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भारत: यौन अपराधी पंजीकरण कोई हल नहीं

महिलाओं और बच्चों के सुरक्षा सम्बन्धी मौजूदा कानून लागू करना ज़रूरी

दिल्ली के बाहरी इलाके में दस-वर्षीय लड़की के बलात्कार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान मोमबत्तियों के साथ नारे बुलंद करती महिलाएं, भारत, 25 अप्रैल, 2018. © 2018 रॉयटर्स

हाल में, यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के बीच पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए देश भर में विरोध प्रदर्शनों से हिली हुई भारत सरकार जवाबी कार्रवाई करने के लिए दबाव में आ गई है. सरकार ने यौन अपराधियों का डेटाबेस तैयार करने का फैसला किया है. इसमें दोषी ठहराए गए और ऐसे कृत्यों के आरोपी अपराधियों के प्रोफाइल और व्यक्तिगत विवरणों को इकट्ठा किया जायेगा. साथ ही, ऐसे अपराधों के आरोपी बच्चों को भी इस डेटाबेस में शामिल किया जा सकेगा.

कई सालों से, सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्री यौन अपराधियों के अनिवार्य पंजीकरण की मांग करते रहे हैं. यह इस सार्वजनिक चिंता को दर्शाता है कि बच्चों और महिलाओं के सामने अपराधी प्रवृत्ति के अनजान व्यक्तियों द्वारा यौन उत्पीड़न का गंभीर खतरा होता है.

लेकिन तथ्य इस चिंता की तसदीक नहीं करते हैं.

2016 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में बलात्कार के दर्ज 38,947 मामलों के करीब 95 प्रतिशत में आरोपी पीड़ित का परिचित था. लगभग चार हज़ार मामलों में आरोपी परिवार का करीबी सदस्य था.

सामाजिक कलंक, पीड़िता को दोष देने, आपराधिक न्याय प्रणाली के अपर्याप्त क्रियान्वयन और किसी राष्ट्रीय पीड़ित और गवाह संरक्षण कानून के अभाव के कारण पहले से ही भारत में बलात्कार के सभी मामले दर्ज नहीं होते हैं. नतीजतन, बलात्कार पीड़ित, रिपोर्ट दर्ज नहीं कराने के लिए आरोपी के साथ-साथ पुलिस के दबाव में आसानी से आ जाते हैं. परिवार और समाज के दबाव के कारण बच्चे कहीं ज्यादा असुरक्षित होते हैं.

तथ्य यह है कि अपराधी, जो कि अक्सर रिश्तेदार या पारिवारिक मित्र होते हैं, के बारे में हमेशा के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस में दर्ज कर दिया जाएगा. इससे वास्तव में ऐसे अपराधों की रिपोर्ट दर्ज करने में कमी आ सकती है. यदि डेटाबेस सार्वजनिक नहीं भी किया जाएगा, तो भी भारत में गोपनीयता सुरक्षा और डेटा संरक्षण पर कानूनों की कमी के कारण यह चिंता और बढ़ेगी.

इसके अलावा, ह्यूमन राइट्स वॉच और अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के अध्ययनों से पता चलता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में यौन अपराधी पंजीकरण के फायदे से ज्यादा नुकसान ही हुआ है. अपराध की रोकथाम के बजाय, इससे पूर्व अपराधियों, विशेष रूप से बाल अपराधियों के उत्पीड़न, बहिष्कार और उनके खिलाफ हिंसा में वृद्धि होती है और उनके पुनर्वास में बाधा पहुंचती है.

इसकी जगह भारत सरकार को मौजूदा कानूनों और सुरक्षा उपायों को बेहतर ढंग से लागू करना चाहिए. यौन हिंसा मामलों में, पुलिस अफसरों, न्यायिक अधिकारियों और चिकित्सा पेशेवरों द्वारा उचित ढंग से निपटने में संवेदनशीलता और ऐसा करने में विफल रहने पर उनकी जिम्मेदारी सुनिश्चित करके यह शुरूआत हो सकती है.

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