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भारत

2024 की घटनाएं

भारत में आम चुनाव के दौरान मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए कतार में खड़े मतदाता, भोपाल, 7 मई, 2024.

© 2024 गगन नायर/एएफपी वाया गेटी इमेज

हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2024 में तीसरी बार सत्ता में वापसी की. सरकारी तंत्र ने अल्पसंख्यक समुदायों के साथ भेदभाव बरतना जारी रखा. यह इन हमलों के लिए जिम्मेदार भाजपा समर्थकों के खिलाफ पर्याप्त कार्रवाई करने में विफल रहा. इसके बजाय इसने हिंसा पीड़ितों को निशाना बनाया, जिसमें मुस्लिमों के घरों और संपत्तियों को अवैध रूप से ध्वस्त करना शामिल है. सरकार के आलोचकों को कर और विदेशी अनुदान विनियमन और आतंकवाद निरोधी कठोर कानून के तहत राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमों का सामना करना पड़ा.

भारत सरकार पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में नृजातीय हिंसा ख़त्म नहीं कर पायी है. इस हिंसा में मई 2023 से अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

कई विदेशी सरकारों ने भारतीय खुफिया एजेंसियों पर कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान में संदिग्ध आतंकियों और अलगाववादी नेताओं की हत्या करने का आरोप लगाया. अक्टूबर 2024 में, कनाडा की नेशनल पुलिस सर्विस ने कनाडा के अंदर आपराधिक गतिविधियों में भारतीय एजेंटों की कथित भूमिका पर सार्वजनिक बयान जारी किया, जिसमें हत्या, जबरन वसूली और अन्य प्रकार की हिंसा से संबंधित आरोप शामिल हैं. भारत सरकार ने प्रवासियों समेत सरकार के आलोचकों के वीज़ा रद्द कर दिए या उनके भारत में प्रवेश करने पर पाबंदी भी लगाई.

मोदी प्रशासन के बद्तर होते मानवाधिकार रिकॉर्ड के बावजूद, कई देशों ने भारत के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत किया. हालांकि, जनवरी में यूरोपीय संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया, इस प्रस्ताव में अल्पसंख्यकों के खिलाफ “हिंसा, बढ़ती राष्ट्रवादी बयानबाजी और विभाजनकारी नीतियों” सहित बेहद जरूरी मानवाधिकार चिंताओं को उठाया गया. मई में, संयुक्त राष्ट्र से जुड़े राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन ने लगातार दूसरे साल भारत के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मान्यता देने के फैसले को टाल दिया.

जम्मू और कश्मीर 

भारत सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर की विशेष स्वायत्त स्थिति को रद्द करने के बाद पहली बार सितंबर में वहां क्षेत्रीय सरकार के गठन के लिए चुनाव कराए. हालांकि सरकार ने दावा किया कि उसने क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बहाल कर दी है, मगर अनेक कश्मीरियों ने बताया कि उन्होंने आज़ादी के बुनियादी अधिकारों पर जारी प्रतिबंधों के खिलाफ मतदान किया.

अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण माने जाने वाले जम्मू क्षेत्र में मई और जुलाई के बीच हिंसा में वृद्धि देखी गई, जिसमें 15 सैनिक और 9 नागरिकों की मौत हुई. सितंबर तक, जम्मू और कश्मीर में हुए 40 हमलों में 18 नागरिक, सुरक्षा बल के 20 जवान और 39 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए.

मार्च में, अब एक केन्द्रशासित क्षेत्र, लद्दाख में प्रदर्शनकारियों ने शासन में और भागीदारी की मांग की. अक्टूबर में, भारतीय अधिकारियों ने मशहूर जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लद्दाख के 120 अन्य लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया. इन लोगों ने 30 दिनों में प्रांतीय राजधानी लेह से दिल्ली तक की लगभग 1,000 किलोमीटर की पदयात्रा की थी. स्थानीय शासन में अधिक भागीदारी और पर्यावरण सुरक्षा के लिए कड़े उपायों की मांग कर रहे कार्यकर्ताओं को 36 घंटे बाद रिहा किया गया.

कश्मीर में हुए हमलों में धार्मिक अल्पसंख्यकों और प्रवासी श्रमिकों को निशाना बनाया गया, जबकि पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सहित सैकड़ों कश्मीरी हिरासत में रहे. कश्मीरी मानवाधिकार रक्षक खुर्रम परवेज नवंबर 2021 से भारत के कठोर आतंकवाद निरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल में बंद हैं.

कश्मीर में पत्रकारों पर पुलिस पूछताछ, छापेमारी, धमकियों, शारीरिक हमले, आवाजाही पर पाबंदी और मनगढ़ंत आपराधिक मामलों का खतरा बना रहा. जून में, सरकार ने क्षेत्र के सरकारी अधिकारियों को कथित झूठी शिकायतों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक नीति प्रस्तावित की जिसमें कथित गलत सूचना फैलाने में संलिप्त मीडिया संस्थानों को दंडित करने की सिफारिश की गई है. इससे सरकार की जवाबदेही और मीडिया की आज़ादी पर मौजूद खतरों के प्रति चिंताएं बढ़ गई हैं.

कई मामलों में, पुलिस ने लोगों को अदालतों द्वारा जमानत दिए जाने या हिरासत आदेशों को ख़ारिज करने के बाद नए आरोप दायर कर हिरासत में रखा. मार्च में, अधिकारियों ने जेल में पांच साल से अधिक समय बिताने के बाद रिहा हुए कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान को फिर से गिरफ्तार करने के लिए एक नया यूएपीए मामला दर्ज कर दिया.

सुरक्षा बलों को उत्पीड़न करने की खुली छूट 

यातना और गैर-न्यायिक हत्याओं के आरोप लगातार लगते रहे, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 2024 के पहले नौ महीनों में पुलिस हिरासत में 121, न्यायिक हिरासत में 1,558 मौतें, और 93 कथित गैर-न्यायिक हत्याएं दर्ज कीं.

जम्मू और कश्मीर और कई पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम लागू रहा. यह अधिनियम मानवाधिकार हनन के गंभीर मामलों में भी सुरक्षा बलों को अभियोजन से प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है.

सितंबर में, बांग्लादेश सरकार ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर कथित रूप से भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा दो व्यक्तियों की हत्या की कड़ी निंदा की. बीएसएफ ने अक्सर बांग्लादेशी सीमा पर बेख़ौफ़ होकर अत्यधिक बल प्रयोग किया है, जिसमें भारतीयों के साथ-साथ बांग्लादेश से आने वाले अनियमित अप्रवासियों और मवेशी व्यापारियों को निशाना बनाया गया है.

धार्मिक और नृजातीय अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासी समूहों पर हमले

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी अभियान में अक्सर मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ नफ़रती भाषण दिए, जिससे इन तबकों के खिलाफ़ भेदभाव और दुश्मनी तथा हिंसा को बढ़ावा मिला.

जून और अगस्त के बीच, हिंदू स्वयंभू रक्षकों की हिंसा में वृद्धि हुई, गोमांस खाने या क़त्ल के लिए मवेशियों को ले जाने के संदेह में मुसलमानों पर हमले किए गए. अगस्त में, हरियाणा में स्थानीय हिंदुओं ने कथित तौर पर गोमांस खाने के आरोप में पश्चिम बंगाल के 26 वर्षीय मुस्लिम प्रवासी मज़दूर की हत्या कर दी. महाराष्ट्र में, गोमांस ले जाने के संदेह में एक 72 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति को ट्रेन में परेशान किया गया और पीटा गया. अगस्त में, हिंदू स्वयंभू रक्षकों ने मुस्लिम और गौ-तस्कर होने के संदेह में एक 19 वर्षीय हिंदू युवक की गोली मारकर हत्या कर दी.

कई भाजपा शासित राज्य सरकारों ने बिना किसी उचित प्रक्रिया के मुसलमानों के घर, व्यावसायिक और पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया और अन्य गैरकानूनी कार्रवाइयां कीं. भाजपा नेताओं ने इन विध्वंसक कार्रवाइयों, जो अमूमन सांप्रदायिक झड़प के मामलों या असहमति जताने पर मुस्लिम समुदाय को सामूहिक दंड देने की कार्रवाइयां थीं, को “बुलडोजर न्याय” करार दिया. जून में, मध्य प्रदेश में अधिकारियों ने मंडला जिले में 11 मुस्लिम घरों को यह कहते हुए ध्वस्त कर दिया कि उनके फ्रिज में गोमांस, साथ ही जानवरों की खाल और कंकाल मिले हैं. नवंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी विध्वंसक कार्रवाइयों को अवैध करार दिया और घरों को ध्वस्त करने से पहले पर्याप्त उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश तय किए.

कई भाजपा शासित राज्यों में हिंदू भीड़ ने “अवैध धर्मांतरण” के आरोपों पर ईसाइयों पर हमले किए. जुलाई में, छत्तीसगढ़ में हिन्दुओं के समूह ने एक पादरी पर हमला किया. मध्य प्रदेश में एक उग्र भीड़ ने प्रार्थना सभा पर हमला कर पुरुषों और बच्चों की पिटाई की. भारत के 28 राज्यों में से कम-से-कम 12 राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानून हैं, जिनका इस्तेमाल सरकारी तंत्र द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यकों, खास तौर से दलित और आदिवासी समुदायों के ईसाइयों को हैरान-परेशान करने के लिए किया गया है और हिन्दू रक्षकों की हिंसा को बढ़ावा दिया गया है.

दलित व्यवस्थागत हिंसा और जाति-आधारित भेदभाव का लगातार सामना कर रहे हैं. जुलाई में, उत्तर प्रदेश में तीन युवकों ने एक 15 वर्षीय दलित लड़के को पेशाब पीने के लिए मजबूर किया. अगस्त में, मध्य प्रदेश में रेलवे पुलिस ने एक दलित महिला और उसके 15 वर्षीय पोते की पिटाई की. अगस्त में, उत्तर प्रदेश के एक निजी अस्पताल में एक डॉक्टर द्वारा 20 वर्षीय दलित नर्स के साथ बलात्कार से एक बार फिर यह बात उभरकर सामने आई कि दलित महिलाओं और लड़कियों के यौन हिंसा का शिकार होने के खतरे बहुत ज़्यादा हैं.

छत्तीसगढ़, जहां अनेक कई आदिवासी समुदाय रहते हैं, में भाजपा सरकार ने माओवादी विद्रोहियों के खिलाफ़ उग्रवाद विरोधी अभियान तेज़ कर दिया. इस अभियान के दौरान ग्रामीणों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी गैर-न्यायिक हत्याओं के ढेर सारे आरोप लगे. सरकारी तंत्र ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना जारी रखा, जिसमें माओवादी या माओवादी समर्थक होने के राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोप भी शामिल हैं.

सितंबर में, मणिपुर में मुख्यतः ईसाई कुकी-ज़ो समुदाय और ज़्यादातर हिंदू मैतेई समुदाय के सशस्त्र समूहों के बीच नृजातीय हिंसा फिर भड़क उठी, जिनमें खबरों के मुताबिक कम-से-कम 11 लोग मारे गए. छात्रों और अन्य लोगों ने इस हिंसा का विरोध किया और कुछ समूहों की सुरक्षा बलों के साथ झड़प हुई एवं उन्होंने सरकारी इमारतों पर हमला किया. कमज़ोर समुदायों की सुरक्षा करने और कानून का शासन कायम करने के बजाय, राज्य की भाजपा सरकार ने अपनी ध्रुवीकरण नीतियों से समुदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे आक्रोश और अविश्वास को और गहरा कर दिया.

जुलाई में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने भारत द्वारा नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अनुपालन की समीक्षा की. इसमें समिति ने धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासी समूहों सहित अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा के प्रति चिंता जताई.

नागरिक समाज और संगठन बनाने की स्वतंत्रता

भारत सरकार ने विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) जैसे विदेशी आर्थिक सहायता प्राप्त करने संबंधी उत्पीड़नकारी कानूनों, आतंकवाद निरोधक कानून, फर्जी वित्तीय जांच और अन्य तरीकों से नागरिक समाज समूहों और कार्यकर्ताओं को गैरकानूनी तरीके से हैरान-परेशान किया. फरवरी में, केंद्रीय जांच ब्यूरो ने प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर के घर और कार्यालयों पर छापा मारा. जनवरी में, सरकार ने शोध संस्थान सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च और कम आय में जीवन निर्वाह करने वाले समुदायों के बच्चों को मानवीय सहायता प्रदान करने वाली ईसाई चैरिटी वर्ल्ड विजन इंडिया के एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिए.

जून में, एक अंतर-सरकारी संगठन, फाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली के प्रति खतरों से निपटने के लिए काम करता है, ने सिफारिश की कि भारत गैर-सरकारी समूहों के खिलाफ आतंकवाद निरोधी नीतियों के दुरुपयोग रोकने के उपाय करे.

जुलाई में, भारत सरकार ने भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए आपराधिक कानून लागू किए. ये नए कानून पुलिस की शक्तियों का विस्तार करते हैं, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन बनाने एवं शांतिपूर्ण सभा करने और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

सरकार ने वेबसाइट्स ब्लॉक करने या सोशल मीडिया एकाउंट्स निलंबित करने के मनमाने और असंगत आदेशों के जरिए शांतिपूर्ण ऑनलाइन अभिव्यक्ति को सेंसर किया. जनवरी में, सरकार ने हिंदुत्व वॉच और इंडिया हेट लैब के वेबसाइट प्रतिबंधित कर दिए. ये वेबसाइट नफरती भाषण और भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमलों से संबंधित आंकड़े और तथ्य इकट्ठा करते थे. फरवरी में, हरियाणा और पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार ने दर्जनों सोशल मीडिया अकाउंट्स प्रतिबंधित कर दिए. इनमें से ज्यादातर अकाउंट विरोध प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों, किसानों, किसान संगठन के नेताओं और आंदोलन समर्थकों के थे.

भारत सरकार ने भारत में काम करने वाले ऐसे विदेशी पत्रकारों और भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों के वीज़ा संबंधी विशेषाधिकार रद्द कर दिए, जो सरकार या उसकी नीतियों के आलोचक थे. जून में, तीन विदेशी पत्रकारों ने दावा किया कि सरकार द्वारा फिर से वर्क परमिट देने से इंकार करने के बाद उन्हें मजबूरन भारत छोड़ना पड़ा.

भारत के सरकारी तंत्र ने भारतीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों का उल्लंघन करते हुए वैश्विक स्तर पर इन्टरनेट पर सबसे ज़्यादा संख्या में प्रतिबंध लगाना जारी रखा. इन प्रतिबंधों से सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए के समुदाय मुफ्त या रियायती राशन और आजीविका तक पहुंच से वंचित हुए जिससे उन्हें बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है.

सितंबर में, बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली में 2023 में किए गए संशोधन को रद्द करने से अभिव्यक्ति की आज़ादी को जीत मिली. यह संशोधन सरकार को उससे संबंधित ऐसी किसी भी ऑनलाइन सूचना की पहचान करने के लिए फैक्ट-चेकिंग यूनिट बनाने और उन सूचनाओं को हटाने का आदेश देने का अधिकार देता था, जिन्हें वह गलत या भ्रामक मानती है.

महिला और बालिका अधिकार

अगस्त में कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में 31 वर्षीय डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बाद न्याय के लिए और चिकित्सा संस्थानों और अस्पतालों में बेहतर सुरक्षा एवं सुविधाओं की मांग को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. इस हत्या ने इस बात को उजागर किया कि कैसे लाखों भारतीय महिलाओं के समक्ष कार्यस्थल पर उत्पीड़न का खतरा बना हुआ है और यौन हिंसा के लिए न्याय पाने में वे गंभीर बाधाओं का सामना कर रही हैं.

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम और कार्यस्थल पर उन्हें यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए कानून हैं. हालांकि, सरकारी तंत्र इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने या औपचारिक और अनौपचारिक - दोनों क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न रोकने के लिए शिकायत समितियों का गठन सुनिश्चित करने में विफल रहा है.

विकलांगता अधिकार

भारत भर में विकलांग लोग ऐसे संस्थानों में रह रहे हैं जहां बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं. जुलाई में, दिल्ली में सरकार द्वारा संचालित आश्रय गृह आशा किरण में रहने वाले 14 लोगों की मौत 20 दिनों के भीतर हो गई. इस घटना ने इन संस्थानों में रहन-सहन की स्थितियों और पेयजल एवं भोजन की गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को सामने लाया है. साल 2024 की शुरुआत से अगस्त तक संस्थान में रहने वाले 27 लोगों की मौत हो चुकी है.

यौन उन्मुखता और लैंगिक पहचान

सितंबर में, केंद्र सरकार ने कई उपायों की घोषणा की जिससे ऐसे जोड़ों के समावेशन की दिशा में पहल हुई, चाहे उनकी यौन उन्मुखता या लैंगिक पहचान जैसी भी हो. इनमें एलजीबीटीक्यूआई+ जोड़ों को राशन कार्ड प्राप्त करने के लिए एक ही घर का हिस्सा मानने, संयुक्त बैंक खाता खोलने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने और मृत्यु होने पर खाते की बाकी राशि प्राप्त करने के लिए एक पार्टनर को नामित करने संबंधी निर्देश शामिल थे.

इन उपायों की घोषणा अक्टूबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद की गई जिसमें समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से तो इंकार कर दिया गया था, लेकिन एलजीबीटीक्यूआई+ समुदाय के अधिकारों और हक़ का अध्ययन करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति के गठन का निर्देश दिया गया था.

शरणार्थी अधिकार

भारत में रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को कड़े प्रतिबंधों, मनमाने हिरासत, अक्सर राजनीतिक नेताओं द्वारा भड़काया गये हिंसक हमलों और जबरन वापसी के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ा. भारत सरकार सैकड़ों रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में रखे हुई है, जिसके कारण नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने जुलाई में सरकार से मांग की कि वह उनकी मनमानी हिरासत को ख़त्म करे और उन्हें जबरन निर्वासित करने और म्यांमार वापस भेजने से परहेज करे.

मई में, भारत सरकार ने 2019 में संसद में पारित भेदभावपूर्ण नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के तहत पहले समूह को नागरिकता प्रमाणपत्र प्रदान किए. यह कानून भारत के मुस्लिम बहुल पड़ोसी देशों — पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश — में धार्मिक उत्पीड़न से बच कर भागने वाले गैर-मुस्लिमों के नागरिकता अनुरोधों का त्वरित निपटारा तो करता है, लेकिन उन देशों के मुस्लिम शरणार्थियों को इसमें शामिल नहीं करता.