पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली ने 25 मई 2014 को आतंकवाद विरोधी पाकिस्तान सुरक्षा अध्यादेश संबंधी कानून को 120 दिनों के लिए बढ़ाए जाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया। यह कदम तब उठाया गया जब पाकिस्तानी सीनेट ने अध्यादेश को कानून में बदलने के सरकार के अनरोध को ठुकरा दिया। मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट वॉच ने अप्रैल 11, 2014 को इस अध्यादेश के अंतरर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों को उल्लंघन करने वाले प्रावधानों को उल्लेख करते हुए सरकार से इसे वापस लेने को कहा था। सरकार ने घरेलू और अंतरर्राष्ट्रीय कानूनविदों की गंभीर चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए यह कदम उठाया है।
ह्यूमन राइट वॉच के एशिया निदेशक, ब्राड एडम्स ने कहा, “पाकिस्तान नेशनल एसेंबली में सदन के नेता के तौर पर प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को इस अध्यादेश को वापस लेकर इसके बदले ऐसा कानून लाना चाहिए जो व्यक्ति के मूल अधिकारों का संरक्षण करते हुए आतंकवाद से निपटने में सक्षम हो”। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान का संदिग्धों को हिरासत में यातना देने का लंबा इतिहास है और ऐसे में इस तरह के अस्पष्ट आतंकनिरोधी कानून को रद्द कर देना चाहिए”।
(न्यूयार्क)- पाकिस्तान का आतंकविरोधी कानून मूल अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए खतरा तो है ही साथ ही यह इस देश के अंतरर्राष्ट्रीय कानून को मानने के संकल्प के विरोध में है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन की ओर से 20 अक्टूबर 2013 को मंजूर पाकिस्तान सुरक्षा अध्यादेश जिसे नेशनल एसेंबली ने 7 अप्रैल 2014 को पारित किया था, को इसी साल 20 अप्रैल तक सीनेट की मंजूरी चाहिए वरना यह निरस्त हो जाएगा।
ह्यूमन राइट वॉच के एशिया निदेशक, ब्राड एडम्स ने कहा, “पाकिस्तान के आतंक निरोधी कानून को मौलिक अधिकारों की अवहेलना के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए”। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान सुरक्षा अध्यादेश न केवल अधिकारों से संबंधी अतंरर्राष्ट्रीय कानूनों बल्कि पाकिस्तानी संविधान की भी अवहेलना करता है”।
ह्यूमन राइट वॉच ने कहा कि प्रस्तावित कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निजता, एकत्रित होने जैसे मूल अधिकारों को हनन करता है बल्कि इंटरनेशनल कान्वेंशन ऑन सिविल ऐंड पॉलिटकल राइट्स (आईसीसीपीआर) के निर्देशों का उल्लंघन भी है जिसे 2010 में पाकिस्तान ने अपनाया था। मौजूदा स्वरुप में इस कानून का इस्तेमाल शांतिपूर्वक राजनैतिक विरोध और सरकारी नीतियों के विरोध को दबाने में किया जा सकता है।
ह्यूमन राइट वॉच का कहना है कि पाकिस्तानी सीनेट को इस इस दमनकारी कानून को पारित न कर इसे जरुरी संशोधनों के लिए नेशनल एसेंबली के पास वापस भेज देना चाहिए।
इस अध्यादेश की प्रस्तावना में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जैसी परिस्थिति उत्पन्न होने व देश की सुरक्षा के लिए खतरे की दशा में आतंकवादी मामलों में जांच व सजा दिलाने के लिए इस कानून को जरुरी बताया गया है।
ह्यूमन राइट वॉच के मुताबिक इस आतंकनिरोधी कानून के प्रारुप में जिस तरह की मनमानी व्याखयाएं दी गयी हैं उनका इस्तेमाल शांतिपूर्वक राजनैतिक विरोध करने वालों, सरकारी नीतियों की आलोचना करने वालों को सजा दी जा सकती है। संस्था के अनुसार इसके सर्वाधिक चिंता पैदा करने वाले पक्ष हैः
- आतंकवादी कृत्यों की मनमानी व्याख्या सीमा से परे जाकर बड़े पैमाने पर होने वाली गतिविधियों को आतंकवादी गतिविधियों के दायरे में लाती हैं। हत्या, फिरौती और अपहरण जैसे कृत्यों के आलावा इस कानून के दायरे में सार्वजनिक यातायात को प्रभावित करना व साइबर अपराधों को आतंकवादी गतिविधि माना गया है जिनमें सजा दी जा सकती है। कानून में उल्लिखत प्रवधानों के मुताबिक ऐसे अहिंसक राजनैतिक विरोध प्रदर्शन जिनसे यातायात प्रभावित होता है, उनको भी पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए खतरा माना गया है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से मानवाधिकार पर जारी निर्देशों में आतंक की कानूनी परिभाषा के तहत इसे आम लोगों या उनके एक वर्ग के खिलाफ हत्या , बंधक बनाने और गंभीर चोट पहुंचाने जैसे अपराधों तक ही सीमित रखना चाहिए न कि संपत्ति संबंधी अपराधों से संलग्न करना चाहिए।
- पाकिस्तान के इस कानून में बिना वारंट हिरासत में लेने का अधिकार का विस्तार पुलिस के अलावा नागरिक प्रशासन का सहयोग कर रही सेना और नारिक सैन्य बलों तक कर दिया गया है। उक्त अध्यादेश सुरक्षा बलों को किसी भी परिसर में घुसने, तालाशी लेने, किसी को हिरासत में लेने संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है जोकि वर्णित अपराध करने के दोषी पाए जाते हैं। इस तरह के अधिकार प्रदान करना आईसीसीपीआर के बिना वारंट हिरासत में लिए जाने संबंधी धारा 9 व धारा 17 में वर्णित निजता व घरों की सुरक्षा संबंधी अधिकारों का उल्लंघन है।
- अध्यादेश में साक्ष्य जुटाने का बोझ सरकारी अभियोजक की जगह संदिग्ध आरोपी पर डाल दिया गया है। अध्यादेश के मुताबिक इस कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेडऩे का आरोपी तब तक माना जाएगा जब तक वह स्वयं अपराध में न शमिल होने का सबूत न देदे। यह प्रावधान आईसीसीपीआर की धारा 19 का उल्लंघन है जो निर्दोष को कानून के तहत सजा सुनाए जाने तक निर्दोष मानने का मौलिक अधिकार देता है।
- अध्यादेश में कानून के तहत काम करने वाले यातना देने वाले न्यायिक अधिकारियों व सुरक्षा बलों को किसी तरह की जवादेही से संरक्षण प्रदान किया गया है। इस तरह का मनमाना संरक्षण आईसीपीपीआर की धारा 2 की उपधारा 3 का उल्लंघन है जो साफ कहती है कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता व मूल अधिकारों के हनन की दशा में सरकार को उसका निदान सुनिश्चित करना होगा भले ही उल्लंघन करने वाला व्यक्ति अपने प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते इस काम को कर रहा था।
अध्यादेश सरकार को यह अधिकार देता है कि वह हिरासत में लेने के स्थान, जांच, अभियोजन का स्थान तय करे। यह प्रावधान आईसीपीपीआर की धारा 9 का उल्लंघन है जो कि स्थापित न्यायिक प्राणली से परे जाकर मनमाने तरीके से हिरासत में लिए जाने व अभियोजन चलाए जाने संबंधी मामलों में संरंक्षण प्रादना करता है। साथ ही यह आईसीपीपीआर की निष्पक्ष व सर्वाजनिक सुनवाई संबंधी अधिकार के धारा 14 का भी उल्लंघन है।
आतंकवाद आज पाकिस्तान के लिए एक गंभीर समस्या है। सुन्नी आतंकवादी संगठन अल-कायदा के सहयोगी लश्कर-ए-जांघवी ने नागरिकों को निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर हमले किए हैं। पूरी तरह से प्रतिबंधित होने के बावजूद लश्कर-ए-जांघवी पूरे पाकिस्तान में बेखौफ होकर हमले कर रहा है और कानून व्यवस्था के जिम्मेदार अधिकारी या तो असहाय हैं या इनकी अनदेखी करते हैं।
अकेले 2013 में निशान बना कर किए गए हमलों में समूचे पाकिस्तान में शिया मुस्लिम समुदाय के 400 सदस्य मारे गये। अप्रैल 9, 2014 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के बाहरी हिस्से में एक खुली बाजार में बमों से लदे एक ट्रक से विस्फोट किया गया जिसमें 22 लोगों की जान गयी। यूनाइटेड बलोच आर्मी नाम के एक स्वयंभू अलगाववादी समूह ने इस हमले की जिम्मेदारी ली।
एडम्स के मुताबिक पाकिस्तानियों को उनके मौलिक व स्वतंत्रतता के अधिकारों से वंचित रख कर आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी लड़ाई नही लड़ी जा सकती है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अपने देश के नागरिक समाज व अंतरर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से सलाह लेकर पाकिस्तान सुरक्षा अध्यादेश में संशोधन करना चाहिए जोकि मानवाधिकारों के संरक्षण के साथ गंभीर अपराधों से निपटने में सक्षम हो सके।