यह पत्र किन चीज़ों से संबंधित है,
हाल के वर्षों में भारत में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के प्रति सम्मान में गिरावट आई है. अप्रैल और मई 2019 में होने वाले संसदीय चुनावों के मौके पर मानवाधिकार संरक्षण को अपने संकल्पों और घोषणापत्रों में प्रमुखता से शामिल करने का आग्रह करने के लिए हम आपको यह पत्र लिख रहे हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच पूरी दुनिया में 90 से अधिक देशों में मानवाधिकारों की रक्षा और संवर्धन के लिए समर्पित एक स्वतंत्र, अंतर्राष्ट्रीय, गैर सरकारी संगठन है.
चुनाव अभियान के दौरान भारतीय मतदाता उन मुद्दों, विशेष रूप से मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर व्यापक बहस के हकदार हैं जो उन्हें प्रभावित करते हैं. अब सुधारों के लिए सार्वजनिक प्रतिबद्धता तय करने का समय आ गया है जो मानवाधिकारों पर भारत के रिकॉर्ड को मजबूत करेगा. नीचे मानवाधिकार संबंधी उन प्राथमिकताओं को रखा जा रहा है जिनका उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को समर्थन करना चाहिए.
हमें उम्मीद है कि आप इन प्रतिबद्धताओं को अपनी राजनीति का हिस्सा बनाएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि अगली संसद और सरकार इन महत्वपूर्ण सिफारिशों को लागू करे.
संगठन बनाने और सभा करने की आज़ादी की रक्षा करें
भारत में नागरिक समाज पर प्रतिबंध बढ़ रहे हैं. कई कार्यकर्ताओं और वकीलों को कट्टरपंथी समूहों के हमलों और धमकियों का सामना करना पड़ा है. साथ ही, पुलिस ने असहमति को दबाने के लिए देशद्रोह से लेकर वित्तीय गड़बड़ी तक के आरोपों का इस्तेमाल किया है.[1] विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) जैसे कानूनों का उपयोग सरकार की आलोचना करने वाले नागरिक समाज संगठनों के वित्तीय मदद को रोकने के लिए किया जा रहा है.[2]
हमें उम्मीद है कि आप इन मांगों के लिए प्रतिबद्ध होंगे:
- एफसीआरए में संशोधन करें ताकि यह संगठन बनाने और सभा करने की बुनियादी आज़ादी में हस्तक्षेप न करे और नागरिक समाज संगठनों की संरक्षित गतिविधियों को अवरुद्ध करने के लिए इसका दुरुपयोग न किया जा सके. गैरकानूनी
- गतिविधि रोकथाम अधिनियम में संशोधन करें जिससे कि संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत संगठन बनाने की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान सुनिश्चित किया जा सके.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता की रक्षा करें
देशद्रोह, आपराधिक मानहानि, राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी कानून का इस्तेमाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर अंकुश लगाने के लिए किया जा रहा है, यहां तक कि राजनीतिक बयानबाजी से भेदभाव, शत्रुता और हिंसा भड़काई जा रही है.[3]
ह्यूमन राइट्स वॉच, अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विशेषज्ञों का कहना है कि नया प्रस्तावित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश) अधिनियम निजता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, एन्क्रिप्शन और साइबर सुरक्षा मानकों के लिए खतरनाक है.[4]
हमें इन मांगों पर आपकी प्रतिबद्धता की अपेक्षा है:
- शांतिपूर्ण असहमति को दबाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले देशद्रोह, आपराधिक मानहानि और अन्य कानूनों को निरस्त करें.
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश) नियमावली के प्रस्तावित मसौदा संशोधनों को वापस लें.
सुरक्षा बलों को मिले अभयदान को ख़त्म करें
कानून का शासन बनाए रखने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले सुरक्षा बलों और पुलिस की जवाबदेही तय की जाए. हालाँकि, बहुत बार, अत्याचार या गैर-न्यायिक हत्याओं के गंभीर मामलों में भी अभयदान मिल जाता है. सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) सैनिकों को मानवाधिकार हनन के गंभीर मामलों में अभियोजन से प्रभावी प्रतिरक्षा प्रदान करता है.[5] कई नए मामलों में पुलिस पर अत्याचार और गैर-न्यायिक हत्याओं का आरोप लगने के बावजूद पुलिस सुधार लंबित हैं.
हम उम्मीद करते हैं कि आप ये संकल्प लेंगे:
- सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम को निरस्त करेंगे और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत सुरक्षा बलों को मिली विधि सम्मत प्रतिरक्षा को समाप्त करेंगे.
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुशंसित पुलिस सुधारों को लागू करेंगे.
- लंबित अत्याचार निरोधक विधेयक को लागू करेंगे, लेकिन यह सुनिश्चित करने के बाद ही कि यह यातना और अन्य क्रूरता, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के खिलाफ समझौते के अनुरूप हो.
दलित, आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करें
हाल के वर्षों में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों पर हमले बढ़े हैं.[6] इसके अलावा, दलितों और आदिवासियों को अब भी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें हिंसक हमलों का निशाना बनाया जा रहा है.[7]
अधिकार समूहों ने चिंता जताई है कि बायोमेट्रिक पहचान परियोजना आधार के लिए पंजीकरण की जरुरत ने गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोगों को खाद्य और स्वास्थ्य देखभाल सहित संवैधानिक रूप से गारंटी प्राप्त आवश्यक सेवाएं प्राप्त करने से रोका है.[8]
हम उम्मीद करते हैं कि आप इसके लिए प्रतिबद्ध होंगे:
- सांप्रदायिक हमलों के अपराधियों और इन्हें भड़काने वालों के खिलाफ़ त्वरित और निष्पक्ष जांच और अभियोजन सुनिश्चित करना और तथाकथित गौ रक्षा समूहों सहित गौरक्षकों की हिंसा पर कथित पुलिस निष्क्रियता की जांच करना.
- यह सुनिश्चित करना कि पुलिस राजनीतिक दखल से मुक्त हो और साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान प्रभावी कार्रवाई करे और अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए निष्पक्ष जांच कर सके.
- मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने वाले कानून को सख्ती से लागू करना, साथ ही कार्यस्थल पर जातिगत भेदभाव में लिप्त स्थानीय सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना.
- सफाई व्यवस्था को मशीनीकृत करना और एक पेशेवर स्वच्छता कार्यबल का गठन करना जो उन जाति-आधारित प्रथाओं को समाप्त करे जो सफाई से संबंधित कार्यों के लिए दलितों पर आरोपित हैं. स्वच्छ भारत अभियान सहित सभी सरकारी स्वच्छता कार्यक्रमों के लिए एक अनुश्रवण प्रणाली स्थापित करना.
- आधार अधिनियम में उन संशोधनों को रोकना जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करते हैं. यह सुनिश्चित करना कि कानून गरीब और हाशिए के लोगों को आवश्यक सेवाओं तक पहुंच से वंचित न करे.
शरणार्थी और नागरिक अधिकारों की रक्षा करें
पिछले साल, भारत ने म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजना शुरू कर दिया. ऐसा उसने संयुक्त राष्ट्र के इन निष्कर्षों के बावजूद किया कि म्यांमार के शीर्ष सैन्य अधिकारियों के खिलाफ़ नरसंहार के लिए जांच की जानी चाहिए और उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए. शरणार्थियों को जबरन वापस भेजना गैर-वापसी के सिद्धांत का उल्लंघन करता है. यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक है जिसके अनुसार लोगों को एक ऐसी जगह पर वापस नहीं भेजा जा सकता जहां उन्हें गंभीर उत्पीड़न का वास्तव में खतरा हो.[9]
सरकार ने नागरिकता कानूनों में ऐसे संशोधन प्रस्तावित किए हैं जो मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करते हैं.
हम उम्मीद करते हैं कि आप ये संकल्प लेंगे:
- म्यांमार से उत्पीड़न के शिकार लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करने और उनकी सुरक्षित और स्वैच्छिक वापसी के लिए परिस्थितियां बनाने की मांग करते हुए रोहिंग्या शरणार्थियों की सहायता करेंगे. भारत में सभी रोहिंग्यायों को संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के जरिए एक निष्पक्ष प्रक्रिया से गुजरने का मौका मिलना चाहिए.
- धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाने वाले संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का समर्थन करेंगे.
महिला और बाल अधिकारों की रक्षा
सरकार द्वारा कानूनों में संशोधन और बलात्कार एवं यौन हिंसा उत्तरजीवियों को न्याय दिलाने के उद्देश्य से नए दिशानिर्देश और नीतियों को लागू करने के छह साल बाद भी बच्चों और महिलाओं को इस तरह के अपराधों से जुड़े मामले दर्ज कराने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है.[10] विकलांग लड़कियों और महिलाओं को न्याय हासिल करने में अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है.[11] चिकित्सा पेशेवरों ने अपमानजनक और लांछनापूर्ण “टू-फिंगर टेस्ट” जारी रखा है.
सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों को शिक्षा अधिकार कानून के बावजूद सरकारी स्कूलों में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण उनके श्रम के सबसे निकृष्ट रूपों या बाल विवाह में धकेल दिए जाने का खतरा रहता है.[12]
हम आपसे अपील करते हैं कि:
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 और उन नीतियों को लागू करें जो विकलांग महिलाओं और लड़कियों सहित यौन हिंसा उत्तरजीवियों की मदद के लिए घोषित की गई थीं.
- यौन हिंसा मामलों के समुचित निपटारे पर पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों और चिकित्सा पेशेवरों को संवेदनशील बनाने के लिए उनका नियमित प्रशिक्षण और रिफ्रेशर कोर्स सुनिश्चित करें.
- यौन अपराध बाल संरक्षण अधिनियम के अमल की समुचित निगरानी करें.
- यौन हिंसा पीड़ितों/उत्तरजीवियों की चिकित्सीय/कानूनी देखभाल के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दिशानिर्देश और प्रोटोकॉल को अपनाने और लागू करने के लिए सभी राज्यों को प्रोत्साहित करें.
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 को पूरी तरह से लागू करें, जो कार्यस्थल पर शिकायतों की जांच और निवारण के लिए एक प्रणाली निर्धारित करता है.
- स्कूलों में भेदभाव का पता लगाने और उस पर कार्रवाई में सुधार के लिए स्पष्ट सूचक प्रणाली विकसित करें. शिक्षा अधिकार अधिनियम लागू करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के बच्चों के मैत्रीपूर्ण वातावरण में समान, न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो.
लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करें
दिसंबर, 2018 में लोकसभा द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2018 पारित किया गया. यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के आत्म-पहचान के अधिकार सहित ट्रांसजेंडर समुदाय की पर्याप्त रूप से रक्षा करने में विफल रहा है.
हम आपसे अपील करते हैं:
- अपने वर्तमान स्वरूप में इस विधेयक को वापस लें और यह सुनिश्चित करने के लिए एलजीबीटी समूहों के साथ काम करें कि कोई भी नया कानून नालसा बनाम भारत मामले में 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले, संवैधानिक गारंटियों और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो.
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करें
विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य बुनियादी सेवाओं के लिए बाधाओं का सामना करना पड़ता है और उनको हिंसा और भेदभाव का भी खतरा होता है. विकलांग व्यक्तियों को अक्सर स्वतंत्र रूप से जीने के उनके अधिकार से भी वंचित किया जाता है क्योंकि कई विकलांग संस्थानों में कैद कर रखे जाते हैं.[13]
हमारी अपेक्षा है कि आप:
- मानसिक अस्पतालों और राज्य एवं संगठनों द्वारा संचालित आवासीय देखभाल संस्थानों में अपमानजनक कार्यप्रणाली और अमानवीय स्थितियों को समाप्त करने के लिए तत्काल कदम उठाएं, साथ ही इन सुविधाओं की प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करें.
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप, तमाम विकलांग व्यक्तियों के गैर-संस्थानीकरण और आगे के संस्थानीकरण की रोकथाम के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना बनाएं और लागू करें.
विदेशों में अधिकारों को बढ़ावा दें
भारत ने लंबे समय से वैश्विक मुद्दों पर प्रभावी आवाज बुलंद की है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए अभियान चलाया है. हालाँकि, दमनकारी सरकारों द्वारा अधिकारों के उल्लंघन को रोकने और उत्पीड़ितों के अधिकारों के पक्ष में आवाज़ उठाने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करने में वह अनिच्छुक रहा है.
हम उम्मीद करते हैं कि आप:
- मानवाधिकारों के उल्लंघन की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा का नेतृत्व करेंगे और इस अभियान का समर्थन करेंगे.
- स्वास्थ्य देखभाल, आवास और शिक्षा तक पहुंच में सुधार के प्रयासों को बढ़ावा देंगे और पर्यावरण के नुकसान, गरीबी और भ्रष्टाचार के मानवाधिकारों पर पड़ने वाले प्रभावों को संबोधित करेंगे.
[1] "इंडिया: 5 मोर राइट एक्टिविस्ट्स डिटेंड," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 30 अगस्त, 2018, https://www.hrw.org/news/2018/08/30/india-5-more-rights-activists-detained; "इंडिया: दलित राइट्स एक्टिविस्ट्स डिटेंड," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 24 जून, 2018, https://www.hrw.org/news/2018/06/24/india-dalit-rights-activists-detained; मीनाक्षी गांगुली, "मॉब अटैक इन इंडिया हाइलाइट्स ब्रॉड वॉयलेंस," 20 जुलाई 2018, https://www.hrw.org/news/2018/07/20/mob-attack-india-highlights-broader-violence (15 मार्च, 2019 को देखा गया); "इंडिया: हाई कॉस्ट ऑफ़ रिपोर्टिंग इन छत्तीसगढ़," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 18 अप्रैल 2016, https://www.hrw.org/news/2016/04/18/india-high-cost-reporting-chhattisgarh; "इंडिया: मणिपुर विक्टिम फैमिलीज, एक्टिविस्ट्स हरासड," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 1 अप्रैल 2018, https://www.hrw.org/news/2018/04/12/india-manipur-victim-families-activists-harassed; "इंडिया: एक्टिविस्ट ब्लॉक्ड फ्रॉम यूएन मीटिंग, डिटेंड," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 16 सितंबर, 2016, https://www.hrw.org/news/2016/09/16/india-activist-blocked-un-meeting-detained; "इंडिया: स्टॉप हरासमेंट ऑफ़ एक्टिविस्ट्स," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 21 फरवरी, 2015, https://www.hrw.org/news/2015/02/21/india-stop-harassment-activists.
[2] "इंडिया: ग्रोइंग क्रैकडाउन ऑन एक्टिविस्ट्स, राइट्स ग्रुप्स," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 17 जनवरी, 2019, https://www.hrw.org/news/2019/01/17/india-growing-crackdown-activists-rights-groups; "इंडिया: फॉरेन फंडिंग लॉ यूज्ड टू हरास 25 ग्रुप्स," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 8 नवंबर, 2016, https://www.hrw.org/news/2016/11/08/india-foreign-funding-law-used-harass-25-groups.
[3] ह्यूमन राइट्स वॉच, स्टाइफलिंग डिसेंट: द क्रिमिनलाइजेसन ऑफ़ पीसफुल एक्सप्रेशन इन इंडिया, (ह्यूमन राइट्स वॉच: न्यूयॉर्क, 2016), https://www.hrw.org/report/2016/05/24/stifling-dissent/criminalization-peaceful-expression-india
[4] संगठनों और विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय संघ द्वारा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार को संयुक्त पत्र, 15 मार्च, https://www.accessnow.org/cms/assets/uploads/2019/03/Coalition-Letter-for-sign-on-Indias-Intermediary-Guidelines-March-15-2019.pdf (18 मार्च, 2019 को देखा गया).
[5] "इंडिया: एक्ट ऑन यूएन राइट्स रिपोर्ट ऑन कश्मीर," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 14 जून, 2018, https://www.hrw.org/news/2018/06/14/india-act-un-rights-report-kashmir
[6] ह्यूमन राइट्स वॉच, वायलेंट काउ प्रोटेक्शन इन इंडिया: विजिलांटी ग्रुप्स अटैक माइनॉरिटीज, (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2019) https://www.hrw.org/report/2019/02/18/violent-cow-protection-india/vigilante-groups-attack-minorities
[7] ह्यूमन राइट्स वॉच, क्लीनिंग ह्यूमन वेस्ट: "मैनुअल स्कैवेंजिंग," कास्ट, एंड डिस्क्रिमिनेशन इन इंडिया, (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2014) https://www.hrw.org/report/2014/08/25/cleaning-human-waste/manual-scavenging-caste-and-discrimination-india. जुलाई 2018 में, संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत द्वारा सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता से जुड़ी मानवाधिकारों पर रिपोर्ट में जाति-आधारित भेदभाव की मौजूदगी की बात दर्ज की गई और सिफारिश की गई कि सरकार राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रमों के लिए एक निगरानी प्रणाली स्थापित करे. देखें यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल, रिपोर्ट ऑफ़ द स्पेशल रैपोर्टर्र ऑन द ह्यूमन राइट्स टू सेफ ड्रिंकिंग वाटर एंड सैनिटेशन ऑन हिज मिशन टू इंडिया," A/HRC/39/55/Add.1, July 6, 2018, https://documents-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/G18/207/32/PDF/G1820732.pdf?OpenElement (15 मार्च, 2019 को देखा गया).
[8] "इंडिया: आइडेंटिफिकेशन प्रोजेक्ट थ्रेटन्स राइट्स," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 13 जनवरी, 2018, https://www.hrw.org/news/2018/01/13/india-identification-project-threatens-rights
[9] "इंडिया: 7 रोहिंग्या डिपोर्टेड टू म्यांमार," ह्यूमन राइट्स वॉच न्यूज़ रिलीज़, 4 अक्टूबर, 2018, https://www.hrw.org/news/2018/10/04/india-7-rohingya-deported-myanmar (14 मार्च, 2019 को देखा गया).
[10] ह्यूमन राइट्स वॉच, "एवरीवन ब्लेम्स मी": बैरियर्स टू जस्टिस एंड सपोर्ट सर्विस फॉर सेक्सुअल असाल्ट सर्वाइवर्स इन इंडिया, (न्यू यॉर्क: ह्यूमन राइट्स वॉच, 2017), https://www.hrw.org/report/2017/11/08/everyone-blames-me/barriers-justice-and-support-services-sexual-assault-survivors; ह्यूमन राइट्स वॉच, ब्रेकिंग द साइलेंस: चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज़ इन इंडिया, (ह्यूमन राइट्स वॉच: न्यूयॉर्क, 2013), https://www.hrw.org/report/2013/02/07/breaking-silence/child-sexual-abuse-india.
[11] ह्यूमन राइट्स वॉच, इनविजिबल विक्टिम्स ऑफ़ सेक्सुअल वायलेंस: एक्सेस टू जस्टिस फॉर वीमेन एंड गर्ल्स विथ डिसेबिलिटीज इन इंडिया, (ह्यूमन राइट्स वॉच: न्यूयॉर्क, 2018), https://www.hrw.org/report/2018/04/03/invisible-victims-sexual-violence/access-justice-women-and-girls-disabilities.
[12] ह्यूमन राइट्स वॉच, "दे से वी आर डर्टी": डीनाइंग एन एजुकेशन टू इंडियाज मार्जिनालाइज्ड, (ह्यूमन राइट्स वॉच: न्यूयॉर्क, 2014), https://www.hrw.org/report/2014/04/22/they-say-were-dirty/denying-education-indias-marginalized.
[13] ह्यूमन राइट्स वॉच, "ट्रीटेड वर्स देन एनिमल्स": एब्यूजेज अगेंस्ट विमेन एंड गर्ल्स विद साइकोसोशल ऑर इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटीज़ इन इंस्टिट्यूसंस इन इंडिया, (ह्यूमन राइट्स वॉच: न्यू यॉर्क, 2014). https://www.hrw.org/report/2014/12/03/treated-worse-animals/abuses-against-women-and-girls-psychosocial-or-intellectual.