भारत के मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं जिन्होंने हिरासत में पिता और पुत्र को कथित रूप से यातनाएं देकर मार डाला. यह फैसला मृतकों को आए चोट और साथ ही न्यायिक मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के आधार पर दिया गया.
तमिलनाडु पुलिस ने 19 जून को 60 वर्षीय पी. जयराज और उनके 31 वर्षीय पुत्र जे. फेनिक्स को कोविड-19 लॉकडाउन नियमों के तहत तय समय सीमा से कथित तौर पर ज्यादा देर तक अपनी मोबाइल फोन दुकान खुला रखने के आरोप में हिरासत में लिया. चार दिन बाद दोनों की मौत हो गई.
दुर्भाग्य से हिरासत में मौतें अलग-थलग घटनाएं नहीं हैं. भारत में पुलिस बहुत कम या किसी जवाबदेही के बगैर आम तौर पर यातना देती है और गिरफ्तारी प्रक्रियाओं को धता बताती है. हालिया मौतों की जांच कर रहे मजिस्ट्रेट ने बताया कि पुलिस ने जांच-पड़ताल के दौरान उन्हें सहयोग नहीं किया, उनका अपमान किया, और सबूत नष्ट किए.
यह जरूरी है कि भारत में पुलिस गिरफ्तार लोगों की चिकित्सकीय जांच कराए और चिकित्सकों को चाहिए कि पहले से मौजूद ज़ख्मों को सूचीबद्ध करें क्योंकि नए जख्म हिरासत में पुलिस उत्पीड़न के सबूत होते हैं. इसके अलावा, प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए. मजिस्ट्रेट तब गिरफ्तारी से संबंधित दस्तावेजों की जांच करते हैं और संदिग्धों से पूछताछ कर उनकी कुशलक्षेम सुनिश्चित करते हैं.
जयराज और फेनिक्स दोनों को 20 जून को चिकित्सकीय जांच के लिए ले जाया गया और फिर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. गवाहों ने बताया कि पुलिस अधिकारियों द्वारा पिछली रात कथित तौर पर पिटाई, प्रताड़ना और यौन उत्पीड़न के कारण उनके शरीर से खून बह रहा था. फिर भी, मजिस्ट्रेट ने उनसे पूछताछ नहीं की और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया - जबकि यह कानूनी अधिदेश है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि यदि ऐसे अपराध किए हों जिनमें सात साल तक की सज़ा हो सकती है, तब लोगों को तभी हिरासत में लिया जाना चाहिए जब आवश्यक हो. गौर तलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 प्रसार की रोकथाम के लिए जेलों में भीड़-भाड़ कम करने के निर्देश भी जारी किए हैं.
जयराज और फेनिक्स की मौत ऐसे वक्त में हुई है जब अभी हाल में ही अमेरिका में एक पुलिस अधिकारी द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या की गई, जिसके बाद वहां अश्वेत लोगों पर पुलिस द्वारा अत्यधिक बल-प्रयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भड़क उठे. इस घटना ने भारत में भी पुलिस सुधारों और जवाबदेही सुनिश्चित करने की खातिर सार्थक कदम उठाने की मांग को बल प्रदान किया है. भारत को चाहिए कि यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के खिलाफ समझौते की अभिपुष्टि करे और दंड प्रक्रिया संहिता में निर्धारित गिरफ्तारी और हिरासत संबंधी कानूनों और दिशानिर्देशों को सख्ती से लागू करे.