुहैया करने में नाकामयाब रही.
असहमति के स्वर को सख्त आतंकवाद निरोधी कानून, कर छापों, विदेशी अंशदान नियमनों और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के जरिए दबाया गया. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली हिंदू राष्ट्रवादी सरकार के मातहत धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बेखौफ़ होकर हमलों को अंजाम दिया गया. भाजपा समर्थक भीड़ के हमलों में मशगूल रहे या उन्होंने हिंसा की धौंस-धमकी दी, जबकि कई राज्यों ने अल्पसंख्यक समुदायों, खास तौर से ईसाइयों, मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों को निशाना बनाने के लिए कानून और नीतियां बनाईं.
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, "भारतीय सरकारी तंत्र ने असहमति बर्दाश्त करने का दिखावा करना भी छोड़ दिया है और आलोचकों को चुप करने के लिए राजकीय मशीनरी का खूब इस्तेमाल कर रहा है. साथ ही, भाजपा सरकार ने एक ऐसा माहौल बनाया है जिसमें अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, उन पर सत्ताधारी पार्टी के समर्थकों के हमलों का खतरा मंडराता रहता है."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने 752 पन्नों की विश्व रिपोर्ट 2022, जो कि इसका 32वां संस्करण है, में लगभग 100 देशों में मानवाधिकारों की स्थिति समीक्षा की है. कार्यकारी निदेशक केनेथ रोथ इस आम धारणा को चुनौती देते हैं कि निरंकुशता बढ़ रही है. हाल में, एक के बाद एक कई देशों में बड़ी तादाद में लोग गिरफ्तारी या जान की परवाह किए बिना सड़कों पर उतरे हैं. यह दर्शाता है कि लोकतंत्र के प्रति लोगों में तीव्र आग्रह बना हुआ है. इस बीच, निरंकुश लोगों के लिए चुनावों में हेरफेर करना ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है. फिर भी, वह कहते हैं, लोकतांत्रिक नेताओंको और बेहतर काम करना चाहिए जिससे कि वह राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि लोकतंत्र अपने वादे पर खड़ा उतरे.
जुलाई में, जेल में बंद आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता 84 वर्षीय स्टेन स्वामी की मौत अधिकार कार्यकर्ताओं के जारी उत्पीड़न का प्रतीक है. स्वामी उन 16 प्रमुख मानवाधिकार रक्षकों में थे जिन्हें 2017 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव जातीय हिंसा के मामले में राजनीति से प्रेरित आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था.
त्रिपुरा पुलिस ने अक्टूबर में सांप्रदायिक हिंसा, जिसमें हिंदू भीड़ ने मस्जिदों और मुस्लिम मालिकाना वाली संपत्तियों पर हमला किया था, की जांच-पड़ताल करने पर चार वकीलों के खिलाफ नवंबर में आतंकवाद के मामले दायर किए. पुलिस ने 102 सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी आतंकवाद के मामले दर्ज किए और "सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने" के आरोप में हिंसा पर रिपोर्ट करने वाले दो पत्रकारों को हिरासत में ले लिया.
मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करने वाले नागरिकता कानून संशोधनों का विरोध करने के लिए सरकार ने बहुत से छात्रों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ आतंकवाद निरोधी और राजद्रोह कानूनों समेत अन्य कानूनों के तहत मामले दर्ज करना जारी रखा.
भाजपा नेताओं ने किसानों पर, जिनमें बहुत सारे अल्पसंख्यक सिख समुदाय के हैं, कृषि कानूनों में संशोधन के विरोध की आड़ में अलगाववादी एजेंडा रखने का आरोप लगाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में शिरकत करने वाले लोगों को "परजीवी" कहा, जबकि एक मंत्री के बेटे और पार्टी समर्थकों ने एक सरकारी काफिला से गुजरते हुए किसानों को कथित तौर पर रौंद डाला. सरकारी तंत्र ने विरोध प्रदर्शन संबंधी जानकारी प्रदान करने वाले एक दस्तावेज़ को कथित रूप से संपादित करने के लिए एक जलवायु कार्यकर्ता को गिरफ्तार किया और दो अन्य के खिलाफ वारंट जारी किया. संयुक्त राष्ट्र के कई मानवाधिकार विशेषज्ञों ने विरोध प्रदर्शनों को प्रतिबंधित करने के सरकारी तौर-तरीकों पर चिंता जताई. नवंबर में, एक साल के विरोध-प्रदर्शनों के बाद भाजपा सरकार ने आखिरकार कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया.
भारतीय समाचार वेबसाइट द वायर, जो इंटरनेशनल कलैबरेटिव पेगासस प्रोजेक्ट का हिस्सा है, ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की कि पेगासस स्पाइवेयर से भारतीय मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और विपक्षी राजनीतिज्ञों को निशाना बनाया गया. यह इज़राइली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित और बेचा जाने वाला स्पाइवेयर है. कंपनी का दावा है कि यह “केवल अधिकृत सरकारी एजेंसियों” को स्पाइवेयर बेचती है. सरकार ने नए नियम भी लागू किए जो ऑनलाइन सामग्री पर अधिक नियंत्रण की अनुमति देते हैं, एन्क्रिप्शन को कमजोर करने का खतरा प्रस्तुत करते हैं हैं, और अंततः निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों को गंभीर रूप से कमजोर करेंगे.
फरवरी में, सरकार ने जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट पर 18 माह से जारी प्रतिबंध हटा लिए. ये प्रतिबंध अगस्त 2019 में राज्य की संवैधानिक स्वायत्तता रद्द कर इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने के बाद लगाए गए थे. कश्मीर में पत्रकारों को और ज्यादा हैरान-परेशान किया गया तथा कुछ को आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार किया गया. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कश्मीर में जारी उत्पीड़न पर चिंता जताई. उन्होंने "पत्रकारों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेने, हिरासत में कथित हत्याओं और स्थानीय आबादी के मौलिक अधिकारों के सुनियोजित हनन के व्यापक तौर-तरीकों" पर चिंता प्रकट की.