(बेरूत) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज जारी एक रिपोर्ट में कहा है कि सऊदी राज्य के कुछ मौलवी और संस्थान देश के शिया मुस्लिम अल्पसंख्यकों समेत धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और भेदभाव को प्रोत्साहित करते हैं.
"वे हमारे भाई नहीं: सऊदी अधिकारियों की हेट स्पीच"- 62 पृष्ठों की रिपोर्ट, यह दर्ज करती है कि सऊदी अरब ने अपने नियुक्त धार्मिक स्कॉलरों और मौलवियों को धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने या सरकार के फैसले को प्रभावित करने वाले आधिकारिक दस्तावेजों व धार्मिक आदेशों में उनकी छवि ख़राब करने की अनुमति दे दी है. हाल के वर्षों में, सरकारी मौलवियों और अन्य लोगों ने शिया मुसलमानों और उनके विचारों से सहमति नहीं रखने वाले दूसरे लोगों की छवि ख़राब करने और उनके खिलाफ नफरत भड़काने के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया है.
ह्यूमन राइट्स वॉच की मध्य पूर्व निदेशक सारा लेह व्हाईट्सन ने कहा," सऊदी अरब ने हाल के वर्षों में लगातार सुधार कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया है, फिर भी यह सरकार से संबद्ध मौलवियों और सरकारी पाठ्यपुस्तकों को शिया जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों की खुलेआम छवि ख़राब करने की छूट देता है. यह हेट स्पीच शिया अल्पसंख्यक के खिलाफ सुनियोजित भेदभाव को बढ़ाती है और सबसे बदतर बात यह कि उन पर हमला करने वाले हिंसक समूह इसका इस्तेमाल करते हैं."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि आपराधिक न्याय प्रणाली और शिक्षा मंत्रालय के धार्मिक पाठ्यक्रम में शिया विरोधी पूर्वाग्रह के साथ यह उकसावा सऊदी शिया नागरिकों के खिलाफ भेदभाव करन का औज़ार बन जाता है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने हाल में देश के धार्मिक शिक्षा पाठ्यक्रम में यहूदी, ईसाई और सूफी इस्लाम सहित अन्य धर्मों के लिए किए गए अपमानजनक संदर्भों का दस्तावेजीकरण किया है.
सरकारी मौलवी, जिनमें सभी सुन्नी हैं, अक्सर शिया को राफिधा या रवाफिद (रिजेक्शनिस्ट) बताते हैं और उनकी आस्था और प्रथाओं की बुराई करते हैं. उन्होंने मेल-जोल और अंतर-विवाह की भी निंदा की है. सऊदी अरब की सबसे प्रमुख धार्मिक संस्था "काउंसिल ऑफ़ सीनियर रिलीजियस स्कॉलर्स" के एक सदस्य ने सार्वजनिक बैठक में शिया मुस्लिमों के बारे में एक सवाल के जवाब में कहा कि "वे हमारे भाई नहीं हैं ... बल्कि वे शैतान के भाई हैं ...".
ऐसी हेट स्पीच के घातक परिणाम हो सकते हैं जब सशस्त्र समूह, जैसे इस्लामिक स्टेट, जिसे आईएसआईएस के नाम से भी जाना जाता है या अल-क़ायदा, इसका इस्तेमाल शिया नागरिकों को निशाना बनाने के लिए करते हैं. 2015 के मध्य से, आईएसआईएस ने सऊदी अरब के पूर्वी प्रांत और नजरान में छह शिया मस्जिदों और धार्मिक इमारतों पर हमला किया, जिसमें 40 से ज्यादा लोग मारे गए. इन हमलों की जिम्मेदारी लेने का दावा करने वाले अपने बयानों में आईएसआईएस ने कहा कि हमलावर "शिर्क की इमारतों" (बहुदेववाद) और राफिधा (सऊदी धार्मिक शिक्षा सम्बन्धी पाठ्यपुस्तकों में शिया लोगों को लक्ष्य करने के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द) को निशाना बना रहे थे.
सऊदी अरब के प्रधान मुफ़्ती, अब्दुलाज़ीज़ बिन बाज, 1999 में जिनकी मृत्यु हो गई, ने कई धार्मिक फैसलों में शियाओं की निंदा की थी. बिन बाज़ के फतवे और लेख सार्वजनिक रूप से सऊदी अरब की इस्लामी अनुसंधान और फतवा जारी करने वाली स्थायी समिति की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं.
कुछ मौलवियों की भाषा से ऐसा लगता है कि शिया राज्य के खिलाफ साजिश का हिस्सा हैं, ईरान के आंतरिक गद्दार और स्वभाव से विश्वासघाती. सरकार ने अन्य मौलवियों जिनके सोशल मीडिया में बड़ी तादाद में, कुछ के तो लाखों फॉलोवर्स हैं, और मीडिया संस्थानों को भी शिया लोगों को बेख़ौफ़ कलंकित करने की अनुमति दे रखी है.
सऊदी न्यायिक प्रणाली भी शिया विरोधी पूर्वाग्रह से ग्रस्त है. यह न्यायिक प्रणाली, जिसे धार्मिक प्रतिष्ठान नियंत्रित करते हैं, अक्सर शियाओं के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव करती है या शिया धार्मिक प्रथाओं को मनमाने ढंग से अपराध करार देती है. 2015 में, उदाहरण के लिए, सऊदी अदालत ने एक शिया नागरिक को अपने पैतृक आवास पर निजी शिया समूह नमाज की मेजबानी के लिए दो महीने जेल और 60 कोड़ों की सजा सुनाई. 2014 में, सऊदी अरब अदालत ने एक सुन्नी को "शिया के साथ बैठने" का दोषी ठहराया.
सऊदी शिक्षा मंत्रालय का प्राथमिक, मध्य और माध्यमिक शिक्षा स्तर का धार्मिक पाठ्यक्रम अल-तवहीद या एकेश्वरवाद, शिर्क या घुलह जैसी शिया धार्मिक प्रथाओं (अतिरंजना) की निंदा करने के लिए छुपी जबान का इस्तेमाल करता है. सऊदी धार्मिक शिक्षा पाठ्यपुस्तकें कब्रों और धार्मिक तीर्थस्थानों पर जाने और तवस्सुल (मध्यस्थता)के लिए, पैगम्बर या उनके परिवार के सदस्यों को खुदा के मध्यस्थ के रूप में प्रार्थना करने की प्रथा की आलोचना करती हैं. पाठ्यपुस्तकें बताती हैं कि ये प्रथाएं, जिन्हें सुन्नी और शिया दोनों नागरिक शिया प्रथाएं समझते हैं, इस्लाम से निकाले जाने का आधार हैं, इसके लिए उन्हें अनंत काल तक के लिए नरक में भेज कर दंडित किया जाता है.
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के मुताबिक सरकारों को "राष्ट्रीय, नस्लीय या धर्म आधारित घृणा की ऐसी हरेक वकालत का निषेध करना चाहिए जो भेदभाव, दुश्मनी या हिंसा को बढ़ावा देती हैं". इस निषेध पर अमल में कमियां रही हैं और कभी-कभी वैध भाषण या लक्षित अल्पसंख्यक समूहों को प्रतिबंधित करने के लिए बहाने के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है. हेट स्पीच रोकने के लिए कोई भी कदम समग्र तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी करते हुए उठाया जाना चाहिए.
इस समस्या के समाधान हेतु, हाल के वर्षों में विशेषज्ञों ने यह निर्धारित करने के लिए एक जांच प्रस्तावित किया है कि क्या कोई विशेष भाषण वैध रूप से सीमित किया जा सकता है. इस फार्मूले के अंतर्गत, सऊदी धार्मिक स्कॉलरों के जिन भाषणों का ह्यूमन राइट्स वॉच ने दस्तावेजीकरण किया है, वे कभी-कभी नफरत भरे भाषण या नफरत के उकसावे या भेदभाव के स्तर तक पहुँच जाते हैं. अन्य बयान उस दहलीज को पार नहीं करते हैं, लेकिन सरकार को उन्हें सार्वजनिक रूप से अस्वीकार करना चाहिए और इसका विरोध करना चाहिए. इन स्कॉलरों के प्रभाव और पहुंच के लिहाज से, उनके बयान शिया नागरिकों के खिलाफ भेदभाव को और मज़बूत करते हैं.
सऊदी अधिकारियों को राज्य से संबद्ध मौलवियों और सरकारी एजेंसियों की हेट स्पीच पर तत्काल रोक का आदेश देना चाहिए.
अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने सऊदी अरब को बार-बार "विशेष चिंता का देश" के रूप में वर्गीकृत किया है - जो कि धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले देशों के लिए सबसे सख्त पदनाम है. 1 99 8 का अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम राष्ट्रपति को छूट देने की इजाजत देता है, अगर यह अधिनियम के "उद्देश्यों को और आगे" बढ़ाए या अगर "संयुक्त राज्य के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित में इस तरह की छूट की आवश्यकता हो." अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने 2006 के बाद से सऊदी अरब को ऐसी रियायतें दी हैं.
अमेरिकी सरकार को रियायत रद्द कर देनी चाहिए और सऊदी अधिकारियों के साथ मिलकर शिया और सूफी नागरिकों, साथ ही अन्य धर्मों के खिलाफ नफरत के उकसावे या भेदभाव को ख़त्म करने के लिए काम करना चाहिए. सऊदी धार्मिक शिक्षा पाठ्यक्रम से शिया और सूफी धार्मिक प्रथाओं के साथ-साथ अन्य धर्मों की प्रथाओं की सभी आलोचनाओं और निंदा को हटाने के लिए अमेरिका को दबाव भी डालना चाहिए.
व्हाइटन ने कहा, "धार्मिक स्वतंत्रता पर सऊदी अरब के बुरे प्रदर्शन के बावजूद, अमेरिका ने अमेरिकी कानून के तहत संभावित प्रतिबंधों से सऊदी अरब को बचाए रखा है. अमेरिकी सरकार को अपने सऊदी सहयोगी को जवाबदेह बनाने के लिए अपने कानूनों को लागू करना चाहिए."