(बेरुत) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज एक वीडियो के साथ जारी रिपोर्ट में कहा कि समय पर उचित मजदूरी के प्रवासी श्रमिकों के अधिकार को सुरक्षा प्रदान करने में कतर सरकार की कोशिशें काफी हद तक असफल साबित हुई हैं. हाल के वर्षों में कुछ सुधारों के बावजूद, लंबित और बकाया वेतन, साथ ही साथ वेतन असंगति के मामले कतर में कम-से-कम 60 नियोक्ताओं और कंपनियों में बड़े पैमाने पर स्थायी रूप से मौजूद हैं.
"मजदूरी के बगैर हम कैसे काम कर सकते हैं? क़तर फीफा वर्ल्ड कप 2022 से पूर्व वेतन असंगतियों के शिकार बनते प्रवासी मजदूर", 78-पृष्ठों की यह रिपोर्ट बताती है कि पूरे कतर में नियोक्ता अक्सर मजदूरों के वेतन अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक क़तर प्रवासी मज़दूरों को वेतन असंगतियों से बचाने और प्रवासी मज़दूरों के वीज़ा को उनके नियोक्ताओं से बांध कर रखने वाली वहां प्रचलित कफाला प्रथा को ख़त्म करने के 2017 के उस वादे को पूरा करने में विफल रहा है जो उसने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) से किया था. ह्यूमन राइट्स वॉच को सुरक्षा गार्ड, बैरा, बरिस्ता, बाउंसर, सफाईकर्मी, प्रबंधन कर्मचारी और निर्माणकर्मियों सहित विभिन्न पेशों में वेतन असंगतियों के अनेकानेक मामले मिले हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच के मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका उप-निदेशक माइकल पेज ने कहा, "कतर के फीफा विश्व कप 2022 के मेजबानी अधिकार हासिल करने के दस साल बाद भी प्रवासी कामगारों को वेतन में देरी, बकाया और कटौतियों का सामना करना पड़ रहा है. हमने सुना है कि वहां वेतन में देरी के कारण मजदूर भुखमरी में जी रहे हैं, कर्ज में डूबे कामगार महज थोड़ी सी मजदूरी की खातिर कड़ी मशक्कत कर रहे हैं और बदले की कार्रवाई के डर से अपमानजनक काम के हालात में फंसे हुए हैं."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस रिपोर्ट के लिए 60 से अधिक कंपनियों या नियोक्ताओं के लिए काम करने वाले 93 से अधिक प्रवासी मजदूरों का साक्षात्कार लिया और कानूनी दस्तावेजों व रिपोर्टों की समीक्षा की.
क़तर 20 लाख प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर है, जो उसकी कुल श्रम शक्ति का लगभग 95 प्रतिशत हैं. अनेक मजदूर आगामी फीफा विश्व कप 2022 के लिए स्टेडियम, परिवहन, होटल और बुनियादी ढांचे के निर्माण या उनके रख-रखाव में लगे हुए हैं. हालांकि वे सभी स्थायी नौकरियों और कमाई की उम्मीद में कतर आए, लेकिन इसके बजाय उनमें अनेक लोगों का सामना वेतन संबंधी असंगतियों से हुआ. इन हालात ने उन्हें कर्ज में और गहरे डुबो दिया और वे ऐसी नौकरियों के जाल में फंस गए हैं जहां शिकायतों के निपटारे का तंत्र कारगर नहीं है.
59 श्रमिकों ने बताया कि उन्हें वेतन मिलने में देरी हुई, उसका भुगतान रोक दिया गया या भुगतान नहीं किया गया; 9 श्रमिकों ने कहा कि नियोक्ताओं ने यह कहते हुए उन्हें भुगतान नहीं किया कि उनके पास पर्याप्त ग्राहक नहीं हैं; 55 श्रमिकों ने कहा कि दिन में 10 घंटे से अधिक काम करने के बाद भी उन्हें ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया गया; और 13 श्रमिकों ने बताया कि उनके नियोक्ताओं ने उनके मूल नियोजन अनुबंध को अपने एक तरफदार नियोक्ता के साथ बदल दिया. 20 मजदूरों ने कहा कि उन्हें अनिवार्य सेवा समाप्ति लाभ नहीं मिला; और 12 ने बताया कि नियोक्ताओं ने उनके वेतन से मनमानी कटौती की.
कोविड-19 के बाद वेतन संबंधी असंगतियां और भी बढ़ गई हैं. कुछ नियोक्ताओं ने वेतन रोकने के लिए महामारी के बहाने का इस्तेमाल किया या रोक कर रखे गए और जबरन स्वदेश वापस भेजे गए श्रमिकों को बकाया वेतन देने से इंकार कर दिया. कुछ मजदूरों ने बताया कि वे खाने का खर्च भी नहीं उठा सकते. कुछ दूसरों ने कहा कि गुजारा करने के लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा.
कतर की एक निर्माण कंपनी में 38 वर्षीय ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजर, जिसका अनुबंध विश्व कप के एक स्टेडियम के बाहरी हिस्से में काम करने का है, ने बताया कि 2018 और 2019 में उसके मासिक वेतन भुगतान में कम-से-कम पांच बार 4 माह तक की देरी हुई. उसने कहा, "वेतन में देरी से मैं प्रभावित हुआ, मुझे अपने क्रेडिट कार्ड भुगतान, किराया और बच्चों की स्कूल फीस भरने में देरी हो रही है. अभी भी मेरे वेतन भुगतान में दो माह की देरी हो रही है.... मेरे समकक्ष सभी कर्मचारियों और यहां तक कि मजदूरों की यही कहानी है. मैं सोच नहीं कर सकता कि मजदूर कैसे गुजारा करते होंगे - मेरी तरह वे बैंक से कर्ज नहीं ले सकते."
ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि कफाला प्रथा श्रमिकों के उत्पीड़न को बढ़ावा देने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है. 2017 में, कतर ने कफाला प्रथा को खत्म करने का वादा किया, और हालांकि कुछ उपायों के लागू होने से यह प्रथा धीरे-धीरे कमजोर पड़ गई है, मगर यह प्रथा अभी भी नियोक्ताओं को प्रवासी श्रमिकों पर अनियंत्रित शक्ति और नियंत्रण का मौका प्रदान करती है.
श्रमिकों की वेतन असंगतियों के लिए क़तर और मज़दूरों के स्वदेश, दोनों जगह की दोषपूर्ण नियोजन कार्यप्रणालियां जिम्मेदार हैं, जिसके तहत क़तर में नौकरी पाने के लिए उन्हें लगभग 700 से 2,600 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना पड़ता है. कतर पहुंचने के समय तक श्रमिक कर्जदार हो जाते हैं और ऐसी नौकरियों में फंस जाते हैं जिनमें अक्सर उनसे किए गए वादे के मुकाबले कम वेतन दिया जाता है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि साक्षात्कार में शामिल 72 श्रमिकों ने नियोजन शुल्क का भुगतान करने के लिए कर्ज लिया. "वेतन प्राप्त करते वक्त भुगतान" (पे व्हेन पेड) जैसी कथित शर्त समेत प्रचलित व्यावसायिक कार्यप्रणालियां वेतन असंगतियों को और बदतर बना देती हैं. ये कार्यप्रणालियां ऐसे उप-ठेकेदारों को श्रमिकों को देर से भुगतान की इज़ाज़त देती हैं जिन्हें भुगतान नहीं किया गया है.
"अगस्त 2019 से मैं पैसे के लिए इंतजार कर रहा हूं," यह कहना है एक 34 वर्षीय इंजीनियर का जिसने 7 माह से अधिक के बकाया वेतन के लिए लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जो फ़िलहाल नेपाल में अपने परिवार को पैसा भेजने के लिए कतर में अपने दोस्तों से उधार ले रहा है. वह पहली बार एक साल पहले अदालत गया था और अभी भी अपने वेतन का इंतजार कर रहा है: “मैं भुखमरी का सामना कर रहा हूं क्योंकि मेरे पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं. यदि मुझे वेतन नहीं मिल पाएगा (कानूनी प्रक्रिया से) तो मैं अपने कर्ज कैसे चुका पाऊंगा? कभी-कभी मुझे लगता है कि आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प है.”
क़तर और खाड़ी क्षेत्र में वेतन असंगति प्रवासी मज़दूरों के अधिकारों का सबसे आम और खौफ़नाक उल्लंघन है, जहां कफाला प्रथा कई रूपों में प्रचलित है. वेतन असंगति से निपटने के लिए कतर सरकार ने 2015 में वेतन सुरक्षा कार्यप्रणाली (डब्ल्यूपीएस), 2017 में श्रम विवाद समाधान समितियां और 2018 में श्रमिक सहायता तथा बीमा कोष का गठन किया.
लेकिन ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि डब्ल्यूपीएस को एक निगरानी प्रणाली कहना बेहतर होगा, जिसकी निगरानी क्षमता में अहम कमियां मौजूद हैं. अक्सर नियोक्ता श्रमिकों द्वारा वेतन निकासी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उनके एटीएम कार्ड ले लेते हैं. इसी तरह, वेतन असंगति के मामलों को समितियों तक ले जाना मुश्किल, महंगा, बहुत समय लेने वाला और अप्रभावी हो सकता है और मजदूर नियोक्ताओं द्वारा बदले की कार्रवाई से डरते हैं. और श्रमिक सहायता तथा बीमा कोष - जिसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि श्रमिकों को तब भुगतान किया जाए जब कंपनियां ऐसा नहीं कर सकती हों - इस वर्ष के आरंभ में ही जाकर इसका परिचालन शुरू हो पाया है.
अक्टूबर 2019 में, सरकार ने अहम सुधारों की घोषणा की जिसके जरिए कतर में सभी प्रवासी श्रमिकों के लिए भेदभाव रहित न्यूनतम मजदूरी तय की जाएगी और उन्हें नियोक्ता की सहमति के बिना अपनी नौकरी बदलने या छोड़ने की अनुमति दी जाएगी. हालांकि, इस प्रथा के अन्य स्वरूपों के जारी रहने की संभावना है जो नियोक्ताओं को श्रमिकों पर थोड़ा बहुत नियंत्रण प्रदान कर सकते हैं. इन सुधारों को जनवरी 2020 से लागू करने की उम्मीद थी.
ह्यूमन राइट्स वॉच ने सवालों के साथ इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को कतर के श्रम मंत्रालय और आंतरिक मामला मंत्रालय के साथ-साथ फीफा और कतर की वितरण और विरासत संबंधी सर्वोच्च समिति को भेजा. हमें सर्वोच्च समिति, कतर के सरकारी सूचना कार्यालय (जीसीओ) और फीफा से जवाब मिले हैं.
फीफा ने अपने जवाब में लिखा: “फीफा और इसके विश्वसनीय साथी, वितरण और विरासत संबंधी सर्वोच्च समिति, की किसी भी प्रकार के भेदभाव और वेतन असंगति के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति है. कतर में फीफा विश्व कप के श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी कोशिशों के जरिए फीफा और एससी देश में वेतन संरक्षण उपायों के महत्व से अवगत है और यही कारण है कि हमने फीफा वर्ल्ड कप आयोजन-स्थलों पर वेतन असंगति रोकने और कम करने के लिए सुदृढ़ कार्यप्रणालियां लागू की हैं. इसके अलावा, कंपनियां के हमारे मानकों पर खरा नहीं उतरने की स्थितियों से निपटने के लिए हमने श्रमिकों हेतु संभावित अन्याय व दुर्व्यवहार संबंधी शिकायतें दर्ज करने और इन्हें दूर के लिए एक तंत्र विकसित किया है. फीफा वर्ल्ड कप आयोजन-स्थलों के संबंध में चिंताओं को उजागर करने को इच्छुक मजदूरों और एनजीओ को फीफा एससी की श्रमिक कल्याण हॉटलाइन (इस लिंक पर देखें) के माध्यम से दृढ़तापूर्वक प्रोत्साहित करता है. यह जमीन पर मौजूद टीमों को इस प्रकार की सूचनाओं को सत्यापित करने और जहां भी आवश्यक हो संबंधित श्रमिकों के सर्वोत्तम हित में उचित कार्रवाई करने में सक्षम बनाएगा."
फीफा ने फीफा वर्ल्ड कप आयोजन-स्थलों के संबंध में चिंताओं को उजागर करने को इच्छुक मजदूरों और एनजीओ को सर्वोच्च समिति की श्रमिक कल्याण हॉटलाइन के माध्यम से प्रोत्साहित किया है.
पेज ने कहा, "कतर के पास फीफा विश्व कप के आगाज होने से पहले दो साल का समय बचा हुआ है. वक़्त तेजी से बीत रहा है और कतर को यह साबित करना चाहिए कि वह कफाला प्रथा को खत्म करने के अपने वादे पर खरा उतरेगा, अपनी वेतन निगरानी प्रणाली में सुधार करेगा, शिकायत निवारण तंत्र में तेजी लाएगा और वेतन असंगतियों को ख़त्म करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाएगा."