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विश्व बैंक समूह: अधिकारों का दमन करता भारत में चाय क्षेत्र निवेश

बागानों में व्यापक कुपोषण, दयनीय जीवन स्थिति

एपीपीएल चाय बागान के श्रमिक. असम, भारत (c) 2015 कोमला रामचंद्रा

भारतीय चाय बागानों में निवेश से सम्बंधित विश्व बैंक समूह की अनुपालन जांच ने मानवाधिकारों के जोखिम विश्लेषण और बैंक के निवेश की निगरानी की जरुरत पर बल दिया है. 7 नवंबर, 2016 को जारी यह जांच रिपोर्ट, बैंक के निजी क्षेत्र में ऋण देने वाले संस्थान अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम(आइएफसी) द्वारा भारत के चाय बागानों में निवेश से संबंधित है. भारत के चाय क्षेत्र में रहन-सहन और काम-काज की स्थितियों, संगठन की स्वतंत्रता और स्वास्थ्य एवं शिक्षा की पहुंच से संबंधित कई मुद्दे सामने आए हैं.   .

ह्यूमन राइट्स वॉच की वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान शोधकर्ता (सीनियर इंटरनेशनल फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशंस रिसर्चर) जेसिका इवांस ने कहा कि "विश्व बैंक की जांच में पाया गया है कि आइएफसी ने भारतीय चाय बागानों में श्रम अधिकार और अन्य मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन को ध्यान में रखे बिना इस क्षेत्र में लाखों(डॉलर?) निवेश किए हैं. आइएफसी श्रमिकों और बाल श्रमिकों के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त रहने की स्थिति सहित बुनियादी जोखिमों की पहचान करने और उनका निदान करने में विफल रहा है."

आइएफसी के लिए कंप्लायंस एडवाइजर ओम्बड्समैन (सीएओ) इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आइएफसी भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कानून के संभावित उल्लंघन सहित श्रम, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी मुद्दों की पहचान और संबोधित करने में नाकाम रहा है. सीएओ पर आइएफसी नीति के उल्लंघन की जांच करने और प्रभावित समुदायों की शिकायतों की समीक्षा करने की जिम्मेवारी होती है.

इस रिपोर्ट में दिसम्बर 2013 के सीएओ के उन जांच निष्कर्षों का हवाला दिया गया है जिसमें बताया गया है कि आइएफसी की अक्षमताओं का आंशिक कारण इसकी कार्यसंस्कृति और प्रोत्साहन नीति रही है जो आइएफसी नीतियों की परवाह किए बिना परिणाम को वित्तीय आधार पर मापती है, कर्मचारियों को संभावित पर्यावरणीय, सामाजिक और टकराव संबंधी जोखिमों की "अनदेखी करने, उनके बारे में साफ़ तौर पर बताने में विफल रहने या यहाँ तक कि छुपाने के लिए" प्रोत्साहित करती है.

नवंबर 2006 में, आइएफसी ने टाटा ग्लोबल बेवरेजेज को अपने चाय बागानों का मालिकाना हक़ एक नई कंपनी, अमलगैमेटेड प्लांटेशंस प्राइवेट लिमिटेड (एपीपीएल) को स्थानांतरित करने के लिए 7.87 मिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया. आइएफसी को एपीपीएल में 19.9 प्रतिशत इक्विटी की हिस्सेदारी मिलनी थी, जबकि टाटा ग्लोबल बेवरेजेज ने 49.6 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की थी. आइएफसी ने एपीपीएल कर्मचारियों के लिए नई कंपनी में शेयर खरीदने के कार्यक्रम केलिए भी निवेश किया.

चाय बागानों में व्यापक कुपोषण है और श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी उनकी बुनियादी पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, ऐसे अध्ययनों का हवाला देते हुए सीएओ ने पाया कि आइएफसी ने "गरीबी से बाहर निकलने का रास्ता" उपलब्ध कराने और श्रमिकों को "स्वास्थ्य सुरक्षा देने और उसे बेहतर बनाने" वाले रोजगार पैदा करने वाले अपने ही मानक को पूरा नहीं किया है. सीएओ ने ऐसे कई समूहों का हवाला दिया जो यूनियन बनाने के श्रमिकों के अधिकारों सहित बागानों में संगठन की स्वतंत्रता के मुद्दों को उठा रहे हैं.  इन आपत्तियों पर उपयुक्त पहल करने के बजाय आइएफसी ने तर्क दिया कि वह अपनी नीतियों के अनुरूप  कानून का अनुपालन कर रहा है और आवश्यकतानुसार "नया कानूनी राय" लेगा.

सीएओ ने पाया कि आइएफसी ने समस्याग्रस्त कर्मचारी शेयर-खरीद कार्यक्रम में निवेश किया है जो कि स्टॉक खरीदने से जुड़े जोखिमों के बारे में कंपनी की गलत बयानी, कम-वेतन वाले श्रमिकों पर कर्ज लेकर स्टॉक खरीदने के वित्तीय प्रभाव और श्रमिकों पर कार्यक्रम में भाग लेने के दवाब के आरोपों को उजागर करता है. सीएओ के मुताबिक आइएफसी ने श्रमिक-शेयरधारकों के परामर्श के बिना अधिक शेयर जारी करने, श्रमिकों के शेयरों के मूल्य को कम करने और एपीपीएल में उनकी हिस्सेदारी कम करने का समर्थन किया. हालाँकि आइएफसी ने अन्य उपायों के साथ-साथ वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों की पेशकश की है, लेकिन श्रमिकों के शेयरों के मूल्य पर अपने निवेश के प्रभाव के बारे में उठाई गई चिंताओं पर यह चुप है.

आइएफसी को विकास और क्षतिपूर्ति स्तर के सामाजिक असर, ट्रेड यूनियन प्रतिनिधित्व और कर्मचारी शेयर खरीद कार्यक्रम के पारदर्शी और परामर्शी मूल्यांकन के लिए एपीपीएल, सरकार, गैर सरकारी समूहों और सम्बंधित विशेषज्ञों के साथ काम करना चाहिए. आइएफसी को स्वास्थ्य, साक्षरता और शिक्षा के समग्र आंकड़ों और इन मुद्दों से सम्बंधित मौजूदा योजनाओं का खुलासा करना चाहिए. आइएफसी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बागानों में नौकरियां श्रमिकों को "सम्मानजनक और उचित मजदूरी" भुगतान के उसके मानक के अनुरूप हों और उसे संगठन की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए.

सीएओ का मानना है कि आइएफसी निवेश का रोजगार, भोजन, आवास, जल, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के लिए चाय बागान पर निर्भर एपीपीएल के तीस हज़ार कर्मचारियों और 1,55,000 लोगों के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है. लेकिन सीएओ ने कहा कि आइएफसी के कर्मी  सामाजिक और पर्यावरणीय कमियों और जोखिम कारकों की पहचान करने में असफल रहे और इसलिए निवेश को अपने खुद के मानकों के अनुरूप बनाने के लिए आवश्यक कार्रवाई नहीं कर सके. इसके संभावित कारणों में से एक यह था कि आइएफसी ने पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों का आकलन करने का काम केवल पर्यावरणविदों को सौंपा, यह ज़िम्मेदारी सामाजिक, श्रम या मानवाधिकार विशेषज्ञों को नहीं सौंपी.

आइएफसी ने कुछ निष्कर्षों को स्वीकार किया है, जबकि अन्य निष्कर्षों का विरोध कर रहा है और उनपर पहल करने में विफल रहा है. सीएओ ने चिंता व्यक्त की है कि निष्कर्षों के आलोक में श्रमिकों के परामर्श से कार्य योजना तैयार नहीं की गई. इवांस ने कहा कि "आइएफसी ने भारत में अपने चाय निवेश के विकास और पिछली गलतियों से निपटने की अपनी योजना, दोनों मामलों में प्रभावित समुदायों और श्रमिकों से परामर्श करने की अपनी प्रतिबद्धता को किनारे कर दिया है".

सीएओ ने पाया कि आइएफसी अपनी नीतियों के तहत जरुरी स्वतंत्र पर्यावरण और सामाजिक समीक्षा करने के बजाय,  बाह्य (स्वतंत्र) प्रमाणन मानकों को पूरा करने के लिए टाटा समूह की प्रतिष्ठा और नीयत पर बहुत अधिक निर्भर रहा है. नतीजतन, इसने चाय बागानों में श्रम सुरक्षा के प्रणालीगत और व्यापक उल्लंघन पर उचित ध्यान नहीं दिया. रिपोर्ट के जवाब में, आइएफसी ने टाटा ग्लोबल बेवरिजेज द्वारा करवाई गयी एक अन्य संगठन की जांच पर बहुत भरोसा किया, जिसके निष्कर्ष सार्वजनिक नहीं किए गए हैं या सीएओ को सुपुर्द नहीं किए गए हैं.

आइएफसी को अपनी नीति और कानूनी अनुपालन प्रदर्शित करने के लिए गोपनीय रिपोर्टों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. आइएफसी को बाहरी जांच के लिए रिपोर्ट जारी करना चाहिए. सामान्य तौर पर, आइएफसी को प्रभावित समुदायों और श्रमिकों के समक्ष ऑडिट (लेखा परीक्षा) रिपोर्ट  पेश  करनी  चाहिए, ऑडिट प्रक्रियाओं और परिणामों के सत्यापन और उनपर परामर्श की उन्हें इज़ाज़त देनी चाहिए.

सीएओ ने पाया कि आइएफसी को इसकी जांच करनी चाहिए थी कि उसके निवेश का देशज आबादी के प्रति उसकी नीति का श्रमिकों पर असर पड़ेगा या नहीं. एपीपीएल के कई श्रमिकों के पूर्वज मध्य भारत के देशज या आदिवासी समूहों से थे, जिन्हें चाय बागानों में काम करने के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में लाया गया था. उन्होंने अपनी भाषा को और आम आबादी से अलग अपनी संस्कृति को बरक़रार रखा है. वे आदिवासी के रूप में पहचाने जाते हैं और अपनी भाषा-संस्कृति की आधिकारिक मान्यता प्राप्त करने केलिए उनका पुराना अभियान रहा है.

आइएफसी ने इस निष्कर्ष को चुनौती दी कि मजदूर देशज नहीं हैं क्योंकि वे इस क्षेत्र के मूलनिवासी नहीं हैं और भूमि पर उनकी ऐतिहासिक निर्भरता नहीं है. लेकिन सीएओ ने कहा कि स्वयं के दिशा-निर्देश के तहत, आइएफसी को यह निर्धारित करने के लिए विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिए थी कि क्या देशज आबादी के प्रति उसकी नीति लागू होती है या नहीं? आइएफसी को श्रमिकों और गैर-सरकारी समूहों के साथ परामर्श करके विशेषज्ञों द्वारा इस तरह का विश्लेषण करवाना चाहिए.

इंडिया टी इन्वेस्टीगेशन के जवाब में, आइएफसी ने घोषणा की थी कि अपनी परियोजनाओं में प्रासंगिक और स्थानीय जोखिमों की जांच के लिए वह नई प्रक्रियात्मक जरूरतों का ध्यान रखेगा. सीएओ के दिसंबर 2013 की रिपोर्ट के जवाब में घोषित ये सुधार काफी समय से लंबित हैं. भविष्य में प्रणालीगत विफलताओं को दूर करने के अलावा, आइएफसी को अपने निवेश के सामाजिक प्रभाव की समग्र समीक्षा करनी चाहिए और सभी प्रतिकूल प्रभावों को पूरी तरह समाप्त करने और विकास परिणामों को गति देने के लिए अपने ग्राहकों के साथ काम करना चाहिए.

आइएफसी बोर्ड, जो इसके सदस्य सरकारों से मिल कर बना है, को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आइएफसी निष्कर्षों पर पूरी कार्रवाई करेगा. आइएफसी कार्रवाई की निगरानी करते समय, बोर्ड को कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा करने वाले सकारात्मक विकास प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए. इसके अलावा, सीएओ को अपनी शक्ति का उपयोग सिस्टम की व्यापक जांच के लिए अपनी तहकीकात इस बात पर शुरू करनी चाहिए कि आइएफसी पूरी तत्परता के साथ और पर्यवेक्षण कार्यों में सभी तरह के मानवाधिकार  सम्बन्धी जोखिमों की पहचान और उन्हें संबोधित कर रहा है या नहीं.

इवांस ने कहा, "आइएफसी अपनी स्थानिक विफलताओं को दूर करने में सुस्त पड़ गया है और समुदाय स्तर पर अतीत की अपनी गलतियों से छुटकारा पाने के लिए उसने बहुत थोड़ा काम किया है. आइएफसी बोर्ड को कर्मचारियों के पास कार्ययोजना वापस भेजनी चाहिए और उन श्रमिकों एवं समूहों के साथ परामर्श करना चाहिए जिन्होंने शिकायत दर्ज की थी, जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी उल्लंघनों को दुरुस्त कर लिया गया और उपयुक्त कार्रवाई की गई."

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